Saturday, May 16

आपराधिक प्रक्रिया विधि में सौदा अभिवाक तथा इससे संबंधित प्रक्रिया का संक्षेप

सौदा अभिवाक का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम 2006 द्वारा जोड़ा गया है। जो अध्याय 21A की धारा 265A से 265L तक में वर्णित है। सौदा अभिवाक जो अमेरिकी आपराधिक शास्त्र की अवधारणा पर आधारित है के दो उद्देश्य है—

1. अपेक्षाकृत समनीय मामलों पर न्यायालय का समय बर्बाद ना कर के मामलों का यथाशीघ्र निस्तारण करना ताकि न्यायालय में लंबित मामलों की सूची को कम किया जा सके।

2. परिवादी पीड़ित पक्ष को यथोचित आर्थिक लाभ अभियुक्त से दिला कर उसके जीवन को सामान्य स्थिति में लाया जा सके।

    धारा 265A के अनुसार सौदा अभिवाक निम्न परिस्थितियों में लागू नहीं होता है—

1. मृत्युदंड, आजीवन कारावास या 7 वर्ष से अधिक के अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध।
2. ऐसा अपराध जो देश की सामाजिक आर्थिक दशा को प्रभावित करता है।
3. जो किसी महिला एवं 14 वर्ष से कम उम्र के बालक के विरुद्ध किया गया अपराध है।

सौदा अभिवाक़ के लिए आवेदन-

        धारा 265B के अनुसार किसी अपराध का अभियुक्त व्यक्ति सौदा अभिवाक के लिए उस न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकेगा जिसमें ऐसे अपराध का विचारण लंबित है।

        न्यायालय में किए गए आवेदन में उस मामले का संक्षिप्त रूप से वर्णन किया जाएगा जिस के संबंध में आवेदन किया जा रहा है तथा उस अपराध का वर्णन भी होगा जिससे वह मामला संबंधित है और उसके साथ अभियुक्त का एक शपथ पत्र होगा जिसमें यह उल्लिखित होगा कि उसने विधि के अधीन उस अपराध के लिए उपबंधित दंड की प्रकृति एवं सीमा को समझने के पश्चात स्वेच्छया  से सौदा अभिवाक का  आवेदन किया है तथा उसे किसी न्यायालय द्वारा इससे पूर्व उस अपराध से आरोपित किसी मामले के लिए दोषसिद्ध नहीं ठहराया गया है।

            उपर्युक्त आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय यथास्थिति लोक अभियोजक या परिवादी को और साथ ही अभियुक्त को मामले में नियत तारीख पर हाजिर होने के लिए सूचना देगा तथा निश्चित तारीख पर उपस्थित होने पर अपना समाधान करने के लिए कि अभियुक्त ने आवेदन स्वेच्छया से किया गया है अभियुक्त की बंद कमरे में परीक्षा करेगा जहां मामले का दूसरा पक्षकार उपस्थित नहीं होगा और जहां—

1. न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि वह आवेदन अभियुक्त द्वारा स्वेच्छया से प्रस्तुत किया गया है वहां वह यथास्थिति लोक अभियोजक या परिवादी और अभियुक्त को मामले के पारस्परिक संतोषप्रद व्ययन के लिए समय देगा जिसमें अभियुक्त द्वारा पीड़ित व्यक्ति को प्रतिकर एवं अन्य खर्च देना सम्मिलित है और इसके बाद आगे की सुनवाई के लिए तिथि नियत करेगा तथा यथा स्थिति मामले का परिवादी या अभियुक्त ऐसी इच्छा करें तो वह उस मामले में लगाए गए अपने अधिवक्ता के साथ उस बैठक में भाग ले सकता है।

2. धारा 265D के अनुसार जहां धारा 256C के अंतर्गत बैठक में मामले का कोई संतोषप्रद निपटान तैयार किया गया है वहां न्यायालय ऐसी रिपोर्ट तैयार करेगा जिस पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी तथा अन्य सभी व्यक्तियों के हस्ताक्षर होंगे जिन्होंने बैठक में भाग लिया था और यदि ऐसा निपटान तैयार नहीं किया जा सकता तो न्यायालय ऐसा कारण लेखबद्ध करेगा इस संहिता के उपबंध के अनुसार उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही करेगा जहां से उस मामले में सौदा  अभिवाक का आवेदन प्रस्तुत किया गया है।

         धारा 265C के अनुसार यदि न्यायालय का संतोषप्रद निपटान तैयार करता है तथा धारा 360 या अपराधी परीविक्षा अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही नहीं करता है तब न्यायालय अभियुक्त द्वारा किए गए अपराध के लिए विधि में न्यूनतम दंड उपबंधित है तो वह अभियुक्त को ऐसे न्यूनतम दंड के आधे का दंड दे सकेगा तथा अपराध के लिए उपबंधित या बढ़ाए जा सकने वाले दंड का एक चौथाई दंड दे सकता है।

           न्यायालय ऐसा निर्णय खुले न्यायालय में देगा और उस पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर होंगे। अभियुक्त द्वारा भोगी गई कारावास की अवधि को इस अध्याय के अधीन अधिरोपित कारावास के दंड आदेश के विरुद्ध मुजरा किए जाने को धारा 428 के उपबंध उसी रूप से लागू होंगे जैसे कि वह इस संहिता के  किन्हीं अन्य उपबंध के अधीन कारावास के संबंध में लागू होते हैं।

          धारा 265G के अनुसार उपर्युक्त प्रकार से दिया गया निर्णय अंतिम होगा और उससे कोई अपील संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन विशेष इजाजत याचिका और अनुच्छेद 226 व 227 के अधीन रिट याचिका के सिवाय ऐसे निर्णय के विरुद्ध किसी न्यायालय में नहीं होगी।

          धारा 265L के अनुसार इस अध्याय की कोई बात किशोर न्याय बालकों की देखभाल एवं संरक्षण अधिनियम की धारा 2K में परिभाषित किसी किशोर या बालक को लागू नहीं होगी।

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