Thursday, May 21

मुस्लिम विधि के अंतर्गत वक्फ की अवधारणा

विधि शब्दावली में वक्फ का तात्पर्य - संपत्ति की एक ऐसी व्यवस्था करने से है जिसमे संपत्ति अहस्तांतरणीय होकर सदैव के लिए बंध जाती हो ताकि इससे प्राप्त होने वाला लाभ धार्मिक व पुण्य के कार्यो के लिए निरंतर प्राप्त होता  रहे |

वक्फ की गई संपत्ति को अहस्तांतरणीय बनाने के लिए मुस्लिम विधिशास्त्रियो ने ईश्वर के पक्ष में समर्पित किये जाने का सिंद्धांत उद्विकसित किया है |

वक्फ की परिभाषा 

मुसलमान वक्फ विधिमान्यकरण अधिनियम, 1913 में वक्फ का अर्थ है – ‘’इस्लाम धर्म में आस्थावान व्यक्ति द्वारा किया गया किसी भी संम्पत्ति का एक ऐसा स्थायी समर्पण जो किसी ऐसे उद्देश्य की पूर्ति के लिया किया गया हो जो मुस्लिम विधि के अंतर्गत धार्मिक पुण्यशील अथवा खैराती कार्य के रूप मान्य हो | ”

शिया विधिशास्त्रियो के अनुसार - वक्फ एक ऐसा धार्मिक कार्य है जिसका प्रभाव यह होता है कि किसी वस्तु की काय तो बंध जाती है परन्तु इसका लाभांश स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है |

वक्फ के लक्षण 

  1. शाश्वतता – वक्फ की संपत्ति सदैव स्थाई रूप से निश्चित कर दी जाती है |
  2. अहस्तांतरणीय – वक्फ की गयी संपत्ति अहस्तांतरणीय हो जाती है |
  3. अप्रतिसंहरणीय – वक्फ की संपत्ति को पुनः प्रतिसंहरण नहीं किया जा सकता है |

विधिमान्य वक्फ के आवश्यक शर्ते –

  1. संपत्ति का स्थायी समर्पण हुआ हो |
  2.  वाकिफ सक्षम हो |
  3. वक्फ की संपत्ति वक्फ योग्य हो |
  4. वक्फ का उद्देश्य मुस्लिम विधि के अंतर्गत धार्मिक, पुण्यार्थ व परोपकारी कार्य माना जाता हो |
  5. वक्फ का सृजन करने की विधिक औपचारिकता पूरी कर ली गयी हो |   

स्थायी समर्पण (Permanent Dedication) – वक्फ का समर्पण स्थाई होना चाहिये सशर्त तथा समाश्रित (किसी घटना पर आधारित) वक्फ शून्य होता है |

वाकिफ की सक्षमता – वयस्क तथा स्वस्थचित वाला प्रत्येक व्यक्ति वक्फ करने की क्षमता रखता है | वयस्कता का निर्धारण इंडियन मेजांरिटी अधिनियम, 1875 के अंतर्गत होता है | गैर मुस्लिम भी वक्फ करने के लिए सक्षम है | गैर मुस्लिम के लिए समर्पण ऐसा होना चहिये कि जो समर्पण कर्ता के पंथ व इस्लाम दोनों में वैध माना जाता है | गैर मुस्लिम को व्यक्तिगत वक्फ तथा इमामबाड़ा का सृजन करने का अधिकार नहीं है | अगर कोई मुस्लिम किसी मंदिर के पक्ष में वक्फ करता है तो यह शून्य होगा परन्तु वह हिबा कर सकता है | वही कोई हिन्दू किसी मंदिर के पक्ष में वक्फ करता है तो वह भी शून्य होगा वह मंदिर के पक्ष में हिबा कर सकता है |

