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Friday, May 15

विधिक व्यक्तित्व

विधिक व्यक्तित्व विधि द्वारा निर्मित एक सत्ता या इकाई है जिस पर विधि अधिकार एवं कर्तव्य अधिरोपित करती हैं
• विधि के अंतर्गत व्यक्ति शब्द के अर्थ को केवल मानव तक ही सीमित रखना उचित नहीं है क्योंकि देवता मूर्ति निगमित निकाय आदि ऐसे  निर्जीव संस्थाएं जो वास्तविक मनुष्य ना होते हुए विधि की दृष्टि से व्यक्ति माने जाते हैं अर्थात जिन्हें विधिक व्यक्तित्व प्राप्त है
• विधिक अध्ययन की दृष्टि से व्यक्ति दो प्रकार के हैं प्रथम प्राकृतिक द्वितीय कृत्रिम व्यक्ति
• नैसर्गिक मनुष्य को प्राकृतिक व्यक्ति माना जाता है तथा ऐसे व्यक्ति जो जीवित प्राणी ना होते हुए विधिक प्रयोजनों के लिए व्यक्ति माने जाते हैं कृत्रिम व्यक्ति कहलाते हैं

विधिक अधिकार और कर्तव्य

• सैविनी ने  अधिकार को शक्ति माना है
• हालैंड के अनुसार यह समर्थ या क्षमता का द्योतक है
• काण्ट के अनुसार विधिक अधिकार व्यक्ति को प्राप्त एक विशेषाधिकार है
• इहरिंग अधिकार को विधि द्वारा संरक्षित हित मानते हैं
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को विधि द्वारा मान्य तथा संरक्षित कहा है
• डॉ एलन के अनुसार अधिकार किसी हित को प्राप्त करने के लिए विधि द्वारा प्रत्याभूत सकती है
• ग्रे के अनुसार अधिकार स्वयं कोई हित नहीं है, अपितु वह हितों के संरक्षण का एक साधन मात्र है
• ग्रे कहते हैं कि यदि एक व्यक्ति दूसरे को ऋण देता है तो ऋणदाता का यह हित कि वह ऋणी व्यक्ति से अपने ऋण राशि वापस प्राप्त करें, उसका वास्तविक विधिक अधिकार नहीं है बल्कि उसे कानून द्वारा दी गई यह शक्ति या क्षमता की वह दिया गया ऋण वसूल कर सकता है उसका विधिक अधिकार होगा
• ग्रे के अनुसार विधिक अधिकार ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को कोई कार्य करने या कार्य करने से उपरत रहने के लिए वैधानिक कर्तव्य द्वारा बाध्य करता है
• जर्मी बेंथम ने नैतिक तथा विधिक अधिकारों के भेद को स्वीकार नहीं किया है उनके अनुसार समस्त अधिकार विधिक अधिकार होते हैं और सभी का उद्भव राज्य से होता है
• हालैंड कहते हैं कि शक्ति में व्यक्ति अपने शारीरिक बल के प्रयोग द्वारा दूसरों को कुछ करने या करने से विमुख रहने की सामर्थ्य रखता है
• ऑस्टिन अपने अधिकार को शक्ति का प्रतीक माना है क्योंकि उनके विचार से प्रत्येक अधिकार की उत्पत्ति बल या शक्ति से होती है।
• ग्रे ने कहा है कि विधि का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोगों को कुछ विशिष्ट कार्यों को करने या ना करने के लिए बाध्य करके मानवीय हितों का संरक्षण किया जाए
• ग्रे के अनुसार कार्यों को करने या ना करने की बाध्यता को ही कर्तव्य कहते हैं
• हिबर्ट के अनुसार कर्तव्य किसी व्यक्ति में निहित वह बाध्यता है जिस के कार्यों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा राज्य की अनुमति तथा सहायता से नियंत्रित किया जाता है
• कीटन ने कार्य को एक ऐसा कार्य निरूपित किया है जो किसी दूसरे व्यक्ति के संदर्भ में राज्य द्वारा बलात लागू किया जाता है और जिस की अवहेलना करना एक अपकार है
• पंजाब राज्य बनाम रामलुभाया 1998 सुप्रीम कोर्ट के मामले में बे निश्चित किया गया कि एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्तव्य होता है अतः स्वास्थ्य जीवन का अधिकार प्रत्येक नागरिक का अधिकार है और राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों की स्वास्थ्य सेवाओं की उचित व्यवस्था करें
परंतु उक्त नियम के अपवाद का उल्लेख करते हुए उच्चतम न्यायालय ने X बनाम जेड अस्पताल के मामले में स्पष्ट किया कि यदि एचआईवी पॉजिटिव से पीड़ित कोई व्यक्ति विवाह करना चाहता है तो विवाह के अधिकार के साथ-साथ उसका यह कर्तव्य भी है कि वह जिससे विवाह करना चाहता है उसे अपनी इस बीमारी के बारे में बताएं अतः यह ऐसा अधिकार नहीं है जिसके बारे में सहवर्ती कर्तव्य की अपेक्षा वह दूसरे व्यक्ति करें
• ऑस्टिन के अनुसार कर्तव्य सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों ही एक प्रकार के हो सकते हैं सापेक्ष कर्तव्यों से उनका अभिप्राय ऐसे कर्तव्य से है जिनके साथ कोई सहवर्ती अधिकार अवश्य रहता है परंतु कुछ कर्तव्य ऐसे होते हैं जिनके साथ किसी प्रकार का सहवर्ती अधिकार नहीं होता है इन कर्तव्यों को आस्टिन ने निरपेक्ष कर्तव्य कहा है निरपेक्ष कर्तव्य भंग को सामान्यतः अपराध माना जाता है
• डॉ एलन ने राज्य के प्रति किए जाने वाले सभी कर्तव्यों को निरपेक्ष नहीं माना है
विधिक कर्तव्य का वर्गीकरण
• विधिक कर्तव्य को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है
• 1. सकारात्मक तथा नकारात्मक कर्तव्य
• 2. प्राथमिक तथा द्वितीयक कर्तव्य
• सकारात्मक कर्तव्य व्यक्ति को कुछ कार्य करने हेतु अधिरोपित होते हैं जैसे ऋणी व्यक्ति द्वारा ऋण दाता को ऋण की अदायगी का कर्तव्य सकारात्मक है
• नकारात्मक कर्तव्य के अधीन व्यक्ति जिस पर कर्तव्य अधिरोपित है किसी कार्य को करने से प्रविरत रहता है जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी भूमि का स्वामी है तो अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति के भूमि के उपयोग में हस्तक्षेप न करने के लिए कर्तव्याधीन है
• प्राथमिक कर्तव्य ऐसा कर्तव्य है जो बिना किसी अन्य कर्तव्य के स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में है जैसे किसी को चोट ना पहुंचाने का कर्तव्य प्राथमिक कर्तव्य है
• द्वितीयक कर्तव्य वह कर्तव्य है जिसका प्रयोजन किसी अन्य व्यक्ति को प्रवर्तित करना है जैसे यदि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को क्षति पहुंचाता है तो प्रथम व्यक्ति का दूसरे की क्षतिपूर्ति करने का कर्तव्य द्वितीय कर्तव्य है
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को एक ऐसा हित माना है जिसे राज्य की विधि द्वारा मान्यता प्राप्त है और जो विधि द्वारा संरक्षित है
• सामण्ड के अनुसार विधिक अधिकार का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण उस अधिकार के स्वामी के हित के अस्तित्व में है जिसे विधि द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है
• सामण्ड हित की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ही तो हुआ है जिसका ध्यान रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है तथा उसकी अवहेलना करना अपकार है
• जॉन आस्टिन के अनुसार किसी व्यक्ति का अधिकार तब माना जाता है जब अन्य व्यक्ति उसके प्रति कुछ करने या न करने के लिए बाध्य या दायित्वाधीन होते हैं
• जॉन स्टुअर्ट मिल ने उदाहरण के रूप में कथन किया है कि जब किसी कैदी को मृत्यु दंड से दंडित किया जाता है तो जेलर कर्तव्यबध्य होगा कि वह उस कैदी को फांसी पर लटकाया तो इस स्थिति में क्या यह कहना उचित होगा की फांसी पर लटकाया जाना उस कैदी का विधिक अधिकार है वस्तुतः यह विधि द्वारा अधिरोपित निर्योग्यता मात्र है न की कोई विधिक अधिकार
• हालैंड विधिक अधिकार को परिभाषित करते हुए यह व्यक्ति को प्राप्त वह सामर्थ्य या क्षमता है जो उसे राज्य की अनुमति और सहायता से अन्य व्यक्तियों के कार्यों को नियंत्रित रखने हेतु प्राप्त है
• इहरिंग ने विधिक अधिकार को राज्य द्वारा मान्य संरक्षित हित निरूपित किया है यह स्वयं लक्ष्य ना होकर एक साधन मात्र है
• पेटन मैं भी इस बात से सहमत व्यक्त की है कि अधिकार का एक प्रमुख तत्व यह है कि वह राज्य की विधि प्रक्रिया द्वारा प्रवर्तनीय होना चाहिए
• राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ 1977 सुप्रीम कोर्ट के मामले में विधिक अधिकार को परिभाषित करते हुए अभिकथन का किया कि सही अर्थ में विधिक अधिकार विधिक कर्तव्य का सहवर्ती है यह ऐसा हित है जो विधि द्वारा अन्यों को तदनुरूप कर्तव्यों का पालन करने के लिए अधिरोपित करके संरक्षित किया जाता है इसका अर्थ है कि किसी अन्य की विधिक शक्ति से उन्मुक्ति को विधिक अधिकार कहा जा सकता है उन्मुक्ति से आशय अधीनस्थता से छूट है
 विधिक अधिकार के सिद्धांत
• विधिक अधिकारों के संदर्भ में इनसे संबंधित दो सिद्धांतों की विवेचना करना उपयुक्त होगा प्रथम हित सिद्धांत द्वितीय इच्छा सिद्धांत
• हित सिद्धांत—
• इहरिंग ने विधिक अधिकार को हित पर आधारित माना है इन के अनुसार अधिकार विधि द्वारा संरक्षित हित है
• सामण्ड ने इहरिंग द्वारा दी गई अधिकार की परिभाषा को अपूर्ण माना है यह कहते हैं कि विधिक अधिकार के लिए केवल विधिक संरक्षण दिया जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसे वैधानिक मान्यता भी प्राप्त होने चाहिए
• सामण्ड के अनुसार पशुओं के प्रति क्रूरता पूर्ण व्यवहार करना विधि द्वारा निषिद्ध है तथा इसके लिए दोषी व्यक्ति को दंडित किए जाने का प्रावधान है
• भारत में पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में पारित किया गया था।
• ग्रे के अनुसार अधिकार स्वयं हित नहीं है अपितु हित को संरक्षित करने वाला एक साधन मात्र है
• ग्रे के अनुसार यह वह शक्ति है जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को किसी कार्य या कार्यों को करने या ना करने के लिए उस सीमा तक बाध्य कर सकता है जहां तक समाज उसे यह शक्ति अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों पर लागू करते हुए प्राप्त होती है
• ग्रे ने विधिक अधिकार को एक ऐसी शक्ति मानते हैं जिसके आधार पर कोई व्यक्ति किसी विषय पर अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए न्यायालय की सहायता प्राप्त कर सकता है
2. इच्छा सिद्धांत
• हीगल, काण्ट, तथा ह्याम आदि विधिशास्त्रियों ने विधिक अधिकार संबंधी हित सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति का अधिकार उसकी इच्छा को प्रदर्शित करता है
• पुच्टा ने यह विचार व्यक्त किया कि किसी वस्तु पर अपनी इच्छा शक्ति को अभिव्यक्त करता है
• ड्युगिट ने इच्छा सिद्धांत की आलोचना करते हुए सामाजिक समेकता को ही अधिकार का मूल स्रोत माना है, वह इच्छा को अधिकार का एक महत्वपूर्ण तत्व मानते हैं
• पैटन ने भी इच्छा को अधिकार के एक तत्व के रूप में ही स्वीकार किया है
• हालैंड ने ग्रे के विचारों का समर्थन करते हुए कहा है कि विधिक अधिकार किसी व्यक्ति में निहित व क्षमता है जिससे वह राज्य की सहमति और सहायता से अन्य व्यक्तियों के कृतियों को नियंत्रित करा सकता है
• हालैंड के अनुसार विधिक अधिकार को राज्य की शक्ति से वैधानिकता प्राप्त होती है इस प्रकार में विधिक अधिकार को नैतिक अधिकार से पूर्णता भिन्न मानते हैं
• विनोडेग्राफ  ने मनोवैज्ञानिक परिस्थिति को अधिकारों का आधार माना है इन के अनुसार दावे की मानसिक प्रवृत्ति की अधिकारों का आधार है
• ऑस्टिन के अनुसार किसी व्यक्ति के अधिकार का अर्थ यह है कि दूसरे व्यक्ति उसके संबंध में कुछ करने या ना करने के लिए विधि द्वारा बाध्य है
• ऑस्टिन अपने कर्तव्य की व्याख्या करते हुए कथन किया है कि यह एक ऐसा दायित्व है जिस की अवहेलना की जाने पर इसके साथ संबंध्द शास्ति के कारण यह दंडनीय है
• जॉन स्टुअर्ट मिल ने  ऑस्टिन के उपर्युक्त विचार की आलोचना इस आधार पर कि है कि अधिकार के साथ हित सन्निहित होना प्रायः अनिवार्य है
• अमेरिका के न्यायाधिपति जस्टिस डगलस होम्स के अनुसार विधिक अधिकार कतिपय दशाओं में प्राकृतिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति मात्र है जिससे लोक बल के आधार पर संरक्षण प्रत्यास्थापन या प्रति कर प्राप्त करने का अधिकार मिल सके
 विधिक अधिकार मानवीय इच्छा का अंतर्निहित लक्षण है
• ड्युगिट विधिक अधिकार को मानवीय इच्छा पर आधारित नहीं मानते
• ड्युगिट इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहते हैं कि विधिक अधिकार को मानव इच्छा पर आधारित मानना उचित नहीं है क्योंकि बुद्ध का वास्तविक स्रोत तो सामाजिक एकात्मकता में है
• ड्युगिट कहते हैं कि मनुष्य के अधिकार होते ही नहीं बल्कि केवल कर्तव्य ही होते हैं
• ड्युगिट मानवीय इच्छा को समाज विरोधी धारणा मानते हैं क्योंकि वह मनुष्य में परस्पर संघर्ष के लिए कारणीभूत होती हैं
• ड्युगिट के अनुसार विधिक सामाजिक समेकता तथा समाज को गठित करने वाले व्यक्तिगत सदस्यों के अनुशासन की अभिव्यक्ति की प्रतीक होती हैं
• ड्युगिट का मानना है कि विधि प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा करती है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करें तथा उसे अधिकारों की याचना करने का कोई अधिकार नहीं है इसलिए वे अधिकार की धारणा को अनैतिक अराजकतावादी तथा समाज विरोधी मानते हुए उसे विधि से बहिष्कृत किए जाने पर बल देते हैं
3. विधिक अधिकार का आधार हित है
• अनेक विधिशास्त्री मानवीय हित को विधिक अधिकार का मूल आधार मानते हैं तथा अधिकार की धारणा में इच्छा के तत्व को स्वीकार नहीं करते
• उपरोक्त मत के मुख्य समर्थक बकलैंड, ईहरिंग तथा सामण्ड हैं
• बकलैंड के विचार से विधि द्वारा संरक्षित हित या आकांक्षा को ही विधिक अधिकार कहा जाता हैं।
• इहरिंग ने भी इसी विचार का समर्थन किया है विधिक अधिकार में इच्छा के औपचारिक तत्व को अस्वीकार करते हुए इहरिंग ने कहा है कि एक शिशु या मूढ व्यक्ति की कोई इच्छा नहीं होती फिर भी विधि द्वारा उसे विधिक अधिकार प्राप्त होते हैं
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को एक ऐसा हित कहा है जो विधि के नियमों द्वारा मान्य तथा संरक्षित है
• डॉक्टर एलन कहते हैं कि विधिक अधिकार किसी हित को प्राप्त करने के लिए विधि द्वारा प्रत्याभूत सकती है
•   हालैंड का मत है कि सभी विधिक अधिकारों में किस तत्व का होना आवश्यक नहीं है
• कीटन का भी यही मत है कि स्वत्व या हक अधिकार का साक्ष्य या अधिकार का स्रोत मात्र है अतः इसे अधिकार का स्वत्व नहीं कहा जा सकता है
 कर्तव्य की अवधारणा
 कर्तव्य को दायित्व का ही एक प्रकार माना गया है इसमें ऐसा आचरण विहित है जो किसी लक्ष्य की पूर्ति की ओर इंगित करता है यह लक्ष्य नैतिक सामाजिक या अन्य कोई हो सकता है
 प्रोफेसर फुलर के अनुसार कर्तव्य में निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है—
• 1. कर्तव्य सामान्य हो
• 2.  कर्तव्य प्रख्यापित होना चाहिए
• 3. कर्तव्य भावी तथा बुद्धि गम्य में हो
• 4. कर्तव्य स्वयं में अनुरूप हो
• 5. कर्तव्य पालनीय तथा आंतरिक नैतिकता के अनुरूप हो
• सामण्ड के विचार से उपर्युक्त नपे-तुले अर्थ के अतिरिक्त विधिक अधिकार का प्रयोग व्यापक अर्थ में भी किया जा सकता है इस अर्थ में अधिकार का उपयोग स्वतंत्रता शक्ति या उन्मुक्त के रूप में किया जा सकता है
• ऑस्टिन ने स्वतंत्रता को अधिकार का  पर्यायवाची माना है
• सामण्ड ने कहा है कि अधिकार से आशय उन कर्तव्य से है जो दूसरे व्यक्ति मेरे प्रति करने के लिए बाध्य हैं और विधिक स्वतंत्रता हुआ है जिससे मैं अपनी इच्छा अनुसार बिना किसी प्रकार के कर्तव्यों के बंधन के बेरोकटोक कर सकता हूं
• सामण्ड ने अधिकार शुन्यता को स्वतंत्रता का सहवर्ती माना है इसका अर्थ एक ही स्वतंत्रता के विरुद्ध किसी अन्य व्यक्ति में अधिकार का ना होना
• सामण्ड के अनुसार शक्ति और सामर्थ्य जो किसी व्यक्ति को विधि द्वारा या तो स्वयं के अथवा अन्य व्यक्तियों के अधिकार कर्तव्य दायित्व या अन्य विधिक संबंध अपनी निजी इच्छा अनुसार विनियमित या परिवर्तित करने के लिए प्रदान किया जाता है
• अतः एक व्यक्ति दूसरे के प्रति या उसके विरुद्ध क्या कर सकता है इसे शक्ति कहते हैं
• सामण्ड के अनुसार  शक्ति दो प्रकार की होती है प्रथम सार्वजनिक शक्ति द्वितीय व्यक्तिगत शक्ति
• ऐसी शक्ति जो किसी व्यक्ति में राज्य के अभिकर्ता के रूप में निहित होती है सार्वजनिक शक्ति कहलाती है
• व्यक्तिगत शक्ति ऐसी शक्ति होती है जो व्यक्ति में वैयक्तिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जाने के लिए नियत होती हैं इनमें राज्य के माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती है
• सामण्ड का कहना है कि उचित अर्थ में उन्मुक्त ना तो अधिकार है ना दायित्व है और ना शक्ति ही है बल्कि वह दूसरे पक्ष की निर्योग्यता को  प्रदर्शित करती है
• हॉहफेल्ड के अनुसार किसी एक विधिक संबंध के परिणाम स्वरुप केवल एक ही अधिकार तथा कर्तव्य का उद्भव नहीं होता बल्कि इससे अनेक दावे उनमुक्तियां तथा शक्तियां उत्पन्न होती हैं जिन पर विचार किया जाना आवश्यक होता है

