Wednesday, May 20

पृथक्करणीयत्ता के सिद्धांत

संविधान के अनुच्छेद 13 खंड 1 के अनुसार संविधान लागू होने के ठीक पहले भारत में प्रचलित विधियां उस मात्रा तक सुनने हैं जहां तक वह मूल अधिकारों से असंगत है अनुच्छेद 13 खंड 2 के अनुसार राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो मूल अधिकारों को छीनती एवं न्यून करती है  और मूल अधिकारों के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की सीमा तक शून्य होगी।

        अनुच्छेद 13 के उपखंड 1 में प्रयुक्त वाक्यांश ऐसी असंगत की सीमा तक और खंड-2 में प्रयुक्त वाक्य उल्लंघन की सीमा तक से विधानमंडल का यह आशा प्रकट होता है कि मूल अधिकारों से असंगत है उनका उल्लंघन करने वाली संविधान पूर्व  विधि या संविधानोत्तर विधि के वही बाद अवैध होंगे जो मूल अधिकारों से असंगत हो या उनका उल्लंघन करते हो संपूर्ण विधि अवैध नहीं होंगे।

                इस व्याख्या के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने पृथक्करण का सिद्धांत प्रतिपादित किया है इस व्याख्या के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने पृथक्करण का सिद्धांत प्रतिपादित किया है जिसका अर्थ यह है कि विधानमंडल के हादसे को विफल किए बिना या पूरे अधिनियम के मूल उद्देश्य समाप्त किए बिना अलग किया जा सकता है तो केवल मूल अधिकारों से असंगत बातें के भाग को ही अवैध घोषित किया जाएगा पूरे अधिनियम को नहीं।

  ए के गोपालन बनाम मद्रास राज्य 1950 सुप्रीम कोर्ट के मामले में  उच्चतम न्यायालय ने निवारक निरोध अधिनियम की धारा 14 को असंवैधानिक घोषित किया था और कहा था कि अधिनियम से अलग कर देने से अधिनियम की प्रकृति संरचना या उद्देश्य में कोई परिवर्तन नहीं होता है और धारा 14 के अवैध घोषित कर देने से शेष अधिनियम की वैधता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

 मुंबई राज्य बनाम बाल जरा 1951 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट मुंबई प्रांत के मद्य निषेध अधिनियम 1949 के केवल कुछ  उपबंधों को असंवैधानिक घोषित किया था और शेष अधिनियम वैध बना रहा
 किंतु यदि अधिनियम का अवैध भाग  उसके वैध भाग से इस प्रकार से जुड़ा हो कि अवैध भाग को अलग करने पर अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाता है तो न्यायालय पुरे अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर देगा।

 आर एम डी सी बनाम भारत संघ  1957 सुप्रीम कोर्ट के मामले में और निर्धारित किया गया है कि जहां अवैध हंस के निकाल देने के पश्चात जो शेष बचता है वह एक संपूर्ण अधिनियम बना रहता है तो पूरे अधिनियम को अमान्य घोषित करने की आवश्यकता नहीं है।


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