Thursday, May 21

मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद

विवाह-विच्छेद (Dissolution of Marriage) – 

पैगम्बर मुहम्मद की एक घोषणा के अनुसार कानून के अंतर्गत जिन चीजो को स्वीकृति प्रदान की जाती है विवाह-विच्छेद उसमे से सबसे निकृष्ट है फिर भी कुछ दुर्भाग्यपूर्ण परिस्तिथियों में वैवाहिक संविदा भंग हो जाती है | मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद के विभिन्न प्रकार अग्रलिखित तालिका द्वारा स्पष्ट किये गए है –

1. ईश्वरीय कृत्य द्वारा (By act of God) – जब विवाह के पक्षकार में से किसी की भी मृत्यु हो जाती है तो विवाह विच्छेद हो जाता है वहां ईश्वरीय कृत्य द्वारा विवाह विच्छेद कहा जाता है |

2. पक्षकारो के कृत्य द्वारा (By act of Parties) - 

(A) बिना न्यायिक कार्यवाही के – जब पक्षकार खुद अपने मन से तलाक की घोषणा करते है उसे बिना न्यायिक कार्यवाही के विवाह विच्छेद कहा जाता है ये निम्न तरह से हो सकते है –

(1)-पति द्वारा विवाह विच्छेद – पति द्वारा विवाह विच्छेद निम्न तरीके से दिया जा सकता है –

A- तलाक

B- इला

C- जिहार

A- तलाक (Talak) – अरबी शब्द ‘तलाक’ का शाब्दिक अर्थ है - निर्मुक्त करना | मुस्लिम विधि में तलाक का अर्थ - पति द्वारा वैवाहिक संविदा का निराकरण करना है | पति को मुस्लिम विधि में पत्नी को अकारण ही तलाक देने का अधिकार मिला है, इस्लाम की यह नीति कभी नहीं रही है कि पति को ऐसा अधिकार प्रदान किया जाए परन्तु दुर्भाग्यवश इस्लामिक नीतियों के विपरीत पति के अप्रतिबंधित अधिकार को लेकर समाज व न्यायालयों में भ्रान्तियाँ है तथा इस अधिकार का दुरूपयोग भी करता है |  

तलाक भी बहुत तरह से दिया जा सकता है, जिनका उल्लेख निम्नलिखित है –

(a)- तलाक–उल–सुन्नत (Revocable Talak) -  तलाक-उल-सुन्नत एक प्रतिसंहरणीय तलाक है क्योकि तलाक के शब्दों को उच्चारित करने के बाद इसे वापस लेने व तलाक को निरस्त करने की गुंजाइश बनी रहती है |

दूसरे शब्दों में तलाक देने के बाद विवाह-विच्छेद तुरन्त नहीं हो जाता उनके बीच समझौता हो सके इसके लिए पर्याप्त समय रहता है | इसके दो तरीके है –

(1) तलाक-अहसन (Most Proper) - तलाक द्वारा वैवाहिक संविदा को निराकृत करने का सबसे अच्छा तरीका तलाक-अहसन है, इसकी औपचारिकता निम्न है –

(A)- तलाक देने के लिए पति को पत्नी के ‘तुहर’ अर्थात शुद्ध काल में केवल एक बार तलाक को उच्चारित करना पड़ता है | यथा - पत्नी को संबोधित करते हुए पति कहे मैंने तुम्हे तलाक दिया | कोई भी स्त्री जब मासिक धर्म में नहीं रहती है तो वह उसका तुहर काल कहलाता है |

(B)- उपर्युक्त ढंग से तलाक उच्चारित हो जाने के पश्चात पत्नी तीन माह तक इद्दत का पालन करती है इद्दत की अवधि में पत्नी व पति के बीच कभी समझौता (सम्भोग) हो जाता है तो उपर्युक्त शब्द निरस्त हो जाएगा और विवाह भंग होने से बच जाए और जब इद्दत काल पूर्ण हो गया और उन दोनों के बीच समझौता न हो सका तो इद्दत के ख़त्म होने पर तलाक पूरा हो जाता है |

