Friday, May 15

निर्णयानुसरण का सिद्धांत (Doctrine of Stare Decisis)

जब अनेक निर्णय द्वारा किसी वैधानिक प्रश्न को स्पष्टतया सुनिश्चित कर दिया जाता है तो उसका अनुसरण करने तथा उसे ना बदलने के सिद्धांत को निर्णयानुसरण का सिद्धांत कहते हैं
• निर्णयानुसरण के लिए दो बातें आवश्यक हैं-
• प्रथम यह की निर्णीत वादों की रिपोर्टिंग की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा
• द्वितीय यह की श्रेणीबद्ध न्यायालयों की निश्चित श्रृंखला होनी चाहिए
• मायर हाउस बनाम रेनर के ऐतिहासिक विनिश्चय में पूर्व निर्णय के बंधनकारी प्रभाव के सिद्धांत को सभी अधीनस्थ न्यायालयों के प्रति लागू किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया
• गैली बना ली 1969 के बाद में लॉर्ड डेनिंग ने कथन किया कि कोर्ट आप अपील स्वयं के पूर्व निर्णयों से बाध्य नहीं है क्योंकि हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने भी स्वयं पर से यह बंधन हटा लिया है
• इंग्लैंड की भांति भारत में भी निर्णयानुसरण के सिद्धांत को स्वीकार किया गया है भारतीय विधि अधिकांशतः ब्रिटिश विधि पर आधारित होने के कारण भारत में भी विधि निर्णयों के प्रकाशन और प्रसारण में समुचित प्रगति हुई है
• बंगाल इम्युनिटी  कंपनी बनाम बिहार राज्य 1955 सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद उच्चतम न्यायालय स्वयं के निर्णय से बाध्य नहीं रहा और अब न्यायोचित होने पर वह अपने पूर्व निर्णय को पलट सकता है
• ए आर अंतुले बनाम आर एस नाईक 1988 सुप्रीम कोर्ट के वाद में भी उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्व निर्णय को नजरअंदाज करते हुए अवलोकन किया कि आवश्यक होने पर वह अपने पूर्व निर्णय से हटकर निर्णय दे सकता है
•   सोमवंती बनाम पंजाब राज्य 1963 सुप्रीम कोर्ट के विनिश्चय में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पूर्व निर्णय का केवल निर्णयानुसार ही बंधनकारी प्रभाव रखता है ना की संपूर्ण निर्णय अतः उच्चतम न्यायालय के निर्णय में दी गई इतरोक्ति निचले न्यायालयों के लिए बंधनकारी प्रभाव नहीं रखती हैं
• श्रवण सिंह लांबा बनाम भारत संघ 1995 सुप्रीम कोर्ट के बाद में स्पष्ट किया हैं कि उसके द्वारा दिए गए निर्णय की इतरोक्ति भी सभी निचली न्यायालयों के लिए बंधनकारी प्रभाव रखती हैं और वे उसका अनुसरण करने के लिए बाध्य है
• सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ 1994 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निर्णयाधार का नियम अनम्य नहीं है तथा सांविधानिक मामलों में उसकी सुसंगत सीमित होती है
• कृष्णास्वामी बनाम भारत संघ 1993 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णयाधार के महत्व एवं उसकी सीमाओं की व्याख्या करते हुए निर्धारित किया कि अनुच्छेद 141 के अनुसार संविधान के निर्वचन के संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए विनिश्चय में अंतिमता होती है और वह पूर्व निर्णय के रूप में प्रयुक्त किए जाने के कारण उसमें स्थायित्व निश्चितता एवं निरंतरता होना परम आवश्यक है उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वयं के पूर्व निर्णय का अनुसरण किए जाने में ही बुद्धिमत्ता है जब तक की उससे हटने के लिए कोई युक्तियुक्त कारण ना हो या बृहद लोकहित में ऐसा करना अत्यावश्यक ना हो
