Friday, May 15

रूढि की परिभाषा

सामण्ड के अनुसार रूढि ऐसे सिद्धांतों की अभिव्यक्ति है जिन्हें न्याय और लोकोपयोगिता के सिद्धांतों के रूप में राष्ट्रीय चेतना के अंतर्गत स्वीकार कर लिया गया है
• डॉ ऐलन के अनुसार विधिक एवं सामाजिक विषय के रूप में रूढि का उद्भव अंशत तर्क और आवश्यकता तथा अंशत आपसी विश्वास और अनुकरण की शक्तियों द्वारा होता है
• ऑस्टिन  के अनुसार रूढि आचरण का वह नियम है जिसका अनुपालन शासित वर्ग द्वारा इसलिए नहीं किया जाता है कि वह किसी राजनीतिक प्रभुता संपन्न द्वारा स्थापित विधि है बल्कि इसलिए किया जाता है कि वह स्वेच्छा से उसका अनुकरण करता है
• हालैण्ड के अनुसार रूढि आचरण की वह प्रणाली है जिसका सामान्यतः पालन किया जाता है जिस प्रकार किसी घास के मैदान में पैरों के पड़ते-पड़ते एक पगडंडी सी तैयार हो जाती है ठीक उसी प्रकार नित्य प्रति के व्यवहारों के अनुकरण से प्रथा का जन्म होता है
• कार्टर के अनुसार समान परिस्थितियों में समस्त व्यक्तियों के कार्यों की एकरूपता को रूढि कहते हैं
• फेड्रिक पोलक ने इंग्लैंड के कॉमन लॉ को रूढिजन्य विधि निरूपित किया है
• हेल्सबरी के अनुसार रूढि एक प्रकार का विशिष्ट नियम है जो वास्तविक या संभावित रुप से अनादि काल से विद्यमान है और जिसे एक विशिष्ट भू क्षेत्र में विधि का बल प्राप्त हो गया है भले ही वह नियम देश की सामान्य विधि के प्रतिकूल या असंगत ही क्यों ना हो।
• हर प्रसाद बनाम शिवदयाल 1876 प्रिवी कौंसिल के मामले में रूढि की परिभाषा देते हुए कहा कि “रूढि वह नियम है जिसे किसी विशिष्ट परिवार में अथवा क्षेत्र विशेष में दीर्घकालिक अनुसरण से विधि की शक्ति प्राप्त हो जाती है”।
• हालैंड के अनुसार सामान्य रूढि के रूप में प्रयोग में लाया जाने वाला आचार ही रूढि या प्रथा के रूप में विकसित हो जाता है
• अहमद खान बनाम चम्मू बीवी लाहौर के मामले में कहा गया कि कुछ समय तक प्रचलन में रहने के बाद  रूढि में निश्चितता आ जाती है तथा उसके अस्तित्व और प्रचलन को न्यायालय के समक्ष सिद्ध करना पड़ता है ताकि न्यायिक निर्णय द्वारा उसे मान्यता प्राप्त हो सके।
• दशरथ लाल बनाम धोंडूबाई 1941 मुंबई के मामले में निर्धारित किया गया कि एक बार न्यायिक निर्णय द्वारा मान्यता प्राप्त हो जाने पर रूढि को सिद्ध करना आवश्यक नहीं होता है
• रूढि के विधि के रूप में परिवर्तित होने के विषय में दो सिद्धांत प्रमुख हैं
• A.  ऐतिहासिक सिद्धांत
• B. विश्लेषणात्मक सिद्धांत
 ऐतिहासिक सिद्धांत-
• रूढ़ियों के विधि में परिवर्तित होने संबंधी ऐतिहासिक सिद्धांत के समर्थक में सैवनी, हेनरी मेन, विनोडेग्राफ के नाम विशेष उल्लेखनीय है
• विधिशास्त्र की ऐतिहासिक शाखा के प्रणेता सैवनी के अनुसार रूढ़ियों का उद्भव लोगों की अंतर्चेतना से होता है
• ऐलन नें सैवनी के इन विचारों का खंडन करते हुए कहा है कि यह कहना सही नहीं है कि किसी समुदाय की समस्त रूढ़ियां जनसाधारण के सामान्य विश्वास तथा न्याय की धारणाओं की प्रतीक होती हैं
• ग्रे  के अनुसार कुछ रूढिजन्य विधियां तो केवल जन सामान्य की इच्छा के बिना ही नहीं बल्कि उनकी इच्छा के विपरीत उन पर लागू की जाती है