इसकी मुख्य बात यह है कि यदि पति क्रोधवश या असावधानी पूर्वक तलाक दे दिया है तो उसे पुनः विचार करने के लिए 3 माह का समय रहता है |

(2) तलाक–हसन (Proper) – तलाक-हसन विवाह विच्छेद का सबसे उचित तरीका तो नहीं है फिर भी इसे एक उचित तरीका माना जाता है क्योकि पति पत्नी के बीच समझौता होने का पर्याप्त समय रहता है | तलाक-हसन की औपचारिकताये निम्न है –

(A)- पत्नी के तुहर काल में पति तलाक को एक बार उच्चारित करे तथा इस पूरे शुद्ध काल में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष समझौता न हो |

(B)- पत्नी के दूसरे तुहर काल आने पर पति फिर एक बार तलाक को उच्चारित करे, दूसरे शुद्धकाल में भी पति द्वारा तलाक का प्रतिसंहरण न हो |

(C)- पत्नी को तीसरे तुहरकाल आने पर पति पुनः तलाक की घोषणा करे इस तीसरे व अंतिम घोषणा के बाद तलाक पूर्ण मान लिया जाएगा |

(b)- तलाक–उल–विद्द्त (Irrevocable Talak)  - तलाक-उल–विद्द्त अप्रतिसंहरणीय तलाक है इसे तलाक–उल–वेन या तिहरा तलाक भी कहा जाता है इस तलाक की विशेषता यह है कि एक ही बार उच्चारित कर दिए जाने पर तलाक पूर्ण हो जाता है और पति-पत्नी में समझौता होने की गुंजाइश नहीं रहती है |

पैगम्बर मुहम्मद ने इस प्रकार के तलाक का कभी अनुमोदन नहीं किया और न ही इसका प्रचलन उनके जीवन काल में हो पाया | सुन्नी विधि के हनफी शाखा में इसे मान्यता प्राप्त है, शिया विधि में इसे मान्यता प्राप्त नहीं है इसकी निम्न औपचारिकताये है – 

(1)- इसमें पति एक बार ही तलाक की उद्घोषणा कर दे तो वहां यह तलाक पूर्ण हो जाता है | यथा- मैंने तुम्हे तलाक दिया, मैंने तुम्हे तलाक दिया, मैंने तुम्हे तलाक दिया  |

द्रष्टव्य है कि पति द्वारा मात्र कुछ शब्दों के एक ही बार में उच्चारित करके दाम्पत्य जीवन को पूर्ण व अंतिम रूप से समाप्त कर दिया जाता है | तलाक-उल–विद्दत हमेशा विधिशास्त्रियो के लिए आलोचना का विषय रहा है |

रहमतुल्ला बनाम उत्तर प्रदेश के वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि तलाक-ए-विद्दत अवैध है क्योकि यह पवित्र कुरान के समादेशो के विपरीत है लेकिन अपील में उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय से असहमति प्रकट किया | पांच न्यायाधीशों द्वारा गठित इस संवैधानिक पीठ ने निर्णय दिया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उल्लखित तिहरा तलाक अविधिमान्य है यह उचित नहीं है | उच्चतम न्यायालय ने कहा कि तलाक-उल-विद्दत संवैधानिक है |

इसमें उच्चतम न्यायालय ने तिहरे तलाक की आलोचना करते हुए कहा कि यह तलाक का कठोरतम रूप है तथा पति पत्नी के बीच समझौते के सभी रास्ते बंद हो जाते है | अतः यह तलाक तभी दिया जाना चाहिए जब पति पत्नी के बीच समझौते का कोई विकल्प मौजूद न हो |

