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Monday, May 18

वे तथ्य जो विवादक तथ्यों के प्रसंग हेतुक अथवा परिणाम है सुसंगत है

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 7 इस अनुमान पर आधारित है कि प्रत्येक घटना के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है मानव अनुभव बताता है कि बिना कारण कोई बात नहीं होती धारा 7 में वर्णित उपबंधों के अनुसार वे तथ्य सुसंगत है जो सुसंगत तथ्यों के या विवादक तथ्यों के अव्यवहित अर्थात तात्कालिक या अन्यथा प्रसंग हेतुक, एवं परिणाम है या जो उस वस्तु स्थिति को गठित करते हैं जिसके अंतर्गत घटित हुए या जिसने उनके घटने या संव्यवहार का अवसर दिया है।

उपर्युक्त उपबंध से स्पष्ट है कि इसके अंतर्गत विवादित तथ्य से संबंधित निम्नलिखित प्रकार से जुड़े तथ्य सुसंगत –
1. वे तथ्य जो विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के अवसर या कारण,
2. वे तथ्य जो विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के प्रभाव
3. वे तथ्य जो विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के घटित होने का अवसर प्रदान करते हैं
4. वे तथ्य जो इस वस्तु स्थित का निर्माण करते हैं
जिनके अंतर्गत विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य घटित हुए हैं।

1. कारण या हेतुक– उन सभी परिस्थितियों का साक्ष्य दिया जा सकता है जिसके कारण विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य उत्पन्न हुए हो। कारण से यह पता लगता है कि

तथ्य जो किसी विवादक या सुसंगत तथ्य का हेतु, तैयारी तथा आचरण दर्शित करता है सुसंगत है

भारतीय  साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत निम्नलिखित तथ्यों को सुसंगत घोषित किया गया है-
1. वे तथ्य जो किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए कोई हेतु, दर्शित या गठित करते हैं
2. वे तथ्य जो किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए तैयारी दर्शित या गठित करते हैं
3. किसी कार्यवाही के संबंध में किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में पक्षकार या उसके अभिकर्ता का आचरण
4. किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण जिसके विरुद्ध कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है।

हेतु दर्शित करने वाले तथ्य

हेतु शब्द भारतीय साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित नहीं है।

प्रोफेसर बिग मोर के अनुसार “हेतु एक भावना है। ”

संबंधित तथ्य एवं कार्य की सुसंगतता

तथ्यों की सुसंगता से संबंधित प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत रेस जेस्टे अर्थात एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों के सुसंगता का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार जो तथ्य विवादक न होते हुए विवादक तथ्य से इस प्रकार (संशक्त) जुड़े हुए हैं कि वह एक ही संव्यवहार के भाग है। वे तथ्य सुसंगत है चाहे वे उसी समय या स्थान पर या विभिन्न समयों एवं स्थानों पर घटित हुए हैं।

सरद विरदी चंद्र शारदा बना महाराष्ट्र 1984 सुप्रीम कोर्ट के मामले में रेस जेस्टए सिद्धांत के निम्न नियम बताये गये है―
1. कथन या कार्य विवादक तथ्य से जुड़ा होना चाहिए।
2. तथ्यों की शंसक्तता इस प्रकार होनी चाहिए कि वह एक संव्यवहार के भाग हो।
3. संबंधित तथ्य एवं कार्य भिन्न समयों एवं स्थानों पर घटित हो सकते हैं।
4. विवादक तथ्य और रेस जेस्टे के अंतर्गत आने वाले तथ्य एवं कार्य ऐसे हो कि दोनों मिलकर एक कड़ी बनाते हैं।

एक ही संव्यवहार

तथ्यों की सुसंगता और उनकी साक्ष्य में ग्राह्यता

तथ्यों की सुसंगति से संबंधित प्रावधान साक्ष्य अधिनियम की धारा 5 से 55 तक में वर्णित किया गया है तथा सुसंगत तथ्य को अधिनियम की धारा 3 में परिभाषित किया गया है।

 इसके अनुसार एक तथ्य दूसरे से सुसंगत कहा जाता है जबकि तथ्यों की सुसंगति से संबंधित इस अधिनियम के उपबंध में दिए गए प्रकारों में से, किसी भी प्रकार में से दूसरे से संसक्त (जुड़ा हुआ) हो ।

        सुसंगत तथ्य वे होते हैं जो किसी विवादक में विवाद तो नहीं होते परंतु विवादक तथ्य के अस्तित्व की संभावना को प्रभावित करते हैं और उनका प्रयोग विवादक तथ्य के बारे में अनुमान के लिए किया जा सकता है।

