Monday, May 18

तथ्य की उपधारणा एवं विधि की उपधारणा तथा दोनों में अंतर

प्रत्येक तथ्य जिसके आधार पर कार्यवाही का एक पक्षकार न्याय निर्णय प्राप्त करना चाहता है उसे साबित करना पड़ता है। निर्णय करते समय न्यायालय किसी तथ्य पर तब तक विश्वास नहीं कर सकता जब तक साक्ष्य अधिनियम में प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार उसे साबित ना कर दिया जाए परंतु साक्ष्य विधि में यह भी प्रावधान किया गया है कि न्यायालय कुछ तथ्यों पर बिना सबूत की मांग किये विचार कर सकता है अर्थात कुछ तथ्यों के उपधारणा कर सकता है कुछ ज्ञात तथ्यों के आधार पर किसी अज्ञात तथ्य के बारे में लगाए जा रहे हनुमान को उपधारणा कहते है उपधारणा का अर्थ है मानकर चलना।

उपधारणा किसी तत्व के अस्तित्व का ऐसा अनुमान है जो साक्ष्य लिए बिना ऐसे अन्य तथ्यों के आधार पर जो पहले से ही साबित है, निकाला जाता है यह तर्क की प्रक्रिया है।

सोधी ट्रांसपोर्ट कंपनी एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1986 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया है कि उपधारणा के नियम, ज्ञान तथा अनुभव से निगमित होते हैं तथा तथ्यों एवं परिस्थितियों के संबंध के संयोजन तथा संयोग से आहूत किए जाते हैं।

विधिशास्त्री बेस्ट के अनुसार- उपधारणा का तात्पर्य है कि जहां किसी तथ्य की सत्यता या असत्यता के बारे में स्पष्ट निष्कर्ष ना निकाला जा सके वहां किसी स्वीकृत या स्थापित तथ्य से संभाव्य तर्क के आधार पर उसकी सत्यता या असत्यता के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक अनुभव लगाया जा सकता है।

विधिशास्त्री रसेल के अनुसार- किसी एक तथ्य के अस्तित्व को देखकर किसी अन्य तथ्य का अनुमान कर लेना ही उपधारणा कहलाता है।

1. तथ्य की उपधारणा-
           तथ्य की अवधारणा को प्राकृतिक उपधारणा भी कहते हैं तथ्य की उपधारणा वे अनुमान है जो—

1. स्वाभाविक रूप से
2. तर्क के आधार पर
3. प्राकृतिक अनुक्रम में
4. मानव मस्तिष्क की रचना से
5. मानव कृत्यों के स्रोतों से
6. समाज की प्रथा और आदतों से

         विधिक निर्देशों या नियमों की सहायता के बिना निकाले जा सकते हैं ये उपधारणाए  भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 4 के उपधारणा कर सकेगा खंड के अंतर्गत आती है तथ्य की अवधारणा पर निष्कर्ष निकाला न्यायालय के विवेक का विषय है।

     उदाहरणतया यदि एक व्यक्ति चोरी के तुरंत पश्चात चुराए हुए माल को अपने कब्जे में होने का कारण न बता सके तब न्यायालय उपधारित कर सकेगा कि उस व्यक्ति ने माल स्वयं चुराया है या उसने माल को चुराया हुआ जानते हुए प्राप्त किया है। (धारा 14 का दृष्टांत A)

     तथ्य की उपधारणा सदैव खण्डनीय होती है तथा ऐसी उपधारणा करने के लिए न्यायालय को विवश नहीं किया जा सकता ऐसी उपधारणा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा- 86 से 88A, 90, 90A, 113A और 114 में वर्णित है।

2. विधि की उपधारणा:- विधि की उपधारणा को अस्वाभाविक उपधारणा या कृत्रिम उपधारणा भी कहा जाता है ये ऐसे अनुमान होते हैं जिन्हें विधि किन्ही विशेष तथ्यों से निकालने के लिए न्यायाधीश को अभिव्यक्ति रूप से निर्देशित करती है विधि की अवधारणा विधिशास्त्र की एक निश्चित शाखा है और एक केवल अनुभव एवं अवलोकन से निकाले गए अनुमान है।

विधि की उपधारणा दो प्रकार की होती है—

1. विधि की खण्डनीय उपधारणा
2. विधि की खण्डनीय उपधारणा

1. विधि की खण्डनीय उपधारणा:- जब विधि की उपधारणा खंडन योग्य होती है तो उसे खण्डनीय उपधारणा कहा जाता है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में उपधारणा करेगा से दर्शित किया गया है। ऐसी उपधारणा करने के लिए न्यायालय बाध्य होते हैं लेकिन ये उपधारणाए तभी तक मान्य होती है जब तक उनके प्रतिकूल साबित नहीं किया जाता। साक्ष्य अधिनियम की धारा 79, 80, 81, 81A, 83 से 85C, 89, 104, 105, 107, 108, 111A, 113B, एवं 114A में वर्णित है।

2. विधि की अखण्डनीय उपधारणा:- विधि की अखंडनीय उपधारणा वे हैं जो खंडन योग्य नहीं है और वह निश्चयात्मक होते हैं। इसका खंडन किसी भी शक्तिशाली साक्ष्य से नहीं किया जा सकता है जहां विधि द्वारा एक तथ्य को दूसरे तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया गया है वहां न्यायालय उसके खण्डन के साक्ष्य दिए जाने की अनुमति किसी भी दशा में नहीं दे सकता ऐसी उपधारणा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 के निश्चायक सबूत खंड के अंतर्गत आती हैं तथा इनका उल्लेख धारा 47, 82, 112, 113, 115, 116, 117 में किया गया है।

 तथ्य की उपधारणा एवं विधि की उपधारणा में अंतर:-

1. तथ्य की उपधारणा का आधार तर्क है जबकि विधि की उपधारणा का आधार विधि का प्रावधान है।
2. तथ्य की उपधारणा सदैव खण्डनीय होती है जबकि विधि की उपधारणा खंडन के अभाव में निश्चायक होती है।
3. तथ्य की उपधारणा की स्थिति अनिश्चित एवं परिवर्तनशील होती है जबकि विधि की उपधारणा की स्थिति निश्चित तथा समरूप होती है।
4. तथ्य की उपधारणा चाहे कितनी भी सशक्त हो न्यायालय उसकी उपेक्षा कर सकता है जबकि विधि की उपधारणा की उपेक्षा न्यायालय नहीं कर सकता है।
5. तथ्य की अवधारणा मानवीय अनुभवों, प्राकृतिक नियमों, तथा प्रचलित प्रथाओं के आधार पर निकाली जाती है जबकि विधि की उपधारणा न्यायिक नियमों के स्तर पर स्थापित है तथा विधि का अंग बन गयी हैं।

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