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Tuesday, May 26

मुस्लिम विधि में उत्तराधिकार सम्बंधित विधि की व्याख्या

    सामान्यतः उत्तराधिकार दो प्रकार के होते हैं, प्रथम तो वसीयती तथा द्वितीय निर्वसीयती | यदि कोइ सम्पत्ति मृतक की इच्छानुसार उसके इच्छित व्यक्तियों में विभाजित होता हो तो उन उत्तराधिकारियों को वसीयती उत्तराधिकार कहेंगे | वही दूसरी ओर जहा मृतक की संपदा उसके विधिक उत्तराधिकारियों में पूर्वनिर्धारित हिस्सों में विभाजित होकर जब उनमे निहित हो जाती है तो वे निर्वसीयती उत्तराधिकारी कहलाते है |

    मृतक व्यक्ति की दाययोग्य संपत्तियो का विभाजन मुस्लिम विधि के नियमो के अंतर्गत आता है | दाययोग्य संपत्तियों से अर्थ उन संपत्तियों से है जो मृतक की सम्पदा में से उसके अंत्येष्ठी संस्कार, ऋणों के भुगतान तथा वसीयतदारो (यदि कोई हो) का भुगतान कर देने के बाद जो संपत्तिया बचती है उनसे लगाया जाता है |

    यह उल्लेखनीय बात है कि

मुस्लिम विधि में हक़ शुफा (अग्र-क्रयाधिकार)

शुफा एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है – जोड़ना | कुछ परिस्थितियों में जब दो व्यक्तियों के बीच अचल संपत्तियों का विक्रय, हो तब तीसरा व्यक्ति बीच में पड़कर खुद खरीददार होने का दावा कर सकता है ऐसे अधिकार को शुफा या अग्र-क्रयाधिकार कहते हैं |

मूल के अनुसार – शुफा का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसके अनुसार अचल संपत्ति के स्वामी को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अन्य अचल संपत्ति को खरीद ले जिसका विक्रय किसी अन्य व्यक्ति को किया जा चुका है |

शुफा के अधिकार का आवश्यक तत्व –

Monday, May 25

मुस्लिम विधि में हक़ शुफा (अग्र-क्रयाधिकार)

शुफा एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है – जोड़ना | कुछ परिस्थितियों में जब दो व्यक्तियों के बीच अचल संपत्तियों का विक्रय, हो तब तीसरा व्यक्ति बीच में पड़कर खुद खरीददार होने का दावा कर सकता है ऐसे अधिकार को शुफा या अग्र-क्रयाधिकार कहते हैं |

मूल के अनुसार – शुफा का अधिकार एक ऐसा अधिकार है जिसके अनुसार अचल संपत्ति के स्वामी को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अन्य अचल संपत्ति को खरीद ले जिसका विक्रय किसी अन्य व्यक्ति को किया जा चुका है |

शुफा के अधिकार का आवश्यक तत्व –

Thursday, May 21

हिबा-बिल-एवज एवं हिबा-ब-शर्तुल एवज तथा दोनों में अंतर

हिबा-बिल-एवज – हिबा-बिल-एवज का अर्थ है - प्रतिकर के बदले में दान | ऐसा दान जिसमे प्रतिकर पहले ही प्राप्त कर लिया गया होता है | जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का अंतरण किसी दूसरे को किसी अन्य संपत्ति या वस्तु के बदले में करता है तब संव्यवहार हिबा-बिल-एवज कहलाता है |

हिबा बिना प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण होता है, परन्तु हिबा-बिल-एवज में संपत्ति प्रतिफल के बदले अंतरित होती है परन्तु फिर भी इसे हिबा इसलिए कहते है क्योकि प्रारम्भ में किया गया अंतरण प्रतिकर युक्त नहीं होता है | हिबा-बिल-एवज में दो अंतरण होते हैं -

मुस्लिम विधि के अंतर्गत वक्फ की अवधारणा

विधि शब्दावली में वक्फ का तात्पर्य - संपत्ति की एक ऐसी व्यवस्था करने से है जिसमे संपत्ति अहस्तांतरणीय होकर सदैव के लिए बंध जाती हो ताकि इससे प्राप्त होने वाला लाभ धार्मिक व पुण्य के कार्यो के लिए निरंतर प्राप्त होता  रहे |

