Monday, May 18

संबंधित तथ्य एवं कार्य की सुसंगतता

तथ्यों की सुसंगता से संबंधित प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत रेस जेस्टे अर्थात एक ही संव्यवहार के भाग होने वाले तथ्यों के सुसंगता का उल्लेख किया गया है। इसके अनुसार जो तथ्य विवादक न होते हुए विवादक तथ्य से इस प्रकार (संशक्त) जुड़े हुए हैं कि वह एक ही संव्यवहार के भाग है। वे तथ्य सुसंगत है चाहे वे उसी समय या स्थान पर या विभिन्न समयों एवं स्थानों पर घटित हुए हैं।

सरद विरदी चंद्र शारदा बना महाराष्ट्र 1984 सुप्रीम कोर्ट के मामले में रेस जेस्टए सिद्धांत के निम्न नियम बताये गये है―
1. कथन या कार्य विवादक तथ्य से जुड़ा होना चाहिए।
2. तथ्यों की शंसक्तता इस प्रकार होनी चाहिए कि वह एक संव्यवहार के भाग हो।
3. संबंधित तथ्य एवं कार्य भिन्न समयों एवं स्थानों पर घटित हो सकते हैं।
4. विवादक तथ्य और रेस जेस्टे के अंतर्गत आने वाले तथ्य एवं कार्य ऐसे हो कि दोनों मिलकर एक कड़ी बनाते हैं।

एक ही संव्यवहार

संव्यवहार शब्द भारतीय साक्ष्य अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है।

स्टीफन के अनुसार संव्यवहार परस्पर संबद्ध तथ्यों का एक समूह है जिसे एक ही नाम दिया जा सके या एक ही नाम से जाना जा सके, जैसे– संविदा, अनुदान, अपकृत्य आदि।

फिप्सन के अनुसार “जुड़े हुए तमाम कुत्य या लोप तथा उसके साथ जुडे शब्दों का समूह संव्यवहार है।

   कोई भी संव्यवहार स्वयं में स्वतंत्र इकाई नहीं होता बल्कि वह कई तथ्यों से मिलकर बनता है। क्योंकि ऐसे तथ्य न होते तो , संव्यवहार का कोई अस्तित्व न होता 
उदाहरण- क पर ख को पिट पिटकर मार डालने का आरोप है पिटाई के समय पूर्व व पश्चात ए तथा बी द्वारा कहे गए शब्द या किए गए कार्य तथा इन्हीं परिस्थितियों में घटना के पास खड़े लोगों के कथन या कार्य एक ही संव्यवहार के भाग माने जाएंगे क्योंकि वे सभी ऐसे अंतर संबंधित तथ्य हैं जो विवादक तथ्य अर्थात ए तथा बी को पीट-पीटकर मार डालने के मुख्य तथ्य पर प्रकाश डालते हैं।

कोई भी तथ्य तभी सुसंगत होगा जब वह विवादक ना होते हुए भी विवादक तथ्य से इस प्रकार जुड़ा हो जिसके बिना विवादक तथ्य हल न किया जा सके।

रतन बनाम रजीना 1971 के मामले में एक महिला को गोली चला कर मार डाला गया था घटनास्थल से उसका पति बंदूक के साथ गिरफ्तार हुआ था जिसके नाल से धुँआ निकल रहा था उसका कहना था कि बंदूक दुर्घटना बस अचानक चल गई थी इस मामले में मृतक ने अपनी मृत्यु के ठीक पूर्व टेलिफोन ऑपरेटर को फोन मिला कर पुलिस से फोन मिलाने को कहा था वह बहुत घबराहट में थी और उसमें अपना नाम पता बता दिया था अचानक फोन कट गया था उक्त सभी तथ्य को एक ही संव्यवहार का भाग मानते हुए अभिनिर्धारित किया गया की मृत्यु दुर्घटना या आकस्मिक नहीं बल्कि जानबूझकर कारित की गई थी।

कथन को एक ही संव्यवहार के तहत लाने के लिए न्यायालय उसका मुख्य तथ्य से घनिष्ठता एवं निकटता की अपेक्षा करते हैं जिससे सोच विचार कर झूठी कहानी बनाने का मौका ना मिल सके।

