आरोप अभियुक्त के विरुद्ध अपराध की जानकारी का ऐसा लिखित कथन होता है जिसमें आरोप के आधारों के साथ-साथ समय, स्थान, व्यक्ति एवं वस्तु का उल्लेख रहता है जिसके बारे में अपराध किया गया है।
धारा 2(B) के अनुसार यदि आरोप में एक से अधिक शीर्ष है, तो उसका कोई एक शीर्ष आता है।
आरोप का मुख्य उद्देश्य अभियुक्त पर अपराध का दोष लगाना है इसके आधार पर ही अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा में तर्क प्रस्तुत करता है सामान्यतया आरोप तभी लगाया जाता है जब न्यायालय या मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अभियुक्त के विरुद्ध मामला बनता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 211 से 224 तक में आरोप के संबंध में प्रावधान किया गया है आरोप में उन सभी बातों का जिनके आधार पर अभियुक्त पर आरोप लगाया जाता है उल्लेख किया जाना चाहिए। आरोप किसी व्यक्ति के विरुद्ध विशिष्ट अपराध का सही निरूपण किया जाना है जो कि उसके प्रकार को प्रारंभिक अवस्था पर जानने का हकदार है।
श्यामसुंदर बनाम राज्य 1969 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि आरोप आपराधिक कार्यवाही में एक आवश्यक कदम है आरोप तब विरचित किया जाता है जब किसी अपराध या अपराधों के बारे में प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
पुलिस रिपोर्ट 2(र) पुलिस रिपोर्ट से पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 173 खंड 2 के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट अभिप्रेत है किसी अपराध के संबंध में थाने पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज किए जाने पर पुलिस अधिकारी द्वारा अपराध का अन्वेषण किया जाता है पुलिस रिपोर्ट में अन्वेषण का निष्कर्ष निहित रहता है यह रिपोर्ट पुलिस अधिकारी संबंधित अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट के पास भेजता है जिसमें निम्नलिखित बातें होती है—
1. पक्षकारों का नाम
2. इत्तिला (सूचना) का स्वरूप
3. मामले की परिस्थितियों से परिचित होने वाले व्यक्तियों के नाम
4. क्या कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है यदि हां तो किसके द्वारा
5. क्या अभियुक्त गिरफ्तार कर लिया गया है
6. क्या हुआ बंध पत्र पर छोड़ दिया गया है यदि हां तो बंध पत्र प्रतिभूओं सहित है या रहित
7. क्या वह धारा 170 के अधीन अभिरक्षा में भेजा जा चुका है
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