Thursday, May 21

मुस्लिम विधि में हिबा

संपत्ति का ऐसा अंतरण जिससे एक जीवित व्यक्ति दूसरे जीवित व्यक्ति के पक्ष में अपनी संपत्ति का स्वामित्व बिना किसी प्रतिफल के अंतरित कर दे वह दान या हिबा कहलाता है | दान चूँकि संपत्ति का अंतरण है इसलिए इसका प्रशासन संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत होता है किन्तु यदि दानकर्ता मुस्लिम हो तो उस पर हिबा की विधि लागू होती है | हिबा मुस्लिम विधि से विनियमित होता है संपत्ति अंतरण अधिनियम से नहीं |

दान (हिबा) की परिभाषा –

हेदाया के अनुसार - हिबा किसी वर्तमान संपत्ति के स्वामित्व का प्रतिफल रहित एवं बिना शर्त के किया गया तुरंत प्रभावी होने वाला अंतरण है |

मुल्ला के अनुसार - हिबा या दान तुरंत प्रभावी होने वाला संपत्ति का ऐसा अंतरण है जो बिना किसी विनिमय के एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के पक्ष में किया जाए तथा दूसरे व्यक्ति द्वारा इसे स्वीकार किया जाए |

विधिमान्य हिबा की अनिवार्य शर्त (Essentials of a Valid Hiba) –

दान की घोषणा

दान की स्वीकृति

दान की संपत्ति के कब्जे का परिदान

दान की घोषणा (Declaration of Gift)

दान की घोषणा का तात्पर्य है - दानकर्ता द्वारा दानग्रहीता के पक्ष में संपत्ति को दान करने के मंतव्य की अभिव्यक्ति |

दान की घोषणा मौखिक भी हो सकती है और लिखित भी | इलाही शमसुद्दीन बनाम जैतुन बी मकबूल के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संपत्ति किसी भी प्रकार की हो मुस्लिम विधि में दान की घोषणा व स्वीकृति मौखिक हो सकती है | हिबा विवक्षित नही हो सकता इसे स्पष्ट होना चाहिए |

दान की घोषणा में दानकर्ता की स्वेच्छा तथा स्वतंत्र सहमति आवश्यक है, अन्यथा दान शून्य माना जायेगा |

दान की घोषणा सदाशयपूर्ण होनी चाहिए | ऋणदाताओं को धोखा देने के उद्देश्य से किया गया दान शून्य होता है |

दानकर्ता की सक्षमता – दानकर्ता की निम्न सक्षमता होनी चाहिए –

 मुस्लिम हो

 स्वस्थचित्त हो

 वयस्क हो

दान देने का अधिकार – दानकर्ता को संपत्ति दान करने का अधिकार होना चाहिए | अतः दानकर्ता को दान की जाने वाली संपत्ति का स्वामी होना चाहिए |

दान की स्वीकृति –

विधिमान्य दान के लिए घोषणा के साथ उसकी स्वीकृति भी अनिवार्य है | दान की स्वीकृति न होने पर दान शून्य होता है | कोई जीवित व्यक्ति जो दान करने के समय अस्तित्व में हो दानग्रहीता बनने के लिए सक्षम माना जाता है |

अजन्मा किन्तु गर्भ में आ चुके शिशु के पक्ष में दान किया जा सकता है लेकिन वह दान करने की तिथि से 6 माह के भीतर जन्म ले लेना आवश्यक है |

किसी सामान्य मनुष्य की भांति विधिक व्यक्ति भी दानग्रहीता हो सकते है |

अवयस्क तथा पागल – अवयस्क तथा पागल व्यक्ति भी सक्षम दानग्रहीता है | यदि दानग्रहीता अवयस्क या अस्वस्थ मस्तिष्क का हो तो दान की स्वीकृति उसके संरक्षक द्वारा होनी चाहिए |

 दान की स्वीकृति के लिए वरीयता क्रम में निम्न संरक्षक है-

पिता

 पिता द्वारा नियुक्त निष्पादक

 पितामह

 पितामह द्वारा नियुक्त निष्पादक

दो या अधिक दानग्रहीता -  दानग्रहीता एक व्यक्ति भी हो सकता है और कई व्यक्तियों का समूह भी किन्तु दानग्रहीता यदि व्यक्तियों का समूह या वर्ग है तो इस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अभिनिश्चित होना चाहिए |

कब्जे का परिदान –

मुस्लिम विधि में दान में कब्जे का परिदान अनिवार्य है | दानकर्ता द्वारा दानग्रहीता को संपत्ति का कब्ज़ा देना ही कब्जे का परिदान कहा जाता है | 