• वचन सिंह बनाम पंजाब राज्य 1980 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि निर्णयाधार के नियम का आंख मूंदकर यंत्रवत अनुसरण किया जाए तो यह विधि का विकास अवरुद्ध कर उसे बौना बना देगा और इससे समाज की आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं को ढालने कि उसकी क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा
• दुरकिन के अनुसार पूर्वोक्त द्वारा किसी न्यायिक निर्णय को दो प्रकार का बल प्राप्त होता है प्रथम यह की भविष्य में उद्भूत होने वाले सामान प्रक्रमों में उसे लागू किया जाता है द्वितीय समान प्रकरणों को समान नियमों व सिद्धांतों के आधार पर निपटाया जाता है
• लार्ड ईशर ने प्रमुख वाद विलिस बाडेली  मैं अभी कथन किया कि वास्तव में न्यायाधीश निर्मित विधि जैसी कोई वस्तु नहीं है क्योंकि न्यायाधीशगण विधि का निर्माण नहीं करते अपितु वे विद्यमान विधि को ही अपने निर्णयाधीन वाद के तथ्यों के प्रति लागू करते हुए उसका इस प्रकार निर्वाचन करते हैं जो पूर्व में ना किया गया हो
• पूर्व निर्णय संबंधित ब्लैक स्टोन के घोषणात्मक सिद्धांत की आलोचना करते हुए आस्टिन कहते हैं कि यह धारणा न्यायाधीश विधि का निर्माण नहीं करते बल्कि उसकी केवल घोषणा करते हैं एक नादान परिकल्पना मात्र है
• बेंथम के अनुसार न्यायाधीश विधि की केवल घोषणा करते हैं सरासर मिथ्या है उनका तर्क है कि वस्तुतः घोषणात्मक सिद्धांत की आड़ में न्यायाधीशगण विधायन के अधिकार को चुरा लेते हैं क्योंकि खुलेआम उन्हें ऐसा करने में संकोच होता है
• डायसी के विचार से इंग्लैंड की विधि का सर्वोत्तम भाग न्यायाधीश द्वारा निर्मित विधि है अर्थात कॉमन लॉ अधिकांशतः तक उन नियमों से मिलकर बना है जिनका संकलन न्यायाधीशों के निर्णयों में से किया गया है
• डॉ एलन के विचार से ब्लैकस्टोन तथा बेंथम दोनों के ही विचार अतिशयोक्ति रंजित प्रतीत होते हैं
• ब्लैक स्टोन तथा बेंथम का कहना है कि ना तो यह कहना गलत है कि न्यायाधीश विधि का निर्माण करते हैं और ना यही गलत है कि वह विधि की घोषणा करते हैं
• वेकन के अनुसार मनुष्य की सीमित बुद्ध के लिए भविष्य में घटित होने वाले सभी प्रकरणों की पूर्व कल्पना करना असंभव है
• ग्रे के अनुसार न्यायाधीश अपने निर्णयों द्वारा विधि का सृजन करते हैं अतः केवल वे ही विधि के वास्तविक निर्माता होते हैं पूर्णतः सही नहीं है
• ऑस्टिन ने पूर्व निर्णय पर आधारित विधि की आलोचना इस आधार पर की है कि यह प्रभुताधारी या समादेश ना होने के कारण इसे सही अर्थ में विधि नहीं कहा जा सकता
• न्यायाधीश होम्स के अनुसार यह कहना उद्वेगकारी होगा कि आमुख विधि का नियम सही एवं उचित है क्योंकि वह हेनरी चतुर्थ के काल से चला आ रहे हैं जबकि सदियों बाद समय और समाज में आमूल परिवर्तन हो चुका है अतः क्योंकि एक विधि पुरातन काल से चली आ रही है इसलिए उसका अंधानुकरण करते रहना कहां तक उचित है।
• डब्लू गिल्डार्ट ने लिखा है कि विधि की निश्चितता तथा उसके विकसित होते रहने की संभावनायें  पूर्वोक्तियों के महत्व को दर्शाते हैं, फिर भी उसकी अनम्यता तथा प्रतिबंधात्मकता और बंधनकारी प्रभाव के कारण न्यायाधीशों की विवेक शक्ति को अवरोधित करती है जो न्याय की दृष्टि से उचित नहीं है वास्तविकता यह है कि न्यायाधीशगण अपने निर्णयों द्वारा विधियों का सृजन करते हैं भले ही यह कहा जाता रहा हो कि न्यायाधीश विधि की व्याख्या करते हैं ना कि उसका सृजन।

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