Wednesday, August 5

सूचना धारा 3 संपत्ति अंतरण अधिनियम


सूचना (Notice) सम्पति अंतरण अधिनियम की धारा 3 में परिभाषित है | धारा 3 के शब्दों में किसी तथ्य की सूचना को निम्नवत परिभाषित किया गया है- “किसी तथ्य की व्यक्ति को सूचना है यह तब कहा जाता है जब वह वास्तव में उस तथ्य को जानता है अथवा यदि ऐसी जाँच या तलाश जो उसे करनी चाहिए थी , करने से जानबूझकर विरत न रहता था, घोर उपेक्षा न करता तो वह उस तथ्य को जान लेता |
उपरोक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि सूचना की परिभाषा में - वास्तविक सूचना और आन्वयिक सूचना या उपलक्षित, दो प्रकार की सूचनाओ का उल्लेख है | सूचना की इस परिभाषा को सन् 1929  में संशोधित किया गया और इसमें तीन स्पष्टीकरण जोड़कर आन्वयिक सूचना के क्षेत्र में  विस्तार किया गया |

वास्तविक सूचना – (Actual Notice) जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य का वास्तविक ज्ञान रखता है तो उसे उस तथ्य की वास्तविक सूचना होती है | यह संव्यवहार के बात-चीत  के दौरान सम्पति में हितबद्ध व्यक्तियों के द्वारा निश्चित सूचना के तौर पर दी जानी चाहिए क्योंकि कानून में कोई व्यक्ति अफवाहों अथवा अजनबियों के तथ्यों पर ध्यान देने के लिए बाध्य नहीं है | सूचना उसी संव्यवहार में दी जानी चाहिए जिसमें वह सुसंगत हो क्योंकि पूर्व संव्यवहारो में दी गई संसूचना व्यक्ति भूल भी सकता है | मात्र आकस्मिक वार्तालाप वास्तविक सूचना सृजित करने के लिये पर्याप्त नहीं है |

आन्वयिक सूचना – (Constructive Notice) आन्वयिक सूचना साम्या का सिद्धांत है, जिसके अनुसार व्यक्तियों को उन तथ्यों की सूचना भी प्राप्त समझी जाती है जिन्हें वह वास्तव में तो नही जानता लेकिन कतिपय परिस्थितियों के होने पर उनका जानना उस पर उपधारित की जाती है | 

हेविट॒ट बनाम लूजमोरे के मामले में आन्वयिक सूचना को परिभाषित करते हुए कहा गया कि आन्वयिक सूचना किसी व्यक्ति पर अखंडनीय उपधारणा के तौर पर आरोपित की जाती है |

उदहारण के लिए – यदि कोई व्यक्ति कोई जांच करता या घोर उपेक्षा न करता तो कुछ तथ्य उसकी जानकारी में आते, इन तथ्यों की सूचना विधि के अनुसार उसकी जानकारी में न होने पर भी उस पर अधिरोपित है और वह आन्वयिक सूचना है|

आन्वयिक सूचना धारा 3 के अनुसार 5 प्रकार की हो सकती है-
1 – जानबूझकर विरत रहना ( Wilful abstenstion from enquiry)
2 – घोर उपेक्षा (Gross negligence )
3 – पंजीकरण (Registration)
4 – वास्तविक कब्ज़ा (Actual possession)
5 – अभिकर्त्ता  को सूचना (Notice to agent)

1-जानबूझकर विरत रहना (Wilful Abstention from Enquiry) – जानबूझकर (Intentionally) जांच से विरत रहना व्यक्ति आन्वयिक सूचना अधिरोपित करता है | आन्वयिक सूचना के आधार पर व्यक्ति केवल उन जांचो के परिणामो से आबद्ध हो सकता है जिसे करने के लिए वह बाध्य हो अर्थात जहाँ जांच करना उसका विधिक कर्त्तव्य है | यह विधिक कर्त्तव्य किसी भावी क्रेता या स्वामी के प्रति नही है बल्कि स्वयं अपने प्रति है |

उदहारण a- पंजीकृत पत्र लेने से इंकार करने वाले व्यक्ति को पत्र के विषयवस्तु की आन्वयिक सूचना मानी जाती है|
b- बैंक के ग्राहक को बैंक द्वारा पासबुक में की गयी प्रविष्टियों और त्रुटि सुधारों की आन्वयिक सूचना होती है|
c- संपत्ति के क्रेता को जिसे विक्रेता द्वारा एक विलेख निरीक्षण हेतु दिए गये थे, को उसकी सूचना होती है भले ही उसने उसकी जाँच न की हो | इस सम्बन्ध में अलवर चेट्टी बनाम जगरनाथ का मामला प्रमुख है|

2-घोर उपेक्षा (Gross Negligence) - आन्वयिक सूचना घोर उपेक्षा से भी उत्पन्न हो सकती है| उपेक्षा से तात्पर्य किसी ऐसे कार्य से है जो एक युक्तियुक्त साधारण प्रज्ञा का व्यक्ति नहीं करता अथवा किसी ऐसे कार्य से विरत रहना जिसे एक युक्तियुक्त साधारण प्रज्ञा का व्यक्ति करता|

