Thursday, May 14

भारतीय संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्व है? प्रस्तावना में उल्लेखित आदर्शों एवं लक्ष्यों को किस प्रकार संविधान में साकार किया गया है?

सामान्यतया प्रत्येक संविधान में उसकी अपनी उद्देशिका होती है जिसमें उन उच्च कोटि के आदर्शों का समावेश किया जाता है जिनकी प्राप्ति के लिए संविधान के रचने की परिकल्पना की जाती है यही दृष्टिकोण भारतीय संविधान को रचने में भी अपनाया गया है।

       भारतीय संविधान की उद्देशिका में भी उच्च आदर्शों को लेखबद्ध किया गया है जिनकी स्थापना में संविधान को रचने पर संकल्प किया गया था।

 उद्देशिका के अनुसार – “ हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक राजनीतिक न्याय विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत 2006 विक्रमी को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं”

 उपर्युक्त उद्देश्य का अपने निम्नलिखित उद्देश्यों को प्रकट करती है

1. भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक समाजवादी पंथनिरपेक्ष गणराज्य बनाना है।

2. भारतीय जनता को निम्नलिखित अधिकार दिलाना है—
     A. सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय
     B. विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
     C. प्रतिष्ठा और अवसर की समानता
     D. व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता में बंधुत्व की भावना

इस प्रकार इस उद्देश्य का में संविधान के दर्शन की झलक मिलती है इसमें संविधान के उद्देश्य एवं महत्व को संक्षेप में दर्शित किया गया है देश का स्पष्ट शब्दों में कोशिश करती है कि संविधान के अधीन सभी  शक्तियों का स्रोत भारत के लोग हैं किसी बाहरी प्राधिकारी के प्रति कोई अधीनता नहीं है

 निम्नलिखित बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक पंथनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य है

1. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न-  भारत 15 अगस्त 1947 से किसी विदेशी नियंत्रण या बाहरी नियंत्रण से मुक्त बिल्कुल मुफ्त है और अपनी आंतरिक तथा विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करने के लिए पूर्ण रुप से स्वतंत्र है और इस प्रकार सेवा आंतरिक तथा बाहरी सभी मामलों में अपनी इच्छा अनुसार आचरण एवं व्यवहार करने के लिए पूर्ण स्वतंत्र है

2. लोकतंत्रात्मक-  अर्थात देश की प्रभुसत्ता अब भारत की जनता में निहित है और देश में जनता के लिए जनता की सरकार कायम है इस बात के सबूत में कहा जा सकता है कि प्रत्येक 5 वर्ष भारत में आम चुनाव होते हैं जिनमें जनता वयस्क मताधिकार के   आधार पर अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है जो राज्य तथा केंद्र में सरकार का संचालन करते हैं

3. पंथनिरपेक्ष-  पंथनिरपेक्ष राज्य का अर्थ होता है कि राज्य का अपना कोई विशेष धर्म नहीं है भारत में मौजूद सभी धर्मों को पूर्ण स्वतंत्रता एवं समानता प्राप्त भारतीय संविधान में इस बात को सुनिश्चित करने के लिए आयुक्त व्यवस्था की।

एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ 1994 सुप्रीम कोर्ट
 इस मामले में और निर्धारित किया गया कि पंथनिरपेक्ष संविधान का आधारभूत ढांचा है राज्य सभी धर्मों और धार्मिक समुदाय के साथ समान व्यवहार करता है धर्म व्यक्तिगत विश्वास की बात है उसे  लौकिक क्रियाओं से नहीं मिलाया जा सकता है।

 अरुण राय बनाम भारत संघ 2002 सुप्रीम कोर्ट
 के मामले में निर्मित किया गया कि पंथनिरपेक्षता का सकारात्मक अर्थ है जिसके अनुसार सभी धर्म का ज्ञान होना और उसके प्रति आदर का भाव और होना चाहिए तथा उनके प्रति आपस में आदर की भावना उत्पन्न करना है