वक्फ करते समय वाकिफ को वक्फ की जाने वाली संपत्ति का स्वामी होना चहिये वाकिफ यदि पर्दानशीनं महिला है तो मुतवल्ली व हितग्राही को अलग से सिद्ध करना होगा कि महिला ने वक्फ करते समय अंतरण की प्रकृति को भली-भांति समझा था और वक्फ करने में उसका निर्णय स्वतंत्र रहा | वक्फ के सृजन के लिए वाकिफ की सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए |

वक्फ की विषयवस्तु (The Subject Matter of Wakf) – चल व अचल, मूर्त या अमूर्त प्रत्येक प्रकार की वस्तु विधिमान्य वक्फ की विषयवस्तु बन सकती है | अदालतों ने विशेष रूप से निम्न संपत्तियो का वक्फ वैध माना है –
  1. राजकीय बचत पत्र
  2. दरगाह का चढ़ावा
  3. वाटिका-धारक का साम्पत्तिक अधिकार
  4. राजकीय प्रतिभूति
  5. कंपनी के शेयर
  6. नकद रुपया  

मुशा का वक्फ (Wakf of Musha) – मुशा संपत्ति का वक्फ विधिमान्य है | सुन्नी विधि का मुशा सिद्धांत वक्फ पर लागू नहीं होता इसलिए किसी संपत्ति के एक हिस्से को विभाजित किये बगैर ही विधिमान्य वक्फ के लिए समर्पित किया जा सकता है |

संक्षेप में मुशा का सिद्धांत विधिमान्य है बशर्ते यह

  1. मस्जिद के निर्माण के लिए न हो
  2. सार्वजनिक कब्रिस्तान बनाने के लिए न हो
  3. पट्टे पर दी गयी संपत्ति न हो |

वक्फ का उद्देश्य (The Object of Wakf) – मुस्लिम विधि में धार्मिक परोपकारी कार्यो के रूप में मान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही विधिमान्य वक्फ का सृजन हो सकता है |

वक्फ का विधिमान्य उद्देश्य
  1. मस्जिद अथवा इमामबाड़ा का निर्माण, उसकी देख-रेख या इसमें धार्मिक प्रार्थनाओं का आयोजन |
  2. मुहर्रम के दौरान ताजिया रखने तथा धार्मिक जुलुस में ऊंट अथवा दुलदुल का प्रबंध करना |
  3. किसी मस्जिद में दीप प्रज्वलित करना |
  4. मक्का में तीर्थयात्रियो के लिए निःशुल्क आवास एवं भोजन के लिए सराय का निर्माण |
  5. सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत स्थानों पर कुरान का पाठ |
  6. गरीबो को आर्थिक सहायता या उन्हें हज पर जाने के लिए सुविधा प्रदान करना |

वक्फ का अवैध उद्देश्य –

  • शराब की दूकान, जुआघर अथवा सुकर-मांस की दुकान का निर्माण या इनकी देख-रेख करना |
  • किसी अज्ञात अजनबी को लाभान्वित करने की व्यवस्था करना |
  • वकीलों को लाभान्वित करने की व्यवस्था करना |
  • किसी मंदिर अथवा चर्च का निर्माण या देख-रेख तथा किसी प्रकार की मूर्तिपूजा की व्यवस्था करना |
  • यदि किसी वक्फ के उद्देश्य का कुछ हिस्सा वैध तथा कुछ हिस्सा अवैध हो तो वैध उद्देश्य के लिए किया गया वक्फ विधिमान्य होगा तथा अवैध उद्देश्यों वाला भाग शून्य होगा |
  • वक्फ का उद्देश्य निश्चित होना चाहिये लेकिन यह सिद्ध हो जाने पर कि वक्फ वैध है केवल इस आधार पर ही की इसका उद्देश्य अनिश्चित है इसे शून्य तथा निष्प्रभावी नहीं घोषित किया जा सकता है उद्देश्य अनिश्चित होने पर भी वक्फ प्रभावी रहता है और उसके लाभांश का उपयोग गरीबो के लाभ के लिए किया जा सकता है |

