Tuesday, May 26

हिन्दू कौन है या हिन्दू विधि किस पर लागू होती है



हिन्दू शब्द की उत्पत्ति

 परम्परागत विचार है कि हिन्दू शब्द कि उत्पत्ति सिन्धु शब्द से हुयी है | फारस निवासी और उसके पड़ोसी देश के लोग अक्षर “स“ का उच्चारण “ह” कहते थे | सिन्धु नदी के पूर्व बसे लोगो ने हिन्दू कहना प्रारम्भ किया और सिन्धु नदी के पूर्व मे स्थित भू-भाग को हिन्दुस्तान। धीरे-धीरे यह नाम समस्त भारत-वासियो के लिए उपयोग किया जाने लगा | समय बीतने पर बहुत सी गैर आर्य जातियाँ भी हिन्दू मे सम्मिलित कर ली गयी ।

हिन्दू कौन (Who is Hindu) – हिन्दू विधि जिन व्यक्तियों पर लागू होती है उन्हे हम तीन प्रमुख भागो मे बाँट सकते है -

1. वे व्यक्ति जो धर्म से हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिक्ख है, वे हिन्दू है।
2. वे व्यक्ति जो जन्म से हिन्दू हो।
3. वे व्यक्ति जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है।
हिन्दू विधि उन सभी व्यक्तियों पर लागू होती है जो धर्म से हिन्दू हो ।

आचरण द्वारा हिन्दू धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति धर्म से हिन्दू है | कट्टर हिन्दू धर्म के आचरण को छोड़ देने मात्र से या हिन्दू धर्म की निंदा करने से किसी व्यक्ति का हिन्दू होना समाप्त नही हो जाता है | अतः धर्म से हिन्दू का आशय ऐसे व्यक्ति से है जो हिन्दू धर्म के किसी रूप के शाखा या पंथ का अनुयायी है | इसमे सम्मिलित है – वीरशैव, लिंगायत, प्रार्थना-समाजी, ब्रह्म-समाजी, आर्य-समाजी तथा कबीरपंथी |

क्या स्वामी नारायण सम्प्रदाय हिन्दू है ?

यज्ञ पुरुष दास जी शास्त्री बनाम मूलदास AIR 1966 S.C. 1119 के वाद मे सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या स्वामी नारायण सम्प्रदाय के अनुयायी हिन्दू है और उनका हिन्दू मंदिर है | अर्थात क्या बम्बई हिन्दू मंदिर प्रवेश विधेयक के अन्तर्गत सत्संगियों के मंदिर मे हरिजन या शूद्र प्रवेश कर सकते है |

बम्बई उच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया था कि स्वामी नारायण मत के अनुयायी हिन्दू है और उनका मंदिर हिन्दू मंदिर है | इस निर्णय के विरुद्ध अपीलार्थीगण ने सर्वोच्च न्यायालय मे अपील की |
सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि स्वामी नारायण सम्प्रदाय हिन्दू धर्म से पृथक या भिन्न नहीं है और इस कारण उनका मंदिर, अधिनियम के परिधि के अन्तर्गत, हिन्दू मंदिर मे आता है |

सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश गजेन्द्र गडकर ने हिन्दू धर्म और दर्शन के मुख्य ग्रन्थो का हवाला देते हुए अपना विचार इस प्रकार व्यक्त किया – ‘’हिन्दू धर्म प्रवर्तकों और दार्शनिको द्वारा व्यक्त किए विचारो एवं सिद्धांतो और मान्यताओ की विभिन्नता के अतिरिक्त कुछ विचार सिद्धान्त और मान्यता कुछ ऐसी भी है जिन्हे सभी हिन्दू स्वीकार करते है | इस सिद्धान्त मे सर्वप्रथम यह है कि धार्मिक और दार्शनिक मामलो मे वेद सर्वोपरि है | इस सिद्धान्त को स्वीकार करने का अर्थ है कि हिन्दू धर्म की सभी व्यवस्थाएं और पद्धतियाँ अपने मूल सिद्धांत विचार और ज्ञान के भण्डार वेदों से ही प्राप्त करती है |’’

दूसरा, मूल सिद्धान्त यह है कि ब्रम्हाण्ड के महान चक्र मे उत्पत्ति पालन और विघटन के महान काल मे लोग पुनर्जन्म या पूर्वजन्म मे विश्वास करते है |