तीन तलाक (ट्रिपल-तलाक) के सन्दर्भ वर्तमान विधि व्यवस्था –

देश के सबसे जटिल समस्या में से एक ट्रिपल तलाक को शायरा बानो के वाद में असंवैधानिक घोषित कर दिया गया है |

क्या था मामला – उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने साल 2016 में उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक, निकाह, हलाला तथा बहुविवाह प्रथा के चलन के संवैधानिकता को चुनौती दी थी तथा अपने अर्जी में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओ के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहली शादी के रहते हुए दूसरी शादी के मुद्दे पर विचार करने को कहा और साथ ही यह भी कहा कि तीन तलाक़ संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है | इस अर्जी के बाद एक के बाद एक कई याचिकाएं दायर की गयीं | एक मामले में उच्चतम न्यायालय के डबल बेंच ने भी खुद संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि वह स्पेशल बेंच का गठन करे, ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामले को देखा जा सके | जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के अटार्नी जनरल और नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था |

जवाब के केंद्र की ओर से यह कहा गया कि संविधान कहता है कि, जो भी क़ानून मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, वह क़ानून असंवैधानिक है | अतः कोर्ट को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए और यह मूल अधिकारों भी का उलंघन करता है, तथा तलाक़ महिलाओं के मान-सम्मान और समानता के अधिकार में दखल देता है | ऐसे में इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए | आगे यह भी कहा कि पर्सनल लॉ धर्म का हिस्सा नही है और अनुच्छेद 25 के दायरे में शादी और तलाक नही है | अगर कोई क़ानून लिंग समानता, महिलाओं के अधिकार और उसकी गरिमा को प्रभावित करता है तो वह क़ानून अमान्य होगा और ऐसे में तीन तलाक अवैध है |

याचिकाकर्ता शायरा बानो की तरफ से विद्वान् अधिवक्ता राम जेठमलानी जी ने यह दलील दिया कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रेक्टिस की बात है अतः तीन तलाक अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नही हो सकता | मुस्लिम धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है ऐसे में इसे धार्मिक स्वत्रंतता के अधिकार के तहत संरक्षित कैसे किया जा सकता है तथा यह भी कहा गया कि “ शादी तोड़ने के इस तरीके के पक्ष में कोई दलील नही दी जा सकती | शादी को एकतरफा ख़त्म करना घिनौना है, इसलिए इससे दूरी बरती जानी चाहिए | आल  इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल बोर्ड की ओर से दलील दी गयी कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नही है और कुरान में इसका कही भी जिक्र नही किया गया है |

वही तीन तलाक़ के पक्ष में मुस्लिम पर्सनल लॉ के ओर से कहा गया कि अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परम्परा की बात है और संविधान परम्परा को संरक्षित करता है | सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेगुलेट करने के लिए क़ानून बना सकती है | विद्वान वकील कपिल सिब्बल ने आगे यह भी कहा कि “ तीन तलाक़ पाप है और अवांछित है | हम भी बदलाव चाहते है, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नही होना चाहिए | निकाहनामा में तीन तलाक़ न रखने के बारे में लड़की कह सकती है कि पति तीन तलाक नही कहेगा | मुस्लिम विधि में निकाहनामा एक कांट्रेक्ट है | सहमति से निकाह होता है और तलाक का प्रावधान उसी के दायरे में है |   

उच्चतम न्यायालय ने अपने अभूतपूर्व निर्णय में पांच जजों के संवैधानिक पीठ के द्वारा 3:2 के बहुमत के निर्णय के आधार पर तिहरे तलाक (ट्रिपल तलाक) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के उलंघन करने के कारण असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है तथा तिहरा तलाक मुस्लिम महिलाओ के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को ख़त्म कर देता है | कोर्ट ने मुस्लिम देशो में ट्रिपल तलाक पर लगे बैन का भी जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नही हो सकता | अन्य दो न्यायधीश जिन्होंने इसके विरोध में मत किया था उन्होंने भी ट्रिपल तलाक को सही नही माना था |  

