Saturday, May 16

पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित मामलों के विचारण में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित वारंट मामले में निम्न प्रक्रिया अपनाई जाती है—

1. अभियोजन का साक्ष्य- धारा 244 के अंतर्गत जब पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधारों पर संस्थित वारंट मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अभियोग को सुनने और ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाए।

       यदि अभियोजन पक्ष साक्षियों को न्यायालय में हाजिर होने या कोई दस्तावेज पेश करने हेतु आवेदन देता है तो मजिस्ट्रेट समन जारी कर सकता है।

2. उन्मोचन—(Discharge)— अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य पर विचार करने के बाद यदि मजिस्ट्रेट का यह विचार है कि अभियुक्त के विरुद्ध कोई मामला नहीं बनता तो वह धारा 245 के तहत उन्मोचित कर देगा तथा उन्मोचन के अपने कारण को लेखबद्ध करेगा।

3. जब अभियुक्त को उन्मोचित नहीं किया जाता—धारा 246 के अनुसार जब अभियुक्त धारा 245 के अंतर्गत उन्मोचित नहीं किया जाता है और मजिस्ट्रेट की ऐसी उपधारणा करने की राय है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है तो अभियुक्त के विरुद्ध लिखित रूप में आरोप विरचित करेगा।

       वह आरोप अभियुक्त को पढ़ कर सुनाया और समझाया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवाक करता है या प्रतिरक्षा करना चाहता है।

          यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट दोषी होने के अभिवाक को अभिलिखित करेगा और स्वविवेकानुसार दोष सिद्ध कर सकेगा यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवाक नहीं करता या विचारण किए जाने का दावा करता है तब मजिस्ट्रेट साक्ष्य की तिथि नियत करें और अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्षियों का प्रतिपरीक्षा का अभियुक्त को अवसर देगा। यदि अभियुक्त चाहता है कि उन साक्षियों में से किसी को  पुनः बुलाए जाए तो न्यायालय ऐसे साक्षी को बुला सकता है।

      अभियोजन साक्ष्य समाप्त होने के बाद तथा प्रतिरक्षा के पूर्व मजिस्ट्रेट धारा 313 के अंतर्गत अभियुक्त की परीक्षा करेगा तथा यदि अभियुक्त प्रतिरक्षा में साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहता है तो धारा 247 के तहत उसके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य अभिलिखित किया जाएगा तथा यदि अभियुक्त किसी साक्षी को पेश करने हेतु समन जारी करने का आवेदन करता है तो न्यायालय उसे समन जारी करने का आदेश करेगा।

       अभियोजन तथा अभियुक्त का साक्ष्य समाप्त होने के बाद धारा 314 के अंतर्गत अभियोजन तथा अभियुक्त के बयान को सुना जाएगा।

            उपरोक्त बहस सुने जाने के पश्चात यदि मजिस्ट्रेट की राय है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो वह धारा 248 के तहत दोष मुक्त का आदेश देगा। इसके विपरीत यदि मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त दोषी है तथा मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 360 व 325 के अंतर्गत कार्यवाही नहीं की जा रही है तो मजिस्ट्रेट दंड के बिंदु पर अभियुक्त को सुनेगा और विधि अनुसार दंड आदेश पारित कर सकेगा।

4. परिवादी की अनुपस्थिति—जहां कार्यवाही परिवाद पर संस्थित की गई है और मामले की सुनवाई के लिए नियत तिथि पर वादी अनुपस्थित रहता है तथा मामला संज्ञेय नहीं है तथा उसका विधि पूर्वक उपशमन किया जा सकता है तो मजिस्ट्रेट आरोप विरचित किए जाने के पूर्व किसी भी समय धारा 249 के अंतर्गत अभियुक्त को कभी भी  उन्मोचित कर देगा।

मेजर जनरल ए एस गोराया बनाम एस एन ठाकुर 1986 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया है कि यदि परिवादी की अनुपस्थिति में परिवाद खारिज किया जाता है तो मजिस्ट्रेट को खारिज करने के अपने आदेश का पुनर्विलोकन करने की तथा मामले को पुनः स्थापित करने की अंतर्निहित शक्ति नहीं है।

No comments:

Post a Comment

If you have any query please contact me