विधि के अन्य स्रोत

. साम्या(Equity)
• साम्या अर्थात इक्विटी शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द इक्विटास से हुई है जिसका अर्थ समानीकरण
• विधिशास्त्र के अंतर्गत साम्या से तात्पर्य औचित्य या  न्यायिकता से है
• डायस के अनुसार साम्या से तीन आशय प्रकट होते हैं प्रथम यह की विधि की व्याख्या उचित और तर्कसंगत होनी चाहिए द्वितीय यह की विधि के प्रवर्तन में सामान्यीकरण की ओर उचित ध्यान दिया जाना चाहिए यद्यपि प्रकरण विशेष के अनुसार उसे संशोधित करने की आवश्यकता पड़ सकती है साम्या से तृतीय आशय यह है कि विधि की कमियों या दोषों को दूर किया जाए
• सर हेनरी मेन के अनुसार साम्या में नियमों का एक ऐसा समूह है जो मौलिक विधि के साथ-साथ अस्तित्व में था तथा जो सुस्पष्ट सिद्धांतों पर आधारित था।
• डॉ एलन के अनुसार अनेक विधि प्रणालियों में प्रचलित विधि के अलावा न्यायाधीश को स्वविवेक की शक्ति प्रदान की जाती है ताकि वे प्रचलित विधि की अनम्यता या अन्य कमियों को दूर कर सके इस विशिष्ट व्यवस्था को ही साम्या कहते हैं
• स्टोरी ने साम्या में को उपचार न्याय का वह भाग निरूपित किया है जो एकाधिकार के रूप में कोर्ट ऑफ इक्विटी द्वारा प्रशासित होता था और वह उपचार उन सिद्धांतों के विपरीत हुआ करता था जिनका प्रवर्तन कॉमन लॉ न्यायालय द्वारा किया जाता था