वक्फ की औपचारिकता – वक्फ सृजन के लिए कोई विशिष्ट औपचारिकता की आवश्यकता नहीं होती है वक्फ का सृजन लिखित भी हो सकता है और मौखिक भी |

पंजीकरण वक्फ अधिनियम, 1995 के अनुसार - वक्फ का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है | इस अधिनियम की धारा 36 की उपधारा 1 के अनुसार प्रत्येक वक्फ चाहे वह इस अधिनियम  के पूर्व या पश्चात् स्थापित हुआ हो उसका पंजीकरण कराना आवश्यक है |

गरीबदास बनाम मुंशी अहमद के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वक्फ की वैधानिकता के लिए यह आवश्यक नहीं है कि इसके सृजन के समय मुतवल्ली की भी नियुक्ति कर दी जाए, मुतवल्ली की नियुक्ति बाद में भी हो सकती है तथा कब्जे का परिदान भी बाद में हो सकता है |

वक्फ के सृजन के विधियां – वक्फ का सृजन निम्न 3 प्रकार से हो सकता है –
  1. संपत्ति के तत्काल समर्पण के द्वारा
  2. वसीयत के अंतर्गत संपत्ति के समर्पण द्वारा
  3. संपत्ति के स्मरणातीत उपयोग द्वारा

वक्फ के हितग्राही – जिन व्यक्तियों के लाभार्थ वक्फ किया जाता है वह वक्फ के हितग्राही होते हैं | वक्फ का हितग्राही एक व्यक्ति भी हो सकता है या कुछ व्यक्तियों का समूह भी हो सकता है या सामान्य जनता भी हो सकती है यहाँ तक कि गैर मुस्लिम भी किसी वक्फ का हितग्राही होने के लिए सक्षम है |

वाकिफ द्वारा आय को अपने लिए सुरक्षित रखना – 

हनफी विधि के अंतर्गत समर्पणकर्ता वक्फ की गई संपत्ति की आय को अंशतः अथवा पूर्णतः अपने लाभ के लिए सुरक्षित कर सकता है |

उदाहरणस्वरुप – एक हनफी मुस्लिम अपने मकान का वक्फ इस शर्त के अनुसार कर सकता है कि जब तक वह जीवित रहे मकान की आमदनी उसके भरण पोषण के निमित्त उसे प्रदान होती रहे तथा उसकी मृत्यु के पश्चात उसका उपयोग धर्मार्थ तथा परोपकारी कार्यो के लिए हो | लेकिन वक्फ की आमदनी अन्ततः गरीबो के लाभ अथवा किसी अन्य धार्मिक, पुण्यार्थ अथवा परोपकारी कार्यो के लिए सुरक्षित हो |

वक्फ का प्रबंधक – वक्फ की गई संपत्तियों का प्रबंधन, इसकी देख-रेख, सुरक्षा तथा वक्फ संपत्ति के लाभांश को इसके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वितरित करने वाला व्यक्ति “मुतवल्ली” कहलाता है |

मुतवल्ली की नियुक्ति – मुतवल्ली की नियुक्ति वरीयता क्रम में निम्नलिखित व्यक्तियों में से किसी एक के द्वारा हो सकता है –

  1. वाकिफ अथवा वक्फ को सृजित करने वाले व्यक्ति द्वारा
  2. वाकिफ के निष्पादक द्वारा
  3. मृत्यु शैया से स्वयं मुतवल्ली द्वारा
  4. न्यायालय के द्वारा
  5. धर्म सभा द्वारा

वाकिफ द्वारा मुतवल्ली की नियुक्ति – मुतवल्ली को नियुक्त करने का पूर्ण अधिकार मुख्यतः वाकिफ को ही प्राप्त है | अपनी इच्छा अनुसार वह किसी भी सक्षम व्यक्ति को वक्फ संपत्ति का मुतवल्ली बना सकता है यदि चाहे तो वह स्वयं अपनी नियुक्ति भी वक्फ के प्रथम मुतवल्ली के रूप में कर सकता है |

