जमानत आदेश रद्द किए जाने की शक्ति जमानत में ही निहित होती है और न्यायालय उसे कभी भी वापस ले सकता है अथवा उसे निरस्त कर सकता है जमानत निरस्त किए जाने से संबंधित प्रावधान निम्नवत है—
1. धारा 439(5)के अंतर्गत कोई न्यायालय जिसने अजमानती अपराध के मामले में जमानत पर छोड़ा है आवश्यक समझता है तो अभियुक्त को गिरफ्तार करने का आदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
2. धारा 437(2) में जमानत को रद्द करने के संबंध में सेशन न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की शक्ति का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है इसके अनुसार उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
3. धारा 482 के अंतर्गत उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का उल्लेख किया गया है इस शक्ति के अधीन ही उच्च न्यायालय जमानत को रद्द कर सकता है।
रतीलाल भानजी मथानी बनाम असिस्टेंट कलेक्टर कस्टम 1967 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह आधारित किया गया कि यदि उच्च न्यायालय अपनी अंतर्निहित शक्ति के अंतर्गत अभियुक्त की जमानत को निरस्त कर देता है जिसके कारण उसकी स्वाधीनता प्रभावित होती है तो इस तरह के जमानत निरस्तीकरण का आदेश विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही होना चाहिए अन्यथा उच्च न्यायालय का यह कार्य संविधान के अनुच्छेद 21 के विपरीत माना जाएगा।
सामान्यतया निम्न बातों का समाधान हो जाने पर जमानत रद्द की जा सकती है—
1. यह की विचारण के लिए अपेक्षित समय पर अभियुक्त उपस्थित नहीं रहता
2. यह कि उसी अपराध को पुनः कारित करता है जिसके लिए वह जमानत पर छोड़ा गया था।
3. यह की जमानत पर छोड़े जाने के बाद वह साक्षियों को अपना कथन बदलने के लिए उत्प्रेरण धमकी या प्रलोभन आदि देता है
4. यदि वह फरार हो जाता है
5. यह की जमानत पर छोड़े जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्ष से बदला लेने की संभावना या पुनः शांति भंग होने की संभावना आदि है