4. समाजवादी-   समाजवाद की कोई सुनिश्चित परिभाषा नहीं है किंतु सर्वमान्य रूप से आर्थिक न्याय में समाजवाद की कल्पना की जाती है और समाजवादी सरकार देश के लोगों को सामाजिक आर्थिक क्रांति के द्वारा खुशहाल बनाने का प्रयत्न करती है जिसे पूरा करने के लिए वह उत्पादन के मुख्य साधनों पर नियंत्रण स्थापित करती है।

GS नकारा बनाम भारत संघ 1983 सुप्रीम कोर्ट
      इस बाद में और निर्धारित किया गया कि समाजवाद का अर्थ कमजोर वर्ग के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना है तथा उन्हें जन्म से मृत्यु तक की सुरक्षा प्रदान करना है।

5. गणराज्य-  गणराज्य से अभिप्रेत है कि राज्य के सर्वोच्च अधिकारी का पद वंशानुगत नहीं है बल्कि एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचन पर आधारित है इस दृष्टि से भारत और अमेरिका गणराज्य है क्योंकि इन दोनों देशों में सर्वोच्च अधिकारी का पद वंशानुगत नहीं है इन दोनों देशों में राष्ट्रपति जो कि सर्वोच्च अधिकारी होता है उसका निश्चित अवधि के लिए निर्वाचन किया जाता है।

उद्देशिका का महत्व और उपयोगिता

 उद्देशिका उन प्रयोजनों का संकेत करती है जिनके लिए लोगों ने संविधान स्थापित करने संविधान के उद्देश्य का एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है न्यायालय उद्देशिका में बताएगा संविधान के प्रयोजनों पर तभी विचार करते हैं जब उनके मस्तिष्क में यह संदेश हो जाएगी क्या इसके भाषण का संकेत निर्वाचन किया जाए या उधार यह प्रश्न तभी उठ सकता है जब भाषा ऐसी हो कि दोनों प्रकार के निर्वाचन संभव हो उद्देशिका में हमारे समाज का  आदर्श स्थापित किया गया है मूल अधिकार और निर्देशक तत्वों की परिधि को स्थापित करने के लिए उद्देश्य का का सहारा लिया जा सकता है क्योंकि अधिनियमित समाजवाद पंथनिरपेक्षता लोकतंत्र के आदर्शों को स्थूल रूप दिया गया है।

 इन री बेरुबारी यूनियन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस देश का संविधान का अंग नहीं है इस के नए रहने से संविधान के मूल उद्देश्य में अंतर नहीं पड़ता है

 किंतु केशवानंद भारती बनाम भारत राज्य के मामले में और निर्धारित किया गया कि उद्देशिका संविधान का अंग है तथा यह भी कहा गया कि वह देश का संविधान की आधारिक संरचना है संविधान सभा में भी सदन के सभापति ने कहा था कि उद्देशिका संविधान का अंग है
 क्या उद्देश्य काया प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है।

 यह प्रश्न सर्वप्रथम केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य 1973 के मामले में आया इस मामले में सरकार का तर्क था कि उद्देश्य का भी संविधान का एक भाग है इसलिए  अनुच्छेद 368 के अंतर्गत उसने भी संशोधन किया जा सकता है।

           अपीलार्थी का यह कहना था कि प्रस्तावना एवं संविधान की शक्ति पर व्यवस्थित प्रतिबंध है उसमें संविधान का मूलभूत ढांचा नहीं है जिसको संशोधित नहीं किया जा सकता क्योंकि उसमें से कुछ भी निकाल दिए जाने पर संवैधानिक ढांचे का गिर जाना निश्चित है न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया की उद्देशिका संविधान का एक भाग है और इस भाग में जो मूल ढांचे से संबंधित है संशोधन नहीं किया जा सकता।

   42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य शब्दावली जोड़ी गई इस संशोधन द्वारा केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के प्रभाव को दूर करने का प्रयास किया गया।

    मिनरवा मिल्स बनाम भारत संघ 1980 सुप्रीम कोर्ट
 के मामले में 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में किए गए संशोधन को वैध करार दिया गया क्योंकि संविधान के आधारिक संरचना में परिवर्तन नहीं होता है।

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