Wednesday, May 20

भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर अनुच्छेद 21 के अंतर्गत कई अधिकारों का समावेश किया है इन नए अधिकारों के निर्णीत वादों के आधार पर विवेचना

 अनुच्छेद 123 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके उपरांत एवं दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं।

     यह उल्लेखनीय है कि प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी अधिकारों में श्रेष्ठ है और अनुच्छेद 123 इसी अधिकार को संरक्षण प्रदान करता है या अधिकार भारत के नागरिक तथा गैर नागरिक दोनों को ही प्राप्त है।

      जीवन के अधिकार का अर्थ मानव गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार है इसमें मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाने वाले सभी तत्व सम्मिलित है दैहिक स्वतंत्रता के अंतर्गत व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करने में सहायक सभी तत्व इसी पदावली में शामिल है विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया संसद या विधानमंडल द्वारा बनाए जाने वाले निर्धारित की जाने वाली प्रक्रिया को कहा जाता है अमेरिका के संविधान में इसके स्थान पर सम्यक विधि प्रक्रिया वाक्यांश का प्रयोग किया गया है।

      अनुच्छेद 21 विधायिका तथा कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है लेकिन प्रारंभ में उच्चतम न्यायालय ने ए के गोपालन बनाम मद्रास राज्य 1950 के मामले में यह मत व्यक्त किया था कि अनुच्छेद 123 केवल कार्यपालिका दो कृतियों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है विधानमंडल के विरुद्ध  नहीं।

       अतः: विधानमंडल कोई भी विधि पारित करके किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित कर सकता है।

          किंतु मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 123 में वर्णित प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता को एक नया आयाम दिया इस निर्णय द्वारा ए के गोपालन में दिए गए निर्णय को उलट दिया और कहा कि अनुच्छेद 123 केवल कार्यपालिका कृतियों के विरुद्ध ही नहीं बल्कि विधायिका के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है ।

विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधि के अधीन विहित प्रक्रिया जो किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित करती है उचित युक्तियुक्त अर्थात नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए।

   यहां यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका में सम्यक विधि प्रक्रिया के बिना किसी व्यक्ति से उसकी दैहिक स्वतंत्रता को नहीं छीना जा सकता है सम्यक विधि प्रक्रिया का वहां के न्यायालयों ने बड़ा विस्तृत अर्थ लगाया और इसकी तुलना नैसर्गिक न्याय से की।

       भारत में दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया कह दिया अर्थात अनुच्छेद 123 में प्रदत्त अधिकार विधायिका द्वारा बनाई गई विधियों के अधीन है किंतु मेनका गांधी के बाद में दिए गए निर्णय के अनुसार अमेरिका और भारतीय स्थिति में कोई अंतर नहीं रह गया है मेनका गांधी के मामले में न्यायालय का निर्णय सुनाते हुए न्यायाधीश पी एन भगवती ने कहा कि नैसर्गिक न्याय अनुच्छेद 21  का आवश्यक भाग है यह आवश्यक नहीं है कि किसी अधिकार का उल्लेख किस अनुच्छेद में किया जाए तभी वह मूल अधिकार की श्रेणी में आएगा यदि कोई अधिकार किस अधिकार के प्रयोग के लिए आवश्यक मूल अधिकारों का उल्लेख संविधान के किस अनुच्छेद में नहीं किया गया हो।

   न्यायालय ने यह भी कहा कि प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाए रखते हुए जीने का अधिकार है दही स्वतंत्रता शब्दावली अत्यंत व्यापक अर्थ वाली शब्दावली है और इसके अंतर्गत ऐसे बहुत से अधिकार शामिल हैं जिनसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गठन होता है साथ ही उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया कि अनुच्छेद में प्रयुक्त प्रक्रिया का अर्थ कोई प्रक्रिया नहीं है बल्कि ऐसी प्रक्रिया है जो उचित न्याय और युक्तियुक्तता का सिद्धांत आवश्यक तत्व किसी को उसके मूल अधिकारों से वंचित करने के लिए प्रक्रिया होनी चाहिए और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किया जाएगा इस प्रकार मेनका गांधी के  निर्णय के बाद उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधीन निम्नलिखित अधिकारों को सम्मिलित किया गया है।

1. सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार- भारत में प्रत्येक नागरिक को सम्मानजनक और मानव गरिमा युक्त जीवन जीने का अधिकार है।

  वी बी  अन्वेकर बनाम कर्नाटक राज्य 2013 सुप्रीम कोर्ट
 के मामले में यह अभि निर्धारित किया गया कि महिलाओं पर हमला करना तथा उन्हें आत्महत्या के लिए उत्प्रेरित करना उनकी गरिमा के विरुद्ध है।

2. जीविकोपार्जन का अधिकार-   ओलिगा तेलीस बनाम मुंबई नगर निगम 1986 सुप्रीम कोर्ट के मामले में और निर्धारित किया गया कि जीविकोपार्जन का अधिकार प्राण के अधिकार के अंतर्गत है क्योंकि कोई व्यक्ति जीवित रहने के साधन के बिना जीवित नहीं रह सकता किंतु यह वास्तविक अधिकार नहीं है इस पर युक्तियुक्त निर्बंधन लगाया जा सकता है

3. चिकित्सा का अधिकार-     परमानंद कटारा बनाम भारत संघ 1989 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद  21 के अधीन सरकारी एवं निजी अस्पताल में कार्यरत चिकित्सकों का यह कर्तव्य है कि वह घायल व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत विधिक प्रक्रिया अर्थात पुलिस कार्यवाही पूरी होने की प्रतीक्षा किए बिना शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सा सहायता प्रदान करें और घायल व्यक्ति की रक्षा करें।

4. शिक्षा का अधिकार--     उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 1993 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि जीवन के अधिकार में शिक्षा का अधिकार भी शामिल है तथा अनुच्छेद 123 इस अधिकार को मान्यता देता है 86 वें संविधान संशोधन 2002 द्वारा अनुच्छेद 21 के पश्चात एक नया अनुच्छेद   21 ए जोड़कर शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार बना दिया गया है अनुच्छेद 21  ए उपबंधित करता है कि राज्य ऐसी रीती से जैसा कि विधि बनाकर निर्धारित करें 6 वर्ष की आयु से 14 वर्ष के आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगी।

5. मरने का अधिकार—रतीराम बनाम भारत संघ 1994 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार भी सम्मिलित है अतः भारतीय दंड संहिता की धारा 309 जो आत्महत्या के प्रयत्न को दंडनीय बनाती है वह असंवैधानिक है।

        किंतु श्रीमती ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य 1996 के मामले में उच्चतम न्यायालय में उपर्युक्त निर्णय को लड़ते हुए अभि निर्धारित किया कि अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार के अंतर्गत मरने का अधिकार सम्मिलित  नहीं है तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 309 एवं 306 संवैधानिक है।

 एकांतता का अधिकार—राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य 1994 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि एकांतता का अधिकार अनुच्छेद 21 में शामिल है किंतु या अत्यांतिक अधिकार नहीं है और इस पर निर्बंधन लगाया जा सकता है कोई भी व्यक्ति किसी के निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।

मि.एक्स  बनाम हॉस्पिटल जेड 1999 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त एकांतता का अधिकार  अत्यांतिक नहीं है उस पर अपराध रोकने  अवयस्कता स्वास्थ्य एवं नैतिकता के अधिकार पर निर्बंधन लगाया जा सकता है।

 लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2006 सुप्रीम कोर्ट के मामले में और निर्धारित किया गया कि वयस्क बालक एवं बालिका को अंतरजातीय विवाह का अधिकार है।

6. लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का अधिकार--   लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूल अधिकार मांगते हुए भूरेलाल समिति की रिपोर्ट को लागू करते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश जारी किया कि 2 अक्टूबर 1998 से देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी सभी व्यवसायिक वाहन ट्रक वश टैक्सी एवं ऑटो रिक्शा आदि प्रतिबंधित कर दिया जाए जो 15 वर्ष पुराने हो चुके हैं 15 अगस्त 1998 के दिन से माल ले जाने वाले वाहनों को कठोरता से प्रतिबंधित कर दिया जाए शीशा मिश्रित पेट्रोल दिल्ली में प्रतिबंधित कर दिया जाए सन 1990 के पूर्व के ऑटो एवं टैक्सियों की जगह नए वाहन स्वच्छ ईंधन से चलाई जाए 18 वर्ष पुराने बस स्वच्छ  ईंधन अथवा CNG से चलाया जाए।
 एम सी मेहता बनाम भारत संघ 1998 सुप्रीम कोर्ट

7. विदेश यात्रा का अधिकार-    सतवंत सिंह बनाम सहायक पासपोर्ट अधिकारी नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि के मामले में अभी निर्धारित किया गया कि दैहिक स्वतंत्रता में संचरण की अर्थात इच्छा अनुसार कहीं भी कभी भी जाने का अधिकार आता है जिसमें विदेश भ्रमण भी शामिल है।

8. शीघ्र परीक्षण का अधिकार-   हुस्नआरा खातून बनाम स्टेट ऑफ बिहार 1979 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उपग्रह परीक्षण एवं निशुल्क विधिक सहायता अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का आवश्यक तत्व है।

     लेकिन वी के शशिकला बनाम स्टेट 2013 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्मित किया गया कि तुम्हारी तो विचारों के साथ-साथ रिज विचारण भी होना अपेक्षित है

9. अवैध गिरफ्तारी तथा पुलिस अभिरक्षा में अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध संरक्षण-   लीलावती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य 1993 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्मित किया गया कि पुलिस अभिरक्षा में गिरफ्तार व्यक्ति तथा जेल की कैदियों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है और यदि वह ऐसा करने में असमर्थ रहता है तो उससे पीड़ित व्यक्ति या उसके परिवार को प्रति कर देना होगा।

  डी के बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 1968 सुप्रीम कोर्ट के मामले में गिरफ्तारी के संबंध में महत्वपूर्ण मार्गदर्शक सिद्धांत प्रतिपादित किए गए जिससे अवैध गिरफ्तारी से व्यक्तियों की सुरक्षा की जा सके इस मामले में न्यायालय ने कहा कि पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु होना किसी शासन द्वारा शासित सभ्य समाज में सबसे खराब अपराध है।

10. यौन उत्पीड़न से  संरक्षण-   विशाखा बनाम राजस्थान राज्य 1997 सुप्रीम कोर्ट  के मामले में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक नियोजक  या अन्य व्यक्तियों का यह कर्तव्य है कि काम के स्थान या अन्य स्थानों में चाहे पब्लिक हो या निजी श्रमजीवी महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने का समुचित उपाय करें।

11. आहार पाने का अधिकार-   पी यू सी एम बनाम भारत संघ 2005 सुप्रीम कोर्ट के मामले में और निर्धारित किया गया कि जो लोग खाद्य सामग्री खरीदने में असमर्थता के कारण भूख से पीड़ित है अनुच्छेद 21 के अधीन राज्य सरकार द्वारा खाद्य सामग्री मुफ्त पाने का अधिकार हो और उस समय राज्य की गोदाम में पर्याप्त मात्रा में अनाज भरे पड़े हैं और सड़ रहे हैं।

12. निशुल्क विधिक सहायता- MH खासकर बनाम महाराष्ट्र राज्य सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि सिद्ध दोष व्यक्ति को अपील दायर करने का मुख्य अधिकार है तथा उसको निर्णय की प्रति निशुल्क दी जाएगी यदि वह आर्थिक रूप से असमर्थ है तो उसे निशुल्क आर्थिक सहायता दी जाएगी यह अधिकार अपील पर उपलब्ध है।

   ऐसा ही मत राजू बनाम MP स्टेट 2012 सुप्रीम कोर्ट 2012 सुप्रीम कोर्ट मैं व्यक्त किया गया है।

