दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2w के अनुसार समन मामला से ऐसा मामला अभिप्रेत है जो किसी अपराध से संबंधित है और जो वारंट मामला नहीं है समन मामला के विचारण से संबंधित प्रावधान धारा 251 से 255 तक में वर्णित किया गया है।
धारा 251 के तहत समन मामले में अभियुक्त जब मजिस्ट्रेट के समक्ष लाया जाता है तब उसको उस अपराध की परिस्थितियाँ बताई जाएगी और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवाक़ करता है या प्रतिरक्षा करता है किंतु लिखित आरोप विरचित करना आवश्यक ना होगा।
धारा 252 के अनुसार यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त का कथन यथासंभव उन्हीं शब्दों में लेखबद्ध करेगा जिनका अभियुक्त ने प्रयोग किया है और उसके आधार पर उसे स्वविवेकानुसार दोष सिद्ध कर सकेगा।
धारा 253 के अनुसार जहां धारा 206 के अंतर्गत समन जारी किया जाता है और अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हुए बिना आरोप का दोषी होने का अभिवचन करना चाहता है वहां अपना अभिवाक का अभिकथित करने वाला एक पत्र और समन में विहित शुल्क डाक द्वारा मजिस्ट्रेट को भेजेगा मजिस्ट्रेट अपने विवेकानुसार अभियुक्त को उसके दोषी होने के आधार पर उसकी अनुपस्थिति में दोष सिद्ध करेगा और अभियुक्त द्वारा भेजी गई रकम जुर्माने में समायोजित की जाएगी।
धारा 254 के अनुसार मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 252 या 253 के अंतर्गत दोषसिद्ध नहीं करता है तब वह अभियोजन के समर्थन में पेश किए गए साक्ष्य तथा अभियुक्त की प्रतिरक्षा में पेश किए गए साक्ष्य को लेने के लिए अग्रसर होगा यदि मजिस्ट्रेट अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर ठीक समझता है तो किसी साक्षी को हाजिर होने या दस्तावेज पेश करने के लिए समन जारी कर सकता है।
धारा 285 के अंतर्गत यदि मजिस्ट्रेट धारा 254 के अंतर्गत साक्ष्य अभिलिखित किए जाने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह दोषमुक्त कर देगा इसके विपरीत यदि वह दोषी पाता है और धारा 225 या 360 के तहत कार्यवाही नहीं करता तो विधि के अनुसार दंडादेश पारित कर सकता है।
धारा 255 खंड 3 मजिस्ट्रेट को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह अभियुक्त को धारा 252 या 255 के अंतर्गत इस अध्याय के अधीन विचारणीय किसी अपराध के लिए जो स्वीकृति या साबित तथ्यों से उसके द्वारा किया गया प्रतीत होता है दोषसिद्ध कर सकता है यदि मजिस्ट्रेट की यह राय है कि इससे अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
धारा 259 के अनुसार जब किसी ऐसे अपराध से संबंधित समन मामले के विचारण के दौरान जो 6 माह से अधिक के कारावास से दंडनीय है मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि न्याय हित में उस अपराध का विचारण वारंट मामले की प्रक्रिया के अनुसार किया जाना चाहिए तो ऐसा मजिस्ट्रेट वारंट मामलों के विचारण के लिए इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति से पुनः सुनवाई कर सकता है।
समन मामले और पुलिस रिपोर्ट पर्व संस्थित मामले के विचारण की प्रक्रिया में अंतर—
समन मामले एवं पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारंट मामले के विचार में जिन प्रक्रियाओं का अनुसरण किए जाने की अपेक्षा दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत की गई है उनमें निम्न अंतर पाया जाता है—
1. वारंट मामले में अभियुक्त के विरुद्ध लिखित आरोप विरचित किया जाना आवश्यक है जबकि समन मामले में आरोप विरचित किया जाना आवश्यक नहीं है।
2. वारंट मामले में आरोप विरचित किए जाने के बाद अभियुक्त दोषी होने का आभीवाक करता है तो मजिस्ट्रेट दोष सिद्ध कर सकता है जबकि समन मामले में यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवाक करता है तो मजिस्ट्रेट का विवेकाधिकार है कि वह उसे दोष सिद्ध कर दे।
3. वारंट मामले में यदि अभियुक्त के विरुद्ध आरोप नहीं बनता तो उन्मोचित किए जाने का प्रावधान है जबकि समन मामले में उन्मोचन का कोई प्रावधान नहीं है।
4. वारंट मामले में यदि परिवादी उपस्थित नहीं होता तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त को उन्मोचित कर सकता है जबकि समन मामले में परिवादी उपस्थित नहीं होता तो अभियुक्त को दोष मुक्त किया जा सकता है।
5. वारंट मामले को समन मामले में सांपरिवर्तित नहीं किया जा सकता जबकि समन मामले को वारंट मामले की प्रक्रिया के अनुसार विरचित किया जा सकता है।
6. वारंट मामले में अभियुक्त हाजिर हुए बिना दोषी होने का अभिवाक नहीं कर सकता जबकि समन मामले के विचारण की प्रक्रिया में छोटे मामलों में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हुए बिना दोषी होने का अभिवाक कर सकता है।
7. वारंट मामले में अभियुक्त को दोष सिद्ध किए जाने पर दंड के विषय पर सुना जाना आवश्यक है जबकि समन मामलों में दोषी पाए जाने पर दंड के विषय में सुना जाना आवश्यक नहीं है।