वाकिफ के निष्पादक द्वारा – वाकिफ अगर मुतवल्ली की नियुक्ति करने के पूर्व ही दिवंगत हो गया है और वक्फनामा भी नियुक्ति के बारे में मौन है तो वाकिफ के निष्पादक को वाकिफ की भांति ही मुतवल्ली नियुक्त करने का अधिकार है |

मुतवल्ली द्वारा नियुक्ति – यदि वर्तमान मुतवल्ली मृत्युशैया पर हो और अपने जीवन की आशा छोड़ चुका हो तथा उपयुक्त विधियों से मुतवल्ली की नियुक्ति तुरंत संभव न हो तो वह मृत्यु शैया से ही अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सकता है | यदि किसी स्थानीय प्रथा के कारण मुतवल्ली का पद पैतृक हो तो वर्तमान मरणासन्न मुतवल्ली अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नही कर सकता है |

न्यायालय द्वारा मुतवल्ली की नियुक्ति – न्यायालय को मुतवल्ली नियुक्त करने के लिए निम्न बातो का ध्यान रखना चाहिए –

जहा तक संभव हो मुतवल्ली की नियुक्ति वाकिफ के निर्देशों के अनुकूल होना चाहिए |

 मुतवल्ली की नियुक्ति में हितग्राही का हित सर्वोपरी होना चाहिए |

धर्म सभा द्वारा मुतवल्ली की नियुक्ति – कभी-कभी मुतवल्ली का चुनाव धर्म-सभा द्वारा भी होता है | धर्म-सभा से तात्पर्य किसी समुदाय विशेष के गणमान्य व्यक्तियों के ऐसे जनसमूह से है जिसमे उस समुदाय के धार्मिक एवं लोकहितकारी विषयों पर चर्चा की जाती हो |
मुतवल्ली कौन हो सकता है ?

कोई व्यक्ति जो वयस्क व स्वस्थचित्त हो मुतवल्ली होने के लिए सक्षम है | यदि मुतवल्ली पद पैतृक हो तथा अंतिम मुतवल्ली की मृत्यु हो चुकी को और वंश का अगला व्यक्ति अवयस्क हो तो वह मुतवल्ली हो सकता है |

महिला तथा गैर मुस्लिम मुतवल्ली – सामान्यतः महिला व गैर मुस्लिम व्यक्ति भी मुतवल्ली हो सकता है यदि वक्फ के अंतर्गत मुतवल्ली  द्वारा इन धार्मिक कृत्यों के किये जाने का उल्लेख किया गया है तो महिला व कोई गैर मुस्लिम मुतवल्ली नहीं हो सकता –

  • यदि मुतवल्ली को धार्मिक प्रमुख के रूप में कार्य करना हो |
  • मुतवल्ली को इमाम के रूप में कार्य करना हो |
  • मुतवल्ली को यदि मुल्ला के रूप में कार्य करना हो |
  • मुतवल्ली को यदि धर्म उपदेशक के रूप में कार्य करना हो |

मुतवल्ली का पारिश्रमिक – अपने सेवाओं के बदले में मुतवल्ली कुछ न कुछ पारिश्रमिक प्राप्त करने का हकदार रहता है वाकिफ इसकी धनराशि तय कर सकता है यदि न्यायालय इसकी पारिश्रमिक तय करता है तो वह वक्फ की संपत्ति के लाभांश के 10%से अधिक न होगी |

मुतवल्ली के कार्य व शक्तियाँ – मुतवल्ली वक्फ संपत्ति का प्रबन्धक होता है उसका मुख्य कर्तव्य वक्फ संपत्ति को ईश्वर की अमानत के रूप में सुरक्षित रखना तथा इसके लाभांश को निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग में लाना है | मुतवल्ली का पद अंतरण योग्य नही है |

