Friday, May 15

विधिक व्यक्तित्व

विधिक व्यक्तित्व विधि द्वारा निर्मित एक सत्ता या इकाई है जिस पर विधि अधिकार एवं कर्तव्य अधिरोपित करती हैं
• विधि के अंतर्गत व्यक्ति शब्द के अर्थ को केवल मानव तक ही सीमित रखना उचित नहीं है क्योंकि देवता मूर्ति निगमित निकाय आदि ऐसे  निर्जीव संस्थाएं जो वास्तविक मनुष्य ना होते हुए विधि की दृष्टि से व्यक्ति माने जाते हैं अर्थात जिन्हें विधिक व्यक्तित्व प्राप्त है
• विधिक अध्ययन की दृष्टि से व्यक्ति दो प्रकार के हैं प्रथम प्राकृतिक द्वितीय कृत्रिम व्यक्ति
• नैसर्गिक मनुष्य को प्राकृतिक व्यक्ति माना जाता है तथा ऐसे व्यक्ति जो जीवित प्राणी ना होते हुए विधिक प्रयोजनों के लिए व्यक्ति माने जाते हैं कृत्रिम व्यक्ति कहलाते हैं
• डायस तथा ह्यूज के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के पश्चात विधि को मृतक में कोई रुचि नहीं रहती अतः मृत मनुष्य को विधिक दृष्टि से व्यक्ति नहीं माना जाता क्योंकि उनके ना तो अधिकार हो सकते हैं और ना तो दायित्व
• सामण्ड के अनुसार विधिक व्यक्ति से अभिप्राय मानव के अलावा अन्य किसी ऐसी इकाई से है जिसे विधि के अंतर्गत व्यक्तित्व प्राप्त होता है
• विधिक व्यक्ति एक ऐसा कृत्रिम या काल्पनिक व्यक्ति होता है जो कानून की दृष्टि से व्यक्ति है
• विधिक दृष्टि से निगमों की स्थापना अधिनियम के अधीन की जाती है
• सामण्ड के अनुसार निगम व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो विधिक कल्पना द्वारा विधि के रूप में मान्य किया गया है
• विधि विधिक संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति निगम है
• निगमों को दो भागों में बांटा गया है प्रथम एकल निगम द्वितीय समष्टि या समाहित निगम
• एकल निगम में एक समय में केवल एक ही व्यक्ति होता है
• एकल निगम होने के कारण सम्राट के मृत्यु के बाद भी उसका विधिक अस्तित्व बना रहता है
• मेटलैंड के अनुसार निगम एक काल्पनिक व्यक्ति है जो नाका दौड़ने की क्षमता रखता है ना किसी से विवाह करने का या बीमार पड़ने की बल्कि वह तो व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिन्होंने किसी एक सामान्य उद्देश्य से प्रेरित होकर सामान्य उद्देश्य ग्रहण किया गया है
• विश्वविद्यालय का रजिस्ट्रार  सुप्रीम कोर्ट का रजिस्ट्रार एकल निगम के अंतर्गत आते हैं
•   बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज बनाम दिल्ली राज्य 1962 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय विधि एकल निगम और समस्त निगम को मान्यता देती है
• भारतीय विधि के अंतर्गत देव प्रतिमा को विधिक व्यक्ति माना गया है
• कृष्णा सिंह बनाम मथुरा 1980 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि हिंदू मंदिर की संपत्ति उसके देवी-देवता में निहित रहती है मंदिर की स्थिति में प्रमुख तत्व देव प्रतिमा होता है
• और प्रतिमा को ही विधिक प्रास्थिति प्राप्त है इसके विपरीत मटका मुख्य व्यक्ति मठाधीश या महंत होता है इसलिए मठ की संपत्ति महंत के पद के साथ जुड़ी रहती है और वह विरासत में उत्तराधिकारी को अंतरित होती है
• मजिस्ट्रेट शाहगंज राम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक सीमित 1940 प्रिवी कौंसिल मैं निर्णय किया गया कि मस्जिद को कृत्रिम  व्यक्तित्व प्राप्त नहीं है  अतः ना तो यह किसी के विरुद्ध वाद ला सकती है और ना कोई इसके विरुद्ध वाद ला सकता है
• शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति बनाम सोमनाथ दास के मामले में सिखों के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को विधिक व्यक्ति घोषित किया गया
• उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जो सम्मान हिंदू  देव प्रतिमा को देते हैं वही सम्मान एक सिख गुरु ग्रंथ साहिब को देता है
• गुरुद्वारा और गुरु ग्रंथ साहिब अलग अलग व्यक्तित्व नहीं है गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा गुरु के समान की जाती है तथा गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे की आत्मा एवं हृदय हैं
• भारत संघ तथा राज्यों को विधिक व्यक्ति  माना गया है
• भारत के राष्ट्रपति को भी विधिक व्यक्तित्व प्राप्त है क्योंकि वह एक एकल निगम की भांति हैं विधि द्वारा निर्मित इस पद का अस्तित्व निरंतर बना रहता है
• भारत के प्रधानमंत्री को विधिक व्यक्ति नहीं माना गया है क्योंकि कुछ परिस्थितियों में यह पद बिना किसी व्यक्ति के भी  रिक्त रह सकता है
• न्यू मेरिल कोल कंपनी बनाम भारत संघ 1962 के मामले में केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों को भी विधिक व्यक्ति नहीं माना गया है क्योंकि वह एक निगम नहीं है
• रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को एक विधिक व्यक्ति माना गया है क्योंकि यह एक निगमित निकाय है जिसका स्वतंत्र अस्तित्व है
• संघ लोक सेवा आयोग तथा संयुक्त हिंदू परिवार  को विधिक व्यक्ति नहीं माना गया है
• भारतीय विधि के अंतर्गत भागीदारी फर्म को निगमित निकाय नहीं माना गया है
• प्रयोजन सिद्धांत के समर्थक ब्रिन्ज हैं
• रियात सिद्धांत के समर्थक सामण्ड है
• कोष्ठक सिद्धांत के आलोचक हाफेल्ड हैं
• कोष्ठक सिद्धांत के समर्थक ईहरिंग है
• यथार्थता सिद्धांत के प्रणेता गिर्के हैं तथा समर्थक पोलक तथा मेटलैंड है
• परिकल्पना सिद्धांत के समर्थक सैवनी सामण्ड ग्रे तथा हालैंड है