 विधिमान्य तलाक की आवश्यक शर्त (Conditions for a Valid Talak) -

1- क्षमता (Capacity) – स्वस्थचित्त यौवनावस्था की वय प्राप्त मुस्लिम ही तलाक दे सकता है |

2- स्वतंत्र-सहमति (Free Consent) – हनफी शाखा को छोड़कर मुस्लिम विधि की सभी शाखाओ में तलाक स्वेच्छया से देना आवश्यक है | अर्थात स्वतंत्र सहमति आवश्यक है |

3- तलाक के शब्द स्पष्ट हो (Words of Talak must be Express) – तलाक के शब्द स्पष्ट होने चाहिए ताकि पति द्वारा विवाह विच्छेद किये जाने की धारणा पूर्णतः सुनिश्चित की जा सके |

B - इला (Vow of Continence) –

इला की विधि से विवाह भंग करने के लिए, पति शपथ लेता है कि वह पत्नी से सम्भोग नहीं करेगा | इस शपथ के पश्चात् यदि पति व पत्नी के बीच 4 माह तक सम्भोग नहीं होता है तो 4 माह के पूर्ण हो जाने पर विवाह विच्छेद बिना किसी कार्यवाही के पूर्ण हो जाएगा और इन चार माह के अन्दर उनके सम्बन्ध ठीक हो जाता है तो यह शपथ निरर्थक हो जायेगा |

C - जिहार (Injurious Assimilation) – जिहार का अर्थ है – ‘आपत्तिजनक तुलना’| इस विधि से विवाह-विच्छेद करने के लिए पति अपने पत्नी की तुलना किसी ऐसी महिला से करता है जिससे विवाह करना उसके लिए निषिद्ध है | यंथा – माता या बहन इस कथन के बाद 4 माह का समय पूर्ण हो जाने पर विवाह विच्छेद हो जाएगा इसी बीच पति अपने इस कथन को वापस ले लेता है तो यह कथन निकृष्ट हो जायेगा |

शिया विधि में जिहार की घोषणा दो सक्षम गवाहों के समक्ष होती है |

पत्नी द्वारा विवाह विच्छेद (Divorce by Wife) –

मुस्लिम विधि में पत्नी द्वारा विच्छेद पति द्वारा तलाक के अधिकार को पत्नी में प्रत्यायोजित करने पर अर्थात तफवीज के अंतर्गत होता है |

पत्नी मात्र अपनी स्वेच्छा से विवाह विच्छेद करने में सक्षम नहीं है |

तलाक-ए-तफवीज (Delegated Talak) - मुस्लिम पति को तलाक द्वारा विवाह विच्छेद करने का इतना सम्पूर्ण असीमित अधिकार प्राप्त है कि वह इस अधिकार का स्वंय न करके इसे किसी अन्य व्यक्ति में प्रतिनिहित करके उसे यह अधिकार प्रदान कर सकता है |

सामान्यतः तलाक के अधिकार को पति द्वारा अपनी पत्नी में ही प्रतिनिहित करने का प्रचलन है, ऐसी स्थिति में पत्नी भी इस प्राधिकार के अंतर्गत तलाक दे सकती है और यह उसी प्रकार मान्य तथा प्रभावी होगा जैसा की स्वंय पति द्वारा दिया गया तलाक | पति तलाक देने के पत्नी के अधिकार को चाहे तो हमेशा के लिए सौप सकता है या कुछ निश्चित अवधि के लिए |

पति द्वारा पत्नी को तलाक का अधिकार सौप देने पर भी पति का स्वंय का तलाक देने का अधिकार बना रहता है |

पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद (Divorce by Mutual Consent) -  

