Thursday, August 6

सभी प्रकार की संपत्ति अंतरित की जा सकती है, केवल अपवादों को छोड़कर

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 5 में संपत्ति के अंतरण की परिभाषा दी गयी है ‘संपत्ति के अंतरण’ से ऐसा कार्य अभिप्रेत है जिसके द्वारा कोई जीवित व्यक्ति एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को या स्वयं को अथवा स्वयं और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को वर्तमान में या भविष्य में संपत्ति हस्तांतरित करता है और ‘संपत्ति के अंतरण करना’ ऐसा कार्य करना है ।

इस धारा में - ‘जीवित व्यक्ति के अंतर्गत, कम्पनी या संगम या व्यक्तियों का निकाय चाहे वह निगमित हो या न हो, आता है ।

संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत एक वैध अंतरण के लिए संपत्ति का अंतरण योग्य होना आवश्यक है। संपत्ति अंतरण अधिनयम की धारा 6 इस बात की विवेचना करती है कि कौन-सी संपत्ति अंतरणीय है और कौन-सी नहीं। धारा 6 के मूल शब्दों में ‘’किसी भी किस्म की संपत्ति इस अधिनयम या तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय अंतरित की जा सकेगी।’’

जहाँ यह प्रश्न उठता है कि कोई संपत्ति अंतरणीय है कि नहीं, वहां यह देखा जाना आवश्यक है की संपत्ति के अंतरण पर प्रतिबन्ध धारा 6 के अधीन लगाये गये है या तत्समय प्रवृत्त उस समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा अगर संपत्ति के अंतरण पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है, चाहे संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 6 के द्वारा या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा तो संपत्ति अंतरणीय नहीं है।

कुछ प्रकार की संपत्ति के अंतरण पर प्रतिबन्ध धारा 6 के उपखंड ‘क’ से लेकर ‘झ’ के प्रावधानों के माध्यम से लगे है ; इसके अतिरिक्त हिन्दू विधि और मुस्लिम विधि ने कुछ प्रकार की संपत्तियों के अंतरण पर प्रतिबन्ध रखा।

हिन्दू विधि में सहदायिकी संपत्ति के अंतरण पर प्रतिबन्ध लगा हुआ है। अतः ऐसी संपत्ति का अंतरण नहीं किया जा सकता।

इसी प्रकार धार्मिक पद या वे सम्पत्तियां जो धार्मिक प्रयोग के लिए समर्पित की गयी है जैसे - धार्मिक पूजा के लिए या खैरात के लिए, का अंतरण नहीं किया जा सकता।

मुस्लिम विधि में ‘वक्फ’ (न्यास) की संपत्ति, ‘मुतवल्ली’ का पद आदि जो संपत्ति की श्रेणी में आते है, का अंतरण नहीं हो सकता।

अपवाद अग्रलिखित हैं -

संभाव्य उत्तराधिकार {धारा 6 (a)} (Spes Successionis) -इस खंड के अंतर्गत निम्नलिखित आते है, जिनका अंतरण नहीं हो सकता –

1 – किसी प्रत्यक्ष वारिस का एक संपदा का उत्तराधिकारी होने की संभावना ; (The chance of an heir apparent succeeding to an estate;)

2 – कुल्य की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत सम्पदा अभिप्राप्त करने की संभावना ; और (The chance of a relation obtaining legacy on the death of a kinsman;)

3 – इसी प्रकार की कोई भी संभावना।

यहाँ प्रत्यक्ष वारिस से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है, जो भविष्य में उत्तराधिकारी होगा, अगर वह जीवित रहता है, ऐसे व्यक्ति के मरने पर (जिससे वह संपत्ति उत्तराधिकार में पायेगा) और ऐसा व्यक्ति बिना इच्छा पत्र लिखे मर जाता है। यह पद ‘प्रत्यक्ष वारिस’ आंग्ल विधि से लिया गया है, जो स्वयं ही इस सूत्र पर आधारित है जो कहता है ‘nemo est hoeres viventis’ अर्थात कोई भी जीवित व्यक्ति का उत्तराधिकारी नही हैं ( no one is heir of a living person)।