 पर व्यक्ति अधिकार का सिद्धांत
• बेंथम के अनुसार किसी संपत्ति पर कब्जा धारी का वास्तविक कब्जा उसे संपत्ति पर हक दिलाता है और जब तक कोई अन्य व्यक्ति इससे बेहतर हक स्थापित नहीं कर देता कब्जा धारी ही उस संपत्ति का स्वामी बना रहेगा
• हेनरी मेन के अनुसार कब्जे से आशा किसी वस्तु के साथ ऐसे संपर्क से है जो अन्य व्यक्तियों को उस वस्तु के उपभोग से वर्जित करता है
• सैविनी के अनुसार कब्जे के लिए दो तत्वों का होना आवश्यक है प्रथम कार्पस द्वितीय धारणाशय
• कार्पस अर्थात भौतिक तत्व या काय से सैवनी का आशय उस वस्तु पर भौतिक नियंत्रण पर है जब की धारणाशय से अभिप्राय वस्तु को धारण किए रहने की मानसिक इच्क्षा से है
• इहरिंग कब्जे के प्रति समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण अपनाते हुए कहा कि कब्जे के धारणाशय के तत्व को कब्जे की प्रज्ञावान चेतना मात्र निरूपित किया है
• हीगल के अनुसार कब्जा मानव की स्वतंत्र इच्छा की वस्तुनिष्ठ अनुभूति है
• काण्ट के अनुसार सभी व्यक्ति जन्म से स्वतंत्र एवं सामान्य होते हैं
• प्रत्येक व्यक्ति में इच्छा की स्वतंत्रता का भाव अनिवार्यतः विद्यमान रहता है
• और कब्जा इस इच्छा की अभिव्यक्ति का साकार रूप है
• हालैंड के अनुसार कब्जा संबंधी अवधारणा समाज की शक्ति व्यवस्था पर आधारित है उनके अनुसार विधि द्वारा कब्जे को विधिक संरक्षण दिए जाने का मुख्य उद्देश्य समाज में शक्ति व्यवस्था बनाए रखना
• सामण्ड के अनुसार किसी वस्तु एवं व्यक्ति के बीच जो निरंतर तथा वास्तविक संबंध रहता है उसे कब्जा कहते हैं
• फ्रेड्रिक पोलक ने कब्ज को भौतिक नियंत्रण के रूप में परिभाषित किया है उनके अनुसार व्यक्ति का किसी व्यक्ति का कब्जा तब माना जाता है यदि वह वस्तु दृश्यमान नियंत्रण में हो या जिस के उपभोग से यह स्पष्ट प्रकट होता हो कि उस व्यक्ति को उस वस्तु से अन्यों को अपवर्जित करने की शक्ति प्राप्त है
• सामण्ड के  विचार से संपति शब्द का अर्थ सर्व बंधक संपत्ति अधिकारों से हैं।
• सर्व बंधक अधिकार से आशय ऐसे अधिकारों से है जो किसी व्यक्ति को समस्त मानव वर्ग के विरुद्ध प्राप्त होते हैं
• लॉक के अनुसार व्यक्ति का स्वयं का भौतिक शरीर उसकी संपत्ति है
• सामण्ड के अनुसार किसी मूर्त संपत्ति का स्वामित्व साधारणता स्थाई होता है और स्वामित्व का अधिकार रखने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का उपयोग उपभोग तथा व्ययन अपनी इच्छा अनुसार कर सकता है इसके अतिरिक्त जब तक मूर्ति संपति का अस्तित्व बना रहता है उसका उस वस्तु पर स्थाई स्वामित्व रहता है
• गुरुदत्त शर्मा बनाम बिहार राज्य 1967 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया कि संपत्ति अधिकारों का बंडल है और मूर्त संपत्ति के कब्जे का अधिकार उपभोग का अधिकार प्रतिधारण का अधिकार अंतरण का अधिकार तथा नष्ट कर देने का अधिकार सम्मिलित है।

