Monday, May 25

मुस्लिम विधि में हक़ शुफा (अग्र-क्रयाधिकार)

शुफा एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है – जोड़ना | कुछ परिस्थितियों में जब दो व्यक्तियों के बीच अचल संपत्तियों का विक्रय, हो तब तीसरा व्यक्ति बीच में पड़कर खुद खरीददार होने का दावा कर सकता है ऐसे अधिकार को शुफा या अग्र-क्रयाधिकार कहते हैं |

मूल के अनुसार – शुफा का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसके अनुसार अचल संपत्ति के स्वामी को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अन्य अचल संपत्ति को खरीद ले जिसका विक्रय किसी अन्य व्यक्ति को किया जा चुका है |

शुफा के अधिकार का आवश्यक तत्व –

  1. शफी को किसी अचल संपत्ति का स्वामी होना चाहिए |
  2. शफी की अचल संपत्ति के अतिरिक्त किसी अन्य संपत्ति का विक्रय होना चाहिए |
  3. विक्रय की संपत्ति व शफी की अचल संपत्ति में कुछ सम्बन्ध होना चाहिए |
  4. शफी संपत्ति उन्ही शर्तो के अधीन व उसी प्रतिफल पर खरीदने का हकदार है जिन शर्तो के अधीन क्रेता ने उसे ख़रीदा है |
  5. शुफा एक विशेषाधिकार है जो संपत्ति के शांतिपूर्ण उपभोग के सम्बन्ध में उत्त्पन्न होता है |
  6. विक्रेता व शफी को मुस्लिम होना अनिवार्य है परन्तु क्रेता कोई भी व्यक्ति हो सकता है |

उदाहरण –  A और B का मकान अगल-बगल में है | A अपना मकान C को बेचता है B को कुछ परिस्थितियों में यह अधिकार है की वह A से वह मकान स्वयं खरीदने का दावा कर सकता है |

शुफा के अधिकार की प्रकृति – 

    शुफा का अधिकार सुखाधिकार के सामान ही एक अधिकार है जो मुस्लिम विधि द्वारा प्रशासित भूमि से जुड़ा रहता है | भूमि या अन्य अचल संपत्ति से लगी हुई अचल संपत्ति के विक्रय के समय ही शुफा का अधिकार प्रारम्भ हो जाता है | इस अधिकार में शफी केवल क्रेता के स्थान पर प्रतिस्थापित होकर विक्रेता को बाध्य कर सकता है कि वह अपनी संपत्ति को उसके हाथ बेचे |

गोविन्द दयाल बनाम इनायतुल्ला के वाद में जस्टिस महमूद ने कहा कि किसी अचल संपत्ति में शांतिपूर्ण उपभोग के लिए प्रदान किया गया उस संपत्ति के स्वामी का ऐसा अधिकार जिसके अंतर्गत वह किसी दूसरे व्यक्ति को बेचीं गयी अचल संपत्ति उन्ही शर्तो पर खरीद सकता है जिन शर्तो पर क्रेता उसे खरीदना चाहता है और शफी स्वयं क्रेता के स्थान पर प्रतिस्थापित हो सकता है |

विक्रम सिंह बनाम खजान सिंह के वाद में जस्टिस सुब्बाराव ने कहा कि, ‘’शुफा का अधिकार प्रतिस्थापन का अधिकार है इसे पुनः क्रय का अधिकार नही कहा जा सकता है |’’

शुफा की मांग कौन कर सकता है 

 निम्नलिखित मुस्लिम व्यक्ति शुफा की मांग कर सकते हैं –

1- शफी-ए-शरीक – सह स्वामित्व की संपत्ति का कोई भागीदार शफी-ए-शरीक कहलाता है | वह अन्य सहस्वामी द्वारा बेचे जाने वाली अपने भाग के लिए शुफा की मांग कर सकता है |

2-शफी-ए-खलीत – ऐसा व्यक्ति जिसको दूसरे की जमीन से सुखाधिकार प्राप्त हो तो वह उस दूसरे द्वारा उस जमीन को बेचे जाने पर पहले उसे खरीदने का हकदार है |

3-शफी-ए-जार – शफी-ए-जार का अर्थ है बगल वाली संपत्ति का स्वामी अपने बगल की जमीन को पहले खरीदने की मांग विक्रेता से कर सकता है |

शुफा का अधिकार कब प्रारम्भ होता है तथा कब तक बना रहता है ?