संविधियों का निर्वचन

मैक्सवेल के अनुसार ऐसी पद्धति जिसके अनुसार न्यायालय किसी संविधि में प्रयुक्त भाषा या शब्दों का अर्थान्वयन करते हैं निर्वचन कहलाती है
• सामण्ड के अनुसार निर्वचन या अर्थान्वयन से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा न्यायालय विधानमंडल के आशय का उस प्राधिकृत रूप में जिसमें कि वह व्यक्त किया गया है विनिश्चित अर्थ निकालने का प्रयत्न करता है
• ग्रे के अनुसार निर्वचन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई न्यायाधीश लिपिबद्ध विधि में प्रयुक्त शब्दों का वह अर्थ लगाता है जो अनुमानत: विधानमंडल ने लगाया होगा अथवा जिस अर्थ को वह विधानमंडल पर आरोपित करना चाहता है
• ग्रे विधि के निर्वचन को एक विज्ञान मानते हैं
• सामण्ड ने लिखा है कि यह ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा न्यायालय विवादित विधि के प्राधिकृत अर्थ को जानने का प्रयास करते हैं
• मैक्सवेल के अनुसार निर्वाचन का मुख्य उद्देश्य निर्धारित करना है कि अधिनियमित विधि में प्रयुक्त भाषा एवं शब्दों से ऐसा क्या प्रत्यक्ष या परोक्ष अर्थ निकलता है जो निर्वाचक उसके समक्ष प्रस्तुत प्रकरण या तथ्यों  के प्रति लागू कर सकें
• कूले ने निर्वाचन और अर्थान्वयन में भेद स्पष्ट करते हुए कहा है कि निर्वचन के अंतर्गत अधिनियम में प्रयुक्त शब्दों के किसी भी रुप के वास्तविक अर्थ का पता लगाया जाता है जबकि अर्थान्वयन में किसी कानून के मूल पाठ की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति से परे विषयों के संबंध में निष्कर्ष निकाला जाता है
• सामण्ड के अनुसार निर्वचन दो प्रकार के होते हैं प्रथम व्याकरणिक तथा द्वितीय तार्किक
• फिट्जगिराल्ड ने निर्वाचन को शाब्दिक तथा क्रियात्मक इन दो वर्गों में विभाजित किया है

निर्णयानुसरण का सिद्धांत (Doctrine of Stare Decisis)

जब अनेक निर्णय द्वारा किसी वैधानिक प्रश्न को स्पष्टतया सुनिश्चित कर दिया जाता है तो उसका अनुसरण करने तथा उसे ना बदलने के सिद्धांत को निर्णयानुसरण का सिद्धांत कहते हैं
• निर्णयानुसरण के लिए दो बातें आवश्यक हैं-
• प्रथम यह की निर्णीत वादों की रिपोर्टिंग की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा
• द्वितीय यह की श्रेणीबद्ध न्यायालयों की निश्चित श्रृंखला होनी चाहिए
• मायर हाउस बनाम रेनर के ऐतिहासिक विनिश्चय में पूर्व निर्णय के बंधनकारी प्रभाव के सिद्धांत को सभी अधीनस्थ न्यायालयों के प्रति लागू किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया
• गैली बना ली 1969 के बाद में लॉर्ड डेनिंग ने कथन किया कि कोर्ट आप अपील स्वयं के पूर्व निर्णयों से बाध्य नहीं है क्योंकि हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने भी स्वयं पर से यह बंधन हटा लिया है
• इंग्लैंड की भांति भारत में भी निर्णयानुसरण के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है भारतीय विधि अधिकांशतः ब्रिटिश विधि पर आधारित होने के कारण भारत में भी विधि निर्णयों के प्रकाशन और प्रसारण में समुचित प्रगति हुई है
• बंगाल इम्युनिटी  कंपनी बनाम बिहार राज्य 1955 सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद उच्चतम न्यायालय स्वयं के निर्णय से बाध्य नहीं रहा और अब न्यायोचित होने पर वह अपने पूर्व निर्णय को पलट सकता है
• ए आर अंतुले बनाम आर एस नाईक 1988 सुप्रीम कोर्ट के वाद में भी उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णय को नजरअंदाज करते हुए अवलोकन किया कि आवश्यक होने पर वह अपने पूर्व निर्णय से हटकर निर्णय दे सकता है
•   सोमवंती बनाम पंजाब राज्य 1963 सुप्रीम कोर्ट के विनिश्चय में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पूर्व निर्णय का केवल निर्णयानुसार ही बंधनकारी प्रभाव रखता है ना की संपूर्ण निर्णय अतः उच्चतम न्यायालय के निर्णय में दी गई इतरोक्ति निचले न्यायालयों के लिए बंधनकारी प्रभाव नहीं रखती हैं
• श्रवण सिंह लांबा बनाम भारत संघ 1995 सुप्रीम कोर्ट के बाद में स्पष्ट किया हैं कि उसके द्वारा दिए गए निर्णय की इतरोक्ति भी सभी निचली न्यायालयों के लिए बंधनकारी प्रभाव रखती हैं और वे उसका अनुसरण करने के लिए बाध्य है
• सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ 1994 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निर्णयाधार का नियम अनम्य नहीं है तथा सांविधानिक मामलों में उसकी सुसंगत सीमित होती है
• कृष्णास्वामी बनाम भारत संघ 1993 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णयाधार के महत्व एवं उसकी सीमाओं की व्याख्या करते हुए निर्धारित किया कि अनुच्छेद 141 के अनुसार संविधान के निर्वचन के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए विनिश्चय में अंतिमता होती है और वह पूर्व निर्णय के रूप में प्रयुक्त किए जाने के कारण उसमें स्थायित्व निश्चितता एवं निरंतरता होना परम आवश्यक है उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वयं के पूर्व निर्णय का अनुसरण किए जाने में ही बुद्धिमत्ता है जब तक की उससे हटने के लिए कोई युक्तियुक्त कारण ना हो या बृहद लोकहित में ऐसा करना अत्यावश्यक ना हो
• वचन सिंह बनाम पंजाब राज्य 1980 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि निर्णयाधार के नियम का आंख मूंदकर यंत्रवत अनुसरण किया जाए तो यह विधि का विकास अवरुद्ध कर उसे बौना बना देगा और इससे समाज की आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को ढालने कि उसकी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा
• दुरकिन के अनुसार पूर्वोक्त द्वारा किसी न्यायिक निर्णय को दो प्रकार का बल प्राप्त होता है प्रथम यह की भविष्य में उद्भूत होने वाले सामान प्रक्रमों में उसे लागू किया जाता है द्वितीय समान प्रकरणों को समान नियमों व सिद्धांतों के आधार पर निपटाया जाता है
• लार्ड ईशर ने प्रमुख वाद विलिस बाडेली  मैं अभी कथन किया कि वास्तव में न्यायाधीश निर्मित विधि जैसी कोई वस्तु नहीं है क्योंकि न्यायाधीशगण विधि का निर्माण नहीं करते अपितु वे विद्यमान विधि को ही अपने निर्णयाधीन वाद के तथ्यों के प्रति लागू करते हुए उसका इस प्रकार निर्वाचन करते हैं जो पूर्व में ना किया गया हो
• पूर्व निर्णय संबंधित ब्लैक स्टोन के घोषणात्मक सिद्धांत की आलोचना करते हुए आस्टिन कहते हैं कि यह धारणा न्यायाधीश विधि का निर्माण नहीं करते बल्कि उसकी केवल घोषणा करते हैं एक नादान परिकल्पना मात्र है
• बेंथम के अनुसार न्यायाधीश विधि की केवल घोषणा करते हैं सरासर मिथ्या है उनका तर्क है कि वस्तुतः घोषणात्मक सिद्धांत की आड़ में न्यायाधीशगण विधायन के अधिकार को चुरा लेते हैं क्योंकि खुलेआम उन्हें ऐसा करने में संकोच होता है
• डायसी के विचार से इंग्लैंड की विधि का सर्वोत्तम भाग न्यायाधीश द्वारा निर्मित विधि है अर्थात कॉमन लॉ अधिकांशतः तक उन नियमों से मिलकर बना है जिनका संकलन न्यायाधीशों के निर्णयों में से किया गया है
• डॉ एलन के विचार से ब्लैकस्टोन तथा बेंथम दोनों के ही विचार अतिशयोक्ति रंजित प्रतीत होते हैं
• ब्लैक स्टोन तथा बेंथम का कहना है कि ना तो यह कहना गलत है कि न्यायाधीश विधि का निर्माण करते हैं और ना यही गलत है कि वह विधि की घोषणा करते हैं
• वेकन के अनुसार मनुष्य की सीमित बुद्ध के लिए भविष्य में घटित होने वाले सभी प्रकरणों की पूर्व कल्पना करना असंभव है
• ग्रे के अनुसार न्यायाधीश अपने निर्णयों द्वारा विधि का सृजन करते हैं अतः केवल वे ही विधि के वास्तविक निर्माता होते हैं पूर्णतः सही नहीं है
• ऑस्टिन ने पूर्व निर्णय पर आधारित विधि की आलोचना इस आधार पर की है कि यह प्रभुताधारी या समादेश ना होने के कारण इसे सही अर्थ में विधि नहीं कहा जा सकता
• न्यायाधीश होम्स के अनुसार यह कहना उद्वेगकारी होगा कि आमुख विधि का नियम सही एवं उचित है क्योंकि वह हेनरी चतुर्थ के काल से चला आ रहे हैं जबकि सदियों बाद समय और समाज में आमूल परिवर्तन हो चुका है अतः क्योंकि एक विधि पुरातन काल से चली आ रही है इसलिए उसका अंधानुकरण करते रहना कहां तक उचित है।
• डब्लू गिल्डार्ट ने लिखा है कि विधि की निश्चितता तथा उसके विकसित होते रहने की संभावनायें  पूर्वोक्तियों के महत्व को दर्शाते हैं, फिर भी उसकी अनम्यता तथा प्रतिबंधात्मकता और बंधनकारी प्रभाव के कारण न्यायाधीशों की विवेक शक्ति को अवरोधित करती है जो न्याय की दृष्टि से उचित नहीं है वास्तविकता यह है कि न्यायाधीशगण अपने निर्णयों द्वारा विधियों का सृजन करते हैं भले ही यह कहा जाता रहा हो कि न्यायाधीश विधि की व्याख्या करते हैं ना कि उसका सृजन।