सामान्यतः मुतवल्ली के निम्न कार्य एवं शक्तिया हैं

  1. मुतवल्ली ऐसे सभी कार्य कर सकता है जो वक्फ की संपत्ति की रक्षा प्रशासन के लिए युक्तियुक्त हो मुतवल्ली की शक्तिया न्यासी के सामान होती है परन्तु वह वक्फ का मात्र प्रबंधक होता है | वह आवश्यकता पड़ने पर अभिकर्ता भी रख सकता है |
  2. वह वक्फ की संपत्ति को अंतरित या भारित तभी कर सकता है जब वक्फ इस सन्दर्भ में मौन हो तथा यह शक्ति उसे प्राप्त हो गयी हो या न्यायालय की अनुमति मिल गयी हो या तात्कालिक आवश्यकता हो |
  3. न्यायालय की अनुमति से मुतवल्ली रुपया उधार ले सकता है तथा वक्फ की संपत्ति को बंधक, विक्रय आदि कर सकता है |
  4. मुतवल्ली कृषि प्रयोजन के लिए 3 वर्ष या अन्य प्रयोजन के लिए 1 वर्ष के लिए वक्फ की जमीन का पट्टा कर सकता है |
  5. मुतवल्ली मृत्यु शैया पर रहते हुए अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सकता है |
  6. मुतवल्ली संस्थापक द्वारानियत पारिश्रमिक पाने का हकदार है परन्तु यदि यह बहुत कम है तो न्यायालय इसको बढ़ा सकता है परन्तु यह रकम वक्फ की आय के 10% से अधिक नही होगी |
  7. वक्फ की संपत्ति से मुतवल्ली को कोई व्यक्तिगत हित नही होता है |

मुतवल्ली का हटाया जाना – इस सन्दर्भ में वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 64 के अंतर्गत प्रावधान दिया गया है | अधिनियम की धारा 64 की उपधारा 1 के अनुसार वक्फ विलेख में किसी बात के होते हुए भी वक्फ बोर्ड मुतवल्ली को उसके पद से हटा सकता है, यदि ऐसा मुतवल्ली – 

  • अधिनियम की धारा 61 के अंतर्गत दंडनीय अपराध में एक से अधिक बार दण्डित हो चुका हो |
  • आपराधिक न्यास भंग का दोषी हो |
  • अस्वस्थ मस्तिष्क का हो |
  • अनुन्मोचित दिवालिया है |
  • शराब पीने का आदि हो |
  • वक्फ की ओर से या उसके विरुद्ध विधिक भुगतान योग्य विधिक सलाहकार के रूप में नियोजित किया गया   हो |

यथाशक्य सामिप्य का सिद्धांत – यथाशक्य सामिप्य का अर्थ होता है - “ जितना निकट संभव हो सके “ | यह सिद्धांत मुख्य रूप से न्यास के मामलो में लागू होता है परन्तु वक्फ में जब वक्फकर्ता द्वारा निर्देशित उद्देश्यों के लिए वक्फ की संपत्ति का प्रयोग न किया जा सकता हो तब न्यायालय एसी संपत्ति का प्रयोग उन उद्देश्यों के लिए कर सकता है जो उद्देश्य वक्फकर्ता द्वारा निर्देशित उद्देश्यों से अत्यंत निकटता रखते हो या गरीबो के कल्याणार्थ उपयोग कर सकता है |

कुलसुम बीबी बनाम गुलाम हुसैन के वाद में न्यायालय ने निर्णय दिया कि जहा वक्फकर्ता द्वारा वक्फ के सृजन के उद्देश्य असफल हो जाते हैं तब वक्फ को असफल नहीं होने दिया जाएगा और वक्फ की संपत्ति का प्रयोग गरीबो के कल्याण के लिए या वक्फकर्ता द्वारा बताये गये उद्देश्य के अत्यंत निकट के उद्देश्य के लिए किया जाएगा |

