Saturday, May 16

आपराधिक मामलों में अपील

अपील दायर करना—वस्तुतः अपील एक परिवाद होता है जो निचले न्यायालयों द्वारा किए गए विनिश्चयों के विरुद्ध ऊपरी न्यायालय में दायर किया जाता है तथा उच्चतर न्यायालय से यह निवेदन किया जाता है की वह निचले न्यायालय के विनिश्चय को ठीक कर दे अथवा उलट दे। इस प्रकार अपील सदैव अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध किसी उच्चतर न्यायालय में की जाती है।

    धारा 372 में प्रयुक्त पदावली इस बात पर बल देती है कि जब तक अन्यथा उपबंधित ना हो तब तक कोई भी अपील दायर नहीं की जा सकेगी।

    परंतु पीड़ित को न्यायालय द्वारा पारित अभियुक्त को दोष मुक्त करने वाले या कम अपराध के लिए दोषसिद्ध करने वाले या अपर्याप्त प्रतिकर अधिरोपित करने वाले आदेश के विरुद्ध अपील का अधिकार होगा और ऐसी अपील उस न्यायालय में होगी जिसमें ऐसे न्यायालय की दोषसिद्ध के आदेश के विरुद्ध मामूली तौर पर अपील की जाती है।

      उक्त उपबंध से स्पष्ट होता है कि अपील संबंधी अधिकार ना तो मौलिक अधिकार हैं और ना ही अंतर्निहित अधिकार है अपितु एक ऐसा अधिकार है जो संविधि द्वारा प्रदत्त किया जाता है।

दुर्गा शंकर मेहता बनाम रघुराज सिंह 1954 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्णय दिया गया कि किसी निर्णय  के विरुद्ध अपील करने संबंधी अंतर्निहित अधिकार प्राप्त नहीं है ऐसे अधिकार का उपयोग तभी किया जा सकता है जब उसे उक्त अधिकार संविधि द्वारा प्रदान किया गया है।

अकालू आहिर बनाम रामदेव 1973 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि अपील एक सहज अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता है यह केवल कानून द्वारा ही सृजित होता है।

      अतः यह स्पष्ट है कि अपील का अधिकार केवल तभी उत्पन्न होता है जब ऐसा अधिकार संविधि द्वारा सृजित किया गया हो।

        संविधान के अनुच्छेद 132(1) , 134(1) तथा 136(1) में भी आपराधिक मामलों में अपील संबंधी प्रावधान किया गया है अनुच्छेद 136 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट अपने विवेकानुसार आपराधिक मामलों में विशेष अनुमति प्रदान कर सकता है।

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