न्यायिक पूर्व निर्णय

सामण्ड के अनुसार न्याय  पूर्व निर्णय न्यायालय द्वारा दिया गया ऐसा निर्णय है जिसमे विधि का कोई सिद्धांत नहीं होता है
• प्रोफेसर गुडहार्ट ने सामण्ड के निर्णयाधार के सिद्धांत की आलोचना करते हुए लिखा है कि वस्तुतः न्यायालय द्वारा प्रतिपादित प्रत्येक सिद्धांत विनिश्चय आधार नहीं हो सकता है क्योंकि या तो वह बहुत अधिक विस्तृत होता है या अत्यधिक संकीर्ण
• विनिश्चय आधार के उदाहरण के रूप में ब्रिजेश बनाम हाक्सवर्थ 1851 के वाद को उद्धत किया जा सकता है इस वाद में यह निर्णय किया गया कि किसी दुकान की फर्श पर पड़े हुए सिक्के पर यदि वहां आने वाले किसी ग्राहक की दृष्टि पड़ती है और वह उसे सर्वप्रथम पा लेता है तो उस सिक्के पर दुकानदार की बजाय ग्राहक का ही कब्जा अधिकार होगा यह निर्णय इंग्लिश विधि सुस्थापित सिद्धांत फाइन्डर्स-कीपर्स पर आधारित था और यही इस वाद का निर्णयाधार माना जाएगा।
• जर्मी बेन्थम ने पूर्व-निर्णय को न्यायाधीशों द्वारा निर्मित नियम है जबकि ऑस्टिन इस प्रकार के नियमों को न्यायपालिका की विधि मानते हैं
• ब्लेकस्टोन ने कहा है कि पूर्ववर्ती निर्णयों के प्रयोग द्वारा न्याय की तराजू संतुलित तथा स्थिर बनी रहती है
• कीटन के अनुसार न्यायिक पूर्व निर्णय न्यायालय द्वारा दिए गए ऐसे न्यायिक विनिश्चय हैं जिन्हें किसी प्रकरण में निर्णय देने के लिए आधार बनाया जाता है इसलिए इन्हें निर्णयाधार कहा गया है
• कार्डोजो के अनुसार न्यायालय पूर्व निर्णय को विधि के स्रोत के रूप में स्वीकार किया है किंतु वे इसका कट्टरता से पालन किए जाने के पक्ष में नहीं है क्योंकि न्यायापीठो मैं निरंतर परिवर्तन होते रहने के कारण उनके द्वारा दिए गए निर्णय को बंधनकारी प्रभाव देना अनेक व्यवहारिक कठिनाइयां उत्पन्न कर सकता है
• बिर्च बनाम ब्राउन के मामले में लॉर्ड मैकमिलन ने पूर्व निर्णय या पूर्वोक्ति के विषय में अभिकथन किया कि इन्हें न्याय प्रवेश के मार्ग के रूप में अपनाया जाना चाहिए ना की अंतिम विश्राम स्थल की तरह
• कुछ विद्वानों ने पूर्व निर्णय की तुलना मदिरा से की है और कहा है कि जिस प्रकार समय के साथ मदिरा एक विशिष्ट बिंदु तक उत्कृष्ट होती है परंतु तत्पश्चात उसका बिगड़ना प्रारंभ हो जाता है उसी प्रकार  पूर्वोक्तियाँ एक निश्चित सीमा के बाहर अपना महत्व खो देते हैं
• पूर्व निर्णय  एक ऐसा निर्देश है जो भावी निर्णय का आधार हो सकता है

विधान (Legislation)

• डायस एण्ड ह्यूज  के अनुसार किसी प्राधिकारी शक्ति द्वारा विधि को विमर्श पूर्वक अर्थात सोच समझकर एक निर्धारित ढांचे में ढालने की प्रक्रिया को विधान कहते हैं बशर्ते कि उस प्राधिकारी शक्ति को न्यायालय ने विधि निर्माण के लिए सक्षम शक्ति के रूप में मान्य किया हो
• विधान लेजिस और लेशियो नामक दो लैटिन शब्दों के योग से बना है
• लेजिस शब्द का अर्थ विधि तथा लेशियो का अर्थ  प्रस्थापना  अतः विधान का शाब्दिक अर्थ है विधि की प्रस्थापना या निर्माण करना
• ऑस्टिन के अनुसार ऐसे सभी वैधानिक कृत्य जिनके परिणाम स्वरुप विधि का निर्माण होता है या उसमें संशोधन या परिवर्तन होता है अथवा कोई नया उपबंध जोड़ा जाता है विधान के अंतर्गत आते हैं
• ऑस्टिन के अनुसार न्यायाधीशों द्वारा प्रतिपादित नए सिद्धांतों के आधार पर निर्मित विधि उनके वैधानिक अधिकार की  द्योतक  है ना की न्यायिक अधिकार की
• सामण्ड के अनुसार विधान विधि का वह भाव है जो एक शक्ति प्रदत्त अधिकारी के विधिक नियमों की घोषणा में सन्निहित है यह सिद्धांतों का ऐसा वर्णन है जो उन्हें विधि का बल प्रदान करता है
• सामण्ड ने विधान  शब्द को निम्नलिखित तीन अर्थों में प्रयुक्त किया है—
• 1. प्रथम संकीर्ण तथा नपे-तुले अर्थ में विधान विधि का वह स्त्रोत है जो सक्षम अधिकारी द्वारा विधिक नियमों की घोषणा से उत्पन्न होता है
• 2. द्वितीय व्यापक अर्थ में विधान शब्द के अंतर्गत विधि निर्माण की समस्त पद्धतियां सम्मिलित हैं
• 3. तृतीय विधान के अंतर्गत विधानमंडल की इच्छा कि प्रत्येक अभिव्यक्ति सम्मिलित है चाहे उस इच्छा के द्वारा विधि के नियमों का निर्माण हुआ हो या ना हुआ हो
• ग्रे ने विधान की परिभाषा देते हुए कहा है कि राज्य के व्यवस्थापिकीय अंग की औपचारिक घोषणा को विधान कहते हैं
• बर्क के अनुसार समाज में सुधार के लिए विधान ही एक प्रभावी साधन है
• टोक्यूविले ने कहा है कि प्रजातंत्र में विधान की अधिकता स्वभाविक है क्योंकि इस राज्य व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य अधिकतम लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना है
• वर्तमान सामाजिक आर्थिक तथा औद्योगिक प्रगति के कारण संसद के लिए यह आवश्यक हो गया है कि प्रशासनिक कुशलता के लिए वह अपने विधायक की कार्यपालिका के पदाधिकारियों को प्रत्यायोजित करें-- के आर रावत बनाम सौराष्ट्र राज्य 1952
• विधिसम्मत शासन की व्याख्या करते हुए डायसी ने कहा है कि शासन तथा साहित्य दोनों ही विधि द्वारा समान रूप से आबद्ध  होने चाहिए अतः विधि निर्माण का दायित्व ऐसे प्राधिकारियों पर नहीं सौंपा जाना चाहिए जिन पर विधि के शासन का दायित्व भी सौंपा गया है
• भारत में विधानमंडल अपने मूलभूत कार्य को कार्यपालिका को प्रत्यायोजित नहीं कर सकता है-- इन रि दिल्ली लॉज केस 1951 सुप्रीम कोर्ट
• प्रत्यायोजित विधान पर संसद के नियंत्रण का दूसरा रूप यह है कि इस प्रकार निर्मित विधि को स्वीकृति हेतु संसद के पटल पर रखा जाता है तथा संसद उक्त विधि को संशोधित निरसित या अस्वीकृत कर सकती है जालान ट्रेडिंग कंपनी बनाम मिल मजदूर संघ 1967 सुप्रीम कोर्ट
• ऐसा प्रत्यायोजित विधान जो शक्तिबाह्य है उसे केवल संबंधित विधानमंडल के पटल पर रख देने मात्र से विधिमान्य नहीं माना जा सकता है श्री विजय लक्ष्मी राइस मिल्स बनाम आंध्र प्रदेश 1976 सुप्रीम कोर्ट
• संविधान के अंतर्गत अधीनस्थ विधायन पर लोकसभा समिति का गठन सन 1953 में किया गया था जबकि राज्यसभा में अधीनस्थ विधायन समिति सन 1964  से अस्तित्व में आई
• एयर इंडिया बनाम नरगिस मिर्जा 1981 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने प्रत्यायोजित विधान को इस आधार पर अपास्त कर दिया क्योंकि वह संविधान के अनुच्छेद 14 के उपबंधों के विपरीत था इस प्रत्यायोजित विधान द्वारा एयर इंडिया में काम करने वाली एयर होस्टेस पर यह पाबंदी लगाई गई थी कि यदि देश सेवा के प्रथम 4 वर्ष की अवधि में विवाह करती हैं या उनके द्वारा प्रथम बार गर्भधारण करने पर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी न्यायालय ने भी निश्चित किया कि उपरोक्त  शर्तों में प्रथम शर्तों उचित थी लेकिन गर्भधारण वाली शर्त सरासर अनुचित और मनमानी थी क्योंकि इससे एयर होस्टेज को गर्भ न धारण करने के लिए बाध्य किया जा रहा था जो मातृत्व के लिए अपमानजनक था

