Thursday, May 21

मुस्लिम विधि में मेहर

मेहर की परिभाषा (Definition of Dower) – ‘’मेहर वह धनराशि तथा संपत्ति है जो विवाह के फलस्वरूप पति द्वारा पत्नी को उसके प्रति सम्मान प्रकट करने के उद्देश्य से दिया जाता है |’’

न्यायमूर्ति महमूद ने अब्दुल कादिर बनाम सलीमा के वाद में कहा कि मुस्लिम विधि में मेहर, वह धनराशि या कोई अन्य संपत्ति है जिसे पति विवाह के प्रतिफल स्वरुप पत्नी को देने अथवा अंतरित करने का वचन देता है और जहां मेहर स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं किया गया है वह भी विवाह के अनिवार्य परिणाम के रूप में क़ानून मेहर का अधिकार पत्नी को प्रदान करता है |

मेहर की संकल्पना (Concept of Dower) –

मेहर की इस्लामी संकल्पना यह है कि मेहर वह धन संपत्ति है जिसे मुस्लिम पति को अपने पत्नी के प्रति सम्मान प्रकट करने हेतु उसे अवश्य प्रदान करना चाहिए, मेहर न तो पत्नी का मूल्य है और न ही उससे सम्भोग करने का प्रतिफल |

मेहर का उद्देश्य –

मुस्लिम विधिशास्त्र में मेहर का उद्देश्य विवाह के अंतर्गत एक ऐसा माध्यम प्रदान करना है जिसके द्वारा पति अपने पत्नी की प्रतिष्ठा के सत्य को अभिव्यक्त करे | मेहर का सैद्धांतिक पक्ष है इसके अतिरिक्त मेहर की व्यवहारिक उपयोगिता भी है –

पति द्वारा पत्नी को मेहर केवल पत्नी के लाभ एवम् उसके स्वतंत्र उपभोग के लिए प्रदान किया जाता है | इस रूप में मेहर का अर्थ होता है पत्नी के लिए किसी ऐसी संपत्ति या धनराशि की व्यवस्था करना ताकि विवाह विच्छेद के बाद वह असहाय न रहे |

यह पति के तलाक देने के अप्रतिबंधित अधिकार पर अपरोक्ष रूप से कुछ अंकुश लगाता है क्योकि तलाक के बाद पति को पूरी मेहर का भुगतान कर देने का दायित्व है | अतः तलाक देने से पूर्व पति अपने इस दायित्व पर भी स्वविवेक विचार कर लेगा |

मेहर का वर्गीकरण (Classification of Dower) –        

1. उचित मेहर या प्रथागत मेहर

2. निश्चित मेहर

1. उचित मेहर या अनिश्चित मेहर या प्रथागत मेहर (Proper Dower or Unspecified Dower) – विवाह के समय यदि मेहर निश्चित न हो पाया हो तब भी पत्नी को मेहर पाने का अधिकार होता है यदि मेहर का उल्लेख न हो तो उचित धनराशि या संपत्ति अदालत मेहर के रूप में तय कर देती है | उचित मेहर की धनराशि निर्धारित करने का सिद्धांत यह है कि अदालतों को निम्न घटकों पर विचार करना चाहिए -

(a) पत्नी का व्यक्तिगत गुण,

(b) पत्नी के पिता का सामाजिक स्तर,

(c) पत्नी के पितृ कुल में मेहर की धनराशि का कोई उदाहरण अथवा उस परिवार में प्रचलित परम्परा के अनुसार (प्रथा),

(d) पत्नी की आयु, सुन्दरता व मानसिक क्षमता |

शिया विधि -  शिया विधि में उचित मेहर की राशि 500 दिरहम से अधिक नहीं हो सकती |

2. निश्चित मेहर (Specified Dower) – सामान्यतः मेहर का निर्धारण स्वंय पक्षकारों एवं उनके अभिभावकों द्वारा ही होता है | इनके द्वारा जो भी धनराशि या संपत्ति मेहर के रूप में निर्धारित कर दी जाती है उसे निश्चित मेहर कहते है | मेहर की धनराशि लिखित भी हो सकती है और मौखिक भी | किसी अभिभावक द्वारा निश्चित की गई मेहर की धनराशि के भुगतान के लिए कभी अभिभावक व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी नहीं होगा |

