भारत के संविधान में मूल अधिकार ना केवल व्यक्तिगत हित के लिए बल्कि लोक नृत्य के लिए उपबंधित किए गए हैं इसलिए मूल अधिकारों के अभी त्याग का सिद्धांत भारत में लागू नहीं होता है अतः कोई भी अपराधी अपने संवैधानिक अधिकारों को त्याग कर दोषी बनने के लिए स्वतंत्र नहीं है।
बहराम खुर्शीद बनाम मुंबई राज्य 1955 सुप्रीम कोर्ट
के मामले में निर्धारित किया गया कि मूल अधिकार केवल व्यक्तिगत हित के नहीं बल्कि लोक नीति के आधार पर साधारण जनता के लिए संविधान में उपबंधित किए गए हैं अतः कोई भी व्यक्ति अपने मूल अधिकार का स्वेच्छा से त्याग नहीं कर सकता है।
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