Sunday, May 17

निम्न परिस्थितियों में जमानत रद्द किया जा सकता है

जमानत रद्द किए जाने की शक्ति जमानत आदेश में ही अंतर्निहित होती है और न्यायालय कभी भी उसे वापस ले सकता है अथवा निरस्त कर सकता है जमानत निरस्त करने से संबंधित प्रावधान निम्नलिखित है-

1. धारा 437 खंड 5 के अनुसार यदि कोई न्यायालय जिसने अजमानती अपराध के मामले में जमानत पर छोड़ दिया है आवश्यक समझता है तो अभियुक्त को गिरफ्तार करने का आदेश दे सकता है और अभिरक्षा के लिए सौप सकता है।

2. धारा 439(2) में जमानत को रद्द करने के संबंध में सेशन न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की शक्ति का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है धारा में वर्णित प्रावधानों के अनुसार सेशन न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।

3. 482 के अनुसार उच्च न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति का उल्लेख किया गया है इस अंतर्निहित शक्ति के अधीन भी उच्च न्यायालय जमानत को रद्द कर सकता है।

रतीलाल भानजी मथानी बनाम असिस्टेंट कलेक्टर कस्टम 1967 सुप्रीम कोर्ट के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मत व्यक्त किया कि यदि उच्च न्यायालय अंतर्निहित शक्ति के अंतर्गत अभियुक्त की जमानत को निरस्त कर देता है जिसके कारण उसकी स्वाधीनता प्रभावित होती है तो इस तरह की जमानत की निरस्ती विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही होनी चाहिए अन्यथा उच्च न्यायालय का यह कार्य संविधान के अनुच्छेद 21 के विपरीत माना जाएगा।

सामान्यतः न्यायालय निम्न बातों का समाधान हो जाने पर जमानत रद्द कर सकते –

1. यह की विचारण के लिए अपेक्षित समय पर अभियुक्त उपस्थित नहीं रहता
2. यह कि उसी अपराध को पुनः कारित करता है जिसके लिए वह जमानत पर छोड़ा गया था।
3. यह की जमानत पर छोड़े जाने के बाद वह साक्षियों को अपना कथन बदलने के लिए धमकी वचन अभिप्रेरणा आदि देता है।
4. यह कि वह फरार हो जाता है
5. यह कि यदि जमानत पर छोड़े जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्ष से बदला लेने की संभावना या पुनः शांति भंग होने की संभावना आदि है।

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