 उदाहरण के लिए  यदि A पर आरोप है कि उसने B को लूटा, तो विवादक तथ्य यह होगा कि क्या A ने B को लूटा? 
किंतु इस मामले में ये तथ्य— 
1. यह कि A को लूटने के स्थान पर जाते हुए देखा गया।
2. यह कि दूसरे दिन A एक चाय की दुकान पर चाय पी रहा था तथा C के कहते कि B के लुटेरे की खोज में पुलिस इधर ही आ रही है, A आधी कप चाय छोड़कर चल दिया। 

तथ्य की उपधारणा एवं विधि की उपधारणा तथा दोनों में अंतर

प्रत्येक तथ्य जिसके आधार पर कार्यवाही का एक पक्षकार न्याय निर्णय प्राप्त करना चाहता है उसे साबित करना पड़ता है। निर्णय करते समय न्यायालय किसी तथ्य पर तब तक विश्वास नहीं कर सकता जब तक साक्ष्य अधिनियम में प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार उसे साबित ना कर दिया जाए परंतु साक्ष्य विधि में यह भी प्रावधान किया गया है कि न्यायालय कुछ तथ्यों पर बिना सबूत की मांग किये विचार कर सकता है अर्थात कुछ तथ्यों के उपधारणा कर सकता है कुछ ज्ञात तथ्यों के आधार पर किसी अज्ञात तथ्य के बारे में लगाए जा रहे हनुमान को उपधारणा कहते है उपधारणा का अर्थ है मानकर चलना।

उपधारणा किसी तत्व के अस्तित्व का ऐसा अनुमान है जो साक्ष्य लिए बिना ऐसे अन्य तथ्यों के आधार पर जो पहले से ही साबित है, निकाला जाता है यह तर्क की प्रक्रिया है।

सोधी ट्रांसपोर्ट कंपनी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1986 सुप्रीम कोर्ट

Sunday, May 17

साक्ष्य शब्द की व्याख्या तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के मान्य साक्ष्य

अंग्रेजी भाषा का Evidence लैटिन भाषा के शब्द Evidera से बना है जिसका तात्पर्य है स्पष्टतया पता लगाना, निश्चित करना या साबित करना।

प्रमुख विधिशास्त्रियो ने साक्ष्य को निम्नवत परिभाषित किया है—

1. बेंथम के अनुसार-“ ऐसा तथ्य जिसके मस्तिष्क के समक्ष उपस्थित होने पर किसी दूसरे तथ्य के अस्तित्व एवं अनस्तित्व का पता लगे साक्ष्य कहलाता है”

2. स्टीफन के अनुसार- “ साक्ष्य विधि का उचित रूप से अर्थ लगाना न्यायालय में प्राप्त व्यावहारिक अनुभव को विवाद ग्रस्त तथ्य के विषय में सत्य की जांच करने की समस्या को लागू करने के सिवाय कुछ नहीं है”।

3. सामण्ड के अनुसार- “ कोई भी तथ्य जिसमें प्रभावकारी बल हो साक्ष्य कहलाता है”।

4. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा-3 के अनुसार- “ साक्ष्य शब्द से अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत आता है—

A. वे सभी कथन जिनके जांचाधीन तथ्य के विषय के संबंध में, न्यायालय अपने समक्ष साक्ष्यों द्वारा दिए जाने की अनुज्ञा किया जाता है या अपेक्षा करता है ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाता है।

B. न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश किए गए सभी दस्तावेजे जिनमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड भी शामिल है, दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं।

       उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार साक्षी न्यायालय में हाजिर होकर स्वयं जो कुछ कहता है तथा ऐसे दस्तावेज जो न्यायालय में पेश किए जाते हैं साक्ष्य कहलाते हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में साक्ष्य शब्द का सीमित अर्थों में प्रयोग किया गया है।

क्योंकि यह निम्नलिखित बातों को सम्मिलित नहीं करता –

1. वास्तविक साक्ष्य जैसे-खून से सने कपड़े, हत्या में प्रयुक्त चाकू, पिस्तौल आदि।
2. पक्षकारों द्वारा की गई संस्वीकृतियाँ
3. न्यायालय द्वारा किया गया स्थानीय निरीक्षण
4. शिनाख्त की कार्यवाही

साक्ष्य के प्रकार

1. मौखिक साक्ष्य :- मौखिक साक्ष्य से अभिप्राय उस साक्ष्य से है जिसे साक्षी ने स्वयं न्यायालय के समक्ष उपस्थित होकर व्यक्त किया हो उसमें वे कथन में शामिल होते हैं जिन्हें न्यायालय अपने समक्ष जांचाधीन तथ्य के मामले के बारे में साक्षियों द्वारा कहे जाने की अनुमति देता है या अपेक्षा करता है ऐसे साक्ष्य का प्रत्यक्ष होना आवश्यक है।

2. प्रत्यक्ष साक्ष्य:- किसी मामले से संबंधित घटना को आंखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाता है।

धारा – 60 के अनुसार:- मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होना ही चाहिए ऐसे साक्ष्य जो सीधे विवादक तथ्य को साबित करते हैं प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाते हैं।

