Thursday, May 21

मुस्लिम विधि के अन्तर्गत संरक्षकता

वह व्यक्ति जिसे कानून के अंतर्गत अवयस्क के शरीर अथवा संपत्ति दोनों की सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है वह अवयस्क का संरक्षक कहलाता है |

संरक्षकों का वर्गीकरण (Classification of Guardians) –

1. नैसर्गिक अथवा विधिक संरक्षक
2. वसीयती संरक्षक
3. न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक
4. तथ्यतः संरक्षक

1. नैसर्गिक अथवा विधिक-संरक्षक (Natural or Legal Guardian) – ऐसे व्यक्ति  जिसे किसी अवयस्क की गतिविधियो पर निगरानी रखने का विधिक अधिकार हो अवयस्क का नैसर्गिक अथवा विधिक संरक्षक माना जाता   है |

किसी अवयस्क के नैसर्गिक संरक्षक निम्न है –

पिता

पिता का निष्पादक

पितामह

पितामह का निष्पादक

इनमे से किसी के न होने पर अवयस्क का नैसर्गिक या विधिक संरक्षक कोई नहीं होता है |

शिया विधि में – अवयस्क के नैसर्गिक संरक्षक उसके पिता तथा उसके बाद उसके पितामह ही माने जाते है |

2. वसीयती संरक्षक (Testamentary Guardian) – किसी वसीयत के अंतर्गत नियुक्त किया गया संरक्षक वसीयती संरक्षक कहलाता है | पिता या उसके न रहने पर पितामह वसीयत द्वारा अपनी अवयस्क संतान के लिए संरक्षक नियुक्त कर सकता है | संरक्षक नियुक्त किये जाने वाला व्यक्ति वयस्क व स्वस्थचित्त का हो किसी गैर मुस्लिम या महिला को भी संरक्षक नियुक्त किया जा सकता है |

शिया विधि में कोई गैर मुस्लिम अवयस्क का वसीयती संरक्षक नहीं बन सकता है |

3. न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक (Guardian appointed by Court) – नैसर्गिक या वसीयती संरक्षक के अभाव में या उनके सक्षम न होने पर न्यायालय अवयस्क के हितो को ध्यान में रखते हुए किसी उपयुक्त व्यक्ति को उसका संरक्षक नियुक्त कर सकता   है | न्यायालय को अवयस्क का संरक्षक नियुक्त करने का अधिकार गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के अंतर्गत प्राप्त है | न्यायालय अवयस्क के विवाहार्थ संरक्षक की नियुक्ति नहीं कर सकता है | यहाँ न्यायालय से तात्पर्य जिला जज न्यायालय से है |

किसी अवयस्क के संरक्षक के रूप में अपने को नियुक्त करने के लिए निम्न में से कोई एक जिला जज के समक्ष प्रार्थना पत्र दे सकता है -

(a)- वह व्यक्ति जो अवयस्क का संरक्षक बनने का दावा करता हो अथवा संरक्षक बनने का इच्छुक हो |

(b)- अवयस्क का कोई सम्बन्धी अथवा मित्र |

(c)- राज्य प्रतिनिधि के रूप में जिले का कलेक्टर |

4. तथ्यतः संरक्षक (De facto Guardian) – जो व्यक्ति न तो नैसर्गिक, न ही वसीयती और न ही न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक है फिर भी अवयस्क की अभिरक्षा तथा देखरेख करता है उसे तथ्यतः संरक्षक कहते है |

अवयस्क के शरीर की संरक्षकता (Guardianship of the Person) – अवयस्क के शरीर की संरक्षकता से तात्पर्य उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर निगरानी रखना है शरीर के संरक्षक को विलायत-ए–नफ्स कहते है | नैसर्गिक संरक्षक होने के कारण पिता तथा पितामह या उसके निष्पादक अवयस्क के शरीर के संरक्षक माने जाते है |

अभिरक्षा (हिजानत) -

अभिरक्षा (हिजानत) का अर्थ है – किसी अवयस्क को उसके शैशव काल तक अपने पास रखना | माता शैशव काल तक शिशु को अपनी अभिरक्षा में रखने की अधिकारिणी  मानी जाती है |

माता की अभिरक्षा का अधिकार (हिजानत का अधिकार ) (Mother’s Right of Child’s Custody) -

शिशु यदि पुरुष है तो 7 वर्ष व स्त्री है तो उसको यौवनावस्था की वय तक माँ अपनी अभिरक्षा में रखने की विधिक अधिकारी है द्रष्टव्य है कि शफी स्कूल के अंतर्गत माता अपनी पुत्री को तब तक अपने पास रख सकती है जब तक कि पुत्री का विवाह न हो जाए | विवाह विच्छेद होने के पश्चात भी एक विधवा या तलाकशुदा माँ का अपने शिशु की हिजानत का अधिकार बना रहता है |

जैनब बनाम गौस के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर कोई पत्नी इस्लाम धर्म का त्याग कर देती है तो उसके हिजानत का अधिकार समाप्त नहीं होगा |