सम्पत्ति की प्रकृति तथा परिस्थितियों के आधार पर कब्जे के परिदान की दो विधियाँ प्रचलित है –

1.वास्तविक परिदान

2.प्रलक्षित परिदान

1. वास्तविक परिदान – दान की गयी संपत्ति की प्रकृति यदि ऐसी है कि उस पर भौतिक रूप से कब्जा किया जा सके अथवा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके तो कब्जे का परिदान वास्तविक परिदान कहलाता है | दान की विषय-वस्तु यदि अचल संपत्ति है तो इसके वास्तविक परिदान के लिए दानकर्ता द्वारा कोई ऐसा कार्य किया जाना चाहिए जिससे कि दानग्रहीता उस संपत्ति का पूरा उपभोग करने की स्थिति में आ जाए | अतः दानकर्ता यदि उस मकान का हिबा करे जिसमे वह स्वयं रह रहा है तो उसे चाहिए कि वह मकान खाली कर दे ताकि दानग्रहीता उसमे निवास कर सके |

2. प्रलक्षित परिदान – जब संपत्ति के वास्तविक कब्जा न दिए जाने पर भी कानून प्रकल्पना कर ले कि दानग्रहीता को कब्जा प्राप्त हो गया है तो कब्जे का प्रलक्षित परिदान माना जायेगा | 

प्रलक्षित परिदान निम्न दो स्थिति में पर्याप्त माना जाता है –

जब दान की गयी संपत्ति अमूर्त संपत्ति हो |
जब दान की गयी संपत्ति मूर्त संपत्ति होते हुए भी परिस्थितिवश उसका भौतिक कब्जा संभव न हो |

रजिस्ट्री न तो अनिवार्य है और न ही पर्याप्त – मुस्लिम विधि में कब्जे का परिदान इतना महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है कि रजिस्ट्री होने के बावजूद यदि कब्जे का वास्तविक अथवा प्रलक्षित परिदान न हो सका हो तो हिबा शून्य माना जायेगा |

कब्जे का परिदान कब पूर्ण माना जाता है – चल संपत्तियों के दान में तो कब्जे का परिदान उस समय पूर्ण हो जाता है जब दानग्रहीता को संपत्ति भौतिक रूप से हस्तगत कर दी जाती है परन्तु अचल तथा अमूर्त संपत्तियों के कब्जे का परिदान पूर्ण होने का ठीक समय कर पाना मुश्किल है |

 इसे सुनिश्चित करने के लिए अदालतों ने दो सिद्धांत अपनाया है –

1. लाभ का सिद्धांत- इसके अंतर्गत अचल व अमूर्त संपत्ति के दान में कब्जे का परिदान उस समय पूर्ण माना जाता जिस समय से दानग्रहीता संपत्ति का लाभ उठाना प्रारम्भ कर दे |

2. आशय का सिद्धांत- इसके अनुसार अचल व अमूर्त संपत्तियों के हिबा में कब्जे के परिदान को पूर्णतः का समय दानकर्ता के मंतव्य या आशय पर निर्भर करता है अर्थात कब्जे का परिदान उस समय पूर्ण माना जाता है जिस समय से दानकर्ता ने सोचा हो कि संपत्ति का अधिकार अब दानग्रहीता को मिल जाये |

आपत्ति करने का अधिकार - किसी हिबा में कब्जे का परिदान पूर्ण हुआ है कि नही इस पर आपत्ति करने का अधिकार केवल दानकर्ता, दानग्रहीता अथवा इसके दावेदारों को ही है |

अवयस्क अथवा पागल के पक्ष में किये गये दान का कब्जे का परिदान - दानग्रहीता यदि पागल अथवा अवयस्क है तो उसके पक्ष में किया गया दान तब तक पूर्ण नही माना जायेगा जब तक कि इनके संरक्षक संपत्ति की प्रकृति के अनुरूप वास्तविक अथवा प्रलक्षित कब्जा न प्राप्त कर ले |

हेदाया के अनुसार - अवयस्क दानग्रहीता यदि विवेक की वय का हो चुका है और अपने पक्ष में किये गए दान के संपत्ति का कब्ज़ा स्वयं प्राप्त कर ले तो, दान को विधिमान्य माना जाना चाहिए क्योकि वह उसके हित में है |

कब्जे का परिदान कब आवश्यक नहीं है –
 निम्न परिस्थिति में दान की वैधता के लिए कब्जे का परिदान आवश्यक नहीं है –

जब दानकर्ता व दानग्रहीता दान किये गये मकान में रहते हो |

पति-पत्नी द्वारा परस्पर एक दूसरे को किया गया दान |
संरक्षक द्वारा प्रतिपाल्य को किया गया दान |