पारस्परिक सहमति द्वारा विवाह-विच्छेद दो प्रकार से हो सकता है –

खुला

मुबारत

(1) खुला (Khula) – विधि की शब्दावली में खुला का मतलब है - पति की सहमति से उसे (पति को) कुछ मुआवजा देकर पत्नी द्वारा विवाह-विच्छेद |

मुंशी बुजलुल रहीम बनाम लतीफुन्निसा के प्रसिद्ध वाद में प्रीवी कौंसिल ने कहा कि खुला विवाह विच्छेद का एक तरीका है जिसमे पत्नी वैवाहिक बंधनों से अपने को निर्मुक्त करने के लिए पहल करती है छुटकारा पाने के एवज में पत्नी अपने पति को कुछ न कुछ प्रतिफल देती है या प्रतिफल स्वरूप कुछ राशि या संपत्ति प्रदान करने का अनुबंध करती है |

विधिमान्य खुला की आवश्यक शर्त

पति तथा पत्नी स्वस्थचित्त तथा वयस्क हो |
पति व पत्नी दोनो की स्वतंत्र सहमति आवश्यक है |
खुला का उपबंध प्रस्ताव तथा स्वीकृति द्वारा पूर्ण होना चहिये |
खुला में पत्नी द्वारा पति को मुआवजा व क्षतिपूर्ति के रूप में प्रतिफल का दिया जाना आवश्यक है |

(2) मुबारत (Mubarat) – मुबारत शुद्ध रूप से परस्पर अनुमति द्वारा विवाह-विच्छेद माना जाता है |

मुबारत के अनुबंध में विवाह-विच्छेद का प्रस्ताव पति द्वारा भी किया जा सकता है और पत्नी द्वारा भी | दूसरे पक्ष द्वारा इसे स्वीकार कर लिए जाने पर विवाह-विच्छेद पूर्ण हो जाता है खुला की भांति मुबारत में भी पति व पत्नी का सक्षम होना आवश्यक है |

न्यायिक विवाह-विच्छेद (Judicial Divorce) -

मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 किसी न्यायालय के आदेश द्वारा विवाह-विच्छेद न्यायिक विवाह- विच्छेद कहलाता है | मुस्लिम विधि में न्यायिक विवाह को ‘फस्क’ कहते है | मुस्लिम महिला विवाह-विच्छेद अधिनियम, 1939 पारित होने के पूर्व मुस्लिम महिला अपने पति से केवल दो आधारों पर ही तलाक प्राप्त कर सकती थी –

पति के नपुंसक होने पर

पति द्वारा व्याभिचार का झूठा आरोप

उपरोक्त आधारों के आलावा यदि पत्नी अपने पति से मुक्त होना चाहती थी तब उसके पास धर्म परिवर्तन ही एक मात्र रास्ता था |

इस अधिनियम में ऐसे कई आधार दिए गए है जिनके अंतर्गत कोई पत्नी, जिसका विवाह मुस्लिम विधि के अनुसार हुआ हो, न्यायिक विवाह-विच्छेद करा सकती है |

पत्नी द्वारा न्यायिक विवाह-विच्छेद के आधार (Ground for Judicial Divorce by Wife) –

धारा 2 के अनुसार कोई पत्नी जिसका विवाह मुस्लिम विधि के अनुसार संपन्न हुआ है, निम्न आधारों में से किसी एक अथवा एक से अधिक आधार पर न्यायालय की डिक्री द्वारा अपना विवाह भंग कराने का वाद प्रस्तुत कर सकती है, धारा 2 के उपबंध भूतलक्षीय प्रभाव रखते है –

1. चार वर्ष तक पति का लापता होना – यदि 4 वर्ष से पति लापता है और उनके संबंधियों को उसके बारे में कुछ नहीं पता है तो न्यायालय विवाह-विच्छेद की डिक्री पारित कर देगा किन्तु यह डिक्री 6 माह बाद ही प्रभावी होगी इस बीच पति यदि लौट आता है अथवा अपनी उपस्थिति से न्यायालय को किसी अन्य माध्यम से अवगत करा देता है तो डिक्री निरस्त कर दी जायेगी और विवाह-विच्छेद नहीं हो पाता है |

