Wednesday, May 20

भारत राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण

  प्रत्येक व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए इसी से मानवता का सही मूल्यांकन होता है भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में समानता का अधिकार प्रदान किया गया है इसके अनुसार भारतीय राज्य क्षेत्र में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता एवं विधि के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है इस प्रकार अनुच्छेद 14 व्यक्तियों को दो अधिकार प्रदान करता है-
1. विधि के समक्ष सब को बराबर  समझना चाहिए
2. सभी व्यक्तियों को विधि का समान संरक्षण मिलना चाहिए

1. विधि के समक्ष समता-  जेनिंग्स के अनुसार समान परिस्थितियों में रहने पर समान विधि समान रूप से लागू की जानी चाहिए किसी वेद को लागू करने समय धर्म जाति लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए विधि के समक्ष समता के विधि का  शासन नहीं था।

2. विधि का समान संरक्षण-  इस अधिकार का तात्पर्य है एक ही परिस्थिति में रहने वाले व्यक्तियों पर एक ही प्रकार का कानून लागू होना चाहिए प्रोफेसर डायसी के अनुसार विधि का समान संरक्षण वाक्यांश समानता का स्वीकारात्मक रूप है जिसका तात्पर्य है समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना तथा समान कानूनों को लागू करता है।

               इस प्रकार स्पष्ट है कि विधि के समक्ष सविता भाभी के समान संरक्षण में एक ही उद्देश्य निहित है वह है  समान न्याय।

 पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनवर अली 1952 सुप्रीम कोर्ट

 के मामले में कहा गया कि विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण का अधिकार एक ही है और समस्त व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है न्यायालय ने कहा कि विधियों का समान संरक्षण विधि के समक्ष समता का एक ही रूप सिद्धांत है क्योंकि उन परिस्थितियों को कल्पना करना कठिन है क्योंकि जब विधियों के समान संरक्षण को इनकार कर के विधि के समक्ष समता के अधिकार को कायम रखा जा सकता है।

 डी एस नकारा बनाम भारत संघ 1983 सुप्रीम कोर्ट
 अनुच्छेद 14 का क्रियाशील विस्तार है और यह मनमानेपन के विरुद्ध संरक्षण है क्षमता एक गतिशील धारणा है जिसके अनेक रूप और आजा मैं युक्तयुक्तता का सिद्धांत एक आवश्यक तत्व है जो अनुच्छेद 14 में विद्यमान है।

 अनुच्छेद 14 वर्गीकरण की अनुमति देता है किंतु वर्ग विधान का निषेध करता है—
               अनुच्छेद 14 के 1 वर्ग विधान का निषेध करता है किंतु विधान के प्रयोजनों के लिए युक्तियुक्त वर्गीकरण की अनुमति देता है शर्त यह है कि वर्गीकरण मनमाना एवं भ्रामक ना हो बल्कि युक्तियुक्त आधारों पर आधारित हो।

               इससे स्पष्ट है कि अनुच्छेद 14 राज्य द्वारा व्यक्तियों का वस्तुओं में वर्गीकरण की शक्ति पर केवल एक ही निर्बंधन लगाता है और वह यह है कि वर्गीकरण अयुक्तियुक्त और मन माने ना होना  चाहिए।

 वर्गीकरण के युक्तियुक्त होने के लिए निम्नलिखित दो शर्ते हैं-
1. वर्गीकरण एक बोधगम्य अंतरिक्ष पर आधारित होना चाहिए जो 1 वर्ग में शामिल किए गए व्यक्तियों तथा वस्तुओं और उनके बाहर रहने वाले व्यक्तियों तथा वस्तुओं में विभेद करता हो।
2. आंतरिक का उस उद्देश्य तर्कसंगत संबंध हो जिसे प्रश्नगत अधिनियम बनाकर मंत्रिमंडल प्राप्त करना चाहता है।

                   ऐसा मत उच्चतम न्यायालय ने थीमअप्पा बनाम चेयरमैन सेंट्रल बोर्ड ऑफ SBI 2001 के मामले में व्यक्त किया है सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 14 युक्तियुक्त वर्गीकरण का प्रतिषेध नहीं करता है वरन इसकी अनुमति देता है किंतु वर्गीकरण के युक्तियुक्त होने के लिए उसे उपर्युक्त विहित दो कसौटियों के अनुसार किया जा सकता है।

       ई पी  रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य 1974 सुप्रीम कोर्ट  के मामले में परिस्थिति से प्रतिक्रिया करते हुए उच्चतम न्यायालय ने क्षमता की पारस्परिक धारणा को जो  युक्तियुक्त वर्गीकरण के सिद्धांत पर आधारित है  माननीय से अस्वीकार कर दिया और कहा कि समता एक गतिशील धारणा है जिसके अनेक रूप और आयाम है जिसे परंपरागत तथा सिद्धांत वाद की सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता है युक्तियुक्तता का सिद्धांत क्षमता के सिद्धांत का आवश्यक तत्व है जो अनुच्छेद 14 में सर्वदा विद्यमान रहता है वस्तुतः  समता और मनमाना पर एक दूसरे के शत्रु हैं जहां कोई कार्य  मनमाना किया जाएगा वहां असमानता अवश्य होगी और अनुच्छेद 14 का अतिक्रमण अवश्य होगा।

 मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उपरोक्त मत का आयोजन किया गया तथा और निर्धारित किया गया कि क्षमता एक गतिशील अवधारणा है जिससे अनेक रुप आयाम हैं इसे परंपरागत एवं सिद्धांत वाद की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता उनसे 14 राज्य की कार्यवाहियों मैं मनमानेपन को वर्जित करता है और समान व्यवहार को सुनिश्चित करता है।

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