Thursday, May 14

भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है किंतु उसका सार एकात्मक है इस कथन पर टिप्पणी कीजिए?

संविधान की प्रकृति

 संघात्मक या एकात्मक--   संविधान की प्रस्तावना संविधान को दो भागों में विभक्त किया है
 संघात्मक तथा एकात्मक

 एकात्मक संविधान और संविधान है जिसके अंतर्गत सारी शक्तियां एक ही सरकार में निहित होती है जो प्रायः केंद्रीय सरकार होती हैं प्रांतों को केंद्रीय सरकार के अधीन रहना पड़ता है इसके विपरीत संघात्मक संविधान वह संविधान है जिसमें शक्तियों का केंद्र और राज्यों के बीच विभाजन रहता है और दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।

     भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है यह संविधान विशेषज्ञों के बीच विवाद का विषय रहा है कुछ विद्वानों का मत है कि भारतीय संविधान एकात्मक है केवल उसमें कुछ संघीय लक्षण विद्यमान हैं।

 प्रोफेसर के सी व्हीयर  के अनुसार “  भारतीय संविधान एक अर्ध संघीय संविधान है”  अर्थात एकात्मक राज्य जिसमे संघात्मक तत्व सहायक रूप में न की संघात्मक राज्य जिसमे एकात्मक तत्व सहायक कहे जा सकते हैं जेनिंग्स ने इस संविधान को एक ऐसा शब्द जिसमें केंद्रीयकरण की सशक्त प्रवृत्ति है कहा है कोई संविधान संघात्मक है या नहीं इसके लिए हमें यह जानना चाहिए कि उसके आवश्यक तत्व क्या है एक संविधान को संघात्मक कहलाने के लिए उसमें निम्नलिखित तत्वों का होना आवश्यक है-

1. शक्तियों का विभाजन
2. संविधान की  सर्वोपरिता
3. लिखित संविधान
4. संविधान की परिवर्तनशीलता
5. न्यायालय का प्राधिकार

             संघात्मक संविधान के उपर्युक्त वर्णित सभी आवश्यक तत्व भारतीय संविधान में विद्यमान है यह दोहरी राज्य शासन पद्धति की स्थापना करता है केंद्र और राज्य सरकार केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन है प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में सर्वोपरि है।

 भारतीय संविधान एक लिखित संविधान है और देश की सर्वोच्च विधि है।

 संविधान के प्रबंध जो संघीय व्यवस्था के संबंध रखते हैं उनमें राज्य सरकारों की सहमति के बिना परिवर्तन नहीं किया जा सकता है संविधान के सर्वोपरिता संविधान के निर्वचन और उसके संरक्षण के लिए एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना की गई है।

         भारतीय संविधान में संघात्मक संविधान के साथी एकात्मक संविधान के निम्नलिखित लक्षण पाए जाते हैं-

1. राज्यसभा के दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव पर संसद राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण करके राज्य सूची में वर्णित विषयों पर भी कानून बना सकती है संसद द्वारा निर्मित ऐसा कानून 1 वर्ष तक लागू रह सकता है और राज्यसभा द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव पर 1 वर्ष की अवधि में वृद्धि की जा सकती है।

2. राष्ट्रपति राज्य में वित्तीय आपात की घोषणा करके राज्य की वित्तीय शक्तियों को नियंत्रित कर सकता है।

3. केंद्रीय सरकार कुछ मामले के संबंध में राज्यों को प्रशासनिक निर्देश देने की शक्ति प्रदान की गई है और यह निर्देश राज्यों पर बाध्यकारी है।

4. संसद राज्यों की सीमा नाम तथा क्षेत्र में परिवर्तन कर सकती है।

5. राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी हैं।

6. राज्यपाल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयक को राष्ट्रपति के अनुमति के लिए अंगरक्षक कर सकता है।

7. केंद्र अखिल भारतीय सेवाओं के माध्यम से राज्य के प्रशासन पर नियंत्रण रख सकता है।

    अतः स्पष्ट है कि भारतीय संघात्मक व्यवस्था एक परिवर्तनशील व्यवस्था है और आवश्यकता अनुसार विकास मुक्त तथा संघात्मक दोनों का रूप धारण कर सकता है सामान्यतः इसका रूप संघात्मक बना रहता है किंतु संकट काल में राष्ट्रीय एकता एवं सुरक्षा के दृष्टिकोण से ऐसे उपबंधों का समावेश किया गया है जो एक संघात्मक ढांचे को एकात्मक ढांचे में परिवर्तित कर देते हैं

 एस आर बोम्मई बनाम भारत संघ 1994 सुप्रीम कोर्ट
 के मामले में बहुमत का अभिमत है कि भारतीय संविधान एक संघात्मक संविधान है और संघवाद भारतीय संविधान का आधारभूत ढांचा है भारतीय संविधान में संघवाद की सिद्धांत प्रबंध की प्रबलता है और इसका किसी तरह से निराश नहीं हुआ है किंतु इस तथ्य के होते हुए भी कि संविधान में ऐसे उपबंध है जिसके अधीन केंद्र को राज्यों पर  अविवादित शक्ति प्रदान की गई है फिर भी हमारा संविधान संघात्मक है।

    स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में संघात्मक तथा एकात्मक संविधान दोनों के लक्षण पाए जाते हैं और इसे अर्ध संघीय संविधान कहा जाता है ।

डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के अनुसार “ भारत का संविधान परिस्थितियों के मांग के अनुसार एकात्मक तथा संघात्मक दोनों हो सकता है”।

 के सी व्हीयर  के अनुसार” भारत का संविधान अर्ध संघीय है जबकि

 ऑस्टिन के अनुसार” सहकारी संघीय संविधान है”

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