2. भरण-पोषण देने में पति की असफलता – पति अपनी पत्नी को लगातार दो या अधिक वर्षो तक भरण पोषण उपलब्ध करने में असफल रहा हो तो पत्नी विवाह-विच्छेद का वाद प्रस्तुत कर सकती है |

उल्लेखनीय है कि पत्नी का भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार उसके स्वंय के संव्यवहार पर भी निर्भर करता है | बिना किसी औचित्य के पत्नी यदि पति से अलग रहने लगी है तो उसे भरण-पोषण प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है |

3. सात वर्षो तक पति का कारावास – पति को यदि किसी अपराध के लिए सात से अधिक वर्षो तक कारावास हुआ है तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री का वाद प्रस्तुत कर सकती है |

इस आधार पर पर विवाह-विच्छेद की डिक्री तभी पारित होती है जब पति द्वारा अपील किये जाने की मर्यादा समाप्त हो चुकी है अथवा पति ने अपील की हो और वह ख़ारिज हो चुकी हो |

4. पति द्वारा वैवाहिक दायित्वों का पालन न करना – यदि पति बिना न्यायोचित कारण के 3 वर्ष या इससे अधिक समय तक पत्नी के प्रति अपने वैवाहिक दायित्वों का पालन करने में असफल रहा तो पत्नी को विवाह भंग कराने की डिक्री प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है |

5. पति की नपुंसकता – पति की नपुंसकता के कारण भी पत्नी को विवाह-विच्छेद के बाद की अधिकारिता दी गयी है इसके लिए दो बाते महत्वपूर्ण है –

(a) पति विवाह संपन्न होते समय नपुंसक रहा हो, और

(b) पत्नी द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने के समय भी उसकी नपुंसकता बनी रहे | वाद प्रस्तुत किये जाते समय पति यदि चाहे तो इस आशय का प्रार्थना पत्र दे सकता है कि उसे अपनी नपुंसकता सिद्ध करने के लिए एक वर्ष तक का समय दिया जाना चाहिए |

6. पति का पागलपन कुष्ठ रोग या रतिजन्य रोग – पति दो या अधिक वर्षो से पागल रहा हो तो पत्नी को न्यायालय द्वारा विवाह विच्छेद की डिक्री को प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है | कुष्ठरोग व रतिजन्य रोग में भी पत्नी तलाक ले सकती हे |

7. पत्नी द्वारा यौनावस्था का विकल्प – यदि किसी स्त्री का विवाह उसकी अवयस्कता (15 वर्ष से कम आयु ) में उसके पिता या किसी अन्य अभिभावक ने कराया है और वयस्कता अर्थात 15 वर्ष की आयु प्राप्त होने पर उसने विवाह निराकृत कर दिया हो तो इस स्थिति में न्यायालय को अवगत कराते हुए वह विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है | पत्नी अब इस अधिकार का उपयोग 18 वर्ष की उम्र तक कर सकती है बशर्ते सम्भोग न हुआ हो |

8. पति की क्रूरता – पति यदि अपने पत्नी के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है तो पत्नी को अपने विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है | उल्लेखनीय है कि क्रूरता का अर्थ केवल शारीरिक क्षति पहुँचाना या मारना पीटना नहीं है पति का दुर्व्यवहार या कोई भी आचरण जिससे पत्नी को मानसिक क्षति पहुंचे पति की मानसिक क्रूरता मानी जाती है |