जहां एक गाँव के लोगो को प्राथमिक रूप से साक्षर बनाने के लिए वक्फ का सृजन किया गया हो तथा गाँव के सभी लोग प्राथमिक स्तर पर साक्षर हो चुके हो, वहा पर वक्फ संपत्ति का प्रयोग उस गाँव के लोगो की उच्च शिक्षा पर खर्च किया जा सकता है |

यथाशक्य सामिप्य लागू होने के लिए दो तत्व आवश्यक हैं –

मूल वक्फ विधिमान्य होना चाहिए यदि मूल वक्फ शून्य है तब यह सिद्धांत लागू नहीं होगा |

वक्फ में खैरात का आशय स्पष्ट होना चाहिए |

वक्फ अलल-औलाद अथवा पारिवारिक या निजी वक्फ –
वक्फ अलल-औलाद एक प्रकार से निजी वक्फ होता वही जो वक्फकर्ता अपने अजन्मे वंशजो के कल्याण के उद्देश्य से स्थापित करता है | मुहम्मद साहब ने अपने परिवार या पड़ोसियों के लिए संपत्ति समर्पण करने को खैरात माना है इस कारण मुस्लिम विधि में प्राचीन समय से ही परिवार के लिए किया गया वक्फ विधिमान्य रहा है | वक्फ अलल-औलाद के लिए आवश्यक शर्त यह है कि संपत्ति का समर्पण स्थाई तौर पर होना चाहिए |

न्यायिक निर्णयों के माध्यम से वर्तमान समय में वक्फ अलल-औलाद के लिए निम्न तत्वों का होना आवश्यक है –

  • यदि वक्फ का उद्देश्य मात्र अपने परिवार को लाभ पहुचाना है तब ऐसा वक्फ शून्य होगा अतः वक्फ अलल-औलाद में पारिवारिक उद्देश्य के साथ-साथ खैराती उद्देश्य भी होना आवश्यक है |
  • पारिवारिक व खैराती कार्यो के लिए संपत्ति का स्वैच्छिक समर्पण होना चाहिए |
  • खैरात के सम्बन्ध में आशय स्पष्ट होना चाहिए न की भ्रामक |
  • एक वाद में प्रीवी कौंसिल ने यह स्पष्ट किया है कि जब वक्फ का मुख्य उद्देश्य खानदान की तरक्की हो और खैरात के लिए अल्पधन केवल दिखावा हो तो ऐसा वक्फ अमान्य होगा |

सज्जादानशील – सज्जादानशील का अर्थ होता है - प्रार्थना के आसन पर बैठने वाला | वह व्यक्ति जो नमाज पढ़ते समय नमाजियों में सबसे आगे बैठता हो सज्जादानशील होता है | यह धार्मिक सिद्धांतो का उपदेशक होता है | यह जीवन के नियमो को बताने वाला, किसी संस्था का व्यवस्थापक और खैरात का शासक होता है | इसकी स्थिति हिन्दू मन्दिर के महंथ की भांति होती है | कोई स्त्री या अवयस्क सज्जादानशील नही हो सकता है | वह प्रायः अपनी संस्था का मुतवल्ली भी होता है |

सज्जादानशील के निम्नलिखित कार्य हैं –

  • धार्मिक कर्तव्यो को पूरा करना |
  • वक्फ की संपत्ति को धार्मिक प्रयोजन में लगाना |
  • वक्फ संपत्ति की आमदनी का प्रबंध करना |
  • सज्जादानशील का पद आध्यात्मिक पद होता है अतः इसे धार्मिक शिक्षक भी कहा जाता है |