रूढि की परिभाषा

सामण्ड के अनुसार रूढि ऐसे सिद्धांतों की अभिव्यक्ति है जिन्हें न्याय और लोकोपयोगिता के सिद्धांतों के रूप में राष्ट्रीय चेतना के अंतर्गत स्वीकार कर लिया गया है
• डॉ ऐलन के अनुसार विधिक एवं सामाजिक विषय के रूप में रूढि का उद्भव अंशत तर्क और आवश्यकता तथा अंशत आपसी विश्वास और अनुकरण की शक्तियों द्वारा होता है
• ऑस्टिन  के अनुसार रूढि आचरण का वह नियम है जिसका अनुपालन शासित वर्ग द्वारा इसलिए नहीं किया जाता है कि वह किसी राजनीतिक प्रभुता संपन्न द्वारा स्थापित विधि है बल्कि इसलिए किया जाता है कि वह स्वेच्छा से उसका अनुकरण करता है
• हालैण्ड के अनुसार रूढि आचरण की वह प्रणाली है जिसका सामान्यतः पालन किया जाता है जिस प्रकार किसी घास के मैदान में पैरों के पड़ते-पड़ते एक पगडंडी सी तैयार हो जाती है ठीक उसी प्रकार नित्य प्रति के व्यवहारों के अनुकरण से प्रथा का जन्म होता है
• कार्टर के अनुसार समान परिस्थितियों में समस्त व्यक्तियों के कार्यों की एकरूपता को रूढि कहते हैं
• फेड्रिक पोलक ने इंग्लैंड के कॉमन लॉ को रूढिजन्य विधि निरूपित किया है
• हेल्सबरी के अनुसार रूढि एक प्रकार का विशिष्ट नियम है जो वास्तविक या संभावित रुप से अनादि काल से विद्यमान है और जिसे एक विशिष्ट भू क्षेत्र में विधि का बल प्राप्त हो गया है भले ही वह नियम देश की सामान्य विधि के प्रतिकूल या असंगत ही क्यों ना हो।
• हर प्रसाद बनाम शिवदयाल 1876 प्रिवी कौंसिल के मामले में रूढि की परिभाषा देते हुए कहा कि “रूढि वह नियम है जिसे किसी विशिष्ट परिवार में अथवा क्षेत्र विशेष में दीर्घकालिक अनुसरण से विधि की शक्ति प्राप्त हो जाती है”।
• हालैंड के अनुसार सामान्य रूढि के रूप में प्रयोग में लाया जाने वाला आचार ही रूढि या प्रथा के रूप में विकसित हो जाता है
• अहमद खान बनाम चम्मू बीवी लाहौर के मामले में कहा गया कि कुछ समय तक प्रचलन में रहने के बाद  रूढि में निश्चितता आ जाती है तथा उसके अस्तित्व और प्रचलन को न्यायालय के समक्ष सिद्ध करना पड़ता है ताकि न्यायिक निर्णय द्वारा उसे मान्यता प्राप्त हो सके।
• दशरथ लाल बनाम धोंडूबाई 1941 मुंबई के मामले में निर्धारित किया गया कि एक बार न्यायिक निर्णय द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाने पर रूढि को सिद्ध करना आवश्यक नहीं होता है
• रूढि के विधि के रूप में परिवर्तित होने के विषय में दो सिद्धांत प्रमुख हैं
• A.  ऐतिहासिक सिद्धांत
• B. विश्लेषणात्मक सिद्धांत
 ऐतिहासिक सिद्धांत-
• रूढ़ियों के विधि में परिवर्तित होने संबंधी ऐतिहासिक सिद्धांत के समर्थक में सैवनी, हेनरी मेन, विनोडेग्राफ के नाम विशेष उल्लेखनीय है
• विधिशास्त्र की ऐतिहासिक शाखा के प्रणेता सैवनी के अनुसार रूढ़ियों का उद्भव लोगों की अंतर्चेतना से होता है
• ऐलन नें सैवनी के इन विचारों का खंडन करते हुए कहा है कि यह कहना सही नहीं है कि किसी समुदाय की समस्त रूढ़ियां जनसाधारण के सामान्य विश्वास तथा न्याय की धारणाओं की प्रतीक होती हैं
• ग्रे  के अनुसार कुछ रूढिजन्य विधियां तो केवल जन सामान्य की इच्छा के बिना ही नहीं बल्कि उनकी इच्छा के विपरीत उन पर लागू की जाती है
• सैविनी के तर्क के विरुद्ध एलन की दूसरी आपत्ति यह है कि स्थानीय रूढ़ियां या प्रथाएं राष्ट्र की इच्छा की प्रतीक नहीं होती हैं
• रूढ़ियों की उत्पत्ति के विषय में सैविनी के विचारों को पैटन ने भी स्वीकार किया है
• पैटन के अनुसार विश्वास आदत को जन्म देता है या आदत विश्वास को।  इनका विचार है कि आदत ही विश्वास को जन्म देती है
• अतः यह कहना उचित नहीं है कि अधिकांश रूढ़ियों की उत्पत्ति जन चेतना से हुई है बल्कि वह तो अनवरत आदत या अभ्यास का ही परिणाम मात्र है- पैटन
• ए टेक्स्ट बुक ऑफ  ज्यूरिस्प्रूडेंस पैटन की कृति है
•   सर हेनरी मेन
• अर्ली लॉ एंड कस्टम सर हेनरी मेन की कृति है
• सर हेनरी मेन के अनुसार रूढि या प्रथा एक ऐसी धारणा है जो थिमिस्टीज के बाद अस्तित्व में आई
• थिमिस्टीज थिमिस शब्द का बहुवचन है थिमिस का अर्थ न्याय की देवी है
• थिमिस्टीज का आसन ऐसे निर्णय से था जो न्यायाधीश द्वारा न्याय देवता की प्रेरणा से दिए जाते थे
• रोमवासियों की अवधारणा थी कि किसी को दंडित किए जाने का निर्णय लेता है तो वह न्याय की देवी की इच्छा मात्र से ऐसा करता है
•    ऑस्ट्रिनियन थ्योरी ऑफ़ लॉ जेथ्रोब्राउन की कृति है
• जेथ्रोब्राउन के अनुसार रूढ़ियां प्रायः न्यायिक निर्णय के उत्तर गांव में होती हैं तथा इनके विषय में मतभेद उचित नहीं है
• विनोग्रेडॉफ कहते हैं कि वस्तुतः रूढ़ियों का विकास घरेलू वातावरण में विभिन्न जातियों के दैनिक संबंधों के बीच क्रमिक रूप से हुआ है
• विनोग्रेडॉफ, फ्रेड्रिक पोलक दोनों ने सर हेनरी मेन के उपर्युक्त विचारों का खंडन करते हैं
• सर फ्रेड्रिक पोलक का विचार है कि रूढिजन्य विधि न्यायिक निर्णयों के पूर्व भी परंपरा के रूप में विद्यमान थी।
 विश्लेषणात्मक सिद्धांत
• इस सिद्धांत के मुख्य समर्थक ऑस्टिन हैं
• ऑस्टिन ने  रूढि को विधि का ऐतिहासिक भौतिक स्वरूप माना है
• ऑस्टिन के अनुसार  रूढि केवल राज्य द्वारा मान्यता होने पर ही विधि का रूप ग्रहण करती है
• ऑस्टिन के अनुसार रूढ़िगत प्रथाएं अनुनयी प्रभाव तभी रखती हैं जब इन्हें न्यायालय द्वारा किसी निर्णय में मान्य कर लिया गया हो
• हालैंड ने भी ऑस्टिन के उपर्युक्त विचारों का समर्थन करते हुए कहा है कि रूढि विधि का रूप तभी ग्रहण करती है जब उसे राज्य की मान्यता प्राप्त हो
• सामण्ड ने भी विचार का समर्थन किया है इन के अनुसार रूढि का विधि में परिवर्तन तभी संभव है जब वह न केवल औचित्य पूर्ण हो अपितु राज्य द्वारा मान्य भी हो
• प्रोफेसर ग्रे के अनुसार यह एकमात्र स्रोत ना होकर विधि के विभिन्न स्रोतों में से एक है
• एलन ऑस्टिन के सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि कोई भी विधि केवल राज्य की मान्यता मात्र से विधि का रूप ग्रहण नहीं कर सकती जब तक उसे समाज का अनुसमर्थन प्राप्त ना हो।
 रूढि के प्रकार
• सामण्ड के अनुसार ऐसी रूढ़ियां जिन्हें विधि की शक्ति प्राप्त है दो प्रकार की होती हैं 1. विधिक रूढ़ियां 2. अभिसमयात्मक रूढ़ियाँ
• विधिक रूढ़ियां दो प्रकार की होती हैं
• 1. स्थानीय रूढ़ियां 
• 2. सामान्य रूढ़ियां
• अभिसमयात्मक रूढ़ियों को प्रथा  भी कहा जाता है


रूढि (Custom as a Sources of Law)

समान परिस्थितियों में मानव आचरण की एकरूपता को ही रूढि कहा जाता है
• समुदाय विशेष के लोगों द्वारा किसी परंपरा का स्वेच्छा से पालन किया जाता है तो कालांतर में वही आचरण रूढि का रूप धारण कर लेता है
• अतीत काल से उसके निरंतर प्रचलन के परिणाम स्वरुप वह रूढि अंततोगत्वा विधिक शक्ति प्राप्त कर लेती है
• हर्बर्ट स्पेंसर के अनुसार सामाजिक नियंत्रण के किसी निश्चित माध्यम के विकसित होने के पूर्व एक ऐसे नियंत्रण का अस्तित्व रहता है जो अंशतः जीवित व्यक्तियों से तथा अधिकांशतः मृत व्यक्तियों की मान्यताओं से उत्पन्न होता है
• नारद स्मृति के अनुसार  सशक्त होने के कारण ही प्रथा विधि की अध्यारोही ही होती है
• बृहस्पति के अनुसार स्थान विशेष के जाति तथा परिवार में प्रचलित रूढ़ियों का पूर्वत अनुसरण किया जाना चाहिए अन्यथा लोगों में असंतोष तथा क्षोभ उत्पन्न हो जाएगा
• याज्ञवल्क्य के अनुसार किसी देश पर विजय प्राप्त कर ली जाने पर विजेता का कर्तव्य है कि वह विजित लोगों को उन्हीं की रूढ़ियों प्रथाओं तथा पारिवारिक परंपराओं का अनुसरण करने दे जैसा कि वह पूर्व से करते चले आ रहे हैं
• कलेक्टर ऑफ मदुरा बनाम मोतूरामलिंगा 1868 के मामले में निर्धारित किया गया कि स्पष्ट रूप से स्थापित रूढि विधि के लिखित पाठ से कहीं अधिक प्रभावकारी होती है
• हालैंड ने रूढि को ऐसी व्यवहार चर्या कहा है जिसका समाज में सामान्य रूप से अनुपालन किया जाता है

शक्ति और अधीनता

आस्टिन ने अधिकार को शक्ति का प्रतीक माना है
• हालैंड ने अधिकार को शक्ति किसे भिन्न बताया है
• ऑस्टिन के अनुसार कर्तव्य एक ऐसा बंधनकारी कार्य होता है जिसका विरोधी शब्द अपकार होता है
• ऑस्टिन ने कर्तव्य को सापेक्ष एवं निरपेक्ष में वर्गीकृत किया है
• सामण्ड के अनुसार कोई भी कर्तव्य किसी भी दशा में निरपेक्ष नहीं हो सकता
• कीटन के अनुसार निरपेक्ष आधिकार जैसी कोई वस्तु नहीं है तथा अधिकार एवं कर्तव्य परस्पर सहवर्ती हैं
• ऋणी व्यक्ति का ऋणदाता को ऋण अदायगी का कर्तव्य सकारात्मक कर्तव्य है।
• ऐसा कर्तव्य जो बिना किसी अन्य कर्तव्य के स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में हो उसे प्राथमिक कर्तव्य कहते हैं
• किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य को उपहति ना करने का कर्तव्य प्राथमिक कर्तव्य कहलाएगा
• यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को क्षति पहुंचाता है तो प्रथम व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति को क्षतिपूर्ति का कर्तव्य द्वितीय कर्तव्य का उदाहरण है
• हालैण्ड मैं अपनी पुस्तक एलिमेंट्स ऑफ ज्यूरिस्प्रूडेंस ने कहा है कि निधि का मूल लक्ष्य अधिकारों को निर्मित करके उनका संरक्षण करता है
• विधिक अधिकार से संबंधित सिद्धांत है, हीत सिद्धांत एवं इच्छा सिद्धांत
• हित सिद्धांत के प्रणेता ईहरिंग तथा ग्रे हैं
• जस्टिस होम्स ने विधिक अधिकार को मानवीय इच्छा का प्रतीक माना है
• ड्युगिट ने मानवीय इच्छा को समाज विरोधी अवधारणा माना है
•   आस्टिन के अनुसार राज्य के विरुद्ध प्रजा को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है

विधि के स्रोत

• डेल वेक्हियो के अनुसार बुद्ध के स्रोत का मूल आधार मानव स्वभाव में ही अंतर्निहित है
• भारतीय परिपेक्ष में विधि के स्रोत से आशय मानव कर्तव्य है
• सभी विधि का स्रोत राज्य का प्रभुसत्ताधारी है
• नारद संहिता में पॉजिटिव लॉ की व्यवस्था की गई है
• ड्युगिट- किसी एक निश्चित स्रोत से निर्मित नहीं होती है उसका वास्तविक स्रोत लोकमत है
• न्यायाधीश के निर्णय की आधारभूत विधि सामग्री स्वयं ही किसी राजनीतिक धारणा या शास्त्रीय नृत्य पर आधारित हो सकती है जो उस विधि का स्रोत कही जा सकती है मिनरवा मिल्स बनाम भारत संघ 1980 सुप्रीम कोर्ट
• सामण्ड के अनुसार विधि के कुछ ऐसे स्रोत हैं जिनसे विधि अपनी शक्ति या वैधता प्राप्त करती है

