Friday, May 15

विधिक अधिकार और कर्तव्य

• सैविनी ने  अधिकार को शक्ति माना है
• हालैंड के अनुसार यह समर्थ या क्षमता का द्योतक है
• काण्ट के अनुसार विधिक अधिकार व्यक्ति को प्राप्त एक विशेषाधिकार है
• इहरिंग अधिकार को विधि द्वारा संरक्षित हित मानते हैं
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को विधि द्वारा मान्य तथा संरक्षित कहा है
• डॉ एलन के अनुसार अधिकार किसी हित को प्राप्त करने के लिए विधि द्वारा प्रत्याभूत सकती है
• ग्रे के अनुसार अधिकार स्वयं कोई हित नहीं है, अपितु वह हितों के संरक्षण का एक साधन मात्र है
• ग्रे कहते हैं कि यदि एक व्यक्ति दूसरे को ऋण देता है तो ऋणदाता का यह हित कि वह ऋणी व्यक्ति से अपने ऋण राशि वापस प्राप्त करें, उसका वास्तविक विधिक अधिकार नहीं है बल्कि उसे कानून द्वारा दी गई यह शक्ति या क्षमता की वह दिया गया ऋण वसूल कर सकता है उसका विधिक अधिकार होगा
• ग्रे के अनुसार विधिक अधिकार ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को कोई कार्य करने या कार्य करने से उपरत रहने के लिए वैधानिक कर्तव्य द्वारा बाध्य करता है
• जर्मी बेंथम ने नैतिक तथा विधिक अधिकारों के भेद को स्वीकार नहीं किया है उनके अनुसार समस्त अधिकार विधिक अधिकार होते हैं और सभी का उद्भव राज्य से होता है
• हालैंड कहते हैं कि शक्ति में व्यक्ति अपने शारीरिक बल के प्रयोग द्वारा दूसरों को कुछ करने या करने से विमुख रहने की सामर्थ्य रखता है
• ऑस्टिन अपने अधिकार को शक्ति का प्रतीक माना है क्योंकि उनके विचार से प्रत्येक अधिकार की उत्पत्ति बल या शक्ति से होती है।
• ग्रे ने कहा है कि विधि का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोगों को कुछ विशिष्ट कार्यों को करने या ना करने के लिए बाध्य करके मानवीय हितों का संरक्षण किया जाए
• ग्रे के अनुसार कार्यों को करने या ना करने की बाध्यता को ही कर्तव्य कहते हैं
• हिबर्ट के अनुसार कर्तव्य किसी व्यक्ति में निहित वह बाध्यता है जिस के कार्यों को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा राज्य की अनुमति तथा सहायता से नियंत्रित किया जाता है
• कीटन ने कार्य को एक ऐसा कार्य निरूपित किया है जो किसी दूसरे व्यक्ति के संदर्भ में राज्य द्वारा बलात लागू किया जाता है और जिस की अवहेलना करना एक अपकार है
• पंजाब राज्य बनाम रामलुभाया 1998 सुप्रीम कोर्ट के मामले में बे निश्चित किया गया कि एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्तव्य होता है अतः स्वास्थ्य जीवन का अधिकार प्रत्येक नागरिक का अधिकार है और राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों की स्वास्थ्य सेवाओं की उचित व्यवस्था करें
परंतु उक्त नियम के अपवाद का उल्लेख करते हुए उच्चतम न्यायालय ने X बनाम जेड अस्पताल के मामले में स्पष्ट किया कि यदि एचआईवी पॉजिटिव से पीड़ित कोई व्यक्ति विवाह करना चाहता है तो विवाह के अधिकार के साथ-साथ उसका यह कर्तव्य भी है कि वह जिससे विवाह करना चाहता है उसे अपनी इस बीमारी के बारे में बताएं अतः यह ऐसा अधिकार नहीं है जिसके बारे में सहवर्ती कर्तव्य की अपेक्षा वह दूसरे व्यक्ति करें