माननीय न्यायाधीश ने यह जानने के लिए कि स्वामी नारायण मत हिन्दू धर्मावलम्बियों की शाखा है कि नहीं, स्वामी मत के मूल सिद्धान्तो का अध्ययन किया, और निर्णय किया कि स्वामी नारायण सम्प्रदाय, हिन्दू धर्म की ही शाखा है और इसके मंदिर हिन्दू मंदिर ही है |
यह कहा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू धर्म का पालन करता है, हिन्दू धर्म का प्रचार करता है या हिन्दू धर्म पर आचरण करता है और हिन्दू धर्म मे आस्था रखता है वह हिन्दू है लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि जो हिन्दू धर्म का प्रचार या आचरण नही करता वह हिन्दू नहीं है | वह तब तक हिन्दू रहेगा जब तक वह धर्म परिवर्तन नहीं कर लेता | इस बात की पुष्टि विधि कौंसिल 1909 मे रानी भगवान कुँवर कौर बनाम जे. सी. बोस (1903) 31 कलकत्ता इस वाद मे यह निर्णय लिया गया है कि हिन्दू धर्म के मूल सिद्धान्तो से विमुख बना यह कट्टर हिन्दू धर्म के आचरण को छोड़ देने से या हिन्दू धर्म की निन्दा करने से कोई अहिन्दू नहीं हो जाएगा |

हिन्दू धर्म के सम्प्रदाय – कोई व्यक्ति हिन्दू के किसी पंथ सम्प्रदाय या हिन्दू धर्म की किसी शाखा का अनुयायी है तो उसे धर्मतः हिन्दू मानेंगे |

हिन्दू धर्म के आन्दोलन – अधिकांश रूप मे हिन्दू धर्म आन्दोलन कट्टर पंथी और रूढ़िवादिता के विरुद्ध विद्रोह है | इस सभी आन्दोलनों के प्रवर्तक हिन्दू धर्म के यथार्थतः पतन से उबारने का और यह हिन्दू धर्म के व्यस्थापन का दावा करते है | यही कारण है कि इस आन्दोलन के प्रवर्तक हिन्दू ही कहे जाते हैं|

जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिक्ख धर्म के अनुयायी – वर्तमान हिन्दू विधि मे स्थिति यह है कि संहिताबद्ध हिन्दू विधि, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिक्ख धर्म के अनुयायियों पर समान रूप से लागू होती है | यह कोई सामान्य नियम नहीं है क्योंकि व्यवहारतः एक दूसरे से भिन्न होते है |

संपरिवर्तन और प्रतिसंपरिवर्तन हिन्दू – धर्म परिवर्तन भी हिन्दू बनने का एक मार्ग है तथा धर्म परिवर्तन के अनुष्ठान द्वारा हिन्दू धर्म ग्रहण किया जाता है | यह अनुष्ठान उस जाति सम्प्रदाय या पंथ का होगा जिसमें धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति सम्मिलित होना चाहता है |

उदाहरण – यदि कोई व्यक्ति आर्य समाजी हिन्दू होना चाहता है तो उसे शुद्धि का अनुष्ठान करना पड़ेगा | संपरिवर्तन या प्रतिसंपरिवर्तन द्वारा हिन्दू बनने का एक और मार्ग है |

कोई व्यक्ति हिन्दू बनने की इच्छा व्यक्त करके हिन्दू की तरह जीवन व्यतीत करता है और जिस जाति, सम्प्रदाय और पंथ मे वह सम्मिलित हुआ है उसने उसे अपना सदस्य मान लिया है तो वह हिन्दू बन जाता है | ऐसी दशा मे किसी भी अनुष्ठान को पूरा करना या कोई शुद्धिकरण करना आवश्यक नहीं है | 

हिन्दू धर्म–शास्त्रो में हिन्दू धर्म मे संपरिवर्तन या प्रतिसंपरिवर्तन होने के लिए किसी भी अनुष्ठान का या संस्कार का उपबन्ध नहीं है |
पेरूमल बनाम पुन्नूस्वामी (1971) SC 2352 वाद मे सर्वोच्च न्यायालय ने संप्रेक्षित किया कि यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी व्यक्ति ने हिन्दू धर्म को स्वीकार कर लिया है और हिन्दूओ ने उसे अपना सदस्य मान लिया है, तो वह हिन्दू कहलायेगा, चाहे उसने धर्म परिवर्तन का कोई अनुष्ठान सम्पन्न न किया हो |