वक्फ की गई संपत्ति को अहस्तांतरणीय बनाने के लिए मुस्लिम विधिशास्त्रियो ने ईश्वर के पक्ष में समर्पित किये जाने का सिंद्धांत उद्विकसित किया है |

वक्फ की परिभाषा 

मुसलमान वक्फ विधिमान्यकरण अधिनियम, 1913 में

हिबा-बिल-एवज एवं हिबा-ब-शर्तुल एवज तथा दोनों में अंतर

हिबा-बिल-एवज – हिबा-बिल-एवज का अर्थ है - प्रतिकर के बदले में दान | ऐसा दान जिसमे प्रतिकर पहले ही प्राप्त कर लिया गया होता है | जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का अंतरण किसी दूसरे को किसी अन्य संपत्ति या वस्तु के बदले में करता है तब संव्यवहार हिबा-बिल-एवज कहलाता है |

हिबा बिना प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण होता है, परन्तु हिबा-बिल-एवज में संपत्ति प्रतिफल के बदले अंतरित होती है परन्तु फिर भी इसे हिबा इसलिए कहते है क्योकि प्रारम्भ में किया गया अंतरण प्रतिकर युक्त नहीं होता है | हिबा-बिल-एवज में दो अंतरण होते हैं - पहला अंतरणदाता द्वारा अदाता को और दूसरा अंतरण अदाता द्वारा दाता को किया गया होता है |

मुस्लिम विधि में हिबा

संपत्ति का ऐसा अंतरण जिससे एक जीवित व्यक्ति दूसरे जीवित व्यक्ति के पक्ष में अपनी संपत्ति का स्वामित्व बिना किसी प्रतिफल के अंतरित कर दे वह दान या हिबा कहलाता है | दान चूँकि संपत्ति का अंतरण है इसलिए इसका प्रशासन संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत होता है किन्तु यदि दानकर्ता मुस्लिम हो तो उस पर हिबा की विधि लागू होती है | हिबा मुस्लिम विधि से विनियमित होता है संपत्ति अंतरण अधिनियम से नहीं |

दान (हिबा) की परिभाषा –

हेदाया के अनुसार - हिबा किसी वर्तमान संपत्ति के स्वामित्व का प्रतिफल रहित एवं बिना शर्त के किया गया तुरंत प्रभावी होने वाला अंतरण है |

मुल्ला के अनुसार - हिबा या दान तुरंत प्रभावी होने वाला संपत्ति का ऐसा अंतरण है जो बिना किसी विनिमय के एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के पक्ष में किया जाए तथा दूसरे व्यक्ति द्वारा इसे स्वीकार किया जाए |

विधिमान्य हिबा की अनिवार्य शर्त (Essentials of a Valid Hiba) –

मुस्लिम विधि के अंतर्गत जनकता व औरसता

जनकता (Parentage) – संतान के माता-पिता से उनका विधिक सम्बन्ध संतान की जनकता कहलाती है |

औरसता (Legitimacy) – किसी व्यक्ति की औरसता एक ऐसी प्रास्थिति है जो उसके पितृत्व के फलस्वरूप उत्पन्न होता है | संतान का पितृत्व सुस्थापित हो जाने पर उसकी औरसता भी सुस्थापित हो जाती है | विवाह वैध होने पर मुस्लिम विधि के अंतर्गत किसी संतान की औरसता अपने आप सुस्थापित हो जाती है |

हबीबुर्रहमान बनाम अल्ताफ अली के वाद में प्रिवी कौंसिल

मुस्लिम विधि के अंतर्गत भरण-पोषण

भरण पोषण में भोजन, वस्त्र, निवास-स्थान तथा जीवन-यापन के लिए अनिवार्य अन्य वस्तुएं सम्मिलित है | मुस्लिम विधि की शब्दावली में भरण पोषण को ‘नफका’ कहा जाता है |

