Wednesday, May 20

शोषण के विरुद्ध अधिकार

मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध-- (अनुच्छेद 23)
               संविधान के अनुच्छेद 23 के माध्यम से मानव दुर्व्यापार एवं बलात श्रम पर प्रतिषेध लगाया गया है। मानव दुर्व्यापार एक विसद् पदावली है इसमें मात्र मनुष्य का क्रय विक्रय सम्मिलित नहीं है बल्कि इसमें मानव नारी क्रय विक्रय तथा स्त्री एवं बच्चों का अनैतिक व्यापार तथा उसके अनैतिक प्रयोग एवं वैश्यावृति त्याग भी सम्मिलित है अनुच्छेद 35 के अंतर्गत ऐसे कृतियों के विरुद्ध कानून बनाकर निषिद्ध घोषित करने का अधिकार संसद को है इसी अधिकार के अंतर्गत सप्रेशन ऑफ मोरल ट्रैफिक वूमेन एंड गर्ल्स एक्ट 1956 पारित किया गया इस अधिनियम के अंतर्गत मानव दुर्व्यापार एक अपराध घोषित किया गया है।

    इस प्रकार यह अनुच्छेद मनुष्य के दुर्व्यापार एवं बेगार एवं इसी प्रकार के अन्य जबरन लिए जाने वाले श्रम  को प्रतिषेध  करता है यदि  इस उपबंध को राज्य या किसी अन्य व्यक्तियों द्वारा  उल्लंघन  किया जाता है तो यह दंडनीय होगा।

 पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट बनाम भारत संघ 1982 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि अनुच्छेद 23 केवल बेगार को ही नहीं बल्कि इसी प्रकार के सभी जबरन लिए जाने वाले कार्य को वर्जित करता है क्योंकि इससे मानव प्रतिष्ठा एवं गरिमा पर आघात पहुंचता है।

 दीना बनाम भारत सन 1983 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि उचित पारिश्रमिक दिए  बिना कैदियों से काम कराना बलात श्रम है और इससे अनुच्छेद 23 का उल्लंघन होता है।

 नीरजा चौधरी बनाम मध्यप्रदेश राज्य 1984 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह बंधुआ मजदूरों को न केवल मुक्त कराए वरन उनके पुनर्वास की भी व्यवस्था करें तथा अभाववस वह पुनः शोषण के विरुद्ध शिकार ना हो।

 बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत संघ 1984 सुप्रीम कोर्ट के मामले में कहा गया कि बलात श्रम के मामले न्यायालय में पीआईएल अर्थात जनहित वाद के माध्यम से उठाए जा सकते हैं।

 अपवाद—(अनुच्छेद 24)

1. किसी अपराध के लिए दंड स्वरूप कराया गया बलात श्रम अनुच्छेद 23 के प्रावधानों से अप्रभावित रहता है।

2. अतिरिक्त कार्य बलात श्रम की श्रेणी में नहीं आता है यदि उसके लिए युक्तियुक्त पारिश्रमिक देय हैं और ऐसे कार्य के पीछे कुछ आधार है तथा।

3. ऐसे कार्य अनुच्छेद 23(2) के अंतर्गत राज्य द्वारा सार्वजनिक प्रयोजन हेतु अनिवार्य सेवाओं के रूप में कराए जा सकते हैं किंतु ऐसा करने में राज्य द्वारा धर्म वंश जाति वर्ग के आधार पर विभेद ना किया गया हो जैसे राज्य अनिवार्य सैनिक सेवा हेतु नागरिकों को बाध्य कर सकता है।

 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध (अनुच्छेद 24)—
                     अनुच्छेद 24 के माध्यम से 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखाने या खान में जोखिम भरे कृत्य कराने पर प्रतिबंध लगाया गया है इस अनुच्छेद का उद्देश्य कम आयु के बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करना है इसलिए अनुच्छेद 39 द्वारा राज्य पर यह कर्तव्य अधिरोपित किया गया है कि वह बच्चों के स्वास्थ्य एवं कार्य क्षमता को सुरक्षित रखें इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु कई अधिनियम पारित किए गए हैं जिनके माध्यम से 14 वर्ष के कम आयु के बच्चों को जोखिम भरे कार्यों में कार्य कराने पर प्रतिबंध लगाया गया है।

 पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट बनाम भारत संघ 1983 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह तर्क दिया गया कि भवन निर्माण कारखाने में एंप्लॉयमेंट एवं चिल्ड्रन एक्ट 1983 लागू नहीं होता है किन्तु न्यायालय ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि भवन निर्माण कार्य अनुच्छेद 24 के अंतर्गत एक जोखिम वाला कार्य है अतः उसमें 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को नियोजित नहीं किया जा सकता भले ही इसका उल्लंघन अधिनियम की सूची में ना किया गया हो।

 एम सी मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य 1987 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे को किसी कारखाने या खान या अन्य संकटपूर्ण कार्यों में नियोजित नहीं किया जा सकता न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि चाइल्ड लेबर रिहैबिलिटेशन वेलफेयर फंड की स्थापना किया जाए।

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