Saturday, May 16

पत्नी बच्चों तथा माता पिता के भरण पोषण के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में क्या उपबंध तथा उन परिस्थितियों में भत्ते का परिवर्तन

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का उद्देश्य उन व्यक्तियों के विरुद्ध शीघ्र प्रभावित एवं व्यय रहित उपचार प्रदान करना है जो साधन संपन्न होते हुए अपनी पत्नी माता पिता के भरण पोषण की उपेक्षा करते हैं या इंकार करते हैं।

 धारा 125 के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्ति भरण-पोषण पाने के अधिकारी हैं।–
1. पत्नी जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है
2. धर्मज तथा आधर्मज अवयस्क संतान जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है
3. धर्मज या अधर्मज वयस्क संतान (विवाहित पुत्री को छोड़कर) जो शारीरिक या मानसिक असमानता के कारण अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है
4. माता पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।

उक्त प्रावधान के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने हेतु निम्न तत्वों का पूरा होना आवश्यक है-
1. वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध भरण पोषण का दावा किया गया है पर्याप्त साधनो वाला हो
2. ऐसा व्यक्ति भरण पोषण करने में उपेक्षा या इनकार किया हो
3. भरण पोषण का दावा करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो।

 डिंपल गुप्ता अवयस्क बनाम राजीव गुप्ता 2005 सुप्रीम कोर्ट के मामले में धारा 125 के अंतर्गत अधर्मज संतान के बारे में भरण पोषण संबंधी अधिकार का प्रश्न विवादित था, न्यायालय ने निर्णय किया कि अवयस्क को भरण पोषण का अधिकार है और प्रत्यर्थी को आदेशित किया कि वह भरण पोषण का नियमित भुगतान करें।

चतुर्भुज बनाम सीताबाई 2008 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि “ स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है” का तात्पर्य यह है कि जो इस प्रकार से स्वयं के भरण-पोषण में असमर्थ है जैसे कि वह पति के साथ रहते हुए उस स्थिति में होती।

धारा 125 में पत्नी के भरण पोषण के बारे में प्रावधान किया गया है धारा 125 खंड 1 के स्पष्टीकरण B के अनुसार पत्नी के अंतर्गत ऐसी स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह विच्छेद कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और उसने पुनर्विवाह नहीं किया।

अतः तलाकशुदा पत्नी भी जिसने पुनर्विवाह नहीं किया, भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारीणी है किंतु पत्नी द्वारा भरण पोषण प्राप्त करने हेतु निम्न शर्तों की पूर्ति आवश्यक है-
1. वह जारता की दशा में ना रह रही हो
2. वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इंकार न कर रही हो
3. वह पति के पारस्परिक सहमति से पृथक में रह रही हो।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 खंड 4 के अनुसार पत्नी निम्नलिखित परिस्थितियों में भरण-पोषण की अधिकारीणी न होगी-
1. जब वह जारता की दशा में रह रही हो
2. जब वह पर्याप्त कारण के बिना पति से अलग रहती है
3. जब वह पारस्परिक सहमति से अलग रहती है।

मोहम्मद अब्दुल सत्तार बनाम असम राज्य 2009 गुवाहाटी के मामले में आधारित किया गया कि जारता के आधार पर पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार तब तक नहीं है जब तक वह जारता की दशा में रहती है ज्यो ही पत्नी जारता का जीवन समाप्त कर देती है वह भरण-पोषण पाने की हकदार हो जाती है।

राजथी बनाम श्री गणेशन 1999 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अवधारित किया गया की पत्नी पति से अलग रहने और भरण पोषण प्राप्त करने की अधिकारीणी है भले ही वह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत पति द्वारा दूसरा विवाह करने का अपना अभिथन साबित न कर सकी हो।

महेश चंद्र द्रीवेदी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2009 इलाहाबाद के मामले में यह निर्धारित किया गया कि यदि विवाह विच्छेद पारस्परिक सहमति से हुआ है तब भी पत्नी भरण-पोषण पाने की तब तक हकदार है जब तक वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती।

गुरमीत कौर बनाम सुरजीत सिंह 1996 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि जहां पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद हुआ है वहां पत्नी तब तक भरण पोषण का दावा करने से वंचित नहीं हो सकती है जबतक कि वह पुनर्विवाह नहीं करती और अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ रहती है।

प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट भरण-पोषण की उपेक्षा या इंकार का जांच करेगा और ऐसी उपेक्षा या इंकार के साबित हो जाने पर उस व्यक्ति को जिसके विरुद्ध कार्यवाही की गई है यह निर्देश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी ऐसी संतान या माता पिता के भरण पोषण के लिए मासिक भत्ता अदा करें।

दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा धारा 125 में संशोधन कर मजिस्ट्रेट को अपने विवेकानुसार मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के अनुसार भरण पोषण प्रदान करने का अधिकार दिया गया है तथा यह भी व्यवस्था की गई है कि कार्यवाही के दौरान मजिस्ट्रेट अंतरिम भरण-पोषण और ऐसी कार्रवाइयों के लिए खर्चे की इतनी राशि जितना मजिस्ट्रेट उचित समझे देने का आदेश उस व्यक्ति को दे सकता है जिसके विरुद्ध कार्यवाही की जा रही है।

धारा 127 के अंतर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में भत्ते में परिवर्तन किया जा सकता –
1. परिस्थितियों में परिवर्तन इस धारा के अंतर्गत पूर्व में स्वीकृत की गई भरण-पोषण की धनराशि में परिवर्तन किया जा सकता है यदि भरण पोषण प्राप्त करने वाला व्यक्ति मजिस्ट्रेट से परिस्थितियों के परिवर्तन के आधार पर एवं भरण पोषण के आधार पर भरण पोषण के भत्ते में परिवर्तन के लिए आवेदन देता है।
2. सिविल न्यायालय का विनिश्चय मजिस्ट्रेट को जहा यह प्रतीत होता है कि भरण पोषण के लिए दिया गया आदेश सिविल न्यायालय के किसी विनिश्चय के कारण रद्द या परिवर्तित कर देना चाहिए वहां तदनुसार भत्ते में परिवर्तन कर सकता है।
3. विवाह विच्छेद की गई पत्नी के पक्ष में दिया गया भरण पोषण का आदेश धारा 125 खंड 3 के अनुसार भरण पोषण का आदेश जो ऐसी स्त्री के पक्ष में दिया गया है जिसके पति ने विवाह विच्छेद कर लिया है या  जिसने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि-
1. स्त्री ने विवाह विच्छेद के बाद पुनर्विवाह कर लिया है तो ऐसा आदेश पुनर्विवाह गीत इसे रद्द कर देगा
2. स्त्री के पति ने उसे विवाह विच्छेद कर लिया और स्त्री ने ऐसी धनराशि प्राप्त कर लिया है जो पक्षकारों पर लागू वैयक्तिक विधि या रूढिजन्य विधि के तहत ऐसे विवाह विच्छेद पर देय थी तो मजिस्ट्रेट आदेश को रद्द कर देगा
3. उस स्त्री ने पति से विवाह विच्छेद कर लिया है और उसने विवाह विच्छेद के पश्चात अपने भरण पोषण के अधिकारों को स्वेच्छया त्याग दिया है तो मजिस्ट्रेट आदेश को रद्द कर सकता है।

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