सामान्यतया संभाव्य उत्तराधिकार का अंतरण नहीं हो सकता परन्तु अपवादों के अधीन जैसा कि हिन्दू-विधि में पारिवारिक समझौते के माध्यम से संभाव्य उत्तराधिकार का अंतरण किया जा सकता है।

जहाँ एक पारिवारिक विवाद को सुलझाने के लिए एक माता ने अपने पुत्र के पक्ष में एक दान विलेख निष्पादित किया इस प्रतिफल के एवज में कि वह पुत्र, माता की मृत्यु के पश्चात छोड़ी गई संपत्ति में अपने भावी हिस्से को त्याग देगा वहाँ केरल उच्च न्यायालय ने दामोदर कविराजन बनाम टी.डी. राजप्पन नामक वाद में यह अभिनिर्धारित किया की ऐसा विलेख वास्तव में एक पारिवारिक समझौता है | यद्यपि इसे एक दान विलेख कहा गया परन्तु वास्तव में यह एक पारिवारिक समझौता है।

1 – संभाव्य उत्तराधिकार के अंतरण का करार (An agreement to transfer a spes successionis) - जिस तरह इस देश में सम्भाव्यता का अंतरण शून्य है, ठीक उसी तरह इसके अंतरण का करार भी शून्य है ।

मुस्लिम विधि में भी संभाव्य उत्तराधिकार का अंतरण अविधिमान्य है।

धारा 6 के प्रावधान हिन्दुओं पर भी लागू होते हैं।

यद्यपि आंग्ल विधि में संभाव्यता को संपत्ति नहीं माना गया है, जिसका अंतरण किया जा सकता है परन्तु संभाव्यता के प्रतिफल के बदले अंतरण पर अभिव्यक्त रूप से कोई प्रतिबन्ध नहीं है और ऐसी संभाव्यता का अंतरण, अंतरण की संविदा के रूप में प्रयुक्त होगी।

2 – वसीयत सम्पदा की संभावना (The Chance of Legacy) - उत्तराधिकार की प्रत्याशा या संभाव्य उत्तराधिकार की तुलना में एक सम्बन्धी या मित्र द्वारा वसीयती सम्पदा पाने की संभावना और भी दूरस्थ संभावना है | अतः यह भी अंतरणीय नही है ।

3 – इसी प्रकृति की अन्य सम्भावनायें (Any Other Mere Possibility of a Like Nature) - से तात्पर्य वैसे ही संभावनाओं से है जो ‘संभाव्य उत्तराधिकार’ और वसियती सम्पदा की सम्भावना की प्रकृति की है।

उदाहरण – वह मछुआरे के जाल की अगली दूसरी फेंक से है यहाँ कोई निश्चितता नही है कि मछली पकड़ी जाएगी और मछुआरे का मछली में कोई हित नही है जब तक वह पकड़ी न जाये। एक नौकर की भावी मजदूरी; विक्रय पूर्ण होने से पहले विक्रेता का क्रय मूल्य में हित; विक्रय पूर्ण होने से पहले विक्रेता का क्रय मूल्य में हित; एक प्रतियोगिता में पुरस्कार जीतने की सम्भावना या लाटरी जितने की संभावना इत्यादि।
इस बात को लेकर न्यायालयों में मतभेद है कि क्या मंदिर में भावी चढ़ावे को अंतरित किया जा सकता है ?
कलकत्ता उच्च न्यायालय का मानना है कि भविष्य में पूजा करने वाले चढ़ावा चढ़ाएंगें, यह धारा 6 (a) के अंतर्गत मात्र एक सम्भावना है।

लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मानना है कि भावी चढ़ावा इतना अनिश्चित, परिवर्तनीय और सीमित नही है कि यह विधि के संकल्पना के बहार चला जाये।

