Saturday, May 16

आरोप इसमें उल्लिखित विषय -A के विरुद्ध धारा 325 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आरोप का प्रारूप

दंड प्रक्रिया संहिता में आरोप की कोई समुचित परिभाषा नहीं दी गई है धारा 2(B) में यह कहा गया है कि आरोप के अंतर्गत जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हो आरोप का कोई भी शीर्ष है।

उपर्युक्त परिभाषा से आरोप शब्द का तात्पर्य स्पष्ट नहीं होता है सामान्य भाव बोध के अंतर्गत आरोप का तात्पर्य अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का एक ऐसा कथन है जिसमें आरोप के आधारों के साथ साथ समय स्थान और उस व्यक्ति या वस्तु का उल्लेख रहता है जब और जहां जिसके विरुद्ध अपराध किया गया है ।

सामान्यतया आरोप तभी लगाया जाता है जब मजिस्ट्रेट या न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि आरोपी के विरुद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है।

मध्य प्रदेश राज्य बनाम सुधवीर 2000 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह निर्धारित किया गया कि आरोप निर्धारण के लिए विचारण न्यायालय के लिए इतना पर्याप्त है कि मामला प्रथम दृष्टया बनता हो।

सीबीआई बनाम बंगारप्पा 2000 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि आरोप तय करते समय न्यायालय को प्रस्तुत सामग्री का पूर्व विश्लेषण करना आवश्यक नहीं है आरोप को तय करने के लिए प्रस्तुत की गई सामग्री ही पर्याप्त है।

आरोप की रचना हेतु दंड प्रक्रिया संहिता के द्वितीय अनुसूची के प्रारूप क्रमांक 32 में तीन प्रकार के प्रारूप दिए गए हैं-
1. एक ही शीर्ष के आरोप
2. पूर्व दोषसिद्धि के बाद चोरी का आरोप
3. दो या अधिक शीर्ष के आरोप

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 211, 212 एवं 213 में उन प्रावधानों का उल्लेख किया गया है जिनका वर्णन आरोप में किया जाना चाहिए।

क- आरोप की अंतर्वस्तु धारा 211 के अनुसार प्रत्येक आरोप में निम्नलिखित विवरण होना –
1. प्रत्येक आरोप में उस अपराध का कथन होगा जिसका अभियुक्त पर आरोप है
2. यदि उस अपराध का सृजन करने वाले विधि द्वारा उसे कोई विशिष्ट नाम दिया गया है तो आरोप में उसी नाम से अपराध का वर्णन किया जाएगा।
3. यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विशिष्ट नाम नहीं दिया गया है तो अपराध की इतनी परिभाषा देनी होगी जितनी से अभियुक्त को इस बात की सूचना हो जाए जिससे उस पर आरोप है।
4. वह विधि और विधि की वह धारा जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना कथित है आरोप में उल्लिखित होगा।
5. यह तथ्य की आरोप लगा दिया गया है इस कथन के समतुल्य है कि विधि द्वारा अपेक्षित प्रत्येक शर्त जिसमें अधीरोपित आरोप बनता है उस विशिष्ट मामले में पूरी हो गई है।
6. आरोप न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा।
7. यदि अभियुक्त किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किए जाने पर किसी पश्चातवर्ती अपराध के लिए ऐसे पूर्व दोषसिद्धि के कारण अतिरिक्त या अधिक दंड का भागी है तो उस दशा में आरोप में पूर्व दोषसिद्धि की तिथि, समय, स्थान आदि का उल्लेख किया जाना चाहिए।
आरोप में इस बात को भी दर्शाया जाना चाहिए कि अभियुक्तों में से प्रत्येक अभियुक्त अपराध से किस प्रकार संबंधित है तथा उनमें से प्रत्येक ने किस तरह से अपराध में भाग लिया है।

ख-  समय स्थान और व्यक्ति के बारे में विशिष्टियां- धारा 212 खंड 1 के अनुसार अभी कथित अपराध के समय और स्थान के बारे में तथा जिस व्यक्ति के विरुद्ध या जिस वस्तु के विषय में वह अपराध किया गया उस व्यक्ति या वस्तु के बारे में ऐसी विशिष्टया जो अभियुक्त को उस बात की सूचना देने के लिए उचित रूप से पर्याप्त हैं आरोप में उल्लिखित होंगे।

उपधारा 2 के अनुसार जब अभियुक्त पर आपराधिक न्यासभंग या बेईमानी से धन या जंगम संपत्ति के दुर्विनियोग का आरोप है, तब इतना ही पर्याप्त होगा कि विशिष्ट मदो का जिनके विषय में अपराध किया जाना कहा गया है। अपराध करने की ठीक ठीक तारीख का उल्लेख किए बिना उस सकल राशि या उस चल संपत्ति का वर्णन कर दिया जाता है जिसके विषय में अपराध किया जाना कहा गया है ऐसे विरचित आरोप धारा 219 के अर्थ में एक ही अपराध का आरोप समझा जाएगा। परंतु ऐसे तारीखों में से पहली और अंतिम का समय 1 वर्ष से अधिक का न होगा।

कादीरी बनाम कुन्हामद 1960 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्धारित किया कि उपधारा 2 के उपबंधों का उल्लंघन एक अनियमितता मात्र होगी। जिसे संहिता की धारा 215 तथा 464 द्वारा सुधारा जा सकता है अतः इससे अभियुक्त का विचारण दूषित नहीं होगा।

ग- कब अपराध किए जाने की रीति कथित की जानी चाहिए- धारा 213 के अनुसार जब मामला इस प्रकार का है कि धारा 211 और धारा 212 में वर्णित विशिष्टया अभियुक्त को उस बात की, जिसका उस पर आरोप है पर्याप्त सूचना नहीं देती तब उस रीति का जिसमें अभिकथित अपराध किया गया है। ऐसे विवरण भी जैसे उस प्रयोजन के लिए पर्याप्त है, आरोप में उल्लिखित होगा। उदाहरण के लिए ए पर बी के साथ कथित समय और स्थान में छल करने का अभियोग है आरोप में वह रीति जिसमें ए ने बी के साथ छल किया, उल्लिखित करना होगा।

धारा 214 के अनुसार आरोप के शब्दों का वह अर्थ लिया जाएगा जो उनका उस विधि में है जिसके अधीन अपराध दंडनीय है

A के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के अंतर्गत आरोप का प्रारूप-

मैं X मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट इलाहाबाद A पर निम्न आरोप लगाता हूं

1. यह की आपने 10 दिसंबर 2017 को 8:00 बजे सुबह B को स्वेच्छया घोर उपहति कारित की और ऐसा करके आपने ऐसा अपराध किया है जो भारतीय दंड संहिता की धारा 325 के अंतर्गत दंडनीय है और इस न्यायालय के संज्ञान के अंतर्गत आता है
अतः इसके द्वारा में आदेशित करता हूं की आपका इस न्यायालय द्वारा उक्त आरोप पर विचारण किया जाए।

                                 हस्ताक्षर (X) CJM इलाहाबाद

आरोप पढ़कर अमित को सुनाया या समझाया गया उसने आरोप से इनकार किया और विचारण की मांग की।

                                  हस्ताक्षर(X) CJM इलाहाबाद