Monday, May 18

तथ्य जो किसी विवादक या सुसंगत तथ्य का हेतु, तैयारी तथा आचरण दर्शित करता है सुसंगत है

भारतीय  साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत निम्नलिखित तथ्यों को सुसंगत घोषित किया गया है-
1. वे तथ्य जो किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए कोई हेतु, दर्शित या गठित करते हैं
2. वे तथ्य जो किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के लिए तैयारी दर्शित या गठित करते हैं
3. किसी कार्यवाही के संबंध में किसी विवादक तथ्य या सुसंगत तथ्य के बारे में पक्षकार या उसके अभिकर्ता का आचरण
4. किसी ऐसे व्यक्ति का आचरण जिसके विरुद्ध कोई अपराध किसी कार्यवाही का विषय है।

हेतु दर्शित करने वाले तथ्य

हेतु शब्द भारतीय साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित नहीं है।

प्रोफेसर बिग मोर के अनुसार “हेतु एक भावना है। ”
जिसके कारण कार्य होता है अन्य शब्दों में हेतु वह है जिसके कारण मनुष्य किसी कार्य को करने के लिए विवश होता है यह सत्य है कि कोई भी कार्य बिना किसी हेतु के नहीं होता यद्यपि इसका पता लगाना कठिन है जब अभियोजन पक्ष किसी अपराध के हेतु को साबित करने में समर्थ हो तो इससे अभियुक्त के विरुद्ध साक्षी की श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ जाती है हेतु अपने आप में कोई अपराध नहीं है परंतु अपराध हो जाने पर हेतु का साक्ष्य महत्वपूर्ण हो जाता है।

हेतु व प्रेरणा वह है जो एक व्यक्ति को विशिष्ट कार्य करने को प्रेरित करता है तथा एक वाद का विनिश्चय करने में सहायक होता है परंतु हेतु साबित करना आसान नहीं होता।

रंगनायकी बनाम राज्य 2005 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया है कि हेतु एक ऐसा आशय हैं जो किसी व्यक्ति को कोई विशेष कार्य करने के लिए प्रेरित करता है केवल यह कथन की अभियोजन पक्ष साक्ष्य में अभियुक्त की मानसिक दशा बताने में असफल है इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमलावरों के मस्तिष्क में ऐसी मानसिक दशा नहीं थी।

अलगू पांडे बनाम तमिलनाडु राज 2012 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि प्रत्येक अपराध के सृजन के लिए हेतु आवश्यक नहीं है किंतु हेतु का साक्ष्य सदैव सुसंगत होता है।

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम हरिप्रसाद 1974 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि हेतु की अनुपस्थिति एवं अपर्याप्तता महत्वहीन है परंतु यदि यह तर्क दिया गया है कि अपराध किसी विशिष्ट हेतु या प्रेरणा के साथ किया गया है वहां उसकी जांच सुसंगत हो जाती है कि क्या कोई विशिष्ट अपराध आरोपित हेतु से किया जा सकता था।

हेतु के महत्व के संबंध में उच्चतम न्यायालय में उत्तर प्रदेश राज्य बना बाबूराम सन 2000 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह विचार व्यक्त किया गया कि हेतु प्रत्येक आपराधिक मामले में एक सुसंगत तथ्य है चाहे वह चश्मदीद साक्षी का साक्ष्य हो या परिस्थितिजन्य साक्ष्य हो इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि अभियोजन हेतु का अस्तित्व साबित कर देता है तो इसके लिए सबसे अच्छी बात होगी विशेषकर उन मामलों में जो परिस्थिति जन साक्ष्य पर निर्भर होते हैं। क्योंकि ऐसे मामलों में हेतु एक  परिस्थिति  हो सकती है।

इस मामले में अभियुक्त ने स्वयं हेतु के बारे में बताया कि मृतक ने उसकी संपत्ति की मांग को अस्वीकार कर दिया था इस बात की पुष्टि उसकी बहन द्वारा भी की गई थी कुछ लोगों को यह प्रेरणा या हेतु अपने माता पिता को समाप्त कर देने के लिए पर्याप्त नहीं होती परंतु किसी व्यक्ति के मन में एक ही बात का घर कर जाना घातक परिणाम को जन्म दे सकता है।

