Friday, May 15

परिवाद तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट में क्या अंतर है साक्ष्य के रूप में प्रथम सूचना रिपोर्ट का मूल्य है

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(D) के अनुसार परिवाद से तात्पर्य मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही किए जाने की दृष्टि से उसको मौखिक या लिखित रूप में दिया गया वह अभिकथन है जिससे यह स्पष्ट होता है कि किसी व्यक्ति ने चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, अपराध किया है किंतु इसके अंतर्गत पुलिस रिपोर्ट नहीं आती है।

       धारा के साथ जुड़े स्पष्टीकरण के अनुसार ऐसे किसी मामले में जो अन्वेषण के पश्चात किसी असंज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट करता है पुलिस अधिकारी द्वारा की गई हो, परिवाद समझी जाएगी और वह पुलिस अधिकारी जिसके द्वारा ऐसी रिपोर्ट दी गई है परिवादी समझा जाएगा।

        दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत संज्ञेय अपराध के बारे में किसी व्यक्ति के द्वारा लिखित या मौखिक रूप से की गई वह सूचना जो पुलिस अधिकारी द्वारा अपने रजिस्टर में दर्ज कर ली जाती है प्रथम सूचना रिपोर्ट कहलाती है

परिवाद तथा प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंतर—

1. परिवाद संज्ञेय या असंज्ञेय दोनों प्रकार के अपराधों के संबंध में किया जा सकता है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट केवल संज्ञेय अपराध के संबंध में लिखवाई जा सकती है।
2. परिवाद मजिस्ट्रेट से किया जाता है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट उस थाने के भार साधक अधिकारी को लिखवाए जाती है जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार की सीमाओं में वह अपराध किया गया है
3. परिवाद की दशा में मजिस्ट्रेट की अनुज्ञा के बिना पुलिस अधिकारी अन्वेषण कार्य नहीं कर सकता जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के आधार पर ही पुलिस अधिकारी अन्वेषण कार्य प्रारंभ कर सकता है।
4. परिवाद दायर करते ही मजिस्ट्रेट को उस मामले में संज्ञान ले लेने की शक्ति प्राप्त हो जाती है जबकि प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखवाने से मजिस्ट्रेट को उस मामले का संज्ञान प्राप्त नहीं होता है।

       प्रथम सूचना रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण संपोषक साक्ष्य है इस पर अभियोजन के मामले का संपूर्ण ढांचा निर्मित होता है यह घटना का परम तात्कालिक और प्रथम वर्णन होता है तथा सत्य को सुनिश्चित करने में बहुत महत्व रखता है प्रथम सूचना रिपोर्ट में विलंब को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।

जगन्नाथ नारायण बनाम महाराष्ट्र 1995 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया है कि समय से अंकित कराई गई प्रथम सूचना रिपोर्ट अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे किसी को झूठा फंसाने का अवसर नहीं रह जाता है।

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मुनेश 2013 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभीनिर्धारित किया गया की प्रथम सूचना रिपोर्ट घटना के कारित होने की एक इत्तिला(सूचना) है इसमें घटना का संपूर्ण विवरण दिया जाना आवश्यक नहीं है।

अरविंद कुमार बनाम बिहार राज्य 1990 सुप्रीम कोर्ट के मामले में धारित किया गया की प्रथम सूचना रिपोर्ट स्वयं मौलिक साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नहीं होती क्योंकि प्रथम सूचना रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद पुलिस को अन्वेषण करना होता है इसका उपयोग केवल सूचना(इत्तिला) करने वाले व्यक्ति के कथनों के खंडन या अनुसमर्थन हेतु किया जा सकता है।

निसार अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1957 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अवधारित किया गया कि यदि सूचना अभियुक्त ने दी है तो उसको अभियोजन द्वारा साक्ष्य में पेश नहीं किया जा सकता तथा यह रिपोर्ट अभियुक्त की संस्वीकृति नही मानी जा सकती क्योंकि इससे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 का उल्लंघन होता है लेकिन यह रिपोर्ट भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8, 11, व 32 के अंतर्गत प्रयोग की जा सकती है।

          अतः स्पष्ट है कि यद्यपि प्रथम सूचना रिपोर्ट साक्ष्य का मूल भाग नहीं है फिर भी वह बहुत महत्वपूर्ण है जो अभिकथित अपराध की जांच करने के लिए पुलिस मशीनरी को गतिशील बना देती है।

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