Thursday, May 21

मुस्लिम विधि का उद्गम एवं विचारधारा

    पैगम्बर मुहम्मद इस्लामी राष्ट्रमंडल के सर्वेसर्वा थे, वे कानून से सम्बंधित विषयों के सर्वोच्च  प्राधिकारी भी थे उनके देहांत के बाद तत्कालीन समस्या उनके उत्तराधिकारी को प्राप्त होने लगी थी | चुनाव के पक्ष में एक लोगो को कहना था कि चूँकि मुहम्मद साहब ने सारे मुस्लिम समुदाय की कमान सम्भाल रखी थी इसलिए उनके उत्तराधिकारी का चुनाव होना चाहिए | फलस्वरूप मुस्लिम समुदाय के एक बड़े वर्ग ने चुनाव कराया और अबुबकर को अपना प्रथम खलीफा चुन लिया मुस्लिम समाज का यह वर्ग सुन्नी मुस्लिम के नाम से जाना जाने लगा |

    मुस्लिम का एक ऐसा वर्ग भी था जो चुनाव कराने के पक्ष में नहीं था इस अल्पसंख्यक वर्ग के प्रमुख पक्षधर मुहम्मद साहब की बीबी फातिमा थी | इस वर्ग के लोगो का विचार था कि अली जो मुहम्मद साहब के कुटुम्ब के ही व्यक्ति थे उन्हें उत्तराधिकारी बनाया जाए | अतः इस समुदाय ने अली को अपना प्रथम खलीफा माना और ये शिया मुस्लिम कहलाये | इस प्रकार हम देखते है तो यह पता चलता है कि इनके विभाजन का मूल कारण यह था कि पैगम्बर मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी किसे माना जाये |

आगे चलकर इन दोनों सम्प्रदायों के भी विभाजन हो गए और उनके लिए अलग-अलग नियम आया -

(1)- सुन्नी विचारधाराएँ

          a. हनफी  
          b. मालिकी
          c. शफी
          d. हनबली

(2)- शिया विचारधाराएँ

          a. अथना अशरिया
          b. इस्माइलिया
          c. जैदिया

(1)- सुन्नी विचारधाराएँ (Sunni Schools) – खलीफा के पद को निर्वाचन द्वारा भरने के समर्थक सुन्नी कहलाये | भारत में अधिकांश मुसलमान सुन्नी संप्रदाय के है इसी कारण जब तक कोई विरुद्ध प्रभाव न हो | प्रत्येक मुसलमान को सुन्नी होने की उपधारण की जाती है | सुन्नी सम्प्रदाय भी चार उपसम्प्रदायों में विभक्त है -                                                                                                            

(a)- हनफी विचारधारा (The Hanafi School) – हनफी स्कूल के प्रवर्तक अबू हनीफा को माना जाता है | इन्होने मोहम्मद साहब के बाद मुस्लिम धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया | इन्होने मुस्लिम विधिशास्त्र को पूरे विश्व में फैलाने के लिए अपने शिष्यों को प्रेरित किया तथा अपने सिद्धांतो का आधार कुरान और हदीस को बताया | अबू हनीफा पहले मुस्लिम विधिवेत्ता थे, जिन्होंने कयास को विधि के स्रोत रूप में मान्यता प्रदान किया था | मुस्लिम विधिशास्त्र में अबू हनीफा की तुलना अस॒टीनियन से की जाती है | हनफी स्कूल में ही मुस्लिम विधि के संहिताकरण का कार्य किया गया है | अबू हनीफा ने फक्क अकबर नामक पुस्तक भी लिखा |

(b)- मालिकी विचारधारा (The Maliki School) – इस विचारधारा के संस्थापक इमाम मलिक थे | ये भी मुस्लिम धर्म के प्रमुख विधिशास्त्री थे | इनके सिद्धांत भी कुरान व मुहम्मद साहब की परम्पराओं पर आधारित थे | इस सम्प्रदाय में भी कयास को विधि का महत्वपूर्ण स्रोत माना गया | इन्होने अपने सिद्धांतो में लोकहितकरी कानूनों को ही महत्वपूर्ण बताया तथा शाखा के सबसे प्राचीन ग्रन्थ किताबे मुक्ता की रचना किया जो भटके लोगो को रास्ता दिखाने के लिए एक पथ प्रदर्शक मानी जाती है |

(c)- शफ़ई विचारधारा (The Shafie School) – शफ़ई स्कूल के प्रवर्तक अश-शफी थे | यह भी प्रमुख विधिवेत्ता थे | ये कुरान के बाद सुन्ना को विधि का स्रोत मानते थे इसलिए इनको सुन्नत का ख़िताब मिला | इस संप्रदाय में इज्मा को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया गया था कयास के लिए सर्वप्रथम नियम निर्धारण का कार्य इसी संप्रदाय में किया |