दान की विषयवस्तु जब स्वयं दानग्रहीता के कब्जे में हो |

हिबा की विषय-वस्तु  - कोई भी सम्पत्ति जिसपर दानकर्ता का स्वामित्व हो, हिबा की विषय-वस्तु बन सकती है बशर्ते संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अंतर्गत वह अंतरण योग्य संपत्ति मानी गयी हो |

 दान की विषय-वस्तु में कुछ विशिष्ट संपत्तियों का वर्णन निम्नवत है –

1.भावी संपत्ति का दान – भावी संपत्ति का दान शून्य होता है, दान के समय संपत्ति का अस्तित्व में होना आवश्यक है |

2.उत्तराधिकार की संभावना का दान – उत्तराधिकार की संभावना का हिबा भी शून्य है, उत्तराधिकार की संभावना का अर्थ है भविष्य में उत्तराधिकार की संभावना तथा वसीयत के अंतर्गत किसी संपत्ति के प्राप्त होने की संभावना |

3.बीमा पालिसी का दान - बीमा पालिसी का दान वैध होता है |

4.मेहर का दान - मेहर का दान भी किया जा सकता है |

मुशा का दान (हनफी विधि का मुशा का सिद्धांत) – मुस्लिम विधि में मुशा का तात्पर्य किसी संयुक्त संपत्ति के अविभाज्य हिस्से से है |

मुशा अर्थात संयुक्त संपत्ति दो प्रकार के हैं

मुशा अविभाज्य

मुशा विभाजन योग्य  

1. मुशा अविभाज्य (Musha Indivisible) – अविभाज्य मुशा संपत्तियों का दान बिना कब्जे का परिदान किये हुए भी विधिमान्य माना जाता है | कुछ संपत्तियों की प्रकृति ऐसी होती है कि उनका भौतिक रूप से विभाजित किया जाना संभव नही माना जाता है | अविभाज्य मुशा संपत्तियों के दान पर मुशा का सिद्धांत लागू नहीं होता है |

2. मुशा विभाजन योग्य (Musha Divisible) – विभाजन योग्य मुशा संपत्तियों का दान विभाजन तथा कब्जे का परिदान किये बगैर अनियमित माना जाता है |

हनफी विधि में मुशा के सिद्धांत के अंतर्गत किसी विभाजन योग्य मुशा संपत्ति के अविभाजित हिस्से के दान की वैधता के लिए दान किये गये विशिष्ट हिस्से का विभाजन तय दानग्रहीता के पक्ष में इसके कब्जे का वास्तविक हस्तांतरण अनिवार्य है |

 मुशा के सिद्धांत की सीमाएं निम्नवत है –

मुशा का सिद्धांत केवल हनफी विधि में मान्य है |
अविभाज्य संपत्ति के दान में यह लागू नहीं होता है |
इस सिद्धांत के विरुद्ध किया गया दान शून्य नहीं माना जाता, यह केवल अनियमित रहता हैं |
हनफी विधि का मुशा सिद्धांत केवल दान पर लागू होता है |

मुशा सिद्धांत का अपवाद –

किसी सह-उत्तराधिकारी को मुशा का दान – यदि दानकर्ता व दानग्रहीता सह-उत्तराधिकारी है तो विभाजन योग्य मुशा संपत्ति का हिबा, विभाजन तथा वास्तविक कब्जे के परिदान के बिना भी पूर्णतया विधिमान्य माना जाता है |

जमींदारी के किसी हिस्से का दान |

किसी भू-कंपनी के शेयर का दान |

व्यवसायिक शहर में स्थित किसी उन्मुक्त संपत्ति के अंश का दान |

सशर्त एवं समाश्रित दान –

मुस्लिम विधि के अंतर्गत दान यदि किसी प्रकार की शर्त सहित गया है तो वह विधिमान्य होता है परन्तु शर्त शून्य मानी जाती है |

संपत्ति के आय तथा लाभांश को आरक्षित करने का शर्त – मुस्लिम विधि के अंतर्गत यदि किसी हिबा मे दानकर्ता दान की गयी मुख्य संपत्ति अर्थात उसके काय को प्रभावित करने वाला शर्त लगाता है तो शर्त शून्य मानी जाती है | 

परन्तु दानकर्ता यदि संपत्ति के लाभांश को अपने तथा किसी अन्य व्यक्ति के लाभार्थ कुछ समय के लिए सुरक्षित कर लेने के शर्त के साथ हिबा करता है तो चूँकि यह शर्त तथा संपत्ति की ‘काय’ को प्रभावित नहीं करती इसलिए शर्त तथा हिबा दोनों ही वैध माने जाते हैं |