पुनः प्रवेश का अधिकार  (Right of Re-entry) - धारा 6(b)के अनुसार ‘मात्र’ पुनः प्रवेश के अधिकार को अंतरित नही किया जा सकता। पुनः प्रवेश के अधिकार से तात्पर्य कब्ज़ा ग्रहण कर लेना या प्राप्त कर लेना है। पुनः प्रवेश का अधिकार सम्पत्ति से जुडा हुआ है। संपत्ति को अलग कर के मात्र पुनः प्रवेश के अधिकार को अंतरित नही किया जा सकता। यदि संपत्ति अंतरित की जाती है तो उसके साथ पुनः प्रवेश का अधिकार भी अपने आप अंतरिती को चला जायेगा। एक ऐसा व्यक्ति जिसका संपत्ति पर अधिकार नही है, उसके पास पुनः प्रवेश का अधिकार नही हो सकता है। पुनः प्रवेश का अधिकार तब भी अंतरित हो जायेगा जब पट्टाकर्ता पट्टेदार को स्थायी पट्टा दे दे, ऐसी स्थिति में पट्टाकर्ता के पास पुनः प्रवेश का अधिकार नही रहेगा।

पट्टाकर्ता के हित का अंतरण (पुनः प्रवेश के अधिकार के साथ ) मात्र पुनः प्रवेश के अधिकार का अंतरण नही है और ऐसा अंतरण विधिमान्य है ।
सुखाचार  (Easement) -  धारा 6(c) के अनुसार “कोई सुखाचार अधिष्ठायी स्थल से पृथकतः अंतरित नहीं किया जा सकता है ।"
‘सुखाचार’ के लिए दो स्थलों (अधिष्ठायी स्थल एवम् अधिसेवी स्थल ) का होना अनिवार्य है। सुखाचार एक सम्पति (अधिसेवी स्थल ) पर दूसरे (अधिष्ठायी स्थल) के लाभ के लिए होता है। अतः सुखाचार का उस संपत्ति  से अलग, जिसके साथ यह जुड़ा हुआ है , कोई अलग अस्तित्व नहीं है। जब संपत्ति  का अंतरण होगा तो यह संपत्ति  के साथ साथ अपने आप अंतरिती के पास चला जायेगा परन्तु सुखाचार अपने आप में एक संपत्ति  नहीं है। अतः केवल सुखाचार का प्रदान किया जाना संपत्ति  का अंतरण नहीं है। अतः केवल सुखाचार का प्रदान किया जाना संपत्ति का अंतरण नहीं है।
प्रतिबंधित हित या व्यक्तिगत अधिकार (Restricted Interests or Personal Rights) - विधि संपत्ति में प्रतिबंधित एवं पूर्ण हित के सृजन को मान्यता देती है। दूसरे शब्दों में संपत्ति में दोनों प्रकार के हितो का सृजन किया जा सकता है चाहे वह प्रतिबंधित हित हो या पूर्ण हित हो। इस प्रकार का प्रतिबंधित अधिकार या हित, स्पष्टतः अन्तरित नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे सम्पति का अंतरण प्रतिबन्ध के उद्देश्य को ही असफल कर देगा उदहारण के लिए- एक ऐसा अधिकार जो उपभोग की दृष्टि से केवल ‘अ’ तक ही सीमित है ‘ब’ को अंतरित नहीं किया जा सकता।
मुस्लिम विधि में हकशुफा के अधिकार का अंतरण नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे अधिकार के अंतरण से वह उद्देश्य ही असफल हो जायेगा जिसके लिए हकशुफा का अधिकार प्रदान किया जाता है।

हकशुफा के अधिकार का उद्देश्य होता है किसी अपरिचित को सह-अंशधारी बनाने से रोकना।

उदाहरण -
(1) - एक मकान विवाह के लिए A द्वारा B को प्रयोजन वश देना B को किसी अन्य को अंतरण का अधिकार प्रदान नहीं करता ।
(2) - एक मंदिर के सैवायत का पद , मठ के महंत का पद और वक्फ के मुतवल्ली का पद अंतरित नहीं किया जा सकता ।
(3)- खर्च-ए-पानदान एक व्यक्तिगत अधिकार है, जो अंतरित नहीं की जा सकती है ।

