कुशल एवं शीघ्र न्याय के लिए न्यायालयों को विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया गया है और प्रत्येक न्यायालय को अलग-अलग क्षेत्राधिकार प्रदत्त किया गया है क्षेत्र अधिकार से तात्पर्य उस शक्ति से है जो न्यायालय को वादों अपीलों एवं आवेदनों को ग्रहण करने के लिए प्राप्त होती है
क्षेत्राधिकार निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
1. विषय वस्तु संबंधी क्षेत्राधिकार- न्यायालयों को सभी विषय वस्तु संबंधी मामलों की सुनवाई का अधिकार नहीं होता जैसे लघुवाद न्यायालय जेसीसी को अचल संपत्ति के विभाजन संबंधी वाद संविदा के विनिर्दिष्ट पालन संबंधी वाद के सुनवाई का अधिकार नहीं होता है बल्कि इन्हें वचन पत्र किरायेदारी आदि से संबंधित वाद सुनने का अधिकार होता है इसी प्रकार वसीयत संबंधी प्रोबेट विषय वाद संरक्षकता संबंधी वाद सुनने का क्षेत्राधिकार जिला जज के न्यायालय को प्राप्त है।
2. स्थानीय क्षेत्राधिकार—न्यायालय की सीमा सरकार द्वारा निश्चित होती है सामान्यतया एक जिला न्यायालय को जिले के अंतर्गत ही क्षेत्र अधिकार प्राप्त होता है इसी प्रकार सिविल जज का क्षेत्राधिकार भी एक निश्चित सीमा तक होता है।
3. आर्थिक क्षेत्राधिकार— आर्थिक क्षेत्राधिकार विभिन्न राज्यों के भिन्न-भिन्न हो सकती है उत्तर प्रदेश में सिविल जज जूनियर डिवीजन की धन संबंधी अधिकारिता ₹ 5 लाख तक तथा इसके ऊपर सिविल जज वरिष्ठ श्रेणी सीनियर डिवीजन को प्राप्त है।
4. प्रारंभिक एवं अपीलीय अधिकारिता—कुछ न्यायालयों को केवल आरंभिक क्षेत्राधिकार ही प्राप्त होता है जैसे सिविल जज का न्यायालय एवं लघुवाद का न्यायालय कुछ न्यायालयों को प्रारंभिक क्षेत्राधिकार के साथ-साथ अपीलीय शक्तियां भी प्राप्त की गई है जैसे जिला जज का न्यायालय
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