शिया विधि में अगर अवयस्क का विवाह अभिभावक द्वारा संपन्न कराया जाता है तो पति के असमर्थ होने पर मेहर के भुगतान के लिए अभिभावक व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी माना जाता है |

निश्चित मेहर को निम्न भागो में बाटां जा सकता है –

(1) तुरंत देय मेहर (Prompt Dower) – निश्चित मेहर में यदि भुगतान के लिए यदि यह तय हुआ है कि विवाह पूर्ण हो जाने के पश्चात् पत्नी जब चाहे इसकी मांग कर सकती है तब मेहर को तुरंत देय मेहर कहा जाता है |

 तुरंत देय मेहर की विशेष बात यह नहीं है कि विवाह के तुरंत बाद इसे मांग लेना चाहिए पत्नी इसे कभी भी मांग सकती है वह जब भी मांग करती है पति को इसे देना होगा | इसमें पत्नी सम्भोग करने से माना कर सकती है |

(2) स्थगित मेहर (Deferred Dower) – स्थगित मेहर किसी विशेष घटना के घटित होने पर दिया जाता है यह घटना पक्षकारो के बीच आपस में तय होती है इस घटना के पूर्व स्थगित मेहर देय नहीं होता अगर घटना से पूर्व ही विवाह विच्छेद हो जाता है तो विवाह विच्छेद के बाद इसे देना आवश्यक हो जाता है |  

उदाहरण – पत्नी और पति के बीच यह तय होता है कि जैसे ही पति दूसरा विवाह करेगा उसे तुरंत मेहर का भुगतान करना पड़ेगा इसे स्थगित मेहर कहा जाता है |

तुरंत देय या स्थगित मेहर का उल्लेख न होने पर – यदि किसी विवाह में मेहर की धनराशि तो निश्चित कर दी गयी है परन्तु यह निर्धारित न किया गया हो कि यह तुरंत देय मेहर है या स्थगित मेहर तो इनका निर्धारण निम्न नियमो के अनुसार होगा –

सुन्नी विधि में – इस विधि में उल्लेख न होने पर कुछ भाग को तुरंत देय बाकी शेष को स्थगित मान लिया जाता है कितने को तुरंत व कितने को स्थगित माना जाएगा यह स्थानीय प्रथाएं, पक्षकारो के सामाजिक स्तर मेहर की धनराशि इत्यादि पर निर्भर करता है |

शिया विधि – इसमें तुरंत देय व स्थगित का उल्लेख न होने पर सारी धनराशि तुरंत देय मानी जाती है |

मेहर की विषयवस्तु – किसी भी मूल्यवान वस्तु को चाहे वह धनराशि हो या संपत्ति मेहर के रूप में निश्चित किया जा सकता है चल व अचल संपत्तियों के लाभांश भी मेहर के रूप में निश्चित किया जा सकता है | पति द्वारा पत्नी को कुरान का पाठ कराना मेहर के रूप में निश्चित किया जा सकता है | शिक्षित पति द्वार पत्नी को पढ़ाना भी मेहर हो सकता है | भविष्य में प्राप्त होने वाली संपत्ति को मेहर के रूप निश्चित नहीं किया जा सकता इसके अतिरिक्त संपत्ति ऐसी हो जिसे इस्लाम वैध संम्पति के रूप में मान्यता देता हो | इस्लाम में कुछ संपत्तिया, जैसे – शराब या सूअर आदि को अवैध संपत्ति माना गया है तथा यह मेहर की विषय-वस्तु नहीं हो सकती |

मेहर की धनराशि – कोई भी धनराशि तथा किसी भी मूल्य की संपत्ति निश्चित मेहर के रूप में  निर्धारित हो सकती है इसकी कोई अधिकतम सीमा नहीं है |

 सुन्नी विधि के अंतर्गत निश्चित मेहर की न्यूनतम राशि 10 दिरहम है इससे कम धनराशि का मेहर निश्चित नहीं किया जा सकता है |