• ऑस्टिन के अनुसार कर्तव्य सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों ही एक प्रकार के हो सकते हैं सापेक्ष कर्तव्यों से उनका अभिप्राय ऐसे कर्तव्य से है जिनके साथ कोई सहवर्ती अधिकार अवश्य रहता है परंतु कुछ कर्तव्य ऐसे होते हैं जिनके साथ किसी प्रकार का सहवर्ती अधिकार नहीं होता है इन कर्तव्यों को आस्टिन ने निरपेक्ष कर्तव्य कहा है निरपेक्ष कर्तव्य भंग को सामान्यतः अपराध माना जाता है
• डॉ एलन ने राज्य के प्रति किए जाने वाले सभी कर्तव्यों को निरपेक्ष नहीं माना है
विधिक कर्तव्य का वर्गीकरण
• विधिक कर्तव्य को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है
• 1. सकारात्मक तथा नकारात्मक कर्तव्य
• 2. प्राथमिक तथा द्वितीयक कर्तव्य
• सकारात्मक कर्तव्य व्यक्ति को कुछ कार्य करने हेतु अधिरोपित होते हैं जैसे ऋणी व्यक्ति द्वारा ऋण दाता को ऋण की अदायगी का कर्तव्य सकारात्मक है
• नकारात्मक कर्तव्य के अधीन व्यक्ति जिस पर कर्तव्य अधिरोपित है किसी कार्य को करने से प्रविरत रहता है जैसे यदि कोई व्यक्ति किसी भूमि का स्वामी है तो अन्य व्यक्ति उस व्यक्ति के भूमि के उपयोग में हस्तक्षेप न करने के लिए कर्तव्याधीन है
• प्राथमिक कर्तव्य ऐसा कर्तव्य है जो बिना किसी अन्य कर्तव्य के स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में है जैसे किसी को चोट ना पहुंचाने का कर्तव्य प्राथमिक कर्तव्य है
• द्वितीयक कर्तव्य वह कर्तव्य है जिसका प्रयोजन किसी अन्य व्यक्ति को प्रवर्तित करना है जैसे यदि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को क्षति पहुंचाता है तो प्रथम व्यक्ति का दूसरे की क्षतिपूर्ति करने का कर्तव्य द्वितीय कर्तव्य है
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को एक ऐसा हित माना है जिसे राज्य की विधि द्वारा मान्यता प्राप्त है और जो विधि द्वारा संरक्षित है
• सामण्ड के अनुसार विधिक अधिकार का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण उस अधिकार के स्वामी के हित के अस्तित्व में है जिसे विधि द्वारा संरक्षण प्रदान किया जाता है
• सामण्ड हित की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ही तो हुआ है जिसका ध्यान रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है तथा उसकी अवहेलना करना अपकार है
• जॉन आस्टिन के अनुसार किसी व्यक्ति का अधिकार तब माना जाता है जब अन्य व्यक्ति उसके प्रति कुछ करने या न करने के लिए बाध्य या दायित्वाधीन होते हैं
• जॉन स्टुअर्ट मिल ने उदाहरण के रूप में कथन किया है कि जब किसी कैदी को मृत्यु दंड से दंडित किया जाता है तो जेलर कर्तव्यबध्य होगा कि वह उस कैदी को फांसी पर लटकाया तो इस स्थिति में क्या यह कहना उचित होगा की फांसी पर लटकाया जाना उस कैदी का विधिक अधिकार है वस्तुतः यह विधि द्वारा अधिरोपित निर्योग्यता मात्र है न की कोई विधिक अधिकार