इस अधिनियम में निम्न आचरण को क्रूरता की संज्ञा दी गयी है –

A- पति द्वारा अपनी पत्नी को प्रायः मारने पीटने तथा शारीरिक कष्ट देना अथवा अपने किसी अन्य प्रकार के निर्दयतापूर्ण व्यवहार से पत्नी का जीवन कष्टमय बना देना |
 सैयद जिलाउद्दीन बनाम परवेज सुल्ताना - इसमें परवेज सुल्तान विज्ञान स्नातक थी, मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेना चाहती थी, जिसके लिए 8000 की जरुरत थी | सुल्ताना ने इस शर्त के अधीन जिलाउद्दीन से विवाह कर लिया कि विवाह पूर्ण होने पर वह 8000 देगा | जिलाउद्दीन ने विवाह हो जाने पर धनराशि देने से इन्कार कर दिया सुल्ताना ने विवाह की शर्तो का उल्लंघन व धोखा दिए जाने के लिए विवाह विच्छेद के लिए वाद प्रस्तुत किया तथा पति से अलग रहने लगी | इस पर पति ने पत्नी के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का एक वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया | पत्नी ने अपने बचाव में न्यायालय में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिससे पति ने अपना मानहानि माना और पत्नी के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा 499 के अंतर्गत एक फौजदारी इस्तगासा दायर कर दिया | न्यायालय ने निर्णय दिया कि पति ने पत्नी को फंसाने के लिए फौजदारी मुकदमा चलाया था इसलिए पति ने पत्नी के साथ क्रूरता की है |

पति का कोई भी अनुचित आचरण जिससे पत्नी का मानस आहत होता हो अथवा उसका जीवन संकट में पड़ जाए, मानसिक क्रूरता मानी जाती है |

B- पति का बदनाम स्त्रियो से संपर्क रखना अथवा अनैतिक जीवन व्यतीत करना पत्नी के प्रति क्रूरता मानी जाती है |

C- पत्नी की अनुमति लिए बगैर उसकी संपत्ति का पति द्वारा अंतरण अथवा पत्नी को अपनी संपत्ति के मनचाहे प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाना पति की क्रूरता में सम्मलित है | परन्तु बिना पत्नी की अनुमति लिए उसकी छोटी मोटी संपत्ति ले लेना अथवा अंतरित कर देना क्रूरता नहीं है | इसी प्रकार पत्नी के इलाज के लिए अथवा किसी अन्य लाभ के लिए पत्नी की संपत्ति का अंतरण किया जाना क्रूरता नहीं माना गया है |

D- पति द्वारा पत्नी को अपने धर्म अथवा धार्मिक रीति–रिवाजों के पालन करने पर प्रतिबन्ध लगाना पत्नी के विरुद्ध मानसिक क्रूरता है |

अबू बकर बनाम मामूकोया के वाद में पति अपनी पत्नी को साड़ी पहनकर सिनेमा देखने जाने पर मजबूर करता था | पत्नी साड़ी पहनना इस्लाम धर्म के विरुद्ध कार्य मानती थी और इस आधार पर कि पति उसके धार्मिक रिवाजों के पालन पर प्रतिबन्ध लगाता है उसने विवाह विच्छेद की डिक्री का वाद प्रस्तुत किया केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि धारा 2 (7) (e) के आधार पर तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री नहीं प्राप्त कर सकती क्योकि धूल भरी कट्टरपंथी मान्यताओ से हटकर चलना गैर इस्लामी आचरण नहीं है |

E- पति के पास यदि एक से अधिक पत्नियां हो तो उन सबसे सामान व्यवहार न करना अर्थात किसी को कम और किसी को अधिक स्नेह एवं सुविधा प्रदान करना उपेक्षित पत्नी के प्रति पति की क्रूरता है | पति का कोई भी विद्द्वेषपूर्ण आचरण जिसमे पत्नी को मानसिक पीड़ा हो मानसिक क्रूरता मानी जा सकती है |

मुस्लिम विधिमान्य कोई अन्य आधार –

धारा 9 मुस्लिम विधि में मान्य एक अवशिष्ट उपधारा है | कोई अन्य आधार जो मुस्लिम विधि में विवाह विच्छेद के लिए मान्य हो परन्तु इस अधिनियम में सम्मिलित न हो सका हो, के आधार पर भी पत्नी का विवाह न्यायालय के डिक्री द्वारा भंग किया जा सकता है |

