Thursday, May 21

हिबा-बिल-एवज एवं हिबा-ब-शर्तुल एवज तथा दोनों में अंतर

हिबा-बिल-एवज – हिबा-बिल-एवज का अर्थ है - प्रतिकर के बदले में दान | ऐसा दान जिसमे प्रतिकर पहले ही प्राप्त कर लिया गया होता है | जब कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति का अंतरण किसी दूसरे को किसी अन्य संपत्ति या वस्तु के बदले में करता है तब संव्यवहार हिबा-बिल-एवज कहलाता है |

हिबा बिना प्रतिफल के संपत्ति का अंतरण होता है, परन्तु हिबा-बिल-एवज में संपत्ति प्रतिफल के बदले अंतरित होती है परन्तु फिर भी इसे हिबा इसलिए कहते है क्योकि प्रारम्भ में किया गया अंतरण प्रतिकर युक्त नहीं होता है | हिबा-बिल-एवज में दो अंतरण होते हैं - पहला अंतरणदाता द्वारा अदाता को और दूसरा अंतरण अदाता द्वारा दाता को किया गया होता है | दान और परिदान दोनों अलग-अलग संव्यवहार होते हैं जिनको सम्मिलित रूप से हिबा-बिल-एवज कहते है |

उदाहरण - A और B भाई हैं, A अपने भाई B और अपनी विधवा C को छोड़कर मरता है | A के मरने के बाद B एक दस्तावेज लिखता है जिसके द्वारा वह दो भागों का अनुदान C को कर देता है और C इस अनुक्रम के बदले एक दस्तावेज द्वारा B के पक्ष में पति की संपदा का परित्याग कर देती है यह संव्यवहार हिबा-बिल-एवज है |

मेहर ऋण के बदले में हिबा – मेहर ऋण यदि 100 रूपए से अधिक है, तब कोई मुस्लिम पति 100 रूपए से अधिक की अपनी अचल संपत्ति को अपनी पत्नी के पक्ष में मौखिक अंतरण नहीं कर सकता, यह संव्यवहार दान नहीं है यह केवल रजिस्टर्ड लिखत द्वारा ही हो सकता है उपरोक्त निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शेख गुलाम अब्बास बनाम रजिया के वाद में दिया है तथा महावीर बनाम मुस्तफा के वाद में प्रीवी कौंसिल ने इसे विक्रय माना है |

हिबा-ब-शर्तुल एवज –  हिबा-ब-शर्तुल एवज का अर्थ है - अनुबंध के साथ प्रतिफल के बदले किया गया हिबा | जहाँ कोई दान इस शर्त के साथ किया जाता है कि अदाता इस दान के बदले में  दाता को कोई निश्चित संपत्ति प्रदान करे तो ऐसे संव्यवहार को हिबा-ब-शर्तुल एवज कहा जाता है | हिबा-ब-शर्तुल एवज में प्रतिफल का भुगतान स्थगित कर दिया जाता है | इसलिए कब्जे का परिदान आवश्यक होता है | जब प्रतिफल का भुगतान कर दिया जाता है तब संव्यवहार विक्रय का रूप ले लेता है | यह भारत में लागू नही है |

हिबा-बिल-एवज एवं हिबा-ब-शर्तुल एवज में अंतर –
  •  हिबा-बिल-एवज में प्रतिफल तत्कालिक होता है जबकि हिबा-ब-शर्तुल एवज में प्रतिफल संविदा या अनुबंध के रूप में होता है |
  • हिबा-बिल-एवज में कब्जे का परिदान होना आवश्यक नही है जबकि हिबा-ब-शर्तुल एवज में कब्जे का परिदान होना आवश्यक है |
  • हिबा-बिल-एवज किये जाते ही अप्रतिसंहरणीय हो जाता है जबकि हिबा-ब-शर्तुल एवज में प्रतिफल का भुगतान हो जाने पर अप्रतिसंहरणीय हो जाता है |
  • हिबा-बिल-एवज विक्रय की संविदा के सामान है जबकि हिबा-ब-शर्तुल एवज प्रारम्भ में हिबा के सामान होता है और प्रतिफल प्राप्त हो जाने के बाद विक्रय में बदल जाता है |

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