दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 177 से 189 में प्रत्येक अपराधों की जांच एवं विचारण के स्थानों का उल्लेख किया गया है जो निम्नवत है-
1. - धारा 177 के अनुसार प्रत्येक अपराध की जांच एवं विचारण मामले तौर पर ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसके स्थानीय अधिकारिता के अंदर वह अपराध किया गया है।
2. जांच या विचारण का – धारा 178 के अनुसार जहां यह निश्चित है कि कई स्थानीय क्षेत्रों में से किसमें अपराध किया गया है अथवा जहां अंशतः एक स्थानीय क्षेत्र और अंशतः दूसरे में किया गया है, अथवा जहां चालू रहने वाला अपराध है, और उसका किया जाना एक से अधिक क्षेत्रों में चालू रहता है, अथवा जहां वह विहित स्थानीय क्षेत्रों में किये गए कई कार्यो से मिलकर बनता है वहां उसका जांच या विचारण ऐसे स्थानीय क्षेत्रों में से किसी पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।
3. अपराध वहां विचारणीय होगा जहां कार्य किया गया या जहां परिणाम – धारा 179 के अनुसार जब कोई कार्य किसी की गई बात के और ऐसे निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है। तब ऐसे अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसी बात की गई या ऐसा परिणाम निकला।
4. जहां कार्य अन्य अपराध से संबंधित होने के कारण अपराध है वहां विचारण का स्थान – धारा 180 के अनुसार जब कोई कार्य ऐसे किसी अन्य कार्य से संबंधित होने के कारण अपराध है, जो स्वयं भी अपराध है, तो पहले अपराध की जांच एवं विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर उन दोनों में से कोई भी कार्य किया गया है।
5. कुछ अपराधों की दशा में विचारण का स्थान- धारा 181 के अनुसार ठग होने के या ठग द्वारा हत्या के, डकैती के, हत्या सहित डकैती, डकैती की टोली का होने के या अभिरक्षा से निकल भागने की किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है या अभियुक्त व्यक्ति मिला है।
व्यपहरण या अपहरण के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया या ले जाया गया या छिपाया गया निरुद्ध किया गया था।
चोरी उद्यापन या लूट के किसी अपराध का जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति चोरी की जानते हुए किसी व्यक्ति द्वारा कब्जे में रखी गई है।
आपराधिक दुर्रविनियोग या आपराधिक न्यासभंग के किसी अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया या संपत्ति अभियुक्त द्वारा प्राप्त की गई या रखा गया, लौटाया गया, या लेखा दिया जाना अपेक्षित है।
किसी ऐसे अपराध की जिसमें चुराई हुई संपत्ति का कब्जा भी है जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसा अपराध किया गया है या चुराई हुई संपत्ति कब्जे में रखी गई है या प्राप्त की गई है।
6. पत्र आदि द्वारा किए गए अपराध- धारा 182 के अनुसार किसी ऐसे अपराध की जिसमें छल करना भी है जांच या विचारण उस दशा में जिसमें ऐसा अपराध पत्र या दूरसंचार संदेशों के माध्यम से किया गया है ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसे पत्र या संदेश भेजे गए या प्राप्त किए गए। छल के मामले में ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकेगा जहां संपत्ति परिदत्त की गई या अभियुक्त द्वारा प्राप्त की गई।
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 भाग 495 के अधीन दंडनीय अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है या अभियुक्त प्रथम विवाह की अपनी पत्नी या पति के साथ अंतिम बार निवास किया है या जहां प्रथम विवाह की पत्नी अंतिम रूप से निवास कर रही है।
7. यात्रा या जल यात्रा में किया गया अपराध- धारा 183 के अनुसार यदि कोई अपराध उस समय किया गया है जब वह व्यक्ति जिसके द्वारा या जिसके विरुद्ध या वह चीज जिसके बारे में अपराध किया गया है किसी यात्रा या जल यात्रा पर है तो उसका जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके स्थानीय अधिकारिता से होकर वह व्यक्ति या चीज उस यात्रा या जल यात्रा के दौरान गई है।
8. एक साथ विचारणीय अपराधों के लिए विचारण का स्थान – धारा 184 के अंतर्गत जब किए गए अपराध ऐसे हैं उनके लिए धारा 219 220 या 221 के अनुसार एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है अथवा कई व्यक्तियों द्वारा किया गया अपराध ऐसा है कि उन पर धारा 223 के अनुसार एक साथ आरोप लगाया जा सकता है और विचारित किया जा सकता है वहां अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जो उन अपराधियों में से किसी का जांच या विचारण के लिए सक्षम है।
9. विभिन्न सेशन खंडों में मामलों के विचारण का आदेश देने की शक्ति – धारा 185 के अनुसार इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार यह निर्देश दे सकती है कि ऐसे किन्ही मामलों का विचारण जो किसी जिले में विचारण के लिए सुपुर्द हो चुके हैं किसी भी सेशन खंड में किया जा सकता है परंतु यह तब जब ऐसा निर्देश उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय या इस संहिता के या तत समय प्रचलित किसी विधि के अधीन पहले से जारी किए गए किसी निर्देश के विरुद्ध ना हो।
जब दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान कर लेते हैं और यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि इनमें से किसे उस अपराध की जांच और विचारण करना चाहिए वहां यह प्रश्न कि-
1. यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीन है तो उस उच्च न्यायालय द्वारा और
2. यदि वे न्यायालय एक ही उच्च न्यायालय के अधीन नहीं है तो उस उच्च न्यायालय द्वारा जिसकी अपीलीय दाण्डिक अधिकारिता के अंदर कार्यवाही पहले प्रारंभ की गई है।(धारा-186)
A को जबकि वह कानपुर तथा लखनऊ के बीच यात्रा पर था उस अवधि में चोरी के लिए आरोपित किया जाता है बताईये की A का विचारण किस स्थान पर होगा?
प्रस्तुत समस्या का संबंध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 183 से है इसके अनुसार जब कोई अपराध उस समय किया जाता है जब वह व्यक्ति जिसके द्वारा या जिसके विरुद्ध या वह चीज जिसके बारे में अपराध किया गया है किसी यात्रा या जल यात्रा पर है तो उसका जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता से होकर वह व्यक्ति या चीज उस यात्रा या जल यात्रा के द्वारा गई है।
प्रस्तुत समस्या में ए कानपुर तथा लखनऊ के मध्य रेल यात्रा पर था और उसी यात्रा के दौरान चोरी किए जाने के लिए आरोपित किया गया है इसलिए उसके अपराध का विचारण कानपुर में या लखनऊ में किया जा सकेगा।
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