माता के हिजानत का अधिकार कब समाप्त होता है –

विधवा व तलाकशुदा माँ ने पुनः विवाह कर लिया हो |
यदि माँ अनैतिक जीवन व्यतीत कर रही हो |
यदि माँ शिशु के पिता से कहीं दूर अलग रह रही हो |
यदि माँ लापरवाही या समयाभाव के कारण शिशु की देखरेख करने के असमर्थ पायी जाए |

माता के हिजानत का अधिकार अधिकार समाप्त होने पर शिशु की अभिरक्षा वरीयता क्रम में निम्न लोगो के पास आ जाती है –

माँ की माँ

पिता की माँ

माँ की माँ की माँ

पिता की माँ की माँ

सगी बहन

सहोदर बहन 

सगी बहन की पुत्री

सहोदर बहन की पुत्री

माँ की सगी बहन

माँ की सहोदर बहन

पिता की सगी बहन

शिया विधि – शिया विधि में माँ अपने पुत्र को 2 वर्ष तक व पुत्री को 7 वर्ष तक अपने अभिरक्षा में रख सकती है | माँ के न रहने पर अवयस्क के अभिरक्षा का अधिकार क्रमशः वरीयता क्रम में पिता व पितामह को मिल जाता है |

पिता का अभिरक्षा का अधिकार (हिजानत का अधिकार ) (Father’s Right of Child’s Custody) – उपरोक्त सूची में अगर कोई व्यक्ति नहीं है तो पिता को अपने शिशु की अभिरक्षा या हिजानत का अधिकार मिल जाता है |

पिता के न रहने अथवा उसके अयोग्य होने पर संतान की अभिरक्षा वरीयता क्रम में निम्न सम्बन्धियों को है –

निकटम पितामह

सगा भाई

सगोत्र भाई

सगे भाई का पुत्र

सगोत्र भाई का पुत्र

पिता का सगा भाई

पिता का सगोत्र भाई

पिता के सगे भाई का पुत्र

पिता के सगोत्र भाई का पुत्र

परन्तु उपरोक्त सम्बन्धियों को संतान की अभिरक्षा दिए जाने में एक शर्त है कि कोई पुरुष अपने अविवाहित कन्या को अपने अभिरक्षा में तब तक रख सकता है जब तक इन दोनो के बीच कोई निषिद्ध सम्बन्ध हो |

यौनावस्था की वय 15 वर्ष से कम उम्र की कन्या के साथ विवाह होने पर पति उसको अपनी अभिरक्षा में नहीं रख सकता इस दशा में भी कन्या की अभिरक्षा उसकी माँ के पास ही होती है |

विवाहार्थ संरक्षक (विलायत-ए-जबर) (Guardianship for Marriage) - विवाहार्थ संरक्षक निम्न है –

पिता

पितामह

भाई या पितृत्व कुल का कोई सदस्य

माता

माता या मातृत्व कुल का कोई अन्य सदस्य

शिया विधि – शिया विधि में विवाहार्थ संरक्षक केवल पिता और पितामह ही होते है |

संपत्ति की संरक्षकता (विलायत-ए-माल) (Guardianship for Property) – किसी अवयस्क की संपत्ति की सुरक्षा तथा देखरेख का अधिकार अवयस्क के सभी प्रकार के संरक्षकों को है |

अवयस्क की संपत्ति के नैसर्गिक अथवा विधिक संरक्षक (Natural or Legal Guardians for Minor’s Property) – अवयस्क के संपत्ति के नैसर्गिक संरक्षक निम्न है –

पिता

पिता द्वारा नियुक्त सम्पादक

पितामह

पितामह द्वारा नियुक्त सम्पादक

महबूब साहेब बनाम सैय्यद इस्माइल के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि माता को अवयस्क के संपत्ति का संरक्षक नहीं माना जाता है |

पिता तथा पितामह या उनके द्वारा नियुक्त कोई सम्पादक न होने पर अवयस्क के संपत्ति की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 के अंतर्गत न्यायालय किसी योग्य व्यक्ति को संरक्षक नियुक्त कर सकती है |

(1)- विधिक संरक्षक द्वारा अचल संपत्ति का अंतरण – किसी विधिक संरक्षक को अवयस्क की संपत्ति के अंतरण का अधिकार नहीं है लेकिन निम्न परिस्थिति में वह ऐसा कर सकता है –

(a) जब विक्रय द्वारा संपत्ति के मूल्य का दो गुना दाम मिले |

(b) जब अवयस्क के भरण पोषण के लिए संपत्ति का अंतरण आवश्यक हो |

(c) जब विक्रय किसी ऐसे मृतक के ऋण के भुगतान करने के लिए करना पड़े जिसका उत्तराधिकारी वह अवयस्क  है |

