हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 3(b) में भरण-पोषण की परिभाषा दी गयी है जिसके अनुसार - भरण-पोषण के अंतर्गत सभी दशाओं में भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और चिकित्सा के अलावा अविवाहिता पुत्री के विवाह का खर्च भी आता है ।
अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत हिन्दू पत्नी चाहे उसका विवाह इस अधिनियम के पूर्व या पश्चात सम्पन्न हुआ हो जीवन भर अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी।
भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए पत्नी को मात्र तीन शर्ते पूरी करना आवश्यक है, जो निम्नलिखित है –
1- उसे पत्नी की हैसियत प्राप्त हो, और
2- वह हिन्दू हो, तथा
3- पति के साथ रहने से अकारण ही इनकार न किया हो।
धारा 18(2) यह उपबंध करती है कि हिन्दू पत्नी निम्नलिखित दशाओं में भरण-पोषण के साथ-साथ पृथक निवास की मांग भी अपने पति से कर सकती है –
A- पति ने पत्नी को अकारण ही अभित्यजित कर रखा है।
B- पति द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता करना।
C- पति उग्र कुष्ठ रोग से ग्रसित है।
D- पति की अन्य कोई पूर्व पत्नी जीवित है।
E- पति रखैल रखता है।
F- पति ने हिन्दू धर्म त्याग दिया हो।
G- अन्य कोई न्यायोचित कारण होने पर।
धारा 18(3) यह उपबंध करती है कि पत्नी कब पृथक निवास और भरण-पोषण की हकदार नही होगी।
इस उपधारानुसार वह निम्न परिस्थितियों में पृथक निवास और भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी –
1- शीलभ्रष्ट या असती हो गयी हो।
2- हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया हो या हिन्दू न रह गयी हो।
3- पुनः विवाह कर ली हो।
पत्नी को भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए विधिपूर्वक विवाहित होना आवश्यक है। शून्य विवाह की दशा में पत्नी भरण-पोषण की मांग नही कर सकती है।
अपने एक विनिश्चय में उच्चतम न्यायालय ने यह संप्रेक्षित किया है कि पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरी पत्नी भरण-पोषण की मांग नही कर सकती।
कोमालन अम्मा बनाम कुमार राघवन पिल्लैय, 2008 S.C. के वाद में न्यायालय ने कहा की पत्नी के भरण-पोषण के अधिकार में पृथक निवास का अधिकार भी सम्मिलित है।
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