दंड प्रक्रिया संहिता में की धारा 2(A) में जमानतीय अपराध को परिभाषित किया गया है इसके अनुसार जमानतीय अपराध से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया है या तत् समय प्रचलित किसी विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है और अजमानतीय अपराध से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है।
अतः निम्नलिखित अपराध जमानतीय है-
A. प्रथम अनुसूची में जो जमानतीय अपराध के रूप में वर्णित है
B. तत् समय प्रचलित किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है
C. जो अजमानतीय अपराध नहीं है।
जमानत की दृष्टि से अपराध दो प्रकार के होते है।
जमानतीय और अजमानतीय
जमानत से सम्बन्धित उपबंध दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 33 में उपबंधित किये गए हैं। कोई अपराध जमानतीय है अथवा अजमानतीय यह दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रथम अनुसूची के कालम 5 में दिया गया है।
ज़मानत के सम्बंध में दण्ड प्रक्रिया संहिता में निम्नलिखित सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है-
1. जमानतीय अपराधों में जमानत की मांग साधिकार की जा सकती है।
2. अजमानतीय अपराध के मामले में जमानत न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
3. जहाँ कोई अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय है वहां मजिस्ट्रेट ज़मानत नहीं स्वीकार करेगा लेकिन यदि ऐसा अपराध किसी स्त्री द्वारा किया गया है तो जमानत स्वीकार करना न्यायालय के विवेक का विषय होंगा।
4. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के अंतर्गत उच्च न्यायालय तथा सेशन न्यायालय को जमानत स्वीकार करने के संबंध में व्यापक शक्ति प्राप्त प्रदान की गई है। चाहे ऐसा अपराध मृत्यु दंड या आजीवन कारावास से दंडनीय क्यों ना हो।
जमानतीय अपराध कारित करने वाला कोई भी अभियुक्त जब न्यायालय के समक्ष लाया जाये या हाजिर हो तो दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 436के अंतर्गत जमानत पर छोड़े जाने की मांग कर सकता है परंतु यदि अपराध अजमानतीय है तो जमानत की मांग अधिकार के रूप मे नही की जा सकती है बल्कि यह न्यायालय की विवेक की विषयवस्तु बनकर रह जाती है।
इसी संदर्भ में न्याय मूर्ति कृष्ण अय्यर ने मोतीराम वनाम मध्यप्रदेश राज्य1978 सु को के मामले में अवधारित किया कि बेल इज रूल एंड जेल इज ऐन एक्सेप्शन
जमानतीय एवं अजमानतीय अपराध में अंतर
1. जमानतीय अपराध में जमानत की मांग अभियुक्त धारा 436 के अंतर्गत साधिकार कर सकता है जबकि अजमानतीय अपराध में जमानत देना या न देना धारा 437 के अंतर्गत न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
2. जमानतीय अपराध सामान्य प्रकृति के होते हैं लेकिन अजमानतीय अपराध गंभीर प्रकृति के अपराध होते हैं।
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