उपेक्षा, कपट नही है क्योंकि उपेक्षा में अकर्मण्यता और अरुचि तो प्रदर्शित होती है लेकिन बेईमानी का तत्त्व हो यह आवश्यक नहीं है परन्तु कपट में बेईमानी आवश्यक है| यह कहा जा सकता है की घोर उपेक्षा, उपेक्षा की इतनी अधिक मात्रा है की न्यायालय इसे कपट का तथ्य मान सकता है|

इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति उपेक्षा का दोषी है तो वह उन सभी तथ्यों की आन्वयिक सूचना रखता हुआ कहा जायेगा जिनकी उन्हें जानकारी हो जाती यदि वह सावधानी पूर्वक कार्य किया होता |

तिलकधारी बनाम खेदनलाल के मामले में यह धारित हुआ कि रजिस्ट्री कार्यालय में मौजूद रजिस्टरों की जांच न करना घोर उपेक्षा मानी जाएगी | 

इम्पीरियल बैंक ऑफ़ इंडिया के मामले में क्रेता को सूचित किया गया था कि संपत्ति के हक़ विलेख सुरक्षित रखरखाव के लिए बैंक में जमा किये गये है| क्रेता ने बैंक से उस हक़ विलेख से सम्बंधित कोई जांच नही की| वास्तविकता यह थी कि हक़ विलेख बैंक में गिरवी रखे गये थे| न्यायालय ने निर्णीत किया कि क्रेता घोर उपेक्षा का दोषी है और उसे बैंक में हक़ विलेख गिरवी होने की आन्वयिक सूचना है|

3-पंजीकरण (Registration) - धारा 3 में सूचना के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण 1 जोड़कर (1929 के संशोधन द्वारा) यह स्पष्ट कर दिया गया कि पंजीकरण, पंजीकृत लेख की अंतर्वस्तु की आन्वयिक सूचना होती है| इससे पूर्व न्यायालयों में मतभेद था | कुछ उच्च न्यायालय (बम्बई, इलाहाबाद) पंजीकरण को सूचना मानते थे | परन्तु मद्रास उच्च न्यायालय पंजीकरण को सूचना नही मानती थी |

तिलकधारी बनाम खेदनलाल के मामले में प्रिवी काउंसिल ने यह निर्णय दिया कि पंजीकरण सूचना है या नहीं यह प्रश्न विधि का न होकर तथ्य का है तथा प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के अनुसार यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि उस मामले में पंजीकरण को सूचना माना जाये या नहीं |

स्पष्टीकरण (1) के अनुसार – पंजीकरण केवल उन व्यक्तियों के लिए सूचना है जो केवल पंजीकरण के बाद संपत्ति के सम्बन्ध में संव्यवहार करते है | संपत्ति का पश्चातवर्ती अंतरिती पूर्ण रूप में अथवा उसके संपत्ति को पूर्ण रूप से अथवा उसके किसी अंश या भाग को या उसके किसी हित को प्राप्त करता है |

अंतरण की तिथि से पूर्व संपत्ति के पंजीकृत दस्तावेजों को आन्वयिक सूचना माना जायेगा | पंजीकरण केवल उन्हीं मामलो में आन्वयिक सूचना है जहाँ संपत्ति के संव्यवहार का पंजीकरण विधि द्वारा अनिवार्य बनाया गया है यदि विधि द्वारा पंजीकरण अनिवार्य नही है तो पश्चातवर्ती अंतरिती को आन्वयिक सूचना के आधार पर बाध्य नही किया   जायेगा |

सूचना की तिथि  - धारा 3 के अनुसार पंजीकरण के आधार पर सूचना पंजीकरण के दिन से ही प्रभावी मानी जाती है परन्तु यदि संपत्ति का पंजीकरण ऐसी जगह किया किया गया है जहाँ संपत्ति स्थित नहीं है या सम्पति एक से अधिक जिलो में है तो पंजीकरण की सूचना उस तिथि से प्रभावी मानी जाएगी जिस तिथि को सम्बंधित पंजीकरण का सारांश सम्बंधित उपजिला के सब-रजिस्ट्रार के पास फाइल किया गया है |

पंजीकरण की सूचना पंजीकृत लिखत के अंतर्वस्तु की सूचना होती है | पंजीकृत लिखत में वर्णित कोई भी बात जिसका सम्बन्ध संपत्ति से है तथा जिसे उस लिखत को पढ़कर जाना जा सकता हो या उसके अंतर्वस्तु के निष्कर्ष को युक्तियुक्त रूप से जाना जा सकता है, वह सूचना मानी जाती है | इसके अतिरिक्त यदि पंजीकृत लिखत में संपत्ति से सम्बंधित किसी अन्य दस्तावेजो का भी उल्लेख है तो वे भी सूचना का भाग होंगे |