यथार्थवादी विचारधारा

समर्थक- जॉन चिपमेन ग्रे, J. होम्स, कार्ल लेवलिन, जेरोम फ्रेक, अर्नोल्ड, बेन्जामीन, एन कार्डोजो, एक्सल हेनास्टोर्म, विल्हेम, लुण्डस्टेट, कार्ल, ओलाइब क्रोना, एल्फ रॉस, थुर्मन वेस्ली।

• यथार्थवादी विचारधारा कोई नवीन विचारधारा नहीं है यह समाजशास्त्रीय विचारधारा का एक भाग है
• अमेरिका में समाजशास्त्री विधिशास्त्र के प्रगति के साथ-साथ वामपंथी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ जिसे यथार्थवाद के नाम से जाना जाता है
• अमेरिका के न्यायाधीश जेरोम फ्रैंक ने यह स्वीकार किया कि विधिशास्त्र में यथार्थवादी शाखा के नाम की कोई स्वतंत्र विधि पद्धति अस्तित्व में नहीं है
• यथार्थवादी विचारधारा की उत्पत्ति अमेरिका में हुई अमेरिकी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ओलिवर होम्स इस विचारधारा के जनक माने जाते हैं
• जेरोम फ्रैंक, जान चिपमेन ग्रे, जस्टिस कार्डोजो लेवलिन इस विचारधारा के प्रमुख विचारक है।
• विधिशास्त्री यथार्थवादी वस्तुतः विधि के समाजशास्त्रीय विचारधारा के पोषको द्वारा ऑस्टिन, वेन्थम, स्टुअर्ट मिल आदि विश्लेषणात्मक में विधिशास्त्रियों के विरुद्ध चलाया गया एक तार्किक आंदोलन था जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रबल समर्थक थे
• कार्डोजो ने इस बात पर बल दिया कि विधि का अध्ययन  विद्यमान सामाजिक परिवेश में किया जाना चाहिए और यह आकलन किया जाना चाहिए कि उसके क्रियान्वयन से समाज किस प्रकार प्रभावित हो रहा है और उसका बेहतर परिवर्तन किस तरह सुनिश्चित किया जा सकता है
• यथार्थवादी विधि शास्त्रियों ने विश्लेषणात्मक प्रमाणवाद और समाजशास्त्रीय विचारधारा के आधारभूत सिद्धांतों को मिलाकर विधि के प्रति एक नई विचारधारा को अपनाने का प्रयास किया जिसे अमेरिकी यथार्थवाद के नाम से विकसित किया
• यथार्थवादियो ने विधि के अध्ययन में अपना ध्यान न्यायाधीशों के महत्व पर केंद्रित किया
• उनके अनुसार कानून वह है जो न्यायाधीशों द्वारा अपने निर्णयों में व्यक्त किया जाए ना कि वह जो कानूनी ग्रंथों या संहिताओं में विनियमित हो
• यथार्थ वादियों का कथन है कि जो निर्णय न्यायाधीश देता है उसके और जो निर्णय उससे कानूनी पुस्तकों एवं संस्थाओं के आधार पर देना चाहिए उसमें अंतर होता है
• जॉन चिपमेन ग्रे ने अधिनियमित विधि की बजाय न्यायिक निर्णय के अधिक महत्व दिए जाने की आवश्यकता प्रतिपादित किए
• ग्रे के अनुसार विधानमंडलों द्वारा निर्मित कानून संविधि के मृत शब्द मात्र होते हैं जिन्हें न्यायालय अपने न्यायिक निर्वाचन द्वारा जीवन प्रदान करते हैं
• अतः सामाजिक व्यवस्था में कानूनों के निर्माण में न्यायाधीशों की अहम भूमिका रहती है क्योंकि न्यायाधीश केवल विधि की खोज ही नहीं करते अपितु विधि का सृजन भी करते हैं
• होम्स के अनुसार  विधि का जीवन तर्क पर आधारित ना होकर अनुभव पर आधारित है
• होम्स विधि के परिवर्तनशीलता का समर्थन करते हैं उनके  मतानुसार राष्ट्र की बदलती हुई परिस्थितियों के साथ-साथ वहां की विधि में परिवर्तन होना अवश्यंभावी है
• जिससे वह परिस्थितियों के अनुकूल बनाए जा सके
• होम्स यह भी कहते हैं कि विधि गणित की पुस्तक में लिखित पूर्व मान्यताओं के समान अटल नहीं होती हैं इसलिए उसमें तर्क के बजाय आचरण तथा अनुभव को ही अधिक महत्व दिया जाना चाहिए
• लेवलिन ने रास्को पाउंड की समाजशास्त्रीय विचारधारा प्रतिक्रिया स्वरुप यथार्थवादी विधि का समर्थन किया उनके अनुसार यथार्थवादी विधिशास्त्रियों का ध्येय यह है कि विधि संबंधी विचारों एवं कार्यों में गति उत्पन्न की जाए
• लेवलिन ने अमेरिका के यथार्थवादी आंदोलन की विशेषताओं की ओर विधिशास्त्रियों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि—
• A.  यथार्थवादी विधिशास्त्र की कोई पृथक शाखा नहीं है वरन यह विधिशास्त्र की एक नई पद्धति मात्र है
• B.यथार्थवादी विधिवेत्ता विधि को प्रगतिशील मानते हैं ना की स्थिर या गतिहीन
• C. विधि न्यायिक प्रक्रिया की उपज है
• आधुनिक यथार्थवादियो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन कानूनी परिवर्तन की तुलना में कहीं अधिक तेज है अतः यह परीक्षण करने की आवश्यकता होती है कानून किस सीमा तक तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों के अनुकूल है
• यथार्थ वादियों की मान्यता है कि विधि वही है जो न्यायालय अपने निर्णयों में अभिव्यक्त करते हैं
• जेरोम फ्रैंक के अनुसार जनता विधि के नियमों की अनिश्चितता तथा एकरूपता के प्रति इतनी सजक इसलिए रहती है क्योंकि इनसे समाज को मार्गदर्शन प्राप्त होता है
• जेरोम फ्रेंक  ने वास्तविक विधि और संभावित विधि में अंतर स्पष्ट किया है उनके अनुसार वास्तविक विधि वह है जो सामान पर स्थित में भूतकाल में किसी न्यायिक निर्णय में दी गई हो तथा संभावित विधि ऐसी विधियां जो समान परिस्थिति में भविष्य में किसी न्यायिक निर्णय में दी जा सकती है
• इन के अनुसार संभावित विधि वास्तव में विधि नहीं होती है
• कार्डोजो के अनुसार कानून वह नहीं है जो विधानमंडल बनाते हैं बल्कि वह है जिसे न्यायाधीश बनाते हैं
• कार्डोजो विधि को सामाजिक कल्याण का साधन मानते हैं उनके अनुसार विधि का स्वरूप कल्याणकारी होना चाहिए जिससे वह सामाजिक वास्तविकता के अनुरूप बन सके

समाजशास्त्रीय विचारधारा

 जर्मी बेंथम (1748-1832)

• सामाजिक पहलू पर ज्यादा जोर देते हैं
• इस विचारधारा को क्रियाशील विचारधारा कहा जाता है
• थ्योरी ऑफ लेजिस्लेशन जर्मी बेंथम की कृति है
• 1.  आजीविका का निर्वाह
• 2.  बहुलता एवं प्रचुरता
• 3.  समता को प्रोत्साहन
• 4.  सुरक्षा तथा रखरखाव

 आगस्ट काम्टे (1786-1857)
• अगस्त काम्टे के विचारधारा वैज्ञानिक प्रमाणवाद हैं

हरबर्ट स्पेन्सर (1820-1903)
• विधि के उद्भव के सिद्धांत

रूडोल्फ वॉन इहरिंग (1898-1892)
• समाजशास्त्रीय विचारधारा के जनक माने जाते हैं
• आधुनिक समाजशास्त्रीय विधि शास्त्र के जनक बेंथम हैं फ्रीडमैन

लियोन ड्युगिट (1859-1928)
• ड्युगिट का सामाजिक समेकता का सिद्धांत
• लॉ इन दी मॉडर्न स्टेट
• जनसेवा के विचार पर बल दिया है ।