शुफा के अधिकार का उदय विक्रय के समय तथा विक्रय पूर्ण होने पर उत्पन्न होता है तथा यह तब तक बना रहता है जब तक न्यायालय डिक्री नही पारित कर देता |

शुफा के अधिकार की औपचारिकताएँ –
    
    शुफा के अधिकार की मांग में औपचारिकताओ को पूरा किया जाना नितांत आवश्यक हैं | शुफा की निम्न औपचारिकताये हैं-

1. पहली मांग (तलब-ए-मुबसिबत) – पहली मांग से तात्पर्य है शफी विक्रेता से संपत्ति के विक्रय के प्रथम अवसर पर और तुरंत अपने द्वारा उसकी संपत्ति खरीदने की इच्छा व्यक्त करे या विक्रय पूर्ण होने की जानकारी मिलते ही विक्रेता से स्वयं या एजेंट के माध्यम से तुरंत अपनी इच्छा उसे बता दे |

2. दूसरी मांग (तलब-ए-इशाद) – शफी को बिना देरी किये दूसरी मांग तुरंत प्रस्तुत करनी चाहिए | दूसरी मांग में पहली मांग का जिक्र करना चाहिए व मांग किये जाते समय दो साक्षी होने चाहिए तथा विक्रेता या क्रेता की उपस्थिति में मांग किया जाना चाहिए | यह संपत्ति को छुते हुए की जा सकती है | दूसरी मांग में यदि शफी स्वयं उपस्थित नहीं हो सकता तब दूसरी मांग अभिकर्ता द्वारा भी की जा सकती है |

3. तीसरी मांग (तलब-ए-तमलीक) – तीसरी मांग कोई मांग नही होती बल्कि कानूनी कार्यवाही होती है इसकी आवश्यकता तब पड़ती है जब शफी की पिछली दो मांगो को विक्रेता द्वारा स्वीकार्य नही किया जाता है |

शुफा का अधिकार कब नष्ट हो जाता है ? शुफा का अधिकार निम्न दशाओं में नष्ट हो जाता है –

शफी क्रेता के पक्ष में अपने अधिकार का अधित्याग कर देता है |

शफी की विक्रय पर मौन सहमति हो, जैसे – विक्रय में सक्रीय भाग लेता है, विक्रय के पूर्व सहमति दे देता है, क्रेता से संपत्ति का पट्टा ले लेता है या क्रेता से समझौता कर लेता है |

शफी अपने साथ किसी ऐसे व्यक्ति को सह-वादी बनाए जिसको शुफा का अधिकार न हो |

औपचारिकताओ का पालन न करने पर |

शफी अपनी ही संपत्ति का अंतरण कर देता है |

शुफा का अधिकार कब नष्ट नहीं होता ?

वाद के दौरान शफी की मृत्यु हो जाने पर |

विक्रय के पूर्व शफी द्वारा संपत्ति खरीदने से इनकार करने पर |

विक्रय की सूचना मिलने पर भी शफी खरीदने का प्रस्ताव न करे तो भी शुफा समाप्त नहीं होता क्योकि शुफा का अधिकार विक्रय पूर्ण होने पर उत्पन्न होता है |

अग्र-क्रयाधिकार (शुफा) की संवैधानिक वैधता 

शुफा के संवैधानिक वैधता के सम्बन्ध में हमें दो स्थितियों पर विचार करना पड़ेगा –

44 वें संशोधन से पूर्व की स्थिति

44 वें संशोधन के बाद की स्थिति

(1) 44 वें संशोधन से पूर्व की स्थिति – संविधान के 44 वें संशोधन के पूर्व संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (f) में संपत्ति का अधिकार मूल अधिकार माना जाता था तथा अनुच्छेद 19 (5) में इसपर लोकहित और एस0सी0 और एस0टी0 के हित में निर्बन्धन लगाए जाने का प्रावधान था | अतः अग्र-क्रयाधिकार की वैधता इस बात पर निर्भर थी कि वह अनुच्छेद 19(5) के दायरे में आता है या नहीं आता है | शुफा का अधिकार पडोसी की जमीन को खरीदने का एक बहाना बन गया था व इस अधिकार के तहत पडोसी को भूमि कम कीमत पर बेचने को विवश होना पड़ता था इसी कारण उच्चतम न्यायालय ने शफी-ए-जार के शुफा के अधिकार को असंवैधानिक ठहराया |

भाऊराम बनाम बैजनाथ के वाद में शफी-ए-खलीत के शुफा का अधिकार उच्चतम न्यायालय ने वैध ठहराया क्योकि सहस्वामी द्वारा ही संपत्ति का ख़रीदा जाना संपत्ति के लिए हितकारी था |

(2) 44 वें संशोधन के बाद की स्थिति – 44 वें संविधान संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार की श्रेणी से हटा दिया गया और शुफा का अधिकार पुनर्जीवित हो गया तथा शुफा की वैधता अब अनुच्छेद 14 व 15 के आधार पर जाँची जाती है |

आत्म प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि शुफा के अधिकार के लिए एक व्यक्ति को एक वर्ग माना जा सकता है |        

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