13. एकांत कारावास के विरुद्ध संरक्षण-  सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन 1978 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सिद्ध दोष व्यक्तियों को भी दैहिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्राप्त है और विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया बिना उन्हें उन से वंचित नहीं किया जा सकता मृत्युदंड पाए जाने मात्र सेे वह मनुष्य की श्रेणी से बाहर नहीं हो जाता है।

14. बलात्कार से पीड़ित महिला का अंतरिम प्रति कर पाने का अधिकार-  बोधिसत्व गौतम बनाम शुभ्रा चक्रवर्ती 1996 सुप्रीम कोर्ट के मामले में अभि निर्धारित किया गया कि न्यायालय को बलात्कार से शिकार महिला को अंतरिम प्रति कर देने की शक्ति है जब तक कि विचारण न्यायालय अभियुक्त पर लगाए आरोप  पर अपना निर्णय नहीं दे देता है।

15. अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध संरक्षण-   किशोर सिंह बनाम राजस्थान राज्य 1981 सुप्रीम कोर्ट के मामले में न्यायालय ने कहा कि किसी कैदी को मात्र तुच्छ आधारों पर उससे 11 माह तक हथकड़ी के साथ एकांत कारावास में रखना अमान्य कार्य है और अनुच्छेद 14 19 एवं अनुच्छेद 21 के अधीन मानव प्रतिष्ठा पर आघात है।

16. हथकड़ी लगाने के विरुद्ध संरक्षण-   प्रेमशंकर बनाम दिल्ली प्रशासन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हथकड़ी का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब कैदी के पुलिस अभिरक्षा से भागने का स्पष्ट और वर्तमान खतरा हो।

17. अवैध गिरफ्तारी के विरुद्ध संरक्षण- जोगिंदर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1994 सुप्रीम कोर्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के सहभागी होने के संदेह मात्र पर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है इसके अतिरिक्त पुलिस अधिकारी को इस बात से संतुष्ट होना आवश्यक है कि उसे गिरफ्तार करने का युक्तियुक्त  औचित्य है।

18. लोक साधारण के विरुद्ध फांसी देने के विरुद्ध संरक्षण - भारत के महान्यायवादी बनाम लक्ष्मी देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सब के सामने मृत्युदंड देना अनुच्छेद 21 के अधीन प्रदत्त मूल अधिकार का उल्लंघन है जो आम आदमी और मानव गरिमा के विरुद्ध दंड देना  वर्जित करता है।

19. आपात उद्घोषणा और दैहिक स्वतंत्रता- संविधान का अनुच्छेद 359 44 वां संविधान संशोधन 1978 के पूर्व यह उपबंधित करता था कि जब अनुच्छेद 352 के अधीन आपात उद्घोषणा परिवर्तन में है राष्ट्रपति आदेश द्वारा भाग 3 में प्रदत्त अधिकारों में किसी को जिसे वह उचित समझें उसके परिवर्तित करने के न्यायालय के अधिकार को निलंबित कर दे राष्ट्रपति अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार के प्रवर्तन के अधिकार को  आपात काल के दौरान निलंबित कर सकते थे।

 ए डी एम  जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला 1976 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि आपात उद्घोषणा के परिवर्तन काल में किसी व्यक्ति को किसी भी आधार पर निरोध की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने का अधिकार नहीं है जब अनुच्छेद 21 अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निलंबित कर दिया जाता है तो कोई व्यक्ति अनुच्छेद 226 के अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका न्यायालय में दाखिल नहीं कर सकता।

                इस निर्णय के परिणाम स्वरुप व्याप्त  असंतोष की 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा दूर करने का प्रयास किया गया जो अनुच्छेद 359 को संशोधन करके स्पष्ट कर देता है की भविष्य में अनुच्छेद 21 में प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार को राष्ट्रपति के आदेश द्वारा भी आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता है इस संशोधन के परिणाम स्वरुप अब कोई व्यक्ति अपनी निरोध की विधि मान्यता को आपातकाल में भी न्यायालय में चुनौती दे सकता है।

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