• विधिक सिद्धांत शब्द का प्रयोग डॉक्टर फ्रीडमैन ने किया था
• समाजशास्त्रीय विचारधारा के जनक इहरिंग है
• समाजशास्त्रीय विचारधारा शाखा का उपनाम क्रियाशील विधि है
• समाजशास्त्रीय विचारधारा के मुख्य समर्थक ईहरिंग, ड्यूगिट,इहरलिच,वेन्थम, रास्को पाउण्ड आदि है
• रास्को पाउण्ड न्यू समाजशास्त्रीय विचारधारा को सामाजिक यांत्रिकी कहा है
• समाजशास्त्रीय विचारधारा ने सबसे अधिक बल सामाजिक पहलुओं पर दिया है
• विज्ञान के रूप में समाजशास्त्रीय अध्ययन को परिभाषित करने वाले प्रथम व्यक्ति ऑगस्त काम्टे थे
• काम्टे के विचारधारा का नाम वैज्ञानिक प्रमाण वाद है
• काम्टे का वैज्ञानिक प्रमाण बाद अनुभव वादी पद्धति पर आधारित है
• वर्तमान समाजशास्त्री विधि के प्रणेता इहरिंग है
• ईहरिंग के अनुसार विधि का उद्देश्य व्यक्तिगत हितों को एकरूपता देते हुए सामाजिक हितों की सुरक्षा करना और उन्हें आगे बढ़ाना है
• ड्युगिट ने समाज में मनुष्य की परस्पर निर्भरता को सामाजिक समेकता का नाम दिया है
• ड्युगिट की सामाजिक समेकता की कल्पना काम्टे के विधि दर्शन पर आधारित है
• सामाजिक समेकता का सिद्धांत मानव अधिकारों को मान्यता प्रदान नहीं करता है
• ड्युगिट के अनुसार मनुष्य केवल एक ही अधिकार धारण करता है
• वह अधिकार है अपने वास्तविक कर्तव्य का निरंतर पालन करने का अधिकार
इहरलिच के अनुसार विधि सामाजिक रीतियों का अनुसरण करती है इनके अनुसार विधि के विकास का केंद्र बिंदु विधान या न्यायालयीय निर्णय ना होकर स्वयं समाज है
• इहरलिच ने रूढि को विधि के स्रोत का एक प्रकार माना है
• इहरलिच की विचारधारा का केंद्र बिंदु जीती जागती विधि है
• इहरलिच की विचारधारा या विचार पद्धति का मुख्य दोष यह है कि वह राज्य को गौण स्थान प्रदान करते हैं
• रास्को पाउण्ड का विधि दर्शन हित पर आधारित है
• रास्को पाउण्ड के अनुसार विधि का प्रधान कार्य सभ्यता को आगे विकसित करना है
• इहरिंग के विचारों के आधार पर विधिशास्त्र के कार्यक्रम को क्रियात्मक स्वरूप रास्को पाउंड ने दिया
• इंट्रोडक्शन टू अमेरिकन लॉ के लेखक डीन रास्को पाउंड है
• रास्को पाउंड विधि को एक साधन मात्र मानते हैं
• इन के अनुसार विधि का प्रथम कार्य है कि समाज के उन तत्वों की खोज करें जो सभ्यता को विकसित करते हैं इसके बाद दूसरा कर्तव्य है कि इन तत्वों के निरीक्षण और परीक्षण द्वारा मानवी संव्यवहारों के उन तत्वों की खोज करें जो सभ्यता को बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं
• रास्को पाउंड ने समस्त मानव हितों को तीन श्रेणियों में विभक्त करते हुए उन्हें विधि द्वारा संरक्षण दिए जाने की आवश्यकता को प्रतिपादित की है  ये हित है-म
• 1.  व्यक्तिगत हित
• 2.  लोकहित
• 3.  सामाजिक हित
• हित के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए रास्को पाउंड कहते हैं कि कभी-कभी इन विभिन्न हितो में परस्पर टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है अतः विधि के माध्यम से परस्पर विरोधी हितों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए यही कारण है कि रास्को पाउंड विधिशास्त्र को सामाजिक विज्ञान कहने के बजाय विधि को सामाजिक तकनीकी कहना ही अधिक उचित समझा।
• समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण अपनाने वाले  विधिशास्त्री विधि के उद्देश्य तथा नैतिक पहलुओं पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं उनके अनुसार विधिशास्त्र का अध्ययन ऐसी पद्धति से किया जाना चाहिए जिससे सामुदायिक जीवन के अंतर्गत संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों एवं सम व्यवहारों को विनियमित किया जा सके
 समाजशास्त्रीय विचारधारा के मूल तत्व—
• विधि को सामाजिक जटिलताओं से पृथक नहीं किया जा सकता है क्योंकि मानव जीवन की समस्याओं के निवारण हेतु विधि ही सर्वोत्तम माध्यम है
• विधि एक सामाजिक अवधारणा है जो मानव द्वारा स्वयं के अनुभव तथा सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप निर्मित की जाती है
• समाजशास्त्रीय विचारधारा के समर्थक विश्लेषणात्मक प्रमाण वादी विचारधारा का खंडन इस आधार पर करते हैं कि वह संप्रभु के आज्ञात्मक शक्ति पर आधारित है जो वर्तमान लोकतंत्रात्मक शासन प्रणालियों में निरर्थक हो चुकी है
• मांटेस्क्यू ने किसी देश की संरचना जानने के लिए उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्ययन किए जाने की आवश्यकता बताया है
• बेंथम बोलता व्यक्तिवादी विचारधारा के समर्थक थे तथा उनके विधिक विचार उपयोगितावाद पर आधारित है
• बेंथम में अधिकाधिक लोगों के अधिकाधिक सुख को ही विधायन का अंतिम लक्ष्य माना है
• थ्योरी ऑफ लेजिस्लेशन बेंथम की कृति है
• अगस्त काम्टे ऐसे प्रथम विधि विचारक थे जिन्होंने समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र निकाय के रूप में स्थापित किया
• उन्नीसवीं शताब्दी में हुई वैज्ञानिक प्रगति के कारण लोगों में यह धारणा बन गई थी कि मानवीय आचरण का निर्धारण भी वैज्ञानिक माध्यम से किया जाना चाहिए इसी से प्रभावित होकर अगस्त काम्टे ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया जिसे वैज्ञानिक प्रमाणवाद कहा जाता है
• विधिशास्त्र में बेंथम के योगदान को स्वीकारते हुए फ्रीडमैन ने उन्हें आधुनिक सामाजिक विधिशास्त्र का जनक माना है
• इहरिंग को वर्तमान समाजशास्त्री विधिशास्त्र का जनक माना जाता है उनके अनुसार विधि का उद्देश्य व्यक्तिगत हितों को एकरूपता देते हुए सामाजिक हितों को सुरक्षा प्रदान करना और उन्हें आगे बढ़ाना है
• इहरिंग के अनुसार समाज में व्यक्तिगत एवं सामाजिक हितों के बीच परस्पर टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रहती है विधि का कार्य इन दोनों प्रकार के हित में समन्वय बनाए रखना है
• इहरिंग का सामाजिक हित उन्हें उपयोगितावाद के प्रणेता बेंथम से संबंध करता है जबकि उनका राज्य की शक्ति का सिद्धांत उन्हें ऑस्टिन के निकट लाता है
• इहरिंग ने विधि को सामाजिक हितों को साध्य करने का साधन माना है
• दी ला इन द मॉडर्न स्टेट कृति ड्युगिट की है
• ड्युगिट के सामाजिक समेकता के सिद्धांत के अनुसार राज्य को मानव संगठन का एक प्रकार मात्र माना गया है इन के अनुसार राज्य का अस्तित्व तभी तक उचित है जब तक की वह सामाजिक समेकता को बढ़ाता है
• ड्युगिट  ने राज्य की प्रभुसत्ता को नकारते हुए कहा कि वास्तविक प्रभुसत्ता जनता या समाज में निहित रहती है
• ड्युगिट के अनुसार विधि को अधिकारों का समूह नहीं माना जाना चाहिए यदि समाज में व्यक्ति का कोई अधिकार है तो केवल यह है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करें
• विधि आवश्यक रूप से ऐसी सामाजिक वास्तविकता है जिसका संबंध व्यक्तियों के बीच संबंधों को नियंत्रित रखना है
• इहरलिच ने अपने गुरु इहरिंग की जीती जागती विधि को अपनी विचारधारा का केंद्र बिंदु बनाया तथा विधि एवं सामाजिक विषयों के अंतर को यथासंभव कम किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया
• इहरिंग का कहना है कि विधि के विकास का केंद्र बिंदु विधायन या न्यायालयीय निर्णय ना होकर समाज स्वयं है
• अतीत के संतुलन का सिद्धांत—ड्युगिट

ऐतिहासिक विचारधारा

प्रमुख विचारक--  सर हेनरी मेन, सैवनी, पोलक, हीगल, कोहलर पुच्टा, गिर्के, एडमंड वर्क, हरबर्ट स्पेंसर, विनोडेग्राफ, मांटेस्क्यू, गुस्टेव, ह्युगो।
 आलोचक—डॉक्टर एलन, डिन रास्को पाउंड

 रिफ्लेक्शन आन दी रिवोल्यूशन इन फ्रांस 1970—एडमण्ड वर्ग

 एस्से इन ज्यूरिस्प्रूडेंस एंड एथिक्स  1882—फ्रेड्रिक पोलक

 बेहरामजी गरीवाला बनाम भारत संघ 1991 सुप्रीम कोर्ट

विश्लेषणात्मक विचारधारा

समर्थक -ऑस्टिन, ग्रे, एलन, सामण्ड, बेंथम, हालैंड
 आलोचक - हेनरी मेन, सैविनी, ब्राइस, विनोडेग्राफ, ड्युगिट

 विश्लेषणात्मक विचारधारा को  विध्यात्मक या आदेशात्मक (imperative) विश्लेषणात्मक प्रमाणवाद (analytical positism)  के नाम से जाना जाता है ।

