Sunday, May 17

अपीलीय न्यायालय की शक्तियां

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 386 में अपील न्यायालय की शक्तियों का उल्लेख किया गया है। इस धारा के अधीन अपील न्यायालय के द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग निम्नलिखित दो शर्तें पूरी कर लेने के बाद किया जा सकेगा—

1. न्यायालय अपील के निस्तारण के पूर्व मामले से संबंधित आवश्यक अभिलेखों का परिसिलन करेगा तथा
2. यदि अपीलार्थी या उसका अधिवक्ता हाजिर है तो उसे, तथा यदि लोक अभियोजक हाजिर है तो उसे, और धारा 377 भाग 378 के अधीन अपील की दशा में यदि अभियुक्त हाजिर है तो उसे, सुनने के पश्चात ही अपील पर विचार करेगा।

            जब कोई अपील धारा 384 के अधीन संक्षेपत: खारिज नहीं की जाती है तो उसके निस्तारण इस धारा के अनुसार किया जाता है तथा अपीलीय न्यायालय के लिए यह आवश्यक होता है कि वह इस धारा में वर्णित उपबंधो का अनुपालन करें। अपील के निस्तारण के अंतर्गत न्यायालय पक्षकारों को सुनेगा तथा धारा 385 खंड 2 के अंतर्गत भेजे गए अभिलेखों का परिसिलन करने के बाद ही मामले में विधि के अनुसार निर्णय देगा।
अपील न्यायालय की शक्तियां निम्नवत है—

1. दोष मुक्ति के विरुद्ध—जहां दोषमुक्त के विरुद्ध अपील की गई हो तो ऐसी दशा में अपीलीय न्यायालय—
A. दोष मुक्ति के आदेश को उलट सकता है और यह निर्देश दे सकता है कि अतिरिक्त जांच की जाए अथवा अभियुक्त को पुनः विचारित किया जाए या विचारण करने के लिए सुपुर्द किया जाए।
B. उसे दोषी ठहराते हुए विधि के अनुसार दंड आदेश दे सकता है।
2. दोषसिद्ध के विरुद्ध अपील— दोषसिद्धी के विरुद्ध की गई अपील में अपीलीय न्यायालय—
A. निष्कर्ष और दंडादेश को उलट सकता है और दोष मुक्त कर सकता है या अपने अधीनस्थ न्यायालय को पुनः विचारण के लिए सुपुर्द करने का आदेश दे सकता है, दंडादेश को यथावत रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है, या निष्कर्ष में परिवर्तन करके अथवा किए बिना दंड के स्वरूप और परिणाम में परिवर्तन कर सकता है किंतु इस प्रकार दंड में वृद्धि नहीं कर सकेगा।
3. दंडादेश की वृद्धि के लिए की गई अपील में—
1. निष्कर्ष और दंडादेश को उलट सकता है, अभियुक्त को दोषमुक्त कर सकता है या सक्षम न्यायालय को पुनः विचारण का आदेश दे सकता है या
2. दण्डादेश को यथावत रखते हुए निष्कर्ष में परिवर्तन कर सकता है या
3. निष्कर्ष में परिवर्तन करके या किए बिना दंड के स्वरूप अथवा परिणाम में परिवर्तन कर सकता है या उलट सकता है।

           अपीली न्यायालय को अपील के निस्तारण में संशोधन या कोई पारिणामिक या आनुषंगिक आदेश को न्याय संगत हो पारित करने की शक्ति है। किंतु उक्त शक्ति का प्रयोग निम्नलिखित दशाओं के अधीन किया जाएगा—

1. दंड में तब तक वृद्धि नहीं की जा सकती जब तक कि अभियुक्त को ऐसी वृद्धि के विरुद्ध कारण दर्शित करने का अवसर प्रदान ना किया गया हो।
2. अपीलीय न्यायालय उक्त अपराध के लिए जिसे उसके राय में अभियुक्त ने किया है उससे अधिक दंड नहीं देगा जो दंड आदेश पारित करने वाले न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिए दिया जा सकता था।
3. अपील के अनुक्रम में किसी भी दशा में अपीलीय न्यायालय द्वारा उस व्यक्ति के विरुद्ध कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता जो अपील का पक्षकार नहीं है।
सलीम जिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1979 सुप्रीम कोर्ट के मामले में या आधारित किया गया कि दोषमुक्त के विरुद्ध अपील के निपटारे के समय अपीलीय न्यायालय को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है—

1. साक्षियों की विश्वसनीयता के बारे में विचारण न्यायालय का दृष्टिकोण,
2. अभियुक्त के पक्ष में निर्दोष होने की परिकल्पना,
3. किसी युक्तियुक्त आधार पर अभियुक्त को संदेह का लाभ दिए जाने की संभावना,
4. विचारण न्यायालय द्वारा साक्षियों को सुनने तथा उनका परीक्षण करने के पश्चात निकाले गए तथ्यों तथा निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने से पूर्व अपीलीय न्यायालय से यह अपेक्षित है कि वह इन सब बातों पर सावधानी पूर्वक विचार करें।

गुरु वचन सिंह बनाम सतपाल सिंह 1990 सुप्रीम कोर्ट के मामले में आधारित किया गया कि दोषमुक्त के आदेश में सामान्यतः बाधा नहीं डाली जानी चाहिए।

बानी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1996 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्णय दिया गया कि मामले का गुण दोष पर विचार किए बिना व्यतिक्रम के आधार पर अपील को खारिज कर देना अवैधानिक है। गुण दोष के आधार पर अपील के निपटारे के पूर्व अपीलीय न्यायालय को अपील के पक्षकारों को यदि में उपस्थित है सुनवाई का अवसर प्रदान करना चाहिए यदि पक्षकार न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं रहते हैं तो न्यायालय अपील की सुनवाई को स्थगित करने के लिए बाध्य नहीं है तथा वह गुण दोष के आधार पर अपील का निपटारा कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 385 एवम् 386 को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि अपील की सुनवाई हेतु निर्धारित तिथि एवं समय पर अपीलार्थी एवं उसके अधिवक्ता को न्यायालय में उपस्थित रहना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो न्यायालय अभिलेख तथा गुण दोष के आधार पर अपील का निपटारा कर सकता है।

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