प्रतिसंपरिवर्तन के लिए भी कोई अनुष्ठान आवश्यक नही है और यह भी आवश्यक नही है कि वह पुनः उसी जाति, सम्प्रदाय, पंथ या वर्ण मे सम्मिलित हो, जिसे छोड़कर उसने दूसरे धर्म को स्वीकार कर लिया था |

उदाहरण – एक जैन जो संपरिवर्तन द्वारा ईसाई हो जाता है और फिर प्रतिसंपरिवर्तन द्वारा सिक्ख हो जाता है तो वह हिन्दू ही कहलायेगा |

गुंटूर मेडिकल कॉलेज बनाम मोहन राव (1976) SC 1904वाद मे एक हरिजन जो ईसाई हो गया था, पुनः हिन्दू हो गया | उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि - क्या वह और उसकी संतान पुनः उसी हरिजन जाति के सदस्य हो गए जिसके ईसाई होने के पूर्व थे ? न्यायालय ने कहा कि वह उसी जाति का हरिजन तब हो सकता है जबकि वह जाति उसे और उसकी संतान को अपना सदस्य स्वीकार कर ले |

घोषणा द्वारा हिन्दू –
मोहनदास बनाम देवासन बोर्ड (1975) KLT 55 (केरल HC) के वाद मे जेसूदास नामक एक कैथोलिक ईसाई कई वर्षो से एक हिन्दू मंदिर मे भक्ति संगीत और हरिकीर्तन गाता था | कुछ समय पश्चात कुछ हिन्दुओं ने उन्हे मंदिर मे आने से यह कह कर रोका कि वह हिन्दू नहीं है, अतः वेदी के पास जाकर नही गा सकता है | जेसूदास ने केरल हाईकोर्ट मे घोषणापत्र दाखिल किया, “मै घोषणा करता हूँ कि मै हिन्दू हूँ |”

उच्च न्यायालय ने यह धारित किया कि यदि कोई व्यक्ति यह घोषणा करता है कि वह हिन्दू हो गया है और बतौर वह हिन्दू की तरह रहता है, तो इसका तात्पर्य यह होगा कि उसने हिन्दू धर्म अंगीकार कर लिया है और वह हिन्दू हो गया है |

निम्नलिखित परिस्थितियों में कोई भी अहिन्दू संपरिवर्तन द्वारा हिन्दू हो सकता है -

A. यदि वह संपरिवर्तन के अनुष्ठान द्वारा हिन्दू धर्म अंगीकार करता है |
B.यदि वह ईमानदारी से यह इच्छा व्यक्त करता है कि वह हिन्दू हो गया है और वह बतौर हिन्दू की तरह रहता है तथा जिस वर्ग, जाति या सम्प्रदाय में वह सम्मिलित हुआ है वह उसे अपना सदस्य मानते है |
C.यदि वह यह घोषणा करता है कि वह हिन्दू है और हिन्दू कि तरह से जीवन व्यतीत करता है |

1. जन्मतः हिन्दू – जिस व्यक्ति के माता–पिता दोनों ही हिन्दू हैं, वह सामान्यतः हिन्दू ही होगा | इसी भांति वह व्यक्ति भी हिन्दू है जिसके माता या पिता हिन्दू है, और जिसका पालन–पोषण हिन्दू की भांति हुआ है |

2. जब माता-पिता दोनों ही हिन्दू हो – धर्मतः हिन्दू माता–पिता की संतान हिन्दू ही होती है और इस श्रेणी मे जन्मजात हिन्दू होने के लिए आवश्यक है कि माता–पिता दोनों ही धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो |
यहाँ पूर्णतः बात जन्मतः हिन्दू होने की है | इस संबंध मे प्रश्न की वह धर्मतः हिन्दू है कि नहीं गौण है, अनिवार्य यह है कि उसके जन्म के समय उसके माता–पिता दोनों हिन्दू होने चाहिए | यदि उसके जन्म के पश्चात माता–पिता दोनों ही या दोनों मे से एक अहिन्दू हो जाते हैं, तब भी वह संतान हिन्दू रहेगी जब तक की पैतृक अधिकार के अंतर्गत पिता या माता ने उसका धर्म परिवर्तन न कर दिया हो | इस पैतृक अधिकार का प्रयोग धर्मज संतान पर पिता कर सकता है, पिता की मृत्यु के बाद माता | अधर्मज संतान के प्रति इस अधिकार का प्रयोग माता ही कर सकती है |