4-वास्तविक कब्जा (Actual possession) – स्पष्टीकरण (2) जो की 1929 संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया, के अनुसार – किसी व्यक्ति का वास्तविक कब्ज़ा संपत्ति के अंतरितियों के लिए उस व्यक्ति के स्वत्व का आन्वयिक सूचना होगा | उस संपत्ति पर संव्यवहार करने वाले व्यक्तियों को कब्जेदार के कब्जे की प्रकृति के बारे में जांच करनी चाहिए और यदि वह ऐसा किये बगैर क्रय, बंधक या भार प्राप्त करता है तो ऐसा वह अपने जोखिम पर करता है | महत्वपूर्ण बात यह है कि केवल वास्तविक कब्ज़ा ही आन्वयिक सूचना होती है | आन्वयिक कब्जे से सूचना का सृजन नहीं होता |

उदहारण के लिए – यदि A भूमि को विक्रय करने की B से संविदा करता है तथा B भूमि के कब्जे को प्राप्त कर उसमे T को किरायेदार रख देता है तत्पश्चात A भूमि का विक्रय Cको कर देता है | इस मामले में T के कब्जे के सम्बन्ध में Cको कोई सूचना नही है जिससे वह B के हित की प्रकृति को जान सके तथा उससे वह बाध्य हो सके | इस सन्दर्भ में डेनियल बनाम डेविसन का वाद प्रमुख है |

5- अभिकर्त्ता को सूचना (Notice to an Agent) - स्पष्टीकरण (3) के अनुसार   अभिकर्त्ता को सूचना उसके मालिक को आन्वयिक सूचना मानी जाएगी |

1929 संशोधन अधिनियम से पहले ऐसे मामले में संविदा अधिनियम की धारा 229 लागू होती थी जिसमे यह उपबंध था कि मालिक को किसी तथ्य की आन्वयिक सूचना तभी मानी जाती थी जबकि अभिकर्त्ता  को उसकी वास्तविक सूचना प्राप्त हुई हो परन्तु 1929 के संशोधन द्वारा स्पष्टीकरण 3 जोड़कर यह स्पष्ट कर दिया गया कि अभिकर्त्ता  को सूचना चाहे वास्तविक हो या आन्वयिक मामले के लिए आन्वयिक सूचना मानी जाएगी | मालिक को ऐसी आन्वयिक सूचना इस सूत्र पर आधारित है कि – जो व्यक्ति दूसरो के द्वारा कार्य करवाता है वह स्वयं कार्य करता हुआ समझा जाता है |

अभिकर्त्ता  को सूचना मालिक को सूचना तभी मानी जायेगी जबकि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हो –
1 – ऐसी सूचना अभिकरण के दौरान प्राप्त हुई हो |
2 – ऐसी सूचना अभिकर्त्ता  को अभिकर्त्ता  के तौर पर ही प्राप्त हुई हो |
3 – ऐसी सूचना अभिकरण के सामान्य कारबार के अनुक्रम में प्राप्त हुई हो तथा साथ ही साथ सारवान तथ्य के रूप में प्राप्त हो |
4 – ऐसी सूचना मालिक को सूचना तभी मानी जायेगी जब उसे   अभिकर्त्ता  द्वारा कपटपूर्वक छुपाया न गया हो|

नोटिस का प्रभाव (Effect of Notice) - सूचना का साम्यिक सिद्धांत अंतःकरण के विरुद्ध संव्यवहारो को नियंत्रण करता है और संपत्ति अंतरण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत इसे मान्यता दी गई है |

उदाहरण के लिए – धारा 39 में यदि कोई संपत्ति जिसमें से किसी व्यक्ति को भरण-पोषण करने का अधिकार है, अंतरित की जाती है तो अंतरिती वह संपत्ति उक्त अधिकार के सूचना सहित  प्राप्त करता है| अर्थात उस संपत्ति पर भरण-पोषण का अधिकार अंतरिती के विरुद्ध केवल तभी प्राप्त होगा जहाँ अंतरिती को उसकी सूचना हो अथवा  नही |

इसी प्रकार धारा 40 में यदि A, C को कोई संपत्ति अंतरित करता है तथा A ने इससे पूर्व इसी संपत्ति को B  को विक्रय करने का करार किया था तब B, C के विरुद्ध अपनी संविदा को लागू करा सकता है यदि C को संविदा की सूचना थी अथवा नही| यदि C को पूर्व संविदा की सूचना थी और उसके बावजूद वह संपत्ति को प्राप्त करता है तो साम्या इस बात को अंतःकरण के विरुद्ध मानती है और B को अनुतोष प्रदान कराती है कि वह संविदा को C के विरुद्ध लागू करवा सके |
सूचना का साम्यिक सिद्धांत उपरोक्त धाराओं के अतिरिक्त धारा 41, 43, 53, 53 A, 126 इत्यादि में वर्णित है | 

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