(d)- हनबली विचारधारा (The Hanbali School) – इस विचारधारा के संस्थापक अबु हनबल थे | यह परम्परावादी अधिक और विधिवेत्ता कम  थे | इस कारण उन्होंने सुन्ना या हदीश की परम्पराओं का प्रयोग अपने सिद्धांतो में अधिक किया है | इस विचारधारा के अनुसार कयास को विधि का स्रोत तभी मानना चहिये जब उसकी आवश्यकता हो |

(2)- शिया विचारधाराएँ (Shia Schools) – मुहम्मद साहब के वंशजो को उत्तराधिकार के आधार पर खलीफा नियुक्त करने वाले मुसलमान, शिया सम्प्रदाय कहलाये | इस सम्प्रदाय में प्रमुख रूप से तीन विचार पद्धतियां मान्य थी –

(a)- अथना-अशारिया विचारधारा (The Athna-Asharia School) – इस सम्प्रदाय को मानने वाले मुहम्मद साहब के जो बारह इमाम हुए उनके अनुयायी है | ये कट्टर मुसलमान और कुरान को महत्व देते है |

(b)- इस्माइलिया विचारधारा (The Ismailia School) – इस सम्प्रदाय को मानने वाले सातवे इमाम इस्माइल को अपना प्रणेता मानते थे इनको सप्त-इमामी सम्प्रदाय भी  कहा जाता है |

(c)- जैदिया विचारधारा (The Zaidi School) – इस सम्प्रदाय के संस्थापक चौथे इमाम जैद थे | ये शिया और सुन्नी दोनों के धर्मावलम्बी है, और मूलतः यमन में पाए जाते है |

शिया और सुन्नी विचारधारा में मूलभूत अंतर –

शिया और सुन्नी विचारधाराओं में निम्न आधारों पर विभेद किया जा सकता है –

(a)- विवाह के सम्बन्ध में –

1. शिया में मुताह विवाह मान्य है परन्तु सुन्नी में नहीं |

2. शिया में केवल पिता, पितामह विवाहार्थ संरक्षक हो सकते है परन्तु सुन्नी में पिता व पितामह के आलावा भी लोग विवाहार्थ संरक्षक हो सकते है |

3. शिया में विवाह के समय साक्षी होना आवश्यक नहीं है परन्तु सुन्नी में विवाह के समय दो साक्षी होना आवश्यक है |

4. शिया में विवाह की पूर्णता समागम के बाद होती है परन्तु सुन्नी में मात्र एक साथ अकेले में रहना भी विवाह को पूर्ण बना देता है |

(b)- मेहर में सम्बन्ध में –

 1. सुन्नी विधि में मेहर की रकम कम से कम 10 दिरहम  होता है परन्तु शिया विधि में कम से कम का कोई प्रावधान नहीं है परन्तु अधिकतम 500 दिरहम हो सकता है |

2. सुन्नी विधि में मेहर तुरंत देय या स्थगित होता है परन्तु शिया विधि में यदि मेहर भुगतान का कोई निर्धारित समय नहीं है तब मेहर तुरंत देय होता है |

(c)- तलाक़ के सम्बन्ध में –

1. सुन्नी विधि में मौखिक व लिखित दोनों तलाक मान्य है साक्षी आवश्यक नहीं है परन्तु शिया विधि में तलाक मौखिक व दो साक्षियों की उपस्थिति में दिया जाना चहिये |

 2. सुन्नी में तलाक-उल विद्दत मान्य तलाक है परन्तु शिया में तलाक उल सुन्नत मान्य है |

3. सुन्नी विधि में नशा या मज़बूरी में दिया गया तलाक मान्य है बशर्ते शब्द स्पष्ट हो परन्तु शिया में नशे में दिया गया तलाक मान्य नहीं है |

(d)- मातृत्व निर्धारण – शिया विधि में अविवाहित से उत्पन्न संतान मातृत्व विहीन माना जाता है जबकि सुन्नी विधि में ऐसा नहीं है |

(e)- संरक्षकता के सम्बन्ध में – सुन्नी विधि में लड़का 7 वर्ष पूरा होने पर तथा लड़की वयस्कता प्राप्त कर लेने तक माता की अभिरक्षा में होती है जबकि शिया विधि में लड़का दो वर्ष तक तथा लड़की सात वर्ष की होने तक माता की संरक्षकता होती है |

उपरोक्त प्रावधानों के अतिरिक्त सुन्नी व शिया संप्रदाय के बीच वक्फ, हिबा, शुफ़ा, वसीयत और दाय के सम्बन्ध में भी भिन्नताये पायी जाती है |

No comments:

Post a Comment

If you have any query please contact me