मुस्लिम विधि में निम्न व्यक्ति भरण पोषण प्राप्त कर सकते है –

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत संरक्षकता

वह व्यक्ति जिसे कानून के अंतर्गत अवयस्क के शरीर अथवा संपत्ति दोनों की सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है वह अवयस्क का संरक्षक कहलाता है |

संरक्षकों का वर्गीकरण (Classification of Guardians) –

1. नैसर्गिक अथवा विधिक संरक्षक
2. वसीयती संरक्षक
3. न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक
4. तथ्यतः संरक्षक

1. नैसर्गिक अथवा विधिक-संरक्षक (Natural or Legal Guardian) – ऐसे व्यक्ति 

मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद

विवाह-विच्छेद (Dissolution of Marriage) – 

पैगम्बर मुहम्मद की एक घोषणा के अनुसार कानून के अंतर्गत जिन चीजो को स्वीकृति प्रदान की जाती है विवाह-विच्छेद उसमे से सबसे निकृष्ट है फिर भी कुछ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्तिथियों में वैवाहिक संविदा भंग हो जाती है | मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद के विभिन्न प्रकार अग्रलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किये गए है –

1. ईश्वरीय कृत्य द्वारा (By act of God) – जब विवाह के पक्षकार में से किसी की भी मृत्यु हो जाती है तो विवाह विच्छेद हो जाता है वहां ईश्वरीय कृत्य द्वारा विवाह विच्छेद कहा जाता है |

2. पक्षकारो के कृत्य द्वारा (By act of Parties) - 

(A) बिना न्यायिक कार्यवाही के – जब पक्षकार खुद

मुस्लिम विधि में निकाह


निकाह की परिभाषा (Definition of Muslim Marriage) – मुस्लिम विवाह की परिभाषा निम्न विद्वानो ने निम्न प्रकार से दी है –

हेदाया – “ कानून की शब्दावली में निकाह से एक ऐसी संविदा का बोध होता है जो संतानोत्पत्ति को वैधानिकता प्रदान करने के उद्देश्य से की जाती है” |

अब्दुल कादिर बनाम सलीमा 1886 Allahabad के वाद में न्यायमूर्ति महमूद – “ मुस्लिमो में विवाह शुद्ध रूप से एक संविदा है यह कोई संस्कार नहीं है “ |

निकाह की प्रकृति – मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाह एक संविदा है | अतः इसकी प्रकृति

मुस्लिम विधि में मेहर

मेहर की परिभाषा (Definition of Dower) – ‘’मेहर वह धनराशि तथा संपत्ति है जो विवाह के फलस्वरूप पति द्वारा पत्नी को उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से दिया जाता है |’’

न्यायमूर्ति महमूद ने अब्दुल कादिर बनाम सलीमा के वाद में कहा कि मुस्लिम विधि में मेहर, वह धनराशि या कोई अन्य संपत्ति है जिसे पति विवाह के प्रतिफल स्वरुप पत्नी को देने अथवा अंतरित करने का वचन देता है और जहां मेहर स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं किया गया है वह भी विवाह के अनिवार्य परिणाम के रूप में क़ानून मेहर का अधिकार पत्नी को प्रदान करता है |

मेहर की संकल्पना (Concept of Dower) –

मुस्लिम विधि में निकाह


निकाह की परिभाषा (Definition of Muslim Marriage) – मुस्लिम विवाह की परिभाषा निम्न विद्वानो ने निम्न प्रकार से दी है –

हेदाया – “ कानून की शब्दावली में निकाह से एक ऐसी संविदा का बोध होता है जो संतानोत्पत्ति को वैधानिकता प्रदान करने के उद्देश्य से की जाती है” |

अब्दुल कादिर बनाम सलीमा 1886 Allahabad के वाद में न्यायमूर्ति महमूद – “ मुस्लिमो में विवाह शुद्ध रूप से एक संविदा है यह कोई संस्कार नहीं है “ |

निकाह की प्रकृति – मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाह एक संविदा है | अतः इसकी प्रकृति सांविधिक ही मानी जाती है इसकी विधि को संविदात्मक मानना एक न्यायिक व विधिक पक्ष ही है सिविल संविदा के अतिरिक्त इस्लाम में विवाह का समाजिक तथा धार्मिक महत्त्व भी है |

