Saturday, May 16

दंड प्रक्रिया संहिता अपील का प्रतिषेध

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 375 एवं 376 में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जो अपील का प्रतिषेध करती है। कि जो व्यक्ति स्वयं अपने आप को दोषी होना स्वीकार करता है उसे ऐसे दोषसिद्धी से व्यथित व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है इसके अनुसार जहां अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है और ऐसे अभिवचन पर वह दोष सिद्ध किया जाता है वहां—

A. यदि दोष सिद्ध अन्य न्यायालय द्वारा की गई है तो कोई अपील नहीं होगी।
B. यदि दोषसिद्धी सेशन न्यायालय, महानगर मजिस्ट्रेट,  प्रथम वर्ग या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा की गई है तो अपील दंड के परिणाम या उसकी वैधता के बारे में ही हो सकेगी।

       धारा 376 में निम्नलिखित ऐसे मामलों का उल्लेख है जिनके लिए अपील नहीं हो सकती—

1. उच्च न्यायालय द्वारा पारित 6 माह से अधिक की अवधि का कारावास या ₹1000 जुर्माना अथवा दोनों का दंड आदेश दिया गया हो।
2. सेशन न्यायालय या महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 3 माह से अनधिक के अवधि का कारावास का या ₹200 जुर्माना या दोनों का दंड आदेश।
3. प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा पारित केवल ₹100 से अनधिक का जुर्माने का दंड आदेश।
4. संक्षिप्त विचारण में किसी मामले में धारा 260 के अंतर्गत कार्य करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट द्वारा पारित केवल ₹200 से अनधिक जुर्माने का दंड आदेश।

         धारा 376 के परंतु में यह उल्लिखित किया गया है कि ऐसे किसी दंड आदेश के साथ कोई अन्य दंड संयोजित किया गया है तो उस दंड आदेश के विरुद्ध अपील हो सकती है किंतु अन्य दंड संयोजित किए जाने के अंतर्गत निम्नलिखित नहीं आता अर्थात—

A. दोषसिद्ध व्यक्ति को परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने का आदेश।
B. जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर कारावास का दंड आदेश।
C. उस मामले में जिसमें जुर्माने का एक से अधिक दंड आदेश पारित किया गया है और जुर्माने की कुल रकम उस मामले के लिए उपबंधित रकम से अधिक नहीं है।
मध्य प्रदेश राज्य बनाम वाहिद खान 1954 भोपाल के मामले में निर्धारित किया गया कि जहां द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट जिससे प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए प्राधिकृत किया गया हो किसी मामले में ₹50 से जुर्माने का दंड आदेश पारित करता है वहां ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकेगी।

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