• हालैंड विधिक अधिकार को परिभाषित करते हुए यह व्यक्ति को प्राप्त वह सामर्थ्य या क्षमता है जो उसे राज्य की अनुमति और सहायता से अन्य व्यक्तियों के कार्यों को नियंत्रित रखने हेतु प्राप्त है
• इहरिंग ने विधिक अधिकार को राज्य द्वारा मान्य संरक्षित हित निरूपित किया है यह स्वयं लक्ष्य ना होकर एक साधन मात्र है
• पेटन मैं भी इस बात से सहमत व्यक्त की है कि अधिकार का एक प्रमुख तत्व यह है कि वह राज्य की विधि प्रक्रिया द्वारा प्रवर्तनीय होना चाहिए
• राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ 1977 सुप्रीम कोर्ट के मामले में विधिक अधिकार को परिभाषित करते हुए अभिकथन का किया कि सही अर्थ में विधिक अधिकार विधिक कर्तव्य का सहवर्ती है यह ऐसा हित है जो विधि द्वारा अन्यों को तदनुरूप कर्तव्यों का पालन करने के लिए अधिरोपित करके संरक्षित किया जाता है इसका अर्थ है कि किसी अन्य की विधिक शक्ति से उन्मुक्ति को विधिक अधिकार कहा जा सकता है उन्मुक्ति से आशय अधीनस्थता से छूट है
 विधिक अधिकार के सिद्धांत
• विधिक अधिकारों के संदर्भ में इनसे संबंधित दो सिद्धांतों की विवेचना करना उपयुक्त होगा प्रथम हित सिद्धांत द्वितीय इच्छा सिद्धांत
• हित सिद्धांत—
• इहरिंग ने विधिक अधिकार को हित पर आधारित माना है इन के अनुसार अधिकार विधि द्वारा संरक्षित हित है
• सामण्ड ने इहरिंग द्वारा दी गई अधिकार की परिभाषा को अपूर्ण माना है यह कहते हैं कि विधिक अधिकार के लिए केवल विधिक संरक्षण दिया जाना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उसे वैधानिक मान्यता भी प्राप्त होने चाहिए
• सामण्ड के अनुसार पशुओं के प्रति क्रूरता पूर्ण व्यवहार करना विधि द्वारा निषिद्ध है तथा इसके लिए दोषी व्यक्ति को दंडित किए जाने का प्रावधान है
• भारत में पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 में पारित किया गया था।
• ग्रे के अनुसार अधिकार स्वयं हित नहीं है अपितु हित को संरक्षित करने वाला एक साधन मात्र है
• ग्रे के अनुसार यह वह शक्ति है जिसमें कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को किसी कार्य या कार्यों को करने या ना करने के लिए उस सीमा तक बाध्य कर सकता है जहां तक समाज उसे यह शक्ति अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों पर लागू करते हुए प्राप्त होती है
• ग्रे ने विधिक अधिकार को एक ऐसी शक्ति मानते हैं जिसके आधार पर कोई व्यक्ति किसी विषय पर अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए न्यायालय की सहायता प्राप्त कर सकता है
2. इच्छा सिद्धांत
• हीगल, काण्ट, तथा ह्याम आदि विधिशास्त्रियों ने विधिक अधिकार संबंधी हित सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति का अधिकार उसकी इच्छा को प्रदर्शित करता है
• पुच्टा ने यह विचार व्यक्त किया कि किसी वस्तु पर अपनी इच्छा शक्ति को अभिव्यक्त करता है
• ड्युगिट ने इच्छा सिद्धांत की आलोचना करते हुए सामाजिक समेकता को ही अधिकार का मूल स्रोत माना है, वह इच्छा को अधिकार का एक महत्वपूर्ण तत्व मानते हैं
• पैटन ने भी इच्छा को अधिकार के एक तत्व के रूप में ही स्वीकार किया है