वक्फ पर प्रशासनिक व कानूनी नियंत्रण –

वक्फ पर निम्नलिखित प्रकार से प्रशासनिक व कानूनी नियन्त्रण लगाया गया है –

(1)- मुतवल्ली का खर्चो का ब्यौरा देना – यदि वक्फ के सृजन के समय वक्फकर्ता ने मुतवल्ली को स्पष्ट रूप से यह अधिकार व छुट दे दिया है कि उसे वक्फ प्रशासन पर होने वाले खर्चो का हिसाब नहीं देना होगा तब वक्फ का कोई लाभार्थी उससे वक्फ संपत्ति का हिसाब नहीं ले सकता | परन्तु यदि वाकिफ ने ऐसी कोई छुट प्रदान नहीं की है तब मुतवल्ली हिसाब देने के दायित्व से मुक्त नहीं होगा और सभी लाभार्थी मिलकर वक्फ के हिसाब के लिए न्यायालय में वाद ला सकते है और न्यायालय मुतवल्ली से वक्फ प्रशासन का हिसाब मांग सकती है |

वक्फ अधिनियम में भी मुतवल्ली द्वारा जिला न्यायालय के समक्ष वक्फ का हिसाब-किताब समय-समय पर प्रस्तुत करने का प्रावधान किया गया है |

(2)- कानूनी नियंत्रण – वक्फ के अच्छे प्रशासन के लिए केंद्र व राज्य सरकारों ने समय-समय पर कुछ अधिनियम भी पारित किये है | इसमें वक्फ अधिनियम 1913, 1923, 1954 और 1984 प्रमुख हैं | अब मुतवल्ली का कर्तव्य है कि वह समय-समय पर जिला न्यायालय में वक्फ की संपत्ति का हिसाब व लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगा |

वर्तमान समय में उपरोक्त सभी अधिनियमों को निरसित कर भारत सरकार ने वक्फ अधिनियम, 1995 पारित कर दिया है इस अधिनियम द्वारा सभी प्रदेशो में वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई है इसमें एक चेयरमैन व अन्य सदस्य होंगे | इस बोर्ड को विधिक व्यक्तित्व प्राप्त है | इस अधिनियम द्वारा मुतवल्ली की शक्ति पर बहुत सारे प्रतिबन्ध लगा दिए गये हैं और अब मुतवल्ली को नियुक्त करने व हटाने का अधिकार बोर्ड को प्राप्त है | मुतवल्ली अब वक्फ के खाते को आडिट बोर्ड से करवाने के लिए बाध्य है |

निम्नलिखित वक्फ की विधिमान्यता बताईये –

1- मस्जिद तथा कब्रिस्तान के लिए वक्फ – मस्जिद तथा कब्रिस्तान के लिए वक्फ मुस्लिम विधि में धार्मिक प्रयोजन है अतः वक्फ वैध है |

2- गिरजाघर बनवाने के लिए वक्फ – गिरजाघर मुस्लिमो का धार्मिक स्थान नहीं है अतः गिरजाघर बनवाने के लिए किये गये वक्फ का उद्देश्य अमान्य है, वक्फ नही किया जा सकता है |

3- मुस्लिम तथा हिन्दू विधिशास्त्र पढ़ाने के लिए कालेज का वक्फ – मुस्लिम विधिशास्त्र के लिए मान्य है परन्तु हिन्दू विधिशास्त्र के लिए किया गया वक्फ का उद्देश्य विधिमान्य नहीं है |

4- प्राईवेट मकबरे के रख-रखाव तथा चिराग जलाने के लिए किया गया वक्फ का उद्देश्य खैराती व धार्मिक है अतः विधिमान्य होगा |

5- एक संत के मकबरे के लिए किया गया वक्फ चूँकि धार्मिक स्थल के लिए है अतः वक्फ मान्य होगा |

6- बंधक के अधीन संपत्ति का वक्फ – बन्धककर्ता द्वारा किया जा सकता है क्योकि वह उसका स्वामी होता है | बंधकदार द्वारा किया गया वक्फ अमान्य है क्योकि स्वामित्व उसमे निहित नही है |

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