सुबोध नाथ बनाम त्रिपुरा राज्य 2013 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि उन मामलों में जहां प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध है हेतु महत्वपूर्ण नहीं होता किंतु परिस्थिति जन साक्ष्य के मामलों में हेतु महत्वपूर्ण होता है।

तैयारी दर्शित करने वाले तत्व

तैयारी शब्द साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है सामान्यतया तैयारी किसी कार्य को करने के लिए साधन जुटाने तथा व्यवस्था करने का संकेत करता है कुछ आपवादिक दशाओं को छोड़कर तैयारी कोई अपवाद नहीं है यदि कोई व्यक्ति किसी को मार डालने के लिए पिस्तौल खरीदता है तो यह अपराध नहीं है परंतु एक बार अपराध हो जाने पर तैयारी के साक्ष्य महत्वपूर्ण हो जाता है तथा साक्ष्य में सदैव ग्राह्य हो जाता है ।

सामान्यतया तैयारी चार प्रकार की होती है
1. अपराध करने की तैयारी
2. अपराध छिपाने की तैयारी
3. अपराध के पश्चात पुलिस से बचने की तैयारी
4. अपराध के पश्चात बचने की या संदेह निवारण की तैयारी।
उदाहरणतया धारा 8 के साथ जुड़ा दृष्टांत सी तैयारी को स्पष्ट करता है
विष द्वारा B की हत्या करने के लिए A का विचारण किया जाता है
यह तथ्य सुसंगत है कि बी की मृत्यु के पूर्व ए ने बी को दिए गए विष के जैसा विष प्राप्त किया था।

आचरण दर्शित करने वाले तथ्य

आचरण शब्द भारतीय साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित एवं स्पष्टिकृत नहीं है आचरण गुणों के व्यवहार की बाह्य अभिव्यक्ति है यह उन प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए कार्य करता है जिससे प्रेरक कारण का हम अनुमान लगा सकते हैं कुछ परिस्थितियों में आचरण में कथन भी सम्मिलित है जैसा कि स्पष्टीकरण एक से स्पष्ट है।

धारा 8 के अंतर्गत दो प्रकार के आचरण सुसंगत बनाये गये है-
1. पूर्ववर्ती आचरण
2. पश्चातवर्ती आचरण

पूर्ववर्ती आचरण के अपराध किये जाने के पूर्व अभियुक्त का आचरण सुसंगत होता है जैसे-हेतु, तैयारी, अवसर की तलाश आदि।

पश्चातवर्ती आचरण वे है जो अपराध किये जाने के बाद अपराध को छिपाने के लिए साक्ष्य मिटाने या स्वयं पर संदेह का विचरण करने के लिए या गिरफ्तारी से बचने कप्रयोजन से किये जाते हैं।

बसन्ती बनाम हिमांचल प्रदेश राज्य 1987 सु को के मामले में जब अभियुक्त से मृतक के शव को छिपाने के बारे मे पूछा गया तो उसने बताया कि वह गांव छोड़कर चला गया थाउच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि अभियुक्त का ऐसा आचरण उसे दोषसिद्धि करता था इसलिए धारा 8 के अंतर्गत सुसंगत था।

मृत्युंजय विश्वास बनाम कुटी विश्वाश 2013 सु को के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि अभियुक्त का केवल फरार हो जाना उसके दोषसिद्ध के लिए पर्याप्त साक्ष्य नही है किन्तु यह उसके आचरण के रूप मीक सुसंगत साक्ष्य है। किंतु यह उसके आचरण के रूप मे एक सुसंगत साक्ष्य है और इसका मूल्य प्रत्येक मामलों के परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

धारा 8 के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्तियों के पूर्ववर्ती एवं पश्चातवर्ती आचरण को सुसंगत बनाये गये है-
1. वाद के पक्षकार वादी एवं प्रतिवादी
2. पक्षकार के अभिकर्ता
3. जिसके विरुद्ध अपराध विचारित है अभियुक्त
4. जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है परिवादी

उपरोक्त व्यक्तियों का आचरण दो संदर्भों में सुसंगत होता है-
1. वाद या कार्यवाही के विषय मे
2. वाद या कार्यवाही के विवादक या सुसंगत तथ्यों के बारे मे।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के प्रथम स्पष्टीकरण के अनुसार आचरण में कथन शामिल नही है परंतु ऐसे कथन जो आचरण के साथ साथ किये गये हो या आचरण को स्पष्ट करते हो तब ऐसे कथन सुसंगत हो जाते है।

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