• हालैंड ने ग्रे के विचारों का समर्थन करते हुए कहा है कि विधिक अधिकार किसी व्यक्ति में निहित व क्षमता है जिससे वह राज्य की सहमति और सहायता से अन्य व्यक्तियों के कृतियों को नियंत्रित करा सकता है
• हालैंड के अनुसार विधिक अधिकार को राज्य की शक्ति से वैधानिकता प्राप्त होती है इस प्रकार में विधिक अधिकार को नैतिक अधिकार से पूर्णता भिन्न मानते हैं
• विनोडेग्राफ  ने मनोवैज्ञानिक परिस्थिति को अधिकारों का आधार माना है इन के अनुसार दावे की मानसिक प्रवृत्ति की अधिकारों का आधार है
• ऑस्टिन के अनुसार किसी व्यक्ति के अधिकार का अर्थ यह है कि दूसरे व्यक्ति उसके संबंध में कुछ करने या ना करने के लिए विधि द्वारा बाध्य है
• ऑस्टिन अपने कर्तव्य की व्याख्या करते हुए कथन किया है कि यह एक ऐसा दायित्व है जिस की अवहेलना की जाने पर इसके साथ संबंध्द शास्ति के कारण यह दंडनीय है
• जॉन स्टुअर्ट मिल ने  ऑस्टिन के उपर्युक्त विचार की आलोचना इस आधार पर कि है कि अधिकार के साथ हित सन्निहित होना प्रायः अनिवार्य है
• अमेरिका के न्यायाधिपति जस्टिस डगलस होम्स के अनुसार विधिक अधिकार कतिपय दशाओं में प्राकृतिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति मात्र है जिससे लोक बल के आधार पर संरक्षण प्रत्यास्थापन या प्रति कर प्राप्त करने का अधिकार मिल सके
 विधिक अधिकार मानवीय इच्छा का अंतर्निहित लक्षण है
• ड्युगिट विधिक अधिकार को मानवीय इच्छा पर आधारित नहीं मानते
• ड्युगिट इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहते हैं कि विधिक अधिकार को मानव इच्छा पर आधारित मानना उचित नहीं है क्योंकि बुद्ध का वास्तविक स्रोत तो सामाजिक एकात्मकता में है
• ड्युगिट कहते हैं कि मनुष्य के अधिकार होते ही नहीं बल्कि केवल कर्तव्य ही होते हैं
• ड्युगिट मानवीय इच्छा को समाज विरोधी धारणा मानते हैं क्योंकि वह मनुष्य में परस्पर संघर्ष के लिए कारणीभूत होती हैं
• ड्युगिट के अनुसार विधिक सामाजिक समेकता तथा समाज को गठित करने वाले व्यक्तिगत सदस्यों के अनुशासन की अभिव्यक्ति की प्रतीक होती हैं
• ड्युगिट का मानना है कि विधि प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा करती है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन करें तथा उसे अधिकारों की याचना करने का कोई अधिकार नहीं है इसलिए वे अधिकार की धारणा को अनैतिक अराजकतावादी तथा समाज विरोधी मानते हुए उसे विधि से बहिष्कृत किए जाने पर बल देते हैं
3. विधिक अधिकार का आधार हित है
• अनेक विधिशास्त्री मानवीय हित को विधिक अधिकार का मूल आधार मानते हैं तथा अधिकार की धारणा में इच्छा के तत्व को स्वीकार नहीं करते
• उपरोक्त मत के मुख्य समर्थक बकलैंड, ईहरिंग तथा सामण्ड हैं
• बकलैंड के विचार से विधि द्वारा संरक्षित हित या आकांक्षा को ही विधिक अधिकार कहा जाता हैं।
• इहरिंग ने भी इसी विचार का समर्थन किया है विधिक अधिकार में इच्छा के औपचारिक तत्व को अस्वीकार करते हुए इहरिंग ने कहा है कि एक शिशु या मूढ व्यक्ति की कोई इच्छा नहीं होती फिर भी विधि द्वारा उसे विधिक अधिकार प्राप्त होते हैं