• सैविनी के तर्क के विरुद्ध एलन की दूसरी आपत्ति यह है कि स्थानीय रूढ़ियां या प्रथाएं राष्ट्र की इच्छा की प्रतीक नहीं होती हैं
• रूढ़ियों की उत्पत्ति के विषय में सैविनी के विचारों को पैटन ने भी स्वीकार किया है
• पैटन के अनुसार विश्वास आदत को जन्म देता है या आदत विश्वास को।  इनका विचार है कि आदत ही विश्वास को जन्म देती है
• अतः यह कहना उचित नहीं है कि अधिकांश रूढ़ियों की उत्पत्ति जन चेतना से हुई है बल्कि वह तो अनवरत आदत या अभ्यास का ही परिणाम मात्र है- पैटन
• ए टेक्स्ट बुक ऑफ  ज्यूरिस्प्रूडेंस पैटन की कृति है
•   सर हेनरी मेन
• अर्ली लॉ एंड कस्टम सर हेनरी मेन की कृति है
• सर हेनरी मेन के अनुसार रूढि या प्रथा एक ऐसी धारणा है जो थिमिस्टीज के बाद अस्तित्व में आई
• थिमिस्टीज थिमिस शब्द का बहुवचन है थिमिस का अर्थ न्याय की देवी है
• थिमिस्टीज का आसन ऐसे निर्णय से था जो न्यायाधीश द्वारा न्याय देवता की प्रेरणा से दिए जाते थे
• रोमवासियों की अवधारणा थी कि किसी को दंडित किए जाने का निर्णय लेता है तो वह न्याय की देवी की इच्छा मात्र से ऐसा करता है
•    ऑस्ट्रिनियन थ्योरी ऑफ़ लॉ जेथ्रोब्राउन की कृति है
• जेथ्रोब्राउन के अनुसार रूढ़ियां प्रायः न्यायिक निर्णय के उत्तर गांव में होती हैं तथा इनके विषय में मतभेद उचित नहीं है
• विनोग्रेडॉफ कहते हैं कि वस्तुतः रूढ़ियों का विकास घरेलू वातावरण में विभिन्न जातियों के दैनिक संबंधों के बीच क्रमिक रूप से हुआ है
• विनोग्रेडॉफ, फ्रेड्रिक पोलक दोनों ने सर हेनरी मेन के उपर्युक्त विचारों का खंडन करते हैं
• सर फ्रेड्रिक पोलक का विचार है कि रूढिजन्य विधि न्यायिक निर्णयों के पूर्व भी परंपरा के रूप में विद्यमान थी।
 विश्लेषणात्मक सिद्धांत
• इस सिद्धांत के मुख्य समर्थक ऑस्टिन हैं
• ऑस्टिन ने  रूढि को विधि का ऐतिहासिक भौतिक स्वरूप माना है
• ऑस्टिन के अनुसार  रूढि केवल राज्य द्वारा मान्यता होने पर ही विधि का रूप ग्रहण करती है
• ऑस्टिन के अनुसार रूढ़िगत प्रथाएं अनुनयी प्रभाव तभी रखती हैं जब इन्हें न्यायालय द्वारा किसी निर्णय में मान्य कर लिया गया हो
• हालैंड ने भी ऑस्टिन के उपर्युक्त विचारों का समर्थन करते हुए कहा है कि रूढि विधि का रूप तभी ग्रहण करती है जब उसे राज्य की मान्यता प्राप्त हो
• सामण्ड ने भी विचार का समर्थन किया है इन के अनुसार रूढि का विधि में परिवर्तन तभी संभव है जब वह न केवल औचित्य पूर्ण हो अपितु राज्य द्वारा मान्य भी हो
• प्रोफेसर ग्रे के अनुसार यह एकमात्र स्रोत ना होकर विधि के विभिन्न स्रोतों में से एक है
• एलन ऑस्टिन के सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा है कि कोई भी विधि केवल राज्य की मान्यता मात्र से विधि का रूप ग्रहण नहीं कर सकती जब तक उसे समाज का अनुसमर्थन प्राप्त ना हो।
 रूढि के प्रकार
• सामण्ड के अनुसार ऐसी रूढ़ियां जिन्हें विधि की शक्ति प्राप्त है दो प्रकार की होती हैं 1. विधिक रूढ़ियां 2. अभिसमयात्मक रूढ़ियाँ
• विधिक रूढ़ियां दो प्रकार की होती हैं
• 1. स्थानीय रूढ़ियां 
• 2. सामान्य रूढ़ियां
• अभिसमयात्मक रूढ़ियों को प्रथा  भी कहा जाता है


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