Tuesday, June 30

एक हिन्दू मृत पुरुष के संपत्ति के निर्वसीयती उत्तराधिकार से सम्बंधित विधि या बिना वसीयत मरने वाले हिन्दू पुरुष की संपत्ति का हस्तांतरण हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अंतर्गत या वर्ग एक और वर्ग दो के उत्तराधिकारी तथा उनके मध्य निर्वसीयती मृतक की संपदा का विभाजन

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 से 13 तक में निर्वसीयती मरने वाले हिन्दू पुरुष की संपत्ति का न्यागमन उनके उत्तराधिकारियों के मध्य कैसे होगा इस सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है।

पुरुष की दशा में उत्तराधिकार के साधारण नियम – धारा 8 के अनुसार निर्वसीयती मरने वाले हिन्दू पुरुष की संपत्ति उसके निम्न उत्तराधिकारियों को न्यागत होगी –
1. सबसे पहले वर्ग एक के वारिसों को
2. वर्ग एक के वारिस के अभाव में वर्ग दो के वारिसो को
3. दोनों वर्गो के वारिसों के अभाव में मृतक के गोत्रजो को
4. अन्ततः गोत्रज भी नही हैं तब मृतक के बंधुओं को
5. कोई वारिस न होने पर सरकार को

अपवर्जन – धारा 9 में की गयी व्यवस्था के अनुसार वर्ग एक के वारिस अन्य सभी वारिसों को अपवर्जित करते हुए मृतक की संपत्ति में अंश प्राप्त करेंगे। इनके न रहने पर वर्ग दो की 9 प्रविष्ठियों में बताये गयें वारिस क्रमशः अपने नीचे वाले प्रविष्टि के वारिसों को अपवर्जित करते हुए, संपत्ति में अंश प्राप्त करेंगे।

वर्ग एक के वारिसों में संपत्ति का वितरण – (धारा 10)-
वर्ग एक के वारिसों की क्रम सूची-1 अनुसूची में दी गयी है जिसमे सदस्यों की कुल संख्या 16 है जिसमे 11 महिला व 5 पुरुष वंशज रखे गयें हैं, जो निम्नवत है –
1- पुत्र,  
2- पुत्री,  
3- विधवा,  
4- माता,  
5- पूर्वमृत पुत्र का पुत्र,  
6- पूर्वमृत पुत्र की पुत्री,  
7- पूर्वमृत पुत्री का पुत्र,  
8- पूर्वमृत पुत्री की पुत्री,  
9- पूर्वमृत पुत्र की विधवा,  
10- पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र का पुत्र,  
11- पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की पुत्री,  
12- पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्र की विधवा,  
13- पूर्वमृत पुत्री की पूर्वमृत पुत्री का पुत्र,  
14- पूर्वमृत पुत्री की पूर्वमृत पुत्री की पुत्री,  
15- पूर्वमृत पुत्री के पूर्वमृत पुत्र की पुत्री,  
16- पूर्वमृत पुत्र के पूर्वमृत पुत्री की पुत्री।

2005 के संशोधन के पूर्व कुल 12 सदस्य वर्ग एक के वारिस थे परन्तु संशोधन द्वारा 4 वंशजो को 2005 द्वारा बढ़ा दिया गया है।

वर्ग एक में के वारिसों में निम्नलिखित नियमो के अनुसार निर्वसीयत संपत्ति विभाजित की जायेगी –

नियम- 1 निर्वसीयती मृतक की विधवा को या सभी विधवाओं को मिलाकर एक अंश मिलेगा।
नियम- 2 मृतक के उत्तरजीवी पुत्रो और पुत्रियों और माता, प्रत्येक को एक-एक अंश मिलेगा।
नियम- 3 निर्वसीयती के हर एक पूर्वमृत पुत्र की या हर एक पूर्वमृत पुत्री की शाखा के सभी वारिसों को मिलाकर                  संपत्ति में एक अंश मिलेगा।
नियम- 4 नियम 3 में बताये गये वारिसों के मध्य संपत्ति के अंश का विभाजन शाखावार किया जाएगा –
1. पूर्वमृत पुत्र की शाखा के वारिसों के मध्य अंश का वितरण इस प्रकार होगा कि सभी विधवाओं तथा उत्तरजीवी पुत्र और पुत्रियों को बराबर-बराबर अंश प्राप्त हों।
2. पूर्वमृत पुत्री की शाखा के वारिसों के मध्य अंश का वितरण इस प्रकार किया जाएगा कि उत्तरजीवी पुत्रो और पुत्रियों को सामान अंश प्राप्त हो।

वर्ग दो के वारिसों ने संपत्ति का वितरण – (धारा 11)
अधिनियम के अंत में दी गयी अनुसूची में वर्ग दो के वारिसों को निम्नलिखित क्रम में वर्गीकृत किया गया है –

1. पिता
2. क. पुत्र की पुत्री का पुत्र, ख. पुत्र की पुत्री की पुत्री, ग. भाईभाई, व. बहिन
3. क. पुत्री के पुत्र का पुत्र, ख. पुत्री के पुत्र की पुत्री, ग. पुत्री की पुत्री का पुत्र, व. पुत्री की पुत्री की पुत्री
4. क. भाई का पुत्र, ख. बहिन का पुत्र, ग. भाई की पुत्री, घ. बहनबहन की पुत्री।
5. पिता का पिता , पिता की माता
6. पिता की विधवा, भाई की विधवा
7. पिता का भाई, पिता की बहन
8. माता का पिता, माता की माता
9. माता का भाई, माता की बहन

    वर्ग दो के वारिसों में कुल 23 सदस्य हैं जिनमे 12 महिलायें हैं। वर्ग दो में वारिसों की 9 प्रविष्टियाँ है, प्रथम प्रविष्टि के वारिस द्वितीय प्रविष्टि के वारिसों को तथा द्वितीय प्रविष्टि के वारिस तीसरी प्रविष्टि वाले को, इसी प्रकार प्रत्येक ऊपरी प्रविष्टि का वारिस अपने निचले प्रविष्टि के वारिस को अपवर्जित करते हुए वर्ग एक का वारिस न होने पर मृतक की संपत्ति में बराबर अंश प्राप्त करेगा।

गोत्रजों और बंधुओं को संपत्ति का न्यागमन – (धारा 12) वर्ग एक और वर्ग दो के वारिसों के अभाव में निर्वसीयती मृतक की संपत्ति का न्यागमन गोत्रजों को होगा, और जब कोई गोत्रज न हो तब संपत्तियों का न्यागमन बंधुओं को होगा।

    गोत्रज को अधिनियम की धारा 3(a) में बताया गया है, इसके अनुसार एक व्यक्ति दूसरे का गोत्रज कहा जाता है यदि वे दोनों केवल पुरुषो के माध्यम से रक्त या दत्तक द्वारा एक दूसरे से सम्बंधित हों।

    बंधु को अधिनियम की धारा 3(c) में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार एक व्यक्ति दूसरे का बंधु कहा जाता है यदि वे दोनों रक्त या दत्तक द्वारा एक-दूसरे से सम्बंधित हों किन्तु केवल पुरुषो के माध्यम से नही।

सरकार को संपत्ति का न्यागमन – अधिनियम की धारा 29 के अंतर्गत जब मृतक निर्वसीयती के पास वारिसों का अभाव हो तब उसकी संपत्ति सरकार में न्यागत हो जायेगी।

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