Sunday, June 28

सहदायिकी संपत्ति में हित का न्यागमन तथा काल्पनिक विभाजन और हिन्दू उत्तराधिकार में संशोधनो से आये परिवर्तन


हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू हो जाने के बाद मिताक्षरा सहदायिकी या संयुक्त हिन्दू परिवार में पुत्री को भी पुत्र के सामान सहदायिक सदस्य माना जाएगा और उसको भी पुत्र के समान अधिकार प्राप्त हो गयें तथा सहदायिकी संपत्ति का न्यागमन उत्तरजीविता द्वारा न होकर इस अधिनियम के अंतर्गत उत्तराधिकार द्वारा होना स्वीकार कर लिया गया है परन्तु प्रतिबन्ध मात्र यह है कि – धारा 6(1) की कोई भी बात दिसंबर, 2004 के 20 दिन पूर्व किये गये संपत्ति के विभाजन या अंतरण या संचयन को प्रभावित नही करेगी और न ही अविधिमान्य बनाएगी।

धारा 6(2) के अनुसार कोई भी सम्प्पत्ति जिसे धारा 6 के अनुसार कोई हिन्दू महिला प्राप्त करती है उसे वह सहदायिकी के स्वामित्व के अधीन प्राप्त किया गया माना जाएगा। औरत वह उस संपत्ति को वसीयत में प्राप्त संपत्ति के समान व्ययन करने की हकदार होगी।
काल्पनिक या भावनात्मक विभाजन (धारा 6 उपधारा 3) – भावनात्मक विभाजन एक विधिक मिथ्या है परन्तु विधि में इसका कुछ प्रयोजन है। मिथ्या विभाजन का प्रयोजन यह है कि सहदायिक के हित का पृथककरण किया जा सके। भावनात्मक विभाजन वास्तविक विभाजन नही है। इसके द्वारा केवल मृतक सहदायिक के हित का पृथक्करण होता है। ज्यो ही काल्पनिक विभाजन द्वारा मृतक सहदायिक का हित ज्ञात हो जाता है, विभाजन का प्रयोजन समाप्त हो जाता है। यद्यपि कि काल्पनिक विभाजन में भी सहदायिक सदस्यों के मध्य अंशो का पृथक्करण (आवंटन) किया जाता है परन्तु यह आवंटन केवल मृतक का अंश जानने के लिए किया जाता है।

धारा 6(3) के स्पष्टीकरण के अनुसार मृतक सहदायिक के हित का पृथक्करण उस तारीख को माना जाएगा जिस तारीख को उसकी मृत्यु हुई है न कि उस तारिख को जब काल्पनिक विभाजन द्वारा उसका हित पृथक किया गया है क्योंकि मृतक का भाग मृत्यु की तारीख से ही स्थिर हो जाता है।

काल्पनिक विभाजन में अंशो का आवंटन – 2005 के संशोधन के बाद सहदायिक सदस्यों के अंशो का आवंटन उत्तराधिकार द्वारा न्यागत होगा न कि उत्तरजीविता द्वारा।
इसके द्वारा –
1- पुत्री को पुत्र के समान अंश प्राप्त होगा।
2- पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री का अंश वही होगा,  जो होता, यदि वह जीवित होता।
3- पूर्व मृत पुत्र का संतान या पूर्व मृत पुत्री की संतान को वही अंश प्राप्त होगा जो उनको पूर्व मृत पुत्र या पूर्व मृत पुत्री के जीवन काल में प्राप्त होता।

धारा के स्पष्टीकरण के अनुसार इस उपधारा के प्रयोजन के लिए हिन्दू मिताक्षरा सहदायिक का हित संपत्ति में वह अंश समझा जाएगा जो उसे बटवारे में प्राप्त होता यदि उसकी मृत्यु के पूर्व संपत्ति का विभाजन किया गया होता भले ही वह विभाजन की मांग करने का हकदार न होता।

नोट2005 के संशोधन द्वारा भावनात्मक विभाजन को समाप्त कर दिया गया है तथा अब यह माना जाएगा कि वास्तविक रूप से विभाजन हो गया है | (धारा 6 उपधारा 3)

धारा 6(4) के अनुसार कोई भी न्यायालय 2005 के संशोधन के बाद किसी पुत्र, पौत्र, या प्रपौत्र के विरुद्ध किसी कार्यवाही के आधार को मान्यता नही देगा जो किसी ऋण, जो उसके पिता, पितामह या परपितामह से वसूली के लिए हिन्दू विधि के अंतर्गत पवित्र दायित्व के आधार पर उत्पन्न हो और ऐसे पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र द्वारा देय हो। परन्तु 2005 के संशोधन से पूर्व देय संविदागत ऋणों पर यह धारा लागू नही होगी।

धारा 6(5) के अनुसार धारा 6 की कोई बात ऐसी विभाजन पर लागू नही होगी जो 20 दिसंबर 2004 के पूर्व प्रभावी हो गया हो।

हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के द्वारा  किये गये प्रमुख परिवर्तन –
1. पुत्री को जन्म से सहदायिक सदस्य बना दिया गया।
2. पुत्री को पुत्र के समान ही सहदायिकी संपत्ति में अधिकार प्राप्त हो गया है।
3. पुत्रियों का दायित्व भी मिताक्षरा सहदायिकी में पुत्रो के समान बना दिया गया है।
4. महिलायें अपनी सहदायिकी संपत्ति को वसीयत कर सकतीं हैं इस कारण अब वह विभाजन की मांग भी कर सकती है इसलिए हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 30 में Him के साथ साथ Her का प्रयोग बढ़ा दिया गया।
5. अब पूर्वजो का ऋण चुकाने का पवित्र दायित्व पुत्रो के साथ-साथ पुत्रियों का भी हो गया है।

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