• सामण्ड ने विधिक अधिकार को एक ऐसा हित कहा है जो विधि के नियमों द्वारा मान्य तथा संरक्षित है
• डॉक्टर एलन कहते हैं कि विधिक अधिकार किसी हित को प्राप्त करने के लिए विधि द्वारा प्रत्याभूत सकती है
•   हालैंड का मत है कि सभी विधिक अधिकारों में किस तत्व का होना आवश्यक नहीं है
• कीटन का भी यही मत है कि स्वत्व या हक अधिकार का साक्ष्य या अधिकार का स्रोत मात्र है अतः इसे अधिकार का स्वत्व नहीं कहा जा सकता है
 कर्तव्य की अवधारणा
 कर्तव्य को दायित्व का ही एक प्रकार माना गया है इसमें ऐसा आचरण विहित है जो किसी लक्ष्य की पूर्ति की ओर इंगित करता है यह लक्ष्य नैतिक सामाजिक या अन्य कोई हो सकता है
 प्रोफेसर फुलर के अनुसार कर्तव्य में निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है—
• 1. कर्तव्य सामान्य हो
• 2.  कर्तव्य प्रख्यापित होना चाहिए
• 3. कर्तव्य भावी तथा बुद्धि गम्य में हो
• 4. कर्तव्य स्वयं में अनुरूप हो
• 5. कर्तव्य पालनीय तथा आंतरिक नैतिकता के अनुरूप हो
• सामण्ड के विचार से उपर्युक्त नपे-तुले अर्थ के अतिरिक्त विधिक अधिकार का प्रयोग व्यापक अर्थ में भी किया जा सकता है इस अर्थ में अधिकार का उपयोग स्वतंत्रता शक्ति या उन्मुक्त के रूप में किया जा सकता है
• ऑस्टिन ने स्वतंत्रता को अधिकार का  पर्यायवाची माना है
• सामण्ड ने कहा है कि अधिकार से आशय उन कर्तव्य से है जो दूसरे व्यक्ति मेरे प्रति करने के लिए बाध्य हैं और विधिक स्वतंत्रता हुआ है जिससे मैं अपनी इच्छा अनुसार बिना किसी प्रकार के कर्तव्यों के बंधन के बेरोकटोक कर सकता हूं
• सामण्ड ने अधिकार शुन्यता को स्वतंत्रता का सहवर्ती माना है इसका अर्थ एक ही स्वतंत्रता के विरुद्ध किसी अन्य व्यक्ति में अधिकार का ना होना
• सामण्ड के अनुसार शक्ति और सामर्थ्य जो किसी व्यक्ति को विधि द्वारा या तो स्वयं के अथवा अन्य व्यक्तियों के अधिकार कर्तव्य दायित्व या अन्य विधिक संबंध अपनी निजी इच्छा अनुसार विनियमित या परिवर्तित करने के लिए प्रदान किया जाता है
• अतः एक व्यक्ति दूसरे के प्रति या उसके विरुद्ध क्या कर सकता है इसे शक्ति कहते हैं
• सामण्ड के अनुसार  शक्ति दो प्रकार की होती है प्रथम सार्वजनिक शक्ति द्वितीय व्यक्तिगत शक्ति
• ऐसी शक्ति जो किसी व्यक्ति में राज्य के अभिकर्ता के रूप में निहित होती है सार्वजनिक शक्ति कहलाती है
• व्यक्तिगत शक्ति ऐसी शक्ति होती है जो व्यक्ति में वैयक्तिक प्रयोजनों के लिए प्रयोग में लाई जाने के लिए नियत होती हैं इनमें राज्य के माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती है
• सामण्ड का कहना है कि उचित अर्थ में उन्मुक्त ना तो अधिकार है ना दायित्व है और ना शक्ति ही है बल्कि वह दूसरे पक्ष की निर्योग्यता को  प्रदर्शित करती है
• हॉहफेल्ड के अनुसार किसी एक विधिक संबंध के परिणाम स्वरुप केवल एक ही अधिकार तथा कर्तव्य का उद्भव नहीं होता बल्कि इससे अनेक दावे उनमुक्तियां तथा शक्तियां उत्पन्न होती हैं जिन पर विचार किया जाना आवश्यक होता है

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