Thursday, May 21

संविधान के अनुच्छेद 226 व 32 के अंतर्गत याची को अनुतोष प्रदान करने वाले प्रावधान

    अनुच्छेद 32 और 226 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय निम्नलिखित रिट जारी कर सकते हैं—

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण -जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बना लिया जाता है तो   उनको मुक्त कराने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख का प्रयोग किया जाता है यह एक आदेश के रूप में उस व्यक्ति को जारी किया जाता है। इसके लिए आवेदन गिरफ्तार व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति दे सकता है प्रारंभ में इस रिट के अंतर्गत निरुद्ध व्यक्तियों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक शर्त था।

 कालू सान्ड्याल बनाम मजिस्ट्रेट दार्जिलिंग के मामले में न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 32 के अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने के लिए निरुद्ध व्यक्ति को न्यायालय में के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है वह एक प्रक्रियात्मक रिट है इसका संबंध न्याय पद्धति से है ना की मौलिक विधि से।

 सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन 1978 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि इस रिट का प्रयोग गिरफ्तार व्यक्ति को केवल गिरफ्तारी से मुक्त कराने के लिए नहीं वरन जेल में उसके विरुद्ध किए गए अमानवीय व्यवहार से संरक्षण प्रदान करने के लिए किया जाएगा जहां कहीं अन्याय दिखाई पड़ेगा न्यायालय उसे दूर करने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करेगा।

 बंदी प्रत्यक्षीकरण एक लैटिन पद है जिसका शाब्दिक है  “निरूध्द व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करो”

 केरल राज्य बनाम अब्दुल्ला 1965 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कथित किया की बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख की प्रकृति  ऐसे आदेश से है जो दूसरे को निरोध कर रखा है न्यायालय के समक्ष पेश करने से है यदि कारावास के लिए कोई विधिक औचित्य ना हो तो उसे मुक्त कर दें।

 त्रिलोकी चंद मोतीचंद बनाम एबी मुंशी 1970 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उपचार की मांग युक्तियुक्त समय के अंदर की जानी चाहिए।

2. परमादेश रिट - परमादेश का अर्थ सकारात्मक आदेश देना जैसे आमुख कार्य करो ऐसा आदेश सरकार व निगम के विरुद्ध दिया जा सकता है जब किसी लोक अधिकारी पर विधि कर्तव्य होता है कि वह कोई कार्य करें यदि उसके कार्य न करने से किसी को अधिकार का हनन होता है तो वह परमादेश के लिए याचिका दायर कर सकता है उदाहरणतया यदि किसी व्यक्ति को लाइसेंस देने से मना किया जाता है जबकि वह उसका हकदार है तो वह न्यायालय यह सकारात्मक आदेश दे सकता है कि उसे लाइसेंस दिया जाए।

     उक्त रिट जारी करने के लिए यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति जिस अधिकारी के विरुद्ध परमादेश की मांग करता हो वह अधिकारी विधि के अंतर्गत कर्तव्य पालन करने के लिए सक्षम है वही व्यक्ति परमादेश के लिए आवेदन दे सकता है जो कार्य कराने का विधिक अधिकार रखता है।

 भगवान राव साहू का नाम लीलाधर प्रसाद चंद्राकर 2012 छत्तीसगढ़ के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि ऐसे व्यक्ति के पक्ष में परमादेश रिट जारी नहीं किया जा सकता है जिसे कोई विधिक अधिकार ना  हो।

 रोहतास बनाम भारत संघ 1976 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह मत व्यक्त किया गया कि परमादेश रिट कर्तव्य के बीच संविदात्मक कर्तव्य के पालन के लिए नहीं जारी किया जा सकता है।

3. प्रतिषेध - इस लेख का तात्पर्य ऐसे लेख से है जो किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालय या तब जारी किया जाता है जबकि अपने क्षेत्राधिकार से परे या क्षेत्राधिकार के अतिरेक में कार्य किया है सामान्य तौर पर इस तरह के लेख जारी करने का मुख्य उद्देश्य अधीनस्थ न्यायालय तथा न्यायाधिकरणों को क्षेत्राधिकार से परे कार्य करने से प्रतिषेध करता है।

4. अधिकार पृच्छा- जब कोई व्यक्ति बिना किसी अधिकार के लोक पद पर आसीन हो जाता है तो किसी  पक्षकार के अधिकार का परीक्षण इस दृष्टि से किया जाता है कि यदि उसके आधारों अधिकारों का कोई आधार ना हो तो उसे उस पद से पदच्युत कर दिया जा सके यह रिट केवल लोक पद के लिए जारी की जाएगी व्यक्तिगत न्याय के लिए नहीं।

    यह रिट उस पद को धारण करने वाले से यह पूछती है कि वह न्यायालय के समक्ष पद बताएं कि वह इस पद को किस आधार पर धारण कर रहा है यदि न्यायालय निर्णय करें कि यह पक्षकार बिना किसी वैध आधार के पद धारण करता है तो न्यायालय से पदच्युत करने का आदेश देगा।

  अधिकार  पृच्छा लेख प्राप्त करने के लिए 2 शर्तें पूरी होनी चाहिए-

1.   प्रश्नापद पद एक सार्वजनिक पद से
2. व्यक्ति को विधिक रुप से उस पद को धारण करने का अधिकार ना हो।

 राजेश अवस्थी बनाम नंदलाल जायसवाल 2013 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि एक नागरिक अधिकार पृच्छा रिट का दावा कर सकता है और वह एक वक्ता की स्थिति में होता है उसका कोई विशेषतया व्यक्तिगत हित होना आवश्यक नहीं है वास्तविक मापदंड यह है कि वह व्यक्ति जो पद धारण करता है  विधि के आधार पर धारण करने के लिए प्राधिकृत है।

5. उत्प्रेषण-  उत्प्रेषण एक ऐसा आदेश है जिसके द्वारा अवर न्यायालय प्रशासनिक न्यायाधिकरण व अन्य प्राधिकरणों को निर्देशित किया जाता है कि वह किसी मामले से संबंधित अभिलेखों को प्रबल न्यायालय के पास भेज दें इस लेख को स्वयं पीड़ित व्यक्ति ही याचिका प्रस्तुत कर सकता है ।

           वह रिट न्यायिक या  अर्ध न्यायिक हो सकती है 
आपत्ति-- जब अधीनस्थ न्यायालय या प्राधिकरण ने अधिकारिता के बिना कार्य किया है या अधिकारिता का प्रयोग करने में विफल रहा है या अधिकारिता का प्रयोग सही ढंग से नहीं किया है तो इस रिट के माध्यम से संबंधित अभिलेखों को मंगाया जाता है।


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