ऑस्टिन को विश्लेषणात्मक विचारधारा का प्रवर्तक कहा जाता है 

आंग्ल विधि के जनक ऑस्टिन को माना जाता है

 संप्रभुताधारी सिद्धांत को ऑस्टिन ने हाब्स से तथा ब्लेकस्टन के विचारों से लिया है

“Commentry of law of England”—Blackstone

•   विश्लेषणात्मक विचारधारा का उद्भव 19वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ
• विश्लेषणात्मक शाखा के विचारकों के अनुसार विधिशास्त्र का मुख्य उद्देश्य वास्तविक विधि के मूलभूत सिद्धांतों का विश्लेषण करना है
• ऑस्टिन बेंथम सामण्ड हालैंड केल्सन ग्रे एलन आदि विश्लेषणात्मक विचारधारा के प्रवर्तक हैं
• ऑस्टिन विधि को न्याय से भिन्न मानते हैं
• ऑस्टिन द्वारा प्रतिपादित  विधि के आदेशात्मक सिद्धांत के मुख्य तत्व संप्रभुता शक्ति समादेश तथा शास्ति है
• ऑस्टिन ने निश्चयात्मक विधि को सामान्य समादेश कमांड माना है।
• ऑस्टिन के अनुसार समादेश दो प्रकार के होते सामान्य तथा विशिष्ट
• ऑस्टिन के अनुसार विधि दो प्रकार की होती है दैवीय और मानव विधियां
• ऑस्ट्रेलिया संप्रभुता का सिद्धांत हाब्स से ग्रहण किया था
• बेंथम प्राकृतिक विधिशास्त्र के आलोचक थे
• बेंथम की विधि संबंधी विचार उपयोगितावाद पर आधारित है
• बेंथम के उपयोगितावाद उन्हें आस्टिन से अलग करता है
• सामाण्ड के अनुसार विधि का उद्देश्य न्याय की रक्षा करना है
• सामण्ड ने कहा है कि विधि ना केवल अधिकार और ना केवल शक्ति बल्कि इन दोनों का उचित समन्वय है
• आस्टिन के विधि के प्रमुख आलोचक सर हेनरी मेन और सैवनी है
• ब्राइस विनोडे ग्राफ तथा ड्यूगिट भी विश्लेषणात्मक विचारधारा के आलोचक है।
• ऑस्टिन के आदेशात्मक विधि के सिद्धांतों के परिणाम स्वरुप विधिशास्त्र के वियना स्कूल की उत्पत्ति हुई
• केल्सन तथा उनके साथियों को वियना स्कूल के नाम से जाना जाता है
• केल्सन का विधि सिद्धांत कांट की विचारधारा पर आधारित है
• केल्सन के अनुसार विशुद्ध सिद्धांत को राजनीति, नीतिशास्त्र, समाजशास्त्र से पृथक रखा जाना चाहिए
• केल्सन विधि को मानकत्व पर आधारित करते हैं
• कोई मानक वैध है या नहीं इसका निर्धारण मूल मानक के आधार पर किया जाएगा
• केल्सन के अनुसार मूल मानक का चयन का निर्धारण सामर्थ से होता है
• केल्सन  के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्य विधि से श्रेष्ठतम है
• केल्सन प्राइवेट और लोक वृद्धि में कोई अंतर नहीं मानते
• केल्सन और आस्टिन में समानता यह है कि दोनों के द्वारा प्राकृतिक विधि का विरोध किया गया है
• केल्सन और आस्टिन में एक अंतर यह है कि केल्सन का सिद्धांत क्रियाशीलता पर आधारित जबकि आस्टिन का सिद्धांत स्थिरता पर आधारित है
• प्रोफेसर लास्की ने केल्सन के विशुद्ध सिद्धांत को व्यर्थ का दिमागी कसरत कहा है
• लाटरपॉट के अनुसार राष्ट्रीय विधि पर अंतर्राष्ट्रीय विधि को प्राथमिकता देकर केल्सन ने प्राकृतिक विधि का पिछले द्वार से रास्ता खोल दिया है
• भारत की विधि व्यवस्था में मूल मानक संविधान है
• हिटलर कालीन जर्मन विधि व्यवस्था में मूल मानक तानाशाह की इच्छा थी
• बेंथम ने प्रमाण बाद की आधुनिक अर्थ में नींव रखी
• विश्लेषणात्मक विचारधारा का प्रतिपादक आस्टिन को कहा जाता है
• बेंथम के अनुसार प्रकृति ने मानव को सुख एवं दुख के साम्राज्य के अधीन कर रखा है
• बेंथम के उपयोगितावाद का प्रतिपादन कर्ता माना जाता है
• द लिमिट्स ऑफ ज्यूरिस्प्रूडेंस डिफाइंड बेंथम की कृति है
• प्रोविंस ऑफ ज्यूरिस्प्रूडेंस ऑस्टिन की कृति है
• ऑस्टिन के अनुसार विधि संप्रभु का समादेश है जो कर्तव्य अधिरोपित करता है और जिसकी शास्ति से बल मिलता है
• ऑस्टिन के अनुसार विधि के संप्रभु समादेश एवं शास्ति गुण हैं
• ऑस्टिन विधि को नैतिकता से अलग रखता है और कहता है कि विधिशास्त्र के विज्ञान का संबंध विधि की उपयोगिता का उद्देश्य नहीं है
• प्रोफेसर सी के एलन ऑस्टिन को विधिशास्त्र मे ताड़ का वृक्ष कहा है
• केल्सन ऑस्टिन से एक कदम आगे माना जाता है
• केल्सन के विधि के सिद्धांत को विशुद्ध सिद्धांत कहते हैं क्योंकि केल्सन ने विधि को धर्म नीतिशास्त्र समाजशास्त्र और इतिहास से अप्रभावित रखने का बल दिया है
• सामण्ड का मत है कि समस्त विधि संग्रह को अनियमितता विधि के रूप में बदलने की प्रक्रिया को संहिताकरण कहते हैं
• सामण्ड के अनुसार विधिशास्त्र के तीन भाग हैं 1. विश्लेषणात्मक 2. ऐतिहासिक 3. नैतिक
• व्यक्तिवादी उपयोगितावाद का सिद्धांत बेंथम द्वारा प्रतिपादित किया गया है
• उपयोगितावाद का सिद्धांत अर्थात अधिक से अधिक लोगों का अधिक से अधिक कल्याण( बहुजनहिताय) का प्रणेता बेंथम को कहा जाता है
• हॉर्ट विधिशास्त्र को नियमों की एक व्यवस्था के रूप में देखता है
• हॉर्ट ने विधि को प्रमुख एवं गौण नियमों का योग कहां है
• दी कंसेप्ट ऑफ लॉ हार्ट की पुस्तक है
• बेंथम ने विधिशास्त्र के विषय को व्याख्यात्मक तथा निश्चयात्मक विधिशास्त्र के रूप में वर्गीकृत किया था
• मुख्यता आस्टिन को आंग्ल विधिशास्त्र का जनक कहा जाता है
• फुल्लर के अनुसार किसी समाज के अस्तित्व के लिए आंशिक नैतिकता आवश्यक है
• आस्टिन विधि को न्याय से भिन्न मानते हैं उनके अनुसार विधि उचित और अनुचित पर आधारित ना होकर संप्रभुता धारी के आदेशों पर आधारित है
• आस्टिन निश्चित मत का होने के कारण विधि का आधार संप्रभुताधारी व्यक्ति या व्यक्तियों की शक्ति में निहित मानते हैं इसी सिद्धांत को उन्होंने विधि का आदेशात्मक सिद्धांत कहा है
• ऑस्टिन के अनुसार आदेश के साथ शास्ति जुड़ी रहने पर ही उसे निश्चयात्मक विधि कहा जा सकेगा
• ऑस्टिन के अनुसार निश्चयात्मक विधि में संप्रभुता आदेश कर्तव्य तथा शास्ति ये चार तत्व होना आवश्यक है
• ऑस्टिन में संप्रभुता का सिद्धांत हाब्स से ग्रहण किया था
• ऑस्टिन का विधि सिद्धांत ब्लेकस्टन के विचारों पर आधारित किया
• कमेंट्रीज् ऑन दी लॉ ऑफ इंग्लैंड ब्लेकस्टन की कृति है जिससे आस्टिन बहुत प्रभावित थे।
• ब्लैकस्टन के अनुसार विधि नागरिक आचरणों के ऐसे नियम है जिसे किसी राज्य की सर्वोच्च शक्ति द्वारा उचित समादेश और अनुचित का प्रतिषेध करने के लिए निर्देशित किया जाता है
• एलिमेंट्स ऑफ  ज्यूरिस्प्रूडेंस हालैंड की कृति है
• हालैंड ने विधिशास्त्र को निश्चयात्मक विधि का औपचारिक विज्ञान कहां है
• ड्यूगिट ने विधि को एक सामाजिक तत्व के रूप में परिभाषित करते हुए ऑस्टिन के प्रमाणवादी विधि सिद्धांत को अमान्य किया
• ड्यूगिट के अनुसार निश्चयात्मक विधि जैसी कोई चीज नहीं है वह समाज की आवश्यकताओं को ही विधि का मूल आधार मानते हैं
• केल्सन का विधि सिद्धांत विधिशास्त्र में दो बिंदुओं से महत्वपूर्ण है--
• A.  यह कि इसे विश्लेषणात्मक पद्धति के विकास की चरम सीमा माना गया है 
• B.  यह कि इस सिद्धांत में 19वीं शताब्दी के अंतिम तथा बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में विधि में अपनाई जाने वाली नीति का स्पष्ट वर्णन पाया जाता है

Thursday, May 14

विधिक सिद्धांत एवं विधि शास्त्री

1. विधि का विशुद्ध सिद्धांत- कैंल्सन
2. आदेशात्मक सिद्धांत ऑस्टिन
3. उपयोगितावाद का सिद्धांत बेंथम
4. लोक चेतना का सिद्धांत सैविनी
5. वैज्ञानिक सुनिश्चितता अगस्त काम्टे
6. सामाजिक समेकता का सिद्धांत लियोन ड्युगिट
7. सामाजिक अभियंत्रण का सिद्धांत डीन रास्को पाउंड
8. पारितोषिक और दंड का सिद्धांत ईहरिंग
9. सजीव विधि का सिद्धांत इहरलिच
10. हित का सिद्धांत ईहरिंग
11. प्राकृतिक अधिकार संबंधी हित जाँन लाँक
12. प्रास्थिति से संविदा की ओर हेनरी मेन
13. प्राथमिक और द्वितीयक नियमों के समेकन का सिद्धांत एचएलए हार्ट
14. सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति का सिद्धांत रूसो

विधि शास्त्रियों द्वारा विधिशास्त्र में कहे गए कथन-

1. "विधिशास्त्र उचित-अनुचित का विज्ञान है” -अल्पियन
2. “विधिशास्त्र नागरिक विधि का विज्ञान है” – सामण्ड
3. “विधिशास्त्र विधि का नेत्र  है”।   -  प्रो. लास्की
4. “विधिशास्त्र प्रतिष्ठित विधि का दर्शन है”- ऑस्टिन
5. “विधिशास्त्र विधि के ज्ञान का दार्शनिक पक्ष है”- सिशरो
6. “विधिशास्त्र अधिवक्ताओं के बहिर्मुखता का स्वर्ग है”- जूलियस स्टोन
7. “विधिशास्त्र रचनात्मक विधि का औपचारिक विज्ञान है”- हालैंड
8. “विधिशास्त्र को नियमों की व्यवस्था के रूप में कौन देखता है”- हॉर्ट
9. “विधिशास्त्र  विधि या विधि के विभिन्न प्रकारों का अध्ययन है”- पैटन
10. “विधि एक दूसरे से संबंधित सिद्धांतों का समूह है और विधिशास्त्र उसका क्रमबद्ध संश्लेषण करता है” – पाउण्ड
11. “विधि के सामान्य सिद्धांतों का अध्ययन एवं उनकी क्रमबद्ध व्यवस्था विधिशास्त्र का विज्ञान है-“ प्रोफेसर कीटन
12. “विधिशास्त्र न्यायालय द्वारा अनुसरण किए जाने वाले नियम अभिकथन और क्रमबद्ध व्यवस्था उन नियमों में अंतर्निहित सिद्धांतों की विधि का विज्ञान है”-ग्रे
13. सभी विधियां प्रथा से प्रारंभ होती हैं-- सर हेनरी मेन
14. न्यायालय समंविधि के मूल शब्दों में जान फूंकने का काम करते हैं—ग्रे
15. ऑस्टिन विधिशास्त्र में ताड़ का वृक्ष है- C K एलन
16. विधि मानकों का विज्ञान है—केल्सन
17. दीदी ने न्यूनतम नैतिकता होनी चाहिए-- लार्ड डेबलिन
18. विधि का स्रोत लोकचेतना है – सैविनी
19. किसी समाज के अस्तित्व के लिए आंशिक नैतिकता आवश्यक है—फुल्लर
20. समान परिस्थितियों में समस्त व्यक्तियों के कार्यों की एकरूपता को रोड़ कहते हैं—कार्टर
21. आशय कब्जे का मुख्य तत्व है—होम्स
22. स्वामित्व एक व्यक्ति और किसी वस्तु के बीच एक संबंध है—ड्युगीट
23. पूर्व निर्णय न्यायाधीश द्वारा निर्मित विधि है - बेंथम

विधिशास्त्र

विधिशास्त्री  द्वारा विधिशास्त्र की परिभाषा

अल्पियन -  “विधिशास्त्र मानव तथा दैवीय चीजों का ज्ञान है  यह उचित अनुचित का विज्ञान है”।

हालैंड-   “विधिशास्त्र विद्यात्मक विधि का औपचारिक विज्ञान है”।

सामाण्ड-   “सिविल विधि का विज्ञान या सिविल विधि के प्रथम सिद्धांतों का विज्ञान है”।

ऑस्टिन-  “विधिशास्त्र विद्यात्मक विधि का दर्शन है”

जूलियस  स्टोन – “विधिशास्त्र अधिवक्ताओं का विधिक व्याख्या है।“

सी के एलन-  “विधिशास्त्र विधि के मूलभूत सिद्धांतों का वैज्ञानिक संश्लेषण है”

जॉन चीपमैन ग्रे- “विधिशास्त्र विधि का विज्ञान है जिसके अंतर्गत न्यायालय द्वारा लागू किए जाने वाले क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित नियमों तथा उनमें सन्निहित नियमों का अध्ययन किया जाता है”


प्रोफेसर कीटन- “विधिशास्त्र विधि के सामान्य सिद्धांतों का व्यापक अर्थ में अध्ययन करते हुए उनके क्रमब्रध्द विकास का मार्ग प्रशस्त करता है”


डिन् रास्को पाउण्ड- “विधिशास्त्र विधि का ज्ञान है


प्रोफेसर ली- विधिशास्त्र विधि का एक ऐसा विधायन है जो मौलिक सिद्धांतों को अभिनिश्चित करने का प्रयास करता है तथा जिसकी अभिव्यक्ति विधि में पाई जाती है”।

प्रोफेसर लास्की- “विधिशास्त्र को विधि का नेत्र कहा है”।
 
मोइली- “विधिशास्त्र को विधि सिद्धांतों का स्वच्छ एवं गहन अध्ययन का हाल है”।