(d) जब वसीयत में दिए गए किसी सामान्य निर्देश के लिए विक्रय आवश्यक हो गया हो |

(e) संपत्ति जब लाभकारी न रह गयी हो |

(f) संपत्ति जब नष्ट हो गयी हो या इसे खो जाने का तत्कालिक भय उत्पन्न हो गया हो |

(g) संपत्ति जब किसी ऐसे व्यक्ति के अवैध कब्जे में हो जिससे पुनः कब्ज़ा प्राप्त करना कठिन हो |

(2)- बंधक - संरक्षक अवयस्क की संपत्ति का बंधक तब तक कर सकता है जब यह अवयस्क के हित में हो या स्वयं उस संपत्ति के लिए लाभकारी हो |

(3)- पट्टा - विधिक संरक्षक अवयस्क की संपत्ति का पट्टा भी केवल संपत्ति के लाभ के लिए अथवा स्वयं अवयस्क के लाभ के लिए या उस परिस्थिति में जब किन्ही अन्य कारणों से तात्कालिक आवश्यकता हो कर सकता है |

संरक्षक द्वारा अवैध अंतरण शून्यकरणीय – किसी संरक्षक द्वारा अवयस्क की अचल संपत्ति के अंतरण के सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि यदि उसने अवयस्क की संपत्ति मुस्लिम विधि के नियमो के विपरीत अंतरित कर दी है तो ऐसा अंतरण शून्य नहीं माना जाता है, यह शून्यकरणीय  रहता है जिसे अवयस्क अपनी वयस्कता प्राप्त करके अनुमोदित करके पूर्ण बना सकता है या निराकृत कर सकता है |

1. विधिक संरक्षक द्वारा चल संपत्ति का हस्तान्तरण – मुस्लिम विधि के अंतर्गत किसी संरक्षक को अवयस्क की चल संपत्ति अंतरित करने का विशेषाधिकार प्राप्त है | अवयस्क के भोजन, वस्त्र, शिक्षा तथा इलाज की व्यवस्था करने लिए संरक्षक अवयस्क की संपत्ति को रेहन अथवा गिरवी रख सकता है और आवश्यकता पड़ने पर विक्रय भी कर सकता है |

2. अवयस्क की संपत्ति के वसीयती संरक्षक (Testamentary Guardians of Minor’s Property) – मुस्लिम विधि के अंतर्गत वसीयती संरक्षक भी विधिक संरक्षक माना जाता है | अवयस्क के संपत्ति के सम्बन्ध में वसीयती संरक्षक के अधिकार व दायित्व ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार पिता व पितामह के |

3. न्यायालयों द्वारा नियुक्त संरक्षक (Guardians of Property Appointed by Courts) – नैसर्गिक व वसीयती संरक्षक की अनुपस्तिथि में न्यायालय किसी योग्य व्यक्ति को अवयस्क की संपत्ति का संरक्षक नियुक्त कर सकता है |

अचल संपत्ति (Immovable Property) – ऐसा संरक्षक न्यायालय की पूर्व अनुमति लिए बिना अवयस्क की अचल संपत्ति का किसी प्रकार हस्तान्तरण तथा विक्रय विनिमय बंधक नहीं कर सकता है केवल अत्यधिक आवश्यक होने पर अथवा अवयस्क के लिए प्रत्यक्ष लाभकारी होने पर ही न्यायालय हस्तान्तरण की अनुमति दे  सकता है |      

पट्टा – न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षक अवयस्क की अचल संपत्ति को अधिकतम 5 वर्ष या उसकी वयस्कता की उम्र से एक वर्ष तक के लिए पट्टे पर दे सकता है इससे अधिक समय के पट्टा के लिए न्यायालय की पूर्व अनुमति आवश्यक है |

चल संपत्ति (Movable Property) – न्यायालय द्वारा नियुक्त संरक्षकों को बिना न्यायालय के पूर्व अनुमति के भी अवयस्क की किसी चल संपत्ति को अंतरित करने का अधिकार प्राप्त है परन्तु संरक्षक द्वारा अवयस्क की चल संपत्ति के लेनदेन में ठीक उतनी ही सावधानी अपेक्षित है जितनी एक साधारण प्रज्ञा के व्यक्ति से उसकी स्वयं की संपत्ति के सम्बन्ध में की जा सकती है |

4. अवयस्क की संपत्ति के तथ्यतः संरक्षक (De facto Guardians of Minor’s Property)

अचल संपत्ति – तथ्यतः संरक्षक कानून की दृष्टि में कोई संरक्षक नहीं माने जाते है | उन्हें अवयस्क के अचल संपत्ति के लेन-देन अथवा अंतरण का कोई अधिकार नहीं है तथा यह शून्य है |

चल संपत्ति – जहाँ तक चल संपत्ति के अंतरण अथवा लेन-देन का प्रश्न है तथ्यतः संरक्षक को अवयस्क की चल संपत्ति को बेचने तथा गिरवी रखने का अधिकार है | बशर्ते अवयस्क की प्रमुख आवश्यकताओ तथा भोजन वस्त्र या इलाज की पूर्ति के लिए उसकी कोई तात्कालिक आवश्यकता आ पड़ी हो |

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