मुस्लिम विधि का उद्गम एवं विचारधारा

    पैगम्बर मुहम्मद इस्लामी राष्ट्रमंडल के सर्वेसर्वा थे, वे कानून से सम्बंधित विषयों के सर्वोच्च  प्राधिकारी भी थे उनके देहांत के बाद तत्कालीन समस्या उनके उत्तराधिकारी को प्राप्त होने लगी थी | चुनाव के पक्ष में एक लोगो को कहना था कि चूँकि मुहम्मद साहब ने सारे मुस्लिम समुदाय की कमान सम्भाल रखी थी इसलिए उनके उत्तराधिकारी का चुनाव होना चाहिए | फलस्वरूप मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग ने चुनाव कराया और अबुबकर को अपना प्रथम खलीफा चुन लिया मुस्लिम समाज का यह वर्ग सुन्नी मुस्लिम के नाम से जाना जाने लगा |

    मुस्लिम का एक ऐसा वर्ग भी था जो चुनाव कराने के पक्ष में नहीं था इस अल्पसंख्यक

मुस्लिम विधि के स्रोत

मुस्लिम विधि के स्रोत (Sources of Muslim Law) – मुस्लिम विधि के स्रोत को दो भागो में बांटा गया है जो निम्न है –

(1) प्राथमिक स्रोत
(2) गौण स्रोत

[1] प्राथमिक स्रोत (Primary Sources) – मुस्लिम विधि के प्राथमिक स्रोत वे पुरातन स्रोत है जिन्हें स्वयं पैगम्बर मोहम्मद ने विधि के स्रोतों के रूप में स्थापित किया था जो चार है –

(a) कुरान
(b) सुन्ना अथवा अहादिस
(c) इज्मा
(d) कयास

(a) कुरान –कुरान मुस्लिम विधि का प्रथम स्रोत है | यह मुस्लिम समुदाय का पवित्र ग्रन्थ भी है तथा इसे ‘Book of God’ भी कहा जाता है | मुस्लिम की यह मान्यता रही है कि पैगम्बर मुहम्मद

इस्लाम में विधि की संकल्पना

इस्लाम में विधि की संकल्पना निम्न है –

(1) शरियत (Shariat) – इस्लाम में कानून या विधि की दैवीय उत्पत्ति मानी जाती है, इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार - केवल ईश्वर (अल्लाह ) ही सर्वोच्च विधिकार है वह मनुष्यों के सभी कार्य कलापों को विनियमित करने के लिए कानून पारित करने में सक्षम है |

अतः इस्लाम धर्म के अनुसार - विधि अल्लाह के ऐसे निर्देशो को कहा जाता है जो मनुष्य के धार्मिक, नैतिक या लौकिक कार्य-कलापों को विनियमित करता है |

(2). फ़िक़्ह (Fiqh) – फ़िक़्ह से कानून के आधुनिक अर्थ का बोध होता है | मुस्लिम विधिवेत्ताओ की मान्यता है कि मानव कार्यकलाप के लिए दैवीय सन्देश तथा पैग़म्बर की परम्पराओ द्वारा समुचित मार्गदर्शन के अभाव में कानून के किसी प्रश्न का निर्णय लेने के लिए मानव तर्क व मनुष्य के ज्ञान का प्रयोग आवश्यक है | मनुष्य के विधि के ज्ञान अथवा प्रज्ञा का ही परिभाषित नाम फ़िक़्ह है |

मुस्लिम कौन है ?

मुस्लिम विधि एक वैयक्तिक विधि (Personal Law) है | यह कहा जाता है कि मुस्लिम विधि, दीवानी विधि की एक शाखा है जो मुस्लिम के व्यक्तिगत व पारिवारिक मामलो पर लागू होती है |

यहाँ सबसे पहला प्रश्न यह है कि -

हम मुस्लिम किसे मानेगे ?

निम्न को हम मुस्लिम मानेगें

(1)  इस्लाम धर्म को मानने वाला व्यक्ति मुस्लिम कहलाता है – इस्लाम अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