Sunday, May 17

जमानत के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता में क्या उपबंध एवं जमानत की मांग साधिकार

दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 33 में जमानत तथा बंध पत्र के बारे में विशेष उपबंध धारा 436 से 450 में किया गया है। जमानत शब्द को संहिता में परिभाषित नहीं किया गया किंतु इसका तात्पर्य कैदी की हाजिरी सुनिश्चित करने हेतु ऐसी प्रतिभूति से है जिसको देने पर को अन्वेषण तथा विचारण के लंबित होने की दशा में छोड़ दिया जाता है जमानत संबंधी उपबंध इस अवधारणा पर आधारित है कि किसी भी व्यक्ति की स्वाधीनता में अयुक्तयुक्त एवं अन्याय पूर्ण हस्तक्षेप न किया जाए।

         दंड प्रक्रिया संहिता में अपराध को जमानत के दृष्टिकोण से दो भागों में रखा गया है। प्रथम वह जहां जमानत की मांग साधिकार की जा सकती है, द्वितीय वह जब जमानत देना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। जहाँ जमानत उन मामलों से संबंधित होती है जिस में जमानत स्वीकार करना न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है ऐसी परिस्थितियों का उल्लेख संहिता की धारा 437 में किया गया है।

        धारा 437 के अनुसार जब कोई व्यक्ति जिस पर  अजमानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर संदेह है कि उसने अजमानतीय  अपराध किया है पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी द्वारा गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है और उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है किंतु वह जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा—

A. यदि यह विश्वास करने का उचित आधार है कि उसने मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय कोई अपराध किया है।
B. यदि ऐसा अपराध संज्ञेय अपराध है और वह व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या 7 वर्ष या अधिक के कारावास से, पहले दोष सिद्ध किया गया है।
C. यदि वाह 3 वर्ष से अधिक किंतु 7 वर्ष से अनधिक के कारावास से दंडनीय किसी संज्ञेय अपराध के लिए दो या अधिक अवसरों पर दोष सिद्ध किया गया है।
परंतु वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है—

1. यदि वह 16 वर्ष से कम आयु का है,
2. यदि वह स्त्री है,
3. यदि वह रोगी है,
4. यदि वह शिथीलांग व्यक्ति है।

      उपरोक्त प्रकार की शक्तियों में जमानत पर छोड़े जाते समय न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा।

      जब कोई व्यक्ति जिस पर 7 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय अपराध अथवा भारतीय दंड संहिता के अध्याय 6 ,16 या 17 के अधीन अपराध करने का दुष्प्रेरण या षड्यंत्र करने या प्रयत्न करने का संदेश या अभियोग है और उपरोक्त प्रकार से जमानत पर छोड़ा जाता है तो न्यायालय यह शर्त अधिरोपित करेगा की—

A. ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंध पत्र की शर्तों के अनुसार हाजिर होगा।
B. ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है अपराध नहीं करेगा।
C. ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को उत्प्रेरण धमकी या बचन नहीं देगा ना ही साक्ष्य को बिगाड़ेगा।
D. ऐसी अन्य शर्ते जो न्याय हित में ए अधिरोपित कर सकता है।

लोकेश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2009 सुप्रीम कोर्ट के मामले में यह आधारित किया गया कि धारा 437 के अंतर्गत जमानत के प्रार्थना पत्र का निस्तारण करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना अपेक्षित है—

A. अपराध की प्रकृति
B. दंड की गंभीरता
C. साक्षियों के बहकाए या धमकाए जाने की आशंका।
D. आरोप के संबंध में न्यायालय का प्रथम दृष्टया समाधान

मोतीराम बनाम मध्य प्रदेश राज 1978 सुप्रीम कोर्ट के मामले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर ने यह मत व्यक्त किया कि संहिता के अधीन अपराधों को जमानतीय तथा अजमानतीय अपराध में वर्गीकृत किया गया है जमानतीय अपराध की दशा में अभियुक्त को अधिकार के रूप में जमानत पर छोड़ा जाएगा किंतु अजमानतीय अपराध की दशा में वह तब तक जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा जब तक कि न्यायालय उसे जमानत पर छोड़ने हेतु स्वयं संतुष्ट ना हो जाए। फिर भी अपराध जमानतीय हो या अजमानतीय जमानत एक नियम है और जेल अपवाद है। किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ते समय उस पर अनावश्यक शर्तें नहीं अधिरोपित की जानी चाहिए।

कब जमानत साधिकार मांगी जा सकती है—

         दंड प्रक्रिया संहिता में वर्णित निम्नलिखित धाराओं के अंतर्गत व्यक्ति जमानत की मांग साधिकार कर सकता है—

1. धारा 436 के अनुसार जब अजमानतीय अपराध के अभियुक्त से भिन्न कोई व्यक्ति पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है या न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है और जमानत देने के लिए तैयार है तो वह जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।

        यदि न्यायालय या अधिकारी ठीक समझे तो हाजिर होने के लिए प्रतिभूति रहित बंध पत्र निष्पादित करने पर उन्हें उन्मोचित कर सकता है किंतु ऐसा व्यक्ति निर्धन है और प्रतिभूति देने में असमर्थ है तो उसे उन्मोचित कर सकता है।

    कोई व्यक्ति गिरफ्तारी की तारीख से एक सप्ताह के भीतर जमानत देने में असमर्थ है तो यह मान लिया जाएगा कि वह निर्धन है।

2. धारा 436(6) के अनुसार मृत्युदंड से दंडनीय किसी अपराध से भिन्न अपराध में अन्वेषण एवं जांच या विचारण के दौरान आधे कारावास की अवधि अभिरक्षा में बिता चुका है तो जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।

3. धारा 437(2) के अनुसार जहां अभियुक्त किसी अपराध का दोषी है किंतु उसके द्वारा अजमानतीय अपराध किए जाने का उचित आधार नहीं है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।

4. धारा 437(6) के अनुसार मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में यदि अभियुक्त अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है और साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता और वह व्यक्ति संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।

5. धारा 437(7) के अनुसार यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति का विचारण समाप्त हो जाने के पश्चात परंतु निर्णय सुनाए जाने के पूर्व न्यायालय की राय है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। 

6. धारा 438(3) के अनुसार जहां अभियुक्त ने अग्रिम जमानत का आदेश प्राप्त किया है और पुलिस अधिकारी द्वारा वारंट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और जमानत देने को तैयार है तो जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। 

7. धारा 167(2) के परंतु के अनुसार यदि अन्वेषण निर्धारित अवधि अर्थात 90 वर्ष 60 दिन में पूरा नहीं होता और अभियुक्त जमानत देने पर तैयार है तो जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। 

डॉक्टर दत्तात्रेय सामंत बनाम मध्य प्रदेश राज 1981 मुंबई के मामले में आधारित किया गया कि यदि अभियुक्त व्यक्ति जमानती अपराध की दशा में जमानत देने को तैयार है तथा अन्य शर्तें संतोषजनक है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाना चाहिए। 

 कवर सिंह मीणा बनाम राजस्थान राज्य 2013 सुप्रीम कोर्ट के मामले में निर्धारित किया गया कि जमानत के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करते समय न्यायालय को साक्ष्य का अतिसावधानी अथवा सतर्कता से साक्ष्य का परीक्षण नहीं करना चाहिए। 

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