मेहर के अधिकार की प्रकृति (Nature of Right to Dower) –

(1)- निहित होने के पश्चात मेहर का अधिकार कभी समाप्त नहीं होता है – विवाह पूर्ण हो जाने के तत्काल बाद से ही मेहर प्राप्त करने का अधिकार पत्नी में निहित हो जाता है |

निम्न परिस्थितियों में उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है –

(a) पत्नी ने पति की हत्या कर दी हो |

(b) पत्नी ने स्वयं आत्महत्या कर ली हो |

(c) पत्नी ने इस्लाम धर्म का परित्याग कर कोई दूसरा धर्म स्वीकार कर लिया हो |

(d) पत्नी दुराचारिणी हो अथवा पर–पुरुष गमन करती हो |

मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 की धारा 5 के अनुसार – इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने के पश्चात् भी पत्नी मेहर प्राप्त करने की अधिकारिणी रहती है |

(2)- अदत्त मेहर एक अप्रतिभूत ऋण – मेहर का भुगतान यदि न हो पाया हो तो ऐसा समझा जाता है कि जैसे पति ने मेहर की धनराशि पत्नी से उधार ली हो जिसका भुगतान वह अभी तक नहीं कर पाया है | अदत्त मेहर एक ऋण की भांति होता है | जिस प्रकार एक ऋण दाता अपने ऋण की अदायगी अदालत के द्वारा करा सकता है ठीक उसी प्रकार पत्नी भी अदत्त मेहर की प्राप्ति के लिए पति के विरुद्ध वाद ला सकती है | अदत्त मेहर एक अप्रतिभूत ऋण है जिसके लिए पति केवल व्यक्तिगत रूप से  ही उत्तरदायी होता है पति के मृत्यु के पश्चात् पत्नी भी अन्य ऋण दाता की भांति अपना ऋण पति के संपत्तियो से वसूल  कर सकती है |

मेहर के अधिकार का प्रवर्तन (Enforcement of the Right to Dower) - मुस्लिम विधि में कोई पत्नी निम्न रूप से मेहर के अधिकार का प्रवर्तन करा सकती है –

(1)- दाम्पत्य अधिकारों से इन्कार (Refusal of Conjugal Rights) – मेहर तुरंत देय हो तथा सम्भोग एक बार भी न हुआ हो तो मेहर की मांग प्रस्तुत करने के बाद जब तक पति इसका भुगतान न कर दे पत्नी उसे सम्भोग करने से मना कर सकती है |

नसरा बेगम बनाम रिजवान अली के वाद में कहा गया कि यदि दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए पत्नी के विरुद्ध वाद दायर करता है तो वह वाद खारिज कर दिया जाएगा क्योकि सम्भोग न होने की स्थिति में तुरंत देय मेहर का भुगतान न करना पत्नी द्वारा पति को दाम्पत्य अधिकारों से वंचित रखने का पर्याप्त औचित्य माना जाता है | परन्तु मेहर यदि तुरंत देय न हो अथवा एक बार भी सम्भोग हो चुका हो तो पत्नी अपने पति को सम्भोग से वंचित नहीं कर सकती है |

(2)- ऋण की भांति मेहर का प्रवर्तन (Enforcement of Dower as a Debt) – अदत्त मेहर ऋण की भांति होता है इसमें पत्नी ऋणदाता व कर्जदार माना जाता है | यदि मेहर के भुगतान के पूर्व ही पति का देहांत हो गया हो तो मेहर की वसूली के लिए पत्नी पति के उत्तराधिकारियो पर वाद ला सकती है और उत्तराधिकारी जो संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त किया है उसका अपने अपने अंश के बराबर मेहर का भुगतान करेगे |

(3)- विधवा के प्रतिधारण का अधिकार (Widow’s Right of Retention) – इस अधिकार के अंतर्गत पति के जीवन काल में पति की स्वतंत्र सहमति से यदि पत्नी ने अदत्त मेहर के बदले पति की संपत्ति पर कब्ज़ा बना लिया है तो पति के देहांत के पश्चात् उसके विधवा को उस सम्पत्ति पर तब तक कब्जा बनाए रखने का अधिकार होता है जब तक कि पति के उत्तराधिकारी अदत्त मेहर का भुगतान न कर दें |

