Thursday, June 11

स्थायी निर्वाह व्यय तथा वादकालीन भरण-पोषण में अंतर

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 25 में स्थायी निर्वाह व्यय के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है जिसके अनुसार – जब पति या पत्नी ने वैवाहिक अनुतोष हेतु सक्षम न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की हो तब न्यायालय आज्ञप्ति पारित करते समय या उसके पश्चात स्थायी निर्वाह भरण-पोषण का आवेदन प्राप्त होने पर प्रतिवादी को यह आदेश दे सकेगा कि वह आवेदक को उसके जीवन काल से अनधिक समय तक स्थायी निर्वाह व्यय और भरण-पोषण प्रतिमास किश्तों में या वार्षिक रूप में एक ही बार में पूर्ण राशि दे या देता रहे।

ऐसे भत्ते की धनराशि मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर न्यायालय द्वारा तय किया जाएगा तथा यह भत्ता प्रतिपक्षी के संपत्ति पर एक भार होगा।

धारा 25(2) के अंतर्गत पक्षकारो की परिस्थिति में बदलाव होने पर न्यायालय भत्ते में परिवर्तन या विखंडन कर सकेगा।

धारा 25(3) के अनुसार पुनः विवाह या पत्नी के शीलभ्रष्ट होने पर न्यायालय भत्ते का आदेश विखंडित कर सकता   है।

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के अंतर्गत वादकालीन भरण-पोषण के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया है, जिसके अनुसार –
उपरोक्त प्रकार का आदेश आवेदक द्वारा दिए गये आवेदन पर प्रत्यर्थी को समन तामील होने के 60 दिन के भीतर किया जाएगा


स्थायी निर्वाह व्यय एवं वाद्कालीन भरण-पोषण में अंतर – धारा 24 व धारा 25 के विश्लेषण से स्थायी  निर्वाहिका और वादकालीन भरण-पोषण कार्यवाही में निम्नलिखित अंतर स्पष्ट होते हैं –

1- वादकालीन भरण-पोषण का प्रावधान धारा 24 में किया गया है जबकि स्थायी निर्वाह का प्रावधान धारा 25 में किया गया है |
2- वादकालीन भरण-पोषण का आदेश वाद के लंबित होने के दौरान पारित किया जाता है जबकि  स्थायी निर्वाह व्यय आज्ञप्ति बनाते समय या उसके पश्चात पारित किया जा सकता है |
3- वादकालीन भरण-पोषण में संदाय की अवधि मासिक होती है जबकि स्थायी निर्वाह व्यय मासिक, वार्षिक या एक ही समय में संदाय हो सकता है |  
4- वादकालीन भरण-पोषण का आदेश कार्यवाही समाप्त होने पर समाप्त हो जाता है जबकि स्थायी निर्वाह व्यय आवेदक के जीवन काल तक के लिए होता है यह परिस्थितियों में परिवर्तन होने पर न्यायालय द्वारा परिवर्तित या विखंडित किया जा सकता है |
5- वाद कालीन भरण-पोषण का आदेश प्रतिपक्षी पर समन तामिल होने के 60 दिन के भीतर पारित होता है जबकि स्थायी निर्वाह व्यय में ऐसा नही है |

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