समाश्रित दान – समाश्रित दान शून्य होता है भविष्य की कोई अनिश्चित घटना जो पक्षकारो के नियंत्रण में न हो आकस्मिक कहलाती है | आकस्मिक पर आश्रित दान समाश्रित दान कहलाता है |

समाश्रित दान के सन्दर्भ में उल्लेखनीय बात यह है कि चूँकि यह प्रारम्भतः शून्य माना जाता है अतः वह घटना जिसपर वह आश्रित है घट जाए तो भी दान प्रभावी नही माना जाता है |

आजीवन हित का दान – किसी संपत्ति के आजीवन हित को आजीवन सम्पदा कहते है सुन्नी विधि के अंतर्गत आजीवन सम्पदा का दान संभव नहीं है, क्योकि मात्र जीवन काल के लिए भी किया गया दान भी पूर्ण दान के रूप में प्रभावी होता है | परन्तु शिया विधि के अनुसार दानग्रहिता के जीवन काल तक के लिए किया गया हिबा वैध तथा प्रभावी माना जाता है वस्तुतः शिया विधि के इस नियम का स्रोत नवाजिश अली खां बनाम अली रजा खां का वाद है |

हिबा का प्रतिसंहरण – हिबा पूर्ण होने से पहले अर्थात कब्जे का परिदान होने से पहले, दानकर्ता जब भी चाहे मात्र एक घोषणा द्वारा हिबा का प्रतिसंहरण कर इसे निरस्त कर सकते है | हिबा पूर्ण होने से पूर्व यदि दानकर्ता की मृत्यु हो जाए तो उसके उत्तराधिकारी को हिबा निरस्त करने का अधिकार नहीं है |

कब्जे के परिदान के पश्चात हिबा का प्रतिसंहरण – हिबा पूर्ण हो जाने के पश्चात उसका प्रतिसंहरण नही हो  सकता | परन्तु कब्जे के हस्तांतरण के पश्चात भी तथ्य की भूल, स्वतंत्र सहमति का अभाव अथवा किसी अन्य उपयुक्त कारण के आधार पर अदालत की डिक्री द्वारा हिबा निष्प्रभावी हो सकता है |

शिया विधि – शिया विधि के अंतर्गत कब्जे के परिदान के पश्चात भी स्थिति दानकर्ता हिबा का प्रतिसंहरण मात्र घोषणा द्वारा कर सकता है बशर्ते हिबा अप्रतिसंहरणीय न हो |

अप्रतिसंहरणीय हिबा – यह उस हिबा को कहते है जिसे कब्जे का परिदान पूर्ण हो जाने पर अदालत की डिक्री द्वारा भी निरस्त नहीं किया जा सकता |

 यह निम्न है –

पति-पत्नी के बीच परस्पर एक दूसरे को किया गया दान |

दानकर्ता व दानग्रहीता के बीच निषिद्ध सम्बन्ध होने पर |
दानकर्ता व दानग्रहीता में से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर |

संपत्ति के नष्ट या समाप्त हो जाने पर |

दानकर्ता द्वारा संपत्ति को किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में अंतरण पर |

दान की विषय वस्तु में बहुत ज्यादा परिवर्तन आने पर |

दान का उद्देश्य धार्मिक तथा आध्यात्मिक होने पर |

दान के हिबा-बिल-एवज होने पर |

सदका – धार्मिक अथवा आध्यात्मिक भावना से प्रेरित होकर किया गया दान सदका कहलाता है | सदका का उद्देश्य ईश्वर को प्रसन्न करना है | जहाँ तक अंतरण की विधिक प्रकृति का प्रश्न है हिबा तथा सदका में कोई अंतर नहीं है | अतः जो शर्त किसी हिबा की वैधता के लिए अनिवार्य है वही सदका के लिए भी आवश्यक मानी जाती है | 

हिबा की तुलना में सदका निम्न रूप से भिन्न है

सदका में स्पष्ट स्वीकृति का होना आवश्यक नही है |
पूर्ण हो जाने पर यह किसी अपवाद के बिना अप्रतिसंहरणीय है |

अरियत -  एक निश्चित अवधि तक किसी संपत्ति के उपभोग के अधिकार का दान अरियत कहलाता है | यदि एक निश्चित काल तक के लिए संपत्ति की आमदनी तथा उपज को बिना किसी प्रतिफल के हस्तांतरित किया गया है तो इस हस्तांतरण को अरियत की संज्ञा दी जाती है |


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