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 2(1) के स्पष्टीकरण (a) के अंतर्गत कहा गया है कि कोई भी अपत्य (बालक), धर्मज या अधर्मज, जिसे माता-पिता दोनों ही धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख है, वह हिन्दू है |

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 2(1) के स्पष्टीकरण (b) मे यह उपबंध है कि जब माता-पिता दोनों में से कोई एक जन्म के समय हिन्दू हो तो, संतान हिन्दू है या नहीं, इसके संबंध मे यह देखा जाएगा कि क्या बालक या बालिका उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुम्ब के सदस्य के रूप मे पालन–पोषण किया गया है, जिसका की हिन्दू माता–पिता सदस्य हैं या थे |

देवाबासम बनाम जयाकुमारी (1991) केरल 175, के वाद मे न्यायालय ने निर्णय दिया कि ट्रावनकोर की नाडर जाति मे कोई भी पुरुष, अहिन्दू स्त्री से विवाह कर सकता है और विवाह के उपरांत उस स्त्री से उत्पन्न संतान और वह स्त्री हिन्दू मानी जाती है|

माया बाई बनाम उत्तराम (1861) 8 मूर्स इंडियन अपील्स 406, के वाद मे एक यूरोपीय ईसाई की दो हिन्दू रखैलों के अधर्मज पुत्रों का लालन-पालन हिन्दू की भाँति हुआ था | न्यायालय ने कहा कि दोनों पुत्र हिन्दू हैं |

राम परगास सिंह बनाम धानव (1942) 3 पटना 142 मे भी न्यायालय ने कहा कि धर्म परिवर्तन द्वारा मुसलमान हो जाने वाली हिन्दू नर्तकियों की संताने जिनका लालन–पालन उनके नाना–नानी ने हिन्दू की  भाँति किया है, हिन्दू है परंतु यदि बालक का लालन-पालन हिन्दू भाँति नही हुआ है तो वह हिन्दू नही होगा|         
3. वह व्यक्ति जो मुस्लिम, पारसी, ईसाई, यहूदी न हो – कोई भी व्यक्ति जो धर्मतः मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नही है, वे हिन्दू होंगे, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि संहिताबद्ध हिन्दू विधि पारित होने के पहले भी वे हिन्दू विधि से शासित नही होते थे |
इस वर्ग के अंतर्गत वे सभी लोग आ जाएंगे जो किसी भी धर्म को मानने वाले नही हैं | आवश्यक केवल इतना है कि मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नही है तो वह हिन्दू है | इसके विषय मे यह सिद्ध करना अनिवार्य नही है कि वह हिन्दू है |

जन-जातियों पर कौन सी विधि लागू होगी ?

संहिताबद्ध हिन्दू विधि किसी ऐसे जनजाति के सदस्यों पर जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड (25) के अंतर्गत अनूसुचित जनजाति हो, लागू नही होगी | जब तक कि केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र मे अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न करे | यह हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 कि धारा 2(2) मे विनिर्दिष्ट है | इस संबंध में उड़ीसा हाईकोर्ट ने दशरथ बनाम गुरु (1972) 78वाद मे और पटना हाईकोर्ट ने कदम बनाम जीतन (1973) 205वाद मे न्यायालय ने निर्णय भी प्रतिपादित किया है |

सरला मुद्गल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1995 SC के वाद मे न्यायालय ने धर्म परिवर्तन को खारिज कर दिया | न्यायालय ने कहा कि दूसरे धर्म को ग्रहण करने के पीछे अच्छा भाव नही है | इस वाद मे हिन्दू अधिनियम के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति ने विवाह किया और विवाह विच्छेद के लिए जब वाद न्यायालय मे चल रहा था अर्थात तलाक मंजूर नहीं हुआ था उस समय एक पक्ष ने धर्म परिवर्तन कर दूसरा विवाह कर लिया और कहा कि नए धर्म मे एक से अधिक जीवित पत्नियाँ होने का अधिकार देता है | न्यायालय ने पाया कि कानून के प्रावधानों से बचने के लिए पक्षकार ने नए धर्म को अपनाया अर्थात यह असद्भावनापूर्ण परिवर्तन है | अतः जब तक कि पुराने वाद का निस्तारण नही हो जाता तब तक पक्षकार का धर्म परिवर्तन असद्भावनापूर्ण माना | एक अन्य वाद लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के वाद मे भी न्यायालय ने ऐसा ही निर्णय दिया |

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