3. परिस्थितिजन साक्ष्य:- ऐसे साक्ष्य जो सीधे विवादक तथ्य को साबित नहीं करते हैं बल्कि परिस्थितियों द्वारा यह प्रकट करते हैं कि विवादित तथ्य सही है तो उन्हें परिस्थितिजन साक्ष्य कहा जाता है। ऐसे साक्ष्य का आधार अनुभव होता चहै और इनके द्वारा, ज्ञात तथ्य, प्रमाणित तथ्य और प्रमाणित किए जाने वाले तथ्यों के बीच संबंध स्थापित किया जाता है।

4. धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्त की, की गई परीक्षा।

हरि सिंह भगत सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य 1953 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह मत व्यक्त किया की धारा 208, 209, 342 ( नई धारा 313 दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत प्राप्त किया गया कथन साक्ष्य होता है।

      साक्ष्य का अर्थ किसी ऐसी बात से है जिसके द्वारा अभिकथित तथ्य की बात को साबित या ना साबित किया जाता है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 साक्ष्य की परिभाषा न देकर यह बताती है कि साक्ष्य के अंतर्गत क्या शामिल है अधिनियम यह मानकर चलता है कि साक्ष्य वह साधन है जिससे न्यायालय के सामने किसी तथ्य को साबित करने की कोशिश की जाती है।

          साक्ष्य की परिभाषा में साक्षियों तथा दस्तावेजों का साक्ष्य आता है इसके तहत वे सभी चीजें नहीं आती।
सुधा देवी बनाम एमपी नारायण 1988 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि शपथ पत्र साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत साक्ष्य नहीं होते जब तक कि न्यायालय किसी विशेष कारणवश सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 1 2 व 3 के अंतर्गत शपथ पत्र को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने का आदेश पारित न करें।

नागेश बनाम कर्नाटक राज्य 2012 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया की परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मूल्यांकन करने के लिए न्यायालयों को सतर्क और सावधान रहना चाहिए और यह पता लगाना चाहिए कि क्या अभियोजन द्वारा पेश किए गए परिस्थितियों की कड़ी पूरी हो गई है और वह इस प्रकार पूर्ण हो कि बिना किसी चूक के अभियुक्त के दोषी होने को दर्शित करती हो।

राम नारायण बनाम उत्तर प्रदेश 1972 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि निश्चायक रूप से साबित हुई परिस्थितियों की ऐसी संपूर्ण श्रृंखला निर्मित करनी चाहिए कि वह ना केवल दोषसिद्ध से सुसंगत हो वरन कैसी भी युक्तियुक्त निर्दोषिता के अनुमान से असंगत हो।

5. अनुश्रुत साक्ष्य:- साक्षी द्वारा किसी दूसरे की सूचना के आधार पर दिए जाने वाले साक्ष्य अनुश्रुत साक्ष्य कहलाते हैं ऐसे साक्ष्य को कुछ मामलों के अलावा असंगत माना जाता है।

6. वास्तविक साक्ष्य:- वास्तविक साक्ष्य है वह साक्ष्य है जो न्यायालय को प्रत्यक्ष रूप से संबोधित किया जाए इसके द्वारा भौतिक पदार्थों को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

धारा 60 के परंतुक के अनुसार:- यदि मौखिक साक्ष्य दस्तावेज से भिन्न किसी भौतिक चीज के अस्तित्व या दशा के बारे में है तो न्यायालय ऐसे भौतिक चीज को अपने निरीक्षण हेतु पेश किए जाने की अपेक्षा कर सकता है ऐसे साक्ष्य को वस्तु का साक्ष्य भी कहते हैं जैसे- हत्या में प्रयोग किया गया चाकू, पिस्तौल, खून से सने कपड़े आदि।

7. दस्तावेजी साक्ष्य:- जब कोई साक्ष्य दस्तावेज के माध्यम से या दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो वह दस्तावेजी साक्ष्य कहलाता है।

     धारा 61 में वर्णित प्रावधानों के अनुसार दस्तावेज की अंतर्वस्तु को या तो प्राथमिक साक्ष्य द्वारा या द्वितियक साक्ष्य द्वारा साबित किया जा सकता है।

8. प्राथमिक साक्ष्य:- प्राथमिक साक्ष्य वह मूल दस्तावेज होता है जो न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है यह सर्वोत्तम साक्ष्य कहा जाता है। धारा-62 के अनुसार प्राथमिक साक्ष्य से न्यायालय के निरीक्षण के लिए पेश की गई दस्तावेज स्वयं अभिप्रेत है।

9. द्वितियक साक्ष्य:- द्वितीयक साक्ष्य को भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 63 में परिभाषित किया गया है। मूल्य या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में पेश किया जाने वाला साक्ष्य द्वितीयक साक्ष्य कहलाता है यह निम्न कोटि का साक्ष्य होता है तथा धारा 63 में वर्णित परिस्थितियों में ही पेश किया जाता है।