लिआन

लिआन का अर्थ है – पति द्वारा पत्नी के विरुद्ध परपुरुषगमन का मिथ्या आरोप लगाना | अगर पति यह आरोप अपनी पत्नी पर लगाता है तो पत्नी विवाह विच्छेद कर सकती है |

मुहम्मद उस्मान बनाम सैनबा उम्मा के वाद में पत्नी ने पति के विरुद्ध इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह विच्छेद का वाद प्रस्तुत किया कि धारा 2 में वर्णित कोई भी आधार नहीं लिए गए थे | पत्नी का मात्र कथन यह था कि वह अपने पति से घृणा करती थी | केरल उच्च न्यायालय ने यह निर्णीत किया कि पति-पत्नी कई वर्षो तक विद्द्वेषपूर्ण जीवन जी रहे है तो युक्तिसंगत निष्कर्ष यही निकाला जा सकता है कि दाम्पत्य जीवन वास्तविक रूप से विघटित हो चुका है तथा कानून के इस वास्तविकता को मान्यता देकर उनका दाम्पत्य जीवन समाप्त कर देना चहिये |

विवाह विच्छेद के परिणाम

विवाह विच्छेद या तलाक के पूर्ण हो जाने पर विवाह के पक्षकारो के निम्नलिखित अधिकार एवं दायित्व उत्पन्न हो जाते है –

1. दूसरा विवाह करने का अधिकार – तलाक के पश्चात् पत्नी विवाह की पूर्णावस्था की दशा में इद्दत की अवधि पूर्ण करके दूसरा विवाह कर सकती है और विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त नहीं हुआ हो तब तलाक के पश्चात् ही दूसरा विवाह कर सकती है | चार पत्निया रखने वाला पुरुष अपने तलाक दी हुई पत्नी की इद्दत अवधि के पूर्ण हो जाने के बाद ही दूसरा विवाह कर सकता है |

2. मेहर तत्काल देय हो जाता है – यदि विवाह की पूर्णावस्था प्राप्त हो चुकी है तब पत्नी मुवज्जल मेहर को तत्काल पाने की हक़दार हो जाती है | यदि विवाह की पूर्णावस्था न प्राप्त हुई हो तब पत्नी निर्धारित मेहर की 1/2 धनराशि पाने की हक़दार हो जाती है तथा यदि मेहर निश्चित न हो तब वह मात्र तीन कपड़े पाने की हक़दार होती है |

3. तलाक के पूर्ण होने के पश्चात पति पत्नी के एक दूसरे के प्रति उत्तराधिकार का अधिकार समाप्त हो जाता है |

4. तलाक पूर्ण होने के बाद पति पत्नी के बीच समागम अवैध हो जाता है |

तलाक प्राप्त व्यक्तियों द्वारा आपस में पुनर्विवाह - सामान्य नियम यह है कि तलाक प्राप्त पति-पत्नी तलाक के बाद आपस में पुनर्विवाह नहीं कर सकते परन्तु यदि वे ऐसा करना चाहते है तब पत्नी को इद्दत समाप्त होने के बाद किसी अन्य पुरुष से विवाह करके उससे तलाक लेना होगा व पुनः इद्दत का पालन करने के बाद ही वह उस पुरुष से विवाह कर सकती है जिसने उससे पहली बार तलाक लिया था |

इस प्रकार किया गया विवाह ऐसा विवाह समझा जायेगा कि मानो पति पत्नी ने एक नए सिरे से विवाह स्थापित किया है और उनके पूर्व विवाह के अधिकार व दायित्व पुनर्जीवित नहीं होंगे बल्कि नये अधिकार व दायित्वों का जन्म माना जाएगा |

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