(4)- मेहर ऋण के भुगतान के बदले अपने पति के सम्पति पर कब्ज़ा प्रतिधारण करने का एक मुस्लिम विधवा का अधिकार भी उसका व्यक्तिगत अधिकार है और वह उसे अंतरित नहीं कर सकती । धारा  6 (d)  के अंतर्गत मुस्लिम विधवा का ऐसा हित प्रतिबंधित हित है।

भावी भरण-पोषण का अधिकार  (Right to Future Maintenance) - धारा 6 (dd) के अनुसार ‘भावी भरण-पोषण के अधिकार’ से तात्पर्य एक व्यक्ति द्वारा दूसरे से भोजन, आवास, वस्त्र एवं जीवन की अन्य आवश्यकताओं को प्राप्त करना है। यह एक व्यक्तिगत अधिकार है चाहे वह किसी भी रीति के उद्भूत, प्रतिभूत (भार के द्वारा), अवधारित हो; अतः इसे अंतरित नहीं किया जा सकता।

भरण-पोषण के बकाये को कुर्क भी किया जा सकता है और उसे अन्य ऋण की भांति बेचा भी जा सकता है। धारा 6 का उपखंड (dd) सम्पति अंतरण अधिनियम में 1929 में जोड़ा गया जिसके परिणाम स्वरूप भरण-पोषण की डिक्री का अनुदेशन (अंतरण) विधिमान्य होगा परन्तु ऐसी भरण-पोषण की अनुदेशन डिक्री प्रोद्भूत (प्राप्य देय) भरण-पोषण के लिए हो न की भावी भरण–पोषण के लिए, यह उपखंड भूतलक्षी नहीं है।

वाद लाने का अधिकार मात्र   (Mere Right to Sue) - धारा 6 (e) के अनुसार वाद लाने के अधिकार मात्र को (वह चाहे जिस भी प्रकृति का हो) उस हित से अलग जिससे यह अधिकार प्रोदभूत होता है, अंतरण नहीं किया जा सकता है ।यह प्रतिबन्ध प्रथमतया तो सार्वजनिक नीति पर आधारित है (जो मुकदमे बाजी में सट्टेबाजी या जुये की अनुमति नहीं देती) और दूसरा इस बात पर आधारित है कि ‘वाद लाने का अधिकार मात्र’ संपत्ति बिल्कुल नहीं है अपितु भावी संपत्ति पाने का मात्र एक दावा है।

 वाद लाने का अधिकार पीड़ित पक्षकार का व्यक्तिगत अधिकार है। अतः एक दुष्कृति के परिणामस्वरूप नुकसानी पाने के लिए वाद लाने के अधिकार का या संविदा भंग के परिणामस्वरूप नुकसानी पाने के लिए वाद लाने के अधिकार का अंतरण नहीं किया जा सकता।

इस सम्बन्ध में निर्धन याचिका पोषणीय नहीं है।

लोक पद का अंतरण  (Transfer of Public Office) - धारा 6 (f) के अनुसार इस खण्ड के अन्तर्गत न तो लोकपद अंतरित किया  जा सकता है और न ही उसके साथ जुड़ा वेतन I कोई भी व्यक्ति लोकपद अपने व्यक्तिगत योग्यता के कारण धारित करता है। अतः लोकनीति के विरुद्ध होगा कि कोई अपना पद अंतरित करे।

जहाँ एक व्यक्ति एक करार के माध्यम से यह वादा करता है कि वह अपनी आय का कुछ हिस्सा अपने भाई को देगा क्योंकि उसके भाई ने उसे पाला-पोषा और पढ़ाया-लिखाया, वहां मद्रास उच्च न्यायालय ने अनन्थैया बनाम सुब्बाराव नामक वाद में यह अभिनिर्धारित किया कि ऐसा करार इस खण्ड के प्रावधानों से बाधित नहीं होता क्योंकि ऐसा व्यक्ति वाद में लोक सेवक हो गया। अपने निर्णय की पुष्टि में न्यायालय तर्क देते हुये कहा कि करार की धनराशि करार करने वाला व्यक्ति अपनी बचत या अन्य आय से दे सकता है। यह लोकपद का अंतरण नहीं है।