• संपत्ति दो प्रकार की होती है
• 1. मूर्त संपत्ति
• 2. अमूर्त संपत्ति
• भौतिक वस्तुओं पर व्यक्ति के स्वामित्व के अधिकार को मूर्त संपत्ति कहते हैं जिसकी अनुभूत ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले अन्य  सांम्पितिक सर्वबंधी अधिकार  अमूर्त संपति कहलाते हैं
• साम्पतिक अधिकार भौतिक तथा अभौतिक दोनों वस्तुओं पर होता है
• साकार पदार्थ भौतिक वस्तु हैं।
• भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त अन्य समस्त वस्तुएं अभौतिक आती है
• अभौतिक रूपों के निम्न प्रकार हो सकते हैं
• 1. पेटेंट
• 2. कॉपीराइट
• 3. वाणिज्यिक साख
• 4. ट्रेडमार्क  आदि है
• बौद्धिक संपत्ति के अंतर्गत पेटेंट कॉपीराइट ट्रेडमार्क औद्योगिक रूपांतरण वाणिज्यिक शाख आदि का समावेश है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है
• संपत्ति का अर्जन निम्न प्रकार से हो सकता है
• 1. कब्जे द्वारा अर्जन
• 2. चीरभोग द्वारा अर्जन
• 3. करार द्वारा अर्जन
• 4.विरासत द्वारा अर्जन

हक
• हक एक स्रोत है तथा अधिकार उसकी उत्पत्ति है
• हक में उस समस्त तथ्यों का समावेश है जो अधिकारों तथा कर्तव्यों को उत्पन्न करते हैं
• सामण्ड के अनुसार प्रत्येक अधिकार की उत्पत्ति हक से होती है
• हक या स्वत्व एक निश्चित तथ्य या तथ्यों के समूह को कहते हैं जिसके परिणाम स्वरुप विधि का अधिकार उत्पन्न होता है
• हालैंड के अनुसार हक वह तथ्य है जिससे अधिकार की उत्पत्ति होती है
• ऑस्टिन के अनुसार हक किसी ऐसे तथ्य को कहते हैं  जिसके माध्यम से विधि के अंतर्गत अधिकार उत्पन्न होता है या अधिकारों की समाप्ति होती है
• न्यायमूर्ति होम्स के अनुसार ऐसा तथ्य जो किसी अधिकार या कर्तव्य की उत्पत्ति करता है हक कहलाता है
• हक से संबंधित तथ्य दो प्रकार के होते हैं प्रथम भौतिक द्वितीय मनोवैज्ञानिक
• भौतिक तथ्य से आशय ऐसी वस्तु से है जिन की अनुभूति ज्ञानेंद्रियों द्वारा हो सकती है
• मनोवैज्ञानिक तथ्य का आशय मानसिक चेतना से है
• मूल हक से अधिकारों की उत्पत्ति होती है
• व्युत्पन्न हक तथा संक्रमणीय तथ्यों से अधिकारों का अंतरण होता है जबकि बिलोपकारी तथ्यों से अधिकार समाप्त हो जाते हैं

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