थॉम्पसन बनाम टेरिबेन 1963 सिक्किम के मामले में या मत व्यक्त किया गया की पत्नी द्वारा उसे चोट लगने के साथ ही उसके मुख से निकलते हुए शब्द की प्यारे तुमने मुझ पर बार क्यों किया सुसंगत था क्योंकि इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती की पत्नी ने अपने पति को फंसाने के लिए इस प्रकार का कथन गढ़ा हो।

सांवल दास बनाम बिहार राज्य 1974 सुप्रीम कोर्ट के मामले में या मत व्यक्त किया गया कि मृतक द्वारा मृत्यु के समय बचाने के लिए चिल्लाना एक संव्यवहार के भाग के रूप में संगत होगा।

तेजराम पाटील बना महाराष्ट्र 2015 सुप्रीम कोर्ट के मामले में किया गया कि मृतका के मृत्यु कालिक कथन एवं प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों के कथन के अपिलार्थी ने मृतका पर मिट्टी का तेल डाला और फिर आग लगा दिया रेस जेस्टए का भाग माना गया।

कथन एवं घटना के बीच अंतराल अधिकतम कितना हो इसका कोई व्यावहारिक निर्धारण कर पाना आसान नहीं है धारा 6 लागू होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि कथन घटनास्थल पर या उसके साथ साथ किए गए हो परंतु इतने अंतराल का नहीं होना चाहिए की झूठी कहानी बनाने का मौका मिल सके-( दृष्टांत ए धारा 6)

रतन सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश 1997 सुप्रीम कोर्ट के मामले में मृतका का रात्रि को जब अपने आंगन में निकली तो उसने छत पर x नामक व्यक्ति को खड़ा देखा उसने घरवालों को जगाया की बंदूक लेकर x छत पर खड़ा है इतना कहते ही अभियुक्त ने मृतका पर गोली चलाई जिससे उसकी मृत्यु हो गई मृतका द्वारा उसका नाम लेकर घर वालों को जगाना और घर के सदस्यों द्वारा x को उतर कर भागते हुए देखना गोली चलाने की आवाज सुनाई देना आदि तथ्य अंतर संबंधित थे और साथ साथ घटे थे।

उपरोक्त तथ्य उच्चतम न्यायालय द्वारा एक संव्यवहार के रूप में सुसंगत माना गया।

रेस जेस्टए अनुश्रुत साक्ष्य का अपवाद है भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सामान्य सिद्धांत के अनुसार अनुश्रुत साक्ष्य का अपवर्जन किया गया है परंतु रेस जेस्टए इस सामान्य नियम का अपवाद है अनुश्रुत साक्ष्य तब दिया जा सकता है जब वह घटना का भाग हो।

आर बनाम फोस्टर 1834 के मामले में जो साक्षी पेश किया गया था उसने बताया कि उसने गाड़ी को बहुत तेजी से चलते हुए देखा था परंतु दुर्घटना नहीं देखी जैसे ही घायल व्यक्ति की आवाज सुना वह भाग कर उसके पास पहुंचा और उससे पूछा कि क्या हुआ था मृतक ने दुर्घटना के बारे में बताया यह निर्णीत किया गया कि घटना के कारण के बारे में पूछे जाने पर जो कुछ भी मृतक ने बताया था वह सुसंगत एवं ल ग्राह्य था

आर एम मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य 1993 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्णीत किया गया कि जब कोई बातचीत चल रही हो जो किसी संव्यवहार का भाग होने के कारण से सुसंगत है तो यदि उसे तत्क्षण टेप कर लिया जाता है तो ऐसी टेप सुसंगत होगी तथा एक ही संव्यवहार का भाग माना जाएगा।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि घटना एवं कथन के मध्य का समय अंतराल कथन का रेस जेस्टए के रूप में सुसंगत हो सकता है किंतु न्यायालय को तथ्यों के आधार पर अन्य परिस्थितियों का अवलोकन करना चाहिए।

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