वृत्तिकायें या पेंशन का अंतरण   (Transfer of Pensions) - धारा 6(g) के अनुसार पेंशन की परिभाषा न तो संपत्ति अंतरण अधिनियम में दी गई है और न ही पेंशन अधिनियम ,1871 में सिविल प्रक्रिया सहिंता 1908 की धारा 60 (1)(g) के अनुसार पेंशन की कुर्की नहीं हो सकती। ऐसा ही प्रावधान पेंशन अधिनियम 1871 में भी है।

पेंशन किसे कहते है ? – पेंशन एक आवधिक भत्ता या वृत्तिका है जो किसी को किसी अधिकार, विशेषाधिकार, परिलब्धि या पद के नाते नहीं प्रदान की जाती है अपितु सेवाओं, विशिष्ट गुण या राज्यचुत राजाओं, उनके परिवार या आश्रितों को प्रतिकर के रूप में दी जाती है।

ऐसी पेंशन जो सरकार के सैनिक, नौसनिक, वायुसैनिक और सिविल पेंशन भोगियों को अनुज्ञात हो और राजनैतिक पेंशन, अंतरित नहीं की जा सकती। पेंशन के अंतरण की अनुमति देना लोकनीति के विरुद्ध होगा।

परन्तु यहाँ यह ध्यान देना आवश्यक है कि पेंशन तभी तक पेंशन रहती है  जब तक यह अदत्त है और सरकार के हाथों में  है परन्तु ज्यो ही यह पेंशनभोगी या उसके विधिक प्रतिनिधि या अभिकर्त्ता को भुगतान कर दी जाती है यह कुर्क भी की जा सकती है और इसका अंतरण भी हो सकता है।

चूँकि पारिवारिक पेंशन ‘संपत्ति’ नही है, अतः यह अंतरण योग्य नही है इसलिये इसे वसीयत की विषयवस्तु नहीं बनाया जा सकता।

वे परिस्थितयां जिनमे अंतरण नही हो सकता [धारा 6 (ज)] (Situations Under Which No Transfer Can Be Made) - धारा 6 खण्ड ‘क’ से लेकर ‘छ’ तक इस बात की विवेचना करते हैं कि किस प्रकार की संपत्ति  (हित) का अंतरण नहीं हो सकता। परन्तु यह खण्ड इस बात की विवेचना करता है कि कतिपय स्थितियों में संपत्ति का अंतरण नही हो सकता। यह खण्ड ऐसी तीन स्थितियों की विवेचना करता है –

(क)- जहाँ अंतरण हित के प्रकृतितः प्रतिकूल हो  (Where the transfer is opposed to the nature of the interest affected thereby) - जहाँ अंतरण हित के प्रकृतितः प्रतिकूल हो या जहाँ अंतरण सम्पत्ति के स्वाभाव के लिए क्षतिकर हो वहां ऐसा अंतरण संपत्ति के स्वभाव के प्रतिकूल होगा। इसी प्रकार सामुदायिक वस्तुएं जैसे – प्रकाश, वायु और नदियाँ या समुद्र का जल प्रकृतितः या स्वभावतः ऐसी होती है जिनका अंतरण नही हो सकता।

(ख)- विधिविरुद्ध उद्देश्य या उसका प्रतिफल (Transfer for unlawful object or consideration) - अंतरण के विधिमान्य होने के लिए आवश्यक है कि उद्देश्य या प्रतिफल दोनों वैध होने चाहिए। ‘उद्देश्य’ वही चीज नही है  जो ‘प्रतिफल’ है। उद्देश्य से तात्पर्य प्रयोजन  या आशय होता है।

