Friday, May 15

विधिक प्रतिनिधि

विधिक प्रतिनिधि  धारा 2(11)
  विधिक प्रतिनिधि को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2  की उप धारा 11 में परिभाषित किया गया है इसके अनुसार विधिक प्रतिनिधि से वह व्यक्ति अभिप्रेत है जो मृत व्यक्ति के संपत्ति का विधि की दृष्टि से प्रतिनिधित्व करता है इसके अंतर्गत ऐसा व्यक्ति भी आता है जो मृतक की संपत्ति में दखलअंदाजी करता है और जहां कोई  पक्षकार प्रतिनिधि के रूप में वाद लाता है और जहां किसी प्रकार पर प्रतिनिधि के रूप में वाद लाया जाता है वहां वह व्यक्ति इसके अंतर्गत आता है जहां इस संपत्ति पर उस पक्षकार के मरने पर न्यायगत होती है जो इस प्रकार का वाद लाया है या जिस पर इस प्रकार का वाद लाया जाता है।
   उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि इसके अंतर्गत निम्नलिखित श्रेणी के व्यक्ति आते हैं-
1. वह व्यक्ति जो मृतक की संपत्ति का विधि की दृष्टि में प्रतिनिधित्व करता है
2. वह व्यक्ति जो मृत व्यक्ति की संपत्ति में दखलअंदाजी करता है।
3. वह व्यक्ति जो प्रतिनिधि के रूप में वाद लाने वाले या जिसके विरुद्ध प्रतिनिधि के रूप में वाद लाया गया है मेंं से किसी के मरने के पश्चात उस व्यक्ति का उत्तराधिकारी बनता है।

के शंकरअप्पा बनाम  के जी गंगाधरअप्पा 2001 कर्नाटक    के मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा वादग्रस्त संपत्ति में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्ति को वैध प्रतिनिधि माना गया है ऐसे व्यक्ति अजनबी नहीं कहे जा सकते इस मामले में मृतक द्वारा कुछ पर व्यक्तियों को वादग्रस्त संपत्ति का न्यासी नियुक्त किया गया था  अतः न्यासी के रूप में वादग्रस्त संपत्ति में हस्तक्षेप कर्ता होने के  कारण वैध  हकदार होगा।

कोई व्यक्ति अजनबी होते हुए भी अपने स्वयं के लिए स्वत्व  अर्थात स्वामित्व का दावा ना करते हुए मृतक की संपत्ति के वास्तविक कब्जे में है वैध प्रतिनिधि होता है परंतु अनाधिकृत प्रवेशकर्ता वैध प्रतिनिधि नहीं हो सकता।

आंध्र प्रदेश राज्य बनाम श्री निवासन 1962 सुप्रीम कोर्ट    के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने और निर्धारित किया की सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2 की उप धारा 11 में दी हुई विधिक प्रतिनिधि की परिभाषा में ऐसा वसीयतदार भी आएगा जिसको मृत व्यक्ति की संपत्ति अंशत: एक इच्छा पत्र के अंतर्गत प्राप्त होती है।

 अंतः कालीन लाभ धारा 2 (12)

   सिविल प्रक्रिया संहिता  1908 की धारा 2 की उपधारा 12 के अनुसार संपत्ति के अंतः कालीन लाभ से ऐसे लाभ पर ब्याज सहित व लाभ अभिप्रेत है जो जो संपत्ति पर सदोष कब्जा रखने वाले व्यक्ति को उससे वस्तुतः प्राप्त हुए हो या जिन्हें वह मामूली तत्परता से उससे प्राप्त कर सकता था किंतु कब्जा रखने वाले व्यक्ति द्वारा की गई अभिवृध्दियों के कारण हुए लाभ इसके अंतर्गत नहीं आते।

   अंतः कालीन लाभ से अभिप्राय अचल संपत्ति से प्राप्त होने वाले ब्याज सहित ऐसे लाभ से है जो सदोष कब्जाधारी कब्जे की अवधि में वस्तुतः प्राप्त करता है यह मामूली तत्परता से प्राप्त कर सकता है परंतु सदोष कब्जाधारी द्वारा की गई अभिवृद्धि यों के फलस्वरूप जो लाभ होता है उसे अंतः कालीन लाभ में नहीं सम्मिलित किया जा सकेगा।
    उदाहरण के लिए  क कि एक बीघा भूमि पर सदोष कब्जा प्राप्त कर लेता है तथा सदोष कब्जे की अवधि में ₹10000 लाभ प्राप्त करता है यह ₹10000 की रकम तथा उस पर ब्याज अंतः कालीन लाभ होगा परंतु ख  द्वारा किए गए सुधार के फलस्वरूप उसकी अतिरिक्त आय होती है तो ऐसी आय को अंतः कालीन लाभ में सम्मिलित नहीं किया  जाएगा

 कामाख्या सिंह बनाम  मॉडना इंडिया 2008 कोलकाता के मामले में कोलकाता उच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि मध्यवर्ती लाभ की प्रकृति क्षतिपूर्ति जैसी है किरायेदार द्वारा किराएदारी की समाप्ति पर भवन स्वामी क्षतिपूर्ति का दावा करता है वह मध्यवर्ती लाभ है।

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