विधवा के प्रति-धारण के अधिकार की मुख्य विशेषता निम्न है –

(a) पति की संपत्ति पर कब्जा (Possession of husband’s Property) – इस अधिकार के विधिपूर्ण प्रवर्तन के लिए यह आवश्यक है कि पत्नी ने पति के संपत्ति पर केवल मेहर के बदले में कब्जा प्राप्त किया हो किसी अन्य कारण से नहीं | दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि यह अधिकार पहले से ही प्राप्त किये गए कब्जो को बनाए रखने का न कि पति के देहांत के पश्चात कब्ज़ा प्राप्त करने का तथा तीसरी बात पति की संपत्ति पर कब्ज़ा पति के स्वतंत्र सहमति से प्राप्त हुआ हो |

(b) मात्र कब्जे का अधिकार (Only a Possessory Right) – मेहर के बदले में विधवा को अपने पति की संपत्ति पर केवल कब्जा का अधिकार रहता है वह इसे अंतरित नहीं कर सकती |

(c) संपत्ति के लाभांश से मेहर का भुगतान – जो संपत्ति विधवा के कब्जे में है वह उसका अंतरण करके मेहर का भुगतान नहीं प्राप्त कर सकती उसको संपत्ति के लाभांश से ही मेहर का भुगतान करना होगा |

(d) कब्जे की संपत्ति का हस्तांतरण – विधवा अदत्त मेहर के बदले में कब्जे की संपत्ति का अंतरण नहीं कर सकती मैना बीबी बनाम चौधरी वकील अहमद के वाद में पति ने पत्नी के विवाह में निश्चित मेहर का भुगतान पति न कर पाया और उसकी मृत्यु हो गयी पत्नी ने अदत्त मेहर के बदले में उसकी संपत्ति की उसके (पति के) उत्तराधिकारियो ने मेहर का भुगतान नहीं कर पाए तो पत्नी ने उसका दान कर दिया न्यायलय ने इसे शून्य ठहराया |

(e) कब्ज़ा समाप्त होने पर पुनः प्राप्त नहीं होता – अगर अंतरण से या किसी भी तरह से कब्ज़ा विधवा के हाथ से समाप्त हो जाता है तो उसे पुनः प्राप्त नहीं होगा (मैना बीबी बनाम चौधरी वकील अहमद) |

(f) प्रतिधारण के अधिकार का अंतरण – कब्जा बनाये रखने का अधिकार अंतरण योग्य अधिकार है या नहीं इस विषय पर न्यायालयों में मतभेद है लेकिन कपूर चन्द बनाम कदरुन्निसा में उचतम न्यायलय ने विचार व्यक्त किया कि कब्जा बनाये रखने का अधिकार अंतरण योग्य अधिकार है |

क्या मेहर भुगतान योग्य है ?

विधिमान्य विवाह (Valid Marriage) – यदि सम्भोग न हुआ हो तो निश्चित मेहर आधी धनराशि, यदि मेहर में निश्चित न हो तो नाममात्र का भेट | अगर विवाह विच्छेद यौवनावस्था के विकल्प पर है तो कुछ नहीं | विवाह के बाद एक बार भी सम्भोग हो चुका है तो पत्नी को निश्चित मेहर की पूरी धनराशि, अगर निश्चित न हो तो उचित  धनराशि |

अनियमित विवाह (Irregular Marriage) – अनियमित विवाह में सम्भोग हो चुका है तो निश्चित या उचित मेहर जो भी कम हो वह देय  होगा |

मेहर की माफी – पति द्वारा जो संपत्ति पत्नी को मेहर के रूप में दी जाती है अगर उस संपत्ति या धनराशि की माफी पत्नी कर देती है उसे मेहर की माफी कहते है मेहर की माफी आंशिक या पूर्ण हो सकती है इसके दो आवश्यक शर्त है –

मेहर के माफी के समय पत्नी स्वस्थचित्त व वयस्क हो |
उसकी सहमति स्वतंत्र हो |

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