जहाँ संपत्ति का अंतरण एक वेश्या को भावी सहवास के लिए किया गया है, वहां ऐसा अंतरण प्रतिफल सहित है परन्तु ऐसा प्रतिफल अनैतिक होने के विधिविरुद्ध है  परन्तु जहाँ अंतरण इस तथ्य से अभिप्रेरित है कि अंतरणकर्ता और अंतरिती ने सहवास किया था, उच्चतम न्यायालय ने नागारत्नाम्बा बनाम रमैया नामक वाद में यह अभिनिर्धारित किया कि वहां अंतरण के लिए कोई प्रतिफल नही था। अतः ऐसे अंतरण को दान माना जायेगा और ऐसा अंतरण धारा 6(h) के प्रावधानों से बाधित नही है।

किसी अन्तरण का उद्देश्य या प्रतिफल वैध है, इस बात का निश्चय भारतीय संविदा अधिनयम 1872 की धारा 23 के सन्दर्भ में किया जाना चाहिए।

(ग)- व्यक्ति जो अंतरिती होने से विधितः निरर्हित हो(Transferee is legally disqualified to be a transferee ) – संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 136 में ऐसे लोगों की सूची दी गयी है जो विधितः अंतरिती नहीं हो  सकते। धारा  136 के अनुसार – ‘’कोई भी न्यायाधीश या विधि व्यवसायी अथवा कोई ऑफिसर जो किसी न्यायालय में संसक्त है, किसी अनुयोज्य दावे में किसी अंश या हित का न तो क्रय करेगा न दुर्व्यापार करेगा, न उसके लिए अनुबन्ध करेगा और न उसे प्राप्त करने के लिए करार करेगा।’’

भारत में  यद्यपि  एक अवयस्क की संविदा शून्य है फिर भी वह संपत्ति के अंतरण में अंतरिती हो सकता है। वह संपत्ति का क्रेता हो सकता है, वह बन्धकी हो सकता है परन्तु एक अवयस्क एक पट्टे में पट्टेदार नहीं हो सकता क्योंकि उसे किराये के भुगतान आदि की प्रसंविदा करनी होती है ; जो वह नही कर सकता। न्यासी, न्यास संपत्ति में हिताधिकारी का हित नहीं क्रय कर सकता ।

अधिभोग का अनन्तरणीय अधिकार {धारा 6(i)} (Untransferable Right of Occupancy) - यह उपखंड वहां लागू होता है जहाँ अधिभोग के अधिकार के विरुद्ध प्रतिबन्ध विधि द्वारा अधिरोपित किये गये है । यह वहां लागू नही होता जहाँ प्रतिबन्ध पक्षकारों के करार के द्वारा या एक डिक्री के माध्यम से लगाये गये है।

इस खण्ड के अंतर्गत निम्न प्रकार के हितो को अनन्तरणीय बनाया गया है –
(1)- एक ऐसा अभिधारी जिसका अधिभोग का अधिकार अनन्तरणीय है, अधिभोग में अपने हित का अंतरण नहीं कर सकता ।
(2)- ऐसी संपदा का कृषक जिस सम्पदा के लिए राजस्व देने में व्यतिक्रम हुआ है, धृति में अपने हित को अंतरित नहीं कर सकता ।
(3)- ऐसी सम्पदा का पट्टेदार जो प्रतिपाल्य अधिकरण के प्रबंध के अधीन है, अपने हित का अंतरण नहीं कर सकता।

सामन्यतया संभाव्य उत्तराधिकार का अंतरण नही हो सकता परन्तु अपवादों के अधीन जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने गुलाम अब्बास बनाम हाजी कयूम अली नामक वाद में इंगित किया उससे बचा जा सकता है या तो एक पारिवारिक राजीनामा निष्पादित करके या भावी अंश के लिए प्रतिफल स्वीकार करके।

सूरज देवी बनाम सीता देवी नामक वाद में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय  में कहा कि उपादान और पेंशन दोनों अंतरणीय है | न्यायालय के अनुसार धारा 6 खण्ड (g) के अनुसार जो प्रतिबंधित है वह हैं वृत